बनारस के प्रतिष्ठित मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. लेनिन रघुवंशी के ऊपर पांच साल बाद के बाद एक बार फिर जानलेवा हमला हुआ है। इस बार हमलावर हिंदूवादी संगठनों के बजाय खुद यूपी पुलिस है।
घटना 26 अप्रैल की है जब डॉ. लेनिन एक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में व्याख्यान देकर लंदन के किंग्स कॉलेज से बनारस वापस लौटे थे। घर लौटकर उन्हें पता चला कि पांच दिन पहले 21 अप्रैल को पड़ोस के एक विवाह समारोह में उनके छोटे भाई कणाद के ऊपर कुछ गुंडों ने जानलेवा हमला किया था जिससे उनके सिर में गंभीर चोटें आईं थीं और 18 टांके लगे थे। उनके भाई एफआइआर कराने गए थे लेकिन शिकायत दर्ज नहीं की गई। यह पता चलते ही डॉ. लेनिन कैंटोनमेंट पुलिस स्टेशन गए और वहां जाकर उन्होंने एफआइआर दर्ज न करने का कारण जानना चाहा। उन्हें पुलिस ने पहडि़या थाने से संपर्क करने को कहा।
जब वे पहडि़या थाने पहुंचे तो पुलिसवालों ने बिना बात के उनके साथ बुरा सुलूक किया। बिना कोई बातचीत हुए ही तीन पुलिसवाले उनके ऊपर झपट पड़े, गाली-गलौज करने लगे जबकि एक अन्य पुलिसकर्मी इस हो-हल्ले को अपने मोबाइल फोन में रिकॉर्ड कर रहा था। इस बीच पुलिसवालों ने पूरी योजना के साथ अपने नामों के बिल्ले वर्दी पर से हटा दिए और हिंसक हो गए। मामला हिंसक होता देख डॉ. लेनिन अपनी मोटरसाइकिल के पास पहुंचे। इसी बीच एक पुलिसवाला उन पर झपटा और उनकी बाई बांह मरोड़ते हुए बाइक को धक्का देने लगा।
देश भर के मानवाधिकार कर्मियों को भेजे एक पत्र में पीवीसीएचआर के सीईओ डॉ. लेनिन ने अपने साथ हुई हिंसा का ब्योरा दिया है। इसके मुताबिक जब पुलिसवाला उन पर झपटा, तो उन्होंने कानून का हवाला दिया और कहा कि वे कैंटोनमेंट थाने से संपर्क करें। इस पर पुलिसवाले और हिंसक हो गए। एक ने कहा, ”तुमने हमारे खिलाफ तमाम मामले दर्ज करवा के हमारे लिए बहुत परेशानी खड़ी की है।” ज़ाहिर है, वे डॉ. लेनिन द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में दर्ज करायी गई शिकायतों का जि़क्र कर रहे थे। इन सभी पुलिसवालों ने हमला करने से पहले अपन नाम का बिल्ला वर्दी पर से हटा दिया था लिहाजा डॉ. लेनिन उनके नाम नोट नहीं कर सके।
इस बीच कैंटोनमेंट थाने से कुछ पुलिसवाले मौके पर पहुंच गए। डॉ. लेनिन ने उनसे अपना मेडिको-लीगल परीक्षण कराने की मांग की जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। पुलिस ने उनहें चुपचाप घर जाने की नसीहत दी। घर आकर डॉ. लेनिन ने अपनी आपबीती फेसबुक पर लिखी। उसी दिन दोपहर 2.51 पर उन्होंने अपने मोबाइल से पुलिस के आपातकालीन नंबर 100 पर डायल किया जहां से उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। फिर उन्होंने मदद के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के ह्यूमन राइट्स डिफेंडर डेस्क हेल्पलाइन पर फोन किया। वहां से भी कोई जवाब नहीं आया। शाम पौने सात बजे डेस्क से उनके पास पलटकर कॉल आई लेकिन उस वक्त वे दवा लेकर सो रहे थे।
अगले दिन 27 अप्रैल को मानवाधिकार आयोग ने डॉ. लेनिन के भाई कणाद पर हमले का स्वत: संज्ञान लेते हुए धरा 307 और 392 में एफआइआर कराने में मदद की।
इससे पहले 24 अप्रैल 2013 को रात आठ बजे अज्ञात हमलावरों ने डॉ. लेनिन की जान पर हमला किया था। इस मामले में धारा 307, 452, 343 और 325 के तहत एफआइआर की गई थी। इससे पहले 28 फरवरी 2013 को किसी सुनील गुप्ता ने इलाहाबाद हाइकोर्ट में डॉ. लेनिन के खिलाफ हेबियस कॉर्पस याचिका दायर की थी जिसके खिलाफ 18 मार्च 2013 को कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। इसके बाद सुनील गुप्ता के उपर और उनकी तरफ से दो एफआइआर हुई।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इन तमाम एफआइआर को एक मामले में समेटते हुए केस संख्या 42218/24/72/201 के तहत लाकर जांच शुरू की। इन्हीं मामलों में बीती 20 फरवरी 2018 को आयोग ने पीएचआर कानून की धारा 13 के तहत बनारस के एसएसपी को तलब कर लिया और डॉ. लेनिन के खिलाफ पहडि़या थाने में हुई दो रहस्यमय एफआइआर के मामले में लापरवाही बतरने पर सवाल किया।
डॉ. लेनिन ने यह पूरा मामला लिखकर उत्तर प्रदेश के डीजीपी, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और बनारस के एसएसपी को भेजा है।