2 सितंबर को मज़दूर यूनियनों की हड़ताल में 18 करोड़ मज़दूर शामिल हुए जिससे करीब 18000 करोड़ का नुकसान हुआ (इससे अर्थव्यवस्था में मज़दूरों के योगदान का पता चलत है )। मीडिया ने इस आँकड़े को ख़ुद पेश किया है लेकिन अपने कवरेज में निहायत ही मज़दूर विरोधी रुख़ ज़ाहिर किया है। मज़दूरों का पक्ष वास्तव में क्या है और उनकी माँगें ठीक-ठीक हैं क्या, यह बताने की रुचि किसी में नहीं दिखी। मीडिया विजिल ने चारअंग्रेज़ी और पाँच हिंदी अख़बारों के दिल्ली संस्करण को ई-पेपर के ज़रिये खंगाला तो पता चला कि ज़्यादातर ने इसे पहले पन्ने पर जगह ही नहीं दी है और आगे किसी पन्ने में भी जो बताया है वह उसमें भी एक हिक़ारत है। तस्वीरों के चयन और उनकी जगह तय करते हुए यह ख़ास ध्यान रखा गया है कि हड़ताल के प्रभावी होने का कोई संदेश न जाने पाए। ज़्यादतर तस्वीरें नकारात्मक भाव वाली हैं। इसमें कोई शक नहीं कि अख़बार मालिकों का मज़दूर विरोध रवैया उनके अख़बारों की कवरेज में साफ़-झलक रहा है। हाँ, उन्होंने संदीप कुमार सीडी कांड से लेकर तीन तलाक पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के रवैये की ख़बर को ख़ूब चटख़ारे लेकर छापा है जो बताता है कि वे कैसे मुद्दों को बीच बहस रखना चाहते हैं–संपादक
टाइम्स आफ इंडिया— देश के इस सबसे बड़े अख़बार के पहले पन्ने पर हड़ताल से जुड़ी कोई ख़बर नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के जज चेलेश्वरम का कॉलेजियम की बैठक में न जाने की ख़बर लीड है। तीन तलाक़ पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में जो कहा है वह शुरू से उसका स्टैंड रहा है, लेकिन पहले पन्ने पर इसे जगह दी गई है। पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू की अलग पार्टी बनाने की जानकारी है। हड़ताल के बारे में पेज नंबर 12 पर छोटी सी खबर जिसमें कहा गया है कि इसे ट्रेड युनियनों ने सफल बताया जबकि सरकार ने कहा कि बेहद कम असर हुआ। सिर्फ एक तस्वीर छापी गई है जिसमें भुवनेश्वर में ऑटो तोड़ने के लिए डंडा उठाये एक नौजवान दिख रहा है।
इंडियन एक्सप्रेस—पहले पन्ने पर हड़ताल का कोई जिक्र नहीं। पेज नंबर दस पर राज्यों में हुए छिटपुट असर का ब्योरा। किसी जुलूस, झंडे या ट्रेडयूनियन नेता की तस्वीर नहीं। लोगों की परेशानी दर्शाने वाली कुछ तस्वीरें और सभी ब्लैक एंड व्हाइट में। नेताओं में तस्वीर ममता बनर्जी की है जो बता रही हैं कि हड़ताल पूरी तरह असफल हो गई। अख़बार की लीड है –अरुणाचल के राज्यपाल को हटने को कहा गया, पर वे नहीं जानते क्यों !
हिंदुस्तान टाइम्स— अख़बार ने पीएम मोदी का इंटरव्यू लीड बनाया है। पहले पन्ने पर पर्सनल लॉ बोर्ड और सिद्धू की पार्टी की ख़बर है लेकिन हड़ताल ग़ायब। पेज नंबर 8 पर एक छोटी सी ख़बर है जिसमें कहा गया है कि हड़ताल का मिलाजुला असर हुआ। एक तस्वीर है जिसमें जलते हुए टायर हैं.
