चैनलों में RSS की नियमित मौजूदगी, ‘हिंदुत्व’ प्रोजेक्ट का हिस्सा !

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(इन दिनों न्यूज़ चैनलों की बहस में आरएसएस का कोई प्रवक्ता आमतौर पर मौजूद रहता है। साथ में संघ संप्रदाय की किसी और शाखा का प्रतिनिधि भी होता है। इसके अलावा बीजेपी का प्रवक्ता जिनकी हाँ में हाँ मिलाने वाले एंकर। इस तरह कुल चार लोग एक सुर में बोलते हुए बाकी बचे एक या दो प्रतिनिधि की धुलाई करते हैं। यह सब अनायास नहीं है। कोलकाता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी इसे मैन्यूफैक्चरिंग कन्सेंट का ही एक तरीका मानते हैं जो राजनीतिक लिहाज से कम जागरूक लोगों को अपने निशाने पर रखता है। नीचे प्रस्तुत है प्रो.चतुर्वेदी का लेख–संपादक)

पहले यह सोचा गया समाचार टीवी चैनल आएंगे तो समाचारों की बाढ़ आएगी,विभिन्न रंगत के न्यूज चैनलों के जरिए खबरों को व्यापक स्थान मिलेगा, नए किस्म का टीवी विमर्श जन्म लेगा। शुरू के वर्षों में कुछ उम्मीदें बंधी थीं,लेकिन जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है टीवी न्यूज चैनलों का समूचा चरित्र गुणात्मक तौर बदल गया है।  खबरों की स्वायत्तता ,व्यापार की स्वायत्तता में बदल गयी है। न्यूज चैनलों में इरेशनल,अप्रासंगिक और बंधुआ विचारों ने स्थायी संप्रेषण की जगह बना ली है।इस तरह की खबरें और विचार ज्यादा प्रसारित हो रहे हैं जो अप्रासंगिक है या सामाजिक विभाजन को तेज करने वाले हैं।इनमें आरएसएस के प्रवक्ता या उसकी विचारधारा के पक्षधर की नियमित मौजूदगी को सहज ही देख सकते हैं।

सवाल उठता है आरएसएस के प्रवक्ता को टीवी टॉक शो में क्यों बुलाया जाता है और किन विषयों पर बुलाया जाता है ॽ मोदी सरकार आने के बाद से इस तरह के कार्यक्रमों में आरएसएस के प्रवक्ता ज्यादा नजर आते हैं जो सवाल हिन्दुत्व या हिन्दूधर्म से जुड़े हैं।भारत में हजारों सामाजिक-धार्मिक संगठन हैं,इनमें अनेक प्रतिष्ठित संगठन हैं जिनके लाखों अनुयायी हैं,लेकिन उनमें से किसी भी संगठन के प्रवक्ता को आप नियमित रूप में टीवी टॉक शो में नहीं देखेंगे। लेकिन आरएसएस के प्रवक्ता को जरूर देखेंगे।यहां तक कि नियमित तौर पर वामदलों के प्रवक्ता को अनुपस्थिति देखेंगे।

सवाल यह है आरएसएस के प्रवक्ता को प्रतिदिन टीवी चैनलों पर स्थान क्यों दिया जा रहा है ॽवह कौन सी मजबूरी है जिसके कारण न्यूज चैनल यह काम कर रहे हैं ॽ आरएसएस पहले भी था लेकिन मोदी सरकार बनने के पहले तक टीवी टॉक शो में आरएसएस के प्रवक्ता की यदा-कदा उपस्थिति होती थी लेकिन इन दिनों राजनीतिक मसलों पर रोज उपस्थिति रहती है।जबकि आरएसएस यह दावा करता है कि वह सामाजिक संगठन है।इसके बावजूद उसके प्रवक्ता को बुलाने का मकसद क्या है ॽ

जो संगठन जमीनी स्तर पर हिन्दुत्व के एजेण्डे का विरोध कर रहे हैं ,प्रतिवाद की भाषा बोलते हैं,संघर्ष कर रहे हैं उन संगठनों के प्रतिनिधियों टीवी टॉक शो में नियमित अनुपस्थिति और आरएसएस के प्रवक्ता की नियमित उपस्थिति दर्शकों के मन में यह धारणा पैदा कर रही है कि आरएसएस ऐसा संगठन है जिसकी विचारधारा को देश में चुनौती देने वाला कोई नहीं है।संघ के विचार सर्वग्राह्य विचार हैं। इस तरह के कम्युनिकेशन से वे लोग ज्यादा प्रभावित होते हैं जो राजनीति कम जानते हैं और सामाजिक तौर पर निष्क्रिय हैं।खासकर औरतें और युवावर्ग इस तरह के अहर्निश कम्युनिकेशन से बड़ी मात्रा में प्रभावित हो रहे हैं।

असल में मौजूदा दौर ´पृष्ठभूमि´ की विचारधाराओं के उद्घाटन या उनके क्षितिज पर आ जाने का दौर है।संघ लंबे समय से ´पृष्ठभूमि´ के विचारधारात्मक संगठन के रूप में काम करता रहा है लेकिन इधर अचानक हिन्दुत्व के हिंसाचार और अपराध की खबरों के टीवी में तेजी से आने के कारण यह संगठन चमत्कृत ढ़ंग से सामने आ गया है और अब रोज ही उसके प्रवक्ता टीवी चैनलों पर बैठे रहते हैं।इस समय जितने भी राजनैतिक मसले हैं उन पर संघ की विचारधारात्मक राय को महत्व दिया जा रहा है । मोदी सरकार आने के पहले तक संघ और केन्द्र सरकार को अलग -पृथक –प्रच्छन्न दिखाया जाता था लेकिन मोदी सरकार आने के बाद अब हर राजनीतिक घटना पर प्रत्यक्ष और सीधे हस्तक्षेप करता,केन्द्र सरकार से संबंध जोड़ता दिखाया जा रहा है।

भाजपा की सरकारों के साथ इस तरह का गाँठ बांधकर प्रचार करना अपने आपमें नया फिनोमिना है।पहले घटनाक्रम पर सरकार नियंत्रक नजर आती थी अब संघ नियंत्रक नजर आता है,संघ के प्रवक्ता जो कहते