प्रख्यात मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील सुधा भारद्वाज के ख़िलाफ़ रिपब्लिक टीवी के ऐंकर अर्णब गोस्वामी के दुष्प्रचार के ख़िलाफ़ बुद्धिजीवियों, शिक्षकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों का बयान
लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, मानवाधिकार, संवैधानिक संप्रभुता और कानून के राज के पक्ष में खड़े तमाम लोगों के खिलाफ एक दुष्प्रचारक के बतौर धर्मयुद्ध छेड़े हुए रिपब्लिक टीवी चैनल के हालिया करतूत के खिलाफ हम सभी अपने भीतर के घोर आक्रोश, उपेक्षा और घृणा को प्रदर्शित करना चाहते हैं।
एडवोकेट सुधा भारद्वाज रिपब्लिक टीवी का ताज़ा निशाने पर हैं जो पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ की राष्ट्रीय सचिव हैं, इंडियन असोसिएशन ऑफ प्रोग्रेसिव लॉयर्स की उपाध्यक्ष हैं और दिल्ली की नेशनल लॉ युनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर हैं। एक ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता, मानवाधिकार रक्षक, पर्यावरण अधिवक्ता और राज्य की तमाम संस्थाओं की सम्मानित सलाहकार के बतौर अपने तीन दशक के काम के लिए वे अच्छे से जानी जाती हैं। वे राज्य की विधिक सहायता इकाइयों और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में भी रह चुकी हैं।
रिपब्लिक टीवी के अनुसार ये समर्पित और प्रतिबद्ध अधिवक्ता एक ”शहरी माओवादी” है जो देश भर के अलगाववादी समूहों और सशस्त्र गुरिल्लों के साथ मिलकर ”भारत को तोड़ने की साजिश” में लगी है। एडवोकेट भारद्वाज के खिलाफ आरोपों और बदनीयत इल्ज़ामों की लंबी फेहरिस्त का आधार एक चिट्ठी है जिसे रिपब्लिक टीवी उनके द्वारा लिखी बता रहा है जो चैनल के पास है।
इस पत्र की प्रामाणिकता और स्रोत के बारे में हमें रिपब्लिक टीवी नहीं बता रहा है। इस पत्र की भाषा कठोर और बेअदब है, जिसमें कथित लेखक खुद की पहचान ”कॉमरेड एडवोकेट सुधा भारद्वाज” बता रहा है और ऐसे तमाम जाने-अनजाने लोगों के नामों का जिक्र कर रहा है जिन्हें बाकायदे ”कामरेड” कह कर संबोधित किया गया है। रिपब्लिक टीवी के मुताबिक इसकी कथित सामग्री कश्मीरी अलगाववादियों, ”शहरी नक्सल” और जेएनयू व टीआइएसएस के छात्रों सहित तमाम उन लोगों के बीच एक ”सनसनीखेज” रिश्ता स्थापित करती है जो राज्य की जनविरोधी नीतियों के पक्ष में खड़े होते हैं। चैनल के मुताबिक ये ऐसे ”अकाट्य और अप्रश्नेय तथ्य” हैं जिन पर सवाल खड़ा नहीं किया जा सकता।
ये कथित पत्र ऐसे ही ”दस्तावेज़ी साक्ष्यों” के संदिग्ध अभिलेखागार का हिस्सा हैं जिन्हें जांच एजेंसियां नियमित रूप से प्रेस को इस उत्साह में लीक करती रहती हैं कि तमाम किस्म के ”अपराधों” को कार्यकर्ताओं, जनांदोलनों के नेताओं, राजनीतिक विरोधियों, मानवाधिकार रक्षकों, सरकारी नीति के आलोचकों और उन अन्य नागरिकों के सिर मढ़ा जा सके जो मुक्त अभिव्यक्ति, असहमति और राजनीतिक गतिविधि के अपने वैधानिक अधिकारों का पालन कर रहे हैं।
रिपब्लिक टीवी की ओर से सत्ताधारी दल के जानेमाने आलोचकों के खिलाफ ऐसे मनगढ़ंत आरोप और आविष्कृत आक्षेप स्पष्ट तौर से उन दर्शकों के मस्तिष्क में साक्ष्य और आरोप, आरोप और सबूत, संयोग और कार्य-कारण के बीच की विभाजक रेखाओं को धुंधला करने की ओर निर्देशित हैं जिनकी पहुंच सूचना के विभिन्न स्रोतों तक नहीं है।
उतना ही खतरनाक ”शहरी नक्सल” और ”टुकड़े-टुकड़े गिरोह” जैसे कलंकित करने वाले जुमलों का गढ़ा जाना है जो बार-बार दुहराए जाने पर सच्चे लगने लगते हैं जबकि ये कानूनी, सियासी और तथ्यात्मक स्तर पर अपुष्ट हैं।
इस शर्मनाक हेरफेर के कानूनी परिणाम हमें आज मुसलमानों, दलितों और दूषित वॉट्सएप संदेशें व वीडियो के आधार पर अपराधी की तरह पहचाने गए अन्य के ऊपर भीड़ के जानलेवा हमले के रूप में देखने को मिल रहे हैं।
एडवोकेट भारद्वाज के ऊपर यह हमला अव्वल तो बेतुका जान पड़ता है लेकिन यह सभी संस्थाओं और राजकाज की जगहों पर निरपेक्ष नियंण कायम करने की कोशिशों के रूप में एक बड़ा जाल बिछाए जाने का संकेत भी है। हम तमाम जिम्मेदार लोगों से अपील करते हैं कि वे मोदी सरकार और मीडिया में उससे नत्थी दुष्प्रचारकों के इस ताज़ा हमले को उजागर कर उसकी निंदा करें जो लोकतांत्रिक संस्थानों का अतिक्रमण कर रहे हैं, कानून के राज को नहीं मानते, असहमति की हर आवाज़ को दबाना चाहते हैं और उन सब को कुचल देना चाहते हैं जो निरंकुश राज पर सवाल उठाते हैं या उसे चुनौती देते हैं।
हम मीडिया संस्थानों, पेशेवर संगठनों और बड़े पत्रकारों का आह्वान करते हैं कि वे बाहर निकलें और इस किस्म की ज़हरीले, अनैतिक और बदनुमा पत्रकारिता के वाहकों की निंदा करें।
दस्तख़त- 100 बुद्धिजीवी, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता।
कौन हैं सुधा भारद्वाज, नीचे क्लिक करके पढ़ें—-
जिसने US की नागरिकता कूड़े में फेंक झुग्गियों में काट दी ज़िन्दगी, उस IIT टॉपर से एक मुलाक़ात
तस्वीर, वेबसाइट BAR & BENCH से साभार।