द हिंदू—अंग्रेज़ी अख़बारों में दि हिंदू अकेला दिखा जिसने हड़ताल को अपनी मुख्य खबर बनाया है। पेज देखकर हड़ताल के असर और इसके महत्व का अंदाज़ भी होता है। केरल और त्रिपुरा में ज़बरदस्त बंदी का जिक्र हेडलाइन में है।
हिंदुस्तान-– अकेला हिंदी अख़बार है जिसने हड़ताल को लीड बनाया है। हेडलाइन है – महाहड़ताल से कामकाज ठप। 18000 करोड़ के नुकसान का दावा भी किया गया है। लेकिन मूल माँगे क्या हैं और क्यों हड़ताल की गई, इसकी कोई जानकारी नहीं। वैसे, मुख्य पृष्ठ पर प्रदर्शन की तस्वीर है जिसमें एक लड़की लाल झंडा थामे नारा लगा रही है। बाक़ी तीन तलाक और सिद्धू की पार्टी से जुड़ी ख़बर है । पेज नंबर दो पर कुछ छिटपुट खबरें हैं। दिल्ली में नर्सों की हड़ताल से मरीजों की परेशानी पर फोकस है।
इस अख़बार का संपदाकीय है- हड़ताल के बाद। इसमें सरकार की मजबूरियों का बयान है। सरकार से सहानुभूति स्पष्ट है।
नवभारत टाइम्स—राजधानी के सर्वाधिक प्रसार वाले हिंदी अख़बार कहे जाने वाले नवभारत टाइम्स में लीड है – सिद्धू ने ‘चौके’ की ताल ठोंकी। दायीं ओर टॉप पर एक हेडिंग है- हड़ताल से मरीज़ हुए बेहाल और एक ऑटो से स्ट्रैचर से लादे जाते मरीज़ की तस्वीर है। यह दिल्ली में शुरू हुई नर्सों की हड़ताल की ख़बर है। और ट्रैड यूनियन हड़ताल की ख़बर..? है न…कोने में सिंगल क़ालम हेडिंग है- असर कहीं ज्यादा, कहीं कम रहा…इसके नीचे कुछ प्वाइंटर्स हैं जिनसे आप देशव्यापी मज़दूर हड़ताल का पता लगा सकते हैं। पेज नंबर 11 पर तीन छोटी तस्वीरें हैं जिसके ऊपर हेडिंग है केरल और त्रिपुरा में रहा चक्का जाम, बस।
दैनिक जागरण—प्रसार की दृष्टि से देश के नंबर एक अख़बार की लीड पीएम का इंटरव्यू है। लिखा है- मोदी का दलित समर्थक होना पचा नहीं पा रहे लोग-पीएम। पहले पन्ने के निचले हिस्से में एक छोटी सी दो कॉलम खबर दी गई है- ट्रेड युनियनों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल का छिटपुट असर। कोई तस्वीर नहीं है। अखबार इंट्रो में ही बताता है कि बीजेपी से जुड़े भारतीय मजदूर संघ के हड़ताल में शामिल न होने की वजह से इसका ख़ास असर नहीं हो सका। दिल्ली के बरख़ास्त मंत्री संदीप कुमार के सीडी काड पर आप नेता आशुतोष के ब्लॉग और पर्सनल ला बोर्ड के हलफनामे की खबर विस्तार से है।
अमर उजाला —लीड है पीएम का बयान– विकास के मोर्चे पर यूपी में लड़ेंगे चुनाव। दूसरी महत्वपूर्ण खबर है पर्सन लॉ बोर्ड और सिद्धू की खबर। पहले पेज के निचले हिस्से में तीन कालम में खबर है – हड़ताल का रहा मिला जुला असर। एक बैंक की तस्वीर छपी है। किसी जुलूस या धरने की कोई तस्वीर नहीं। कलर तो बिलकुल भी नहीं। सरकार की मजबूरियों और आर्थिक नुकसान का हवाला देते हुए हड़ताल पर अदालती बैन को ठीक बताते हुए संपादकीय है जिसके बीच एक काली-सफेद तस्वीर है। बस।
दैनिक भास्कर—हड़ताल की ख़बर पहले पेज से ग़ायब है। लीड है कि सहारा के पास 25000 करोड़ आने का सोर्स पूछा अदालत ने। आशुतोष का संदीप कुमार के पक्ष में आने और केजरीवाल से निराश सिद्धू जैसी दूसरी अहम हेडलाइन हैं। प्रधानमंत्री के इंटरव्यू और पर्सनल ला वाली खबर है.
भास्कर में पेज नंबर 6 बिजनेस पेज होता है। यहाँ ख़बर है जिसकी हेडिंग है -केरल को छोड़कर कहीं नहीं दिखा हड़ताल का असर। हांलाकि 18000 करोड़ का नुकसान भी बताया है। आंदोलन, प्रदर्शन या जुलूस की जगह हड़ताल दिखाने के लिए कोलकाता हवाई हड्डे पर एक परेशान हाल विदेशी महिला की तस्वीर है जो अपने बच्चे को पीठ पर लादे हुए है। भास्कर बीएमस के अलग रहने से हड़ताल कमजोर होने का दावा करना नहीं भूला है।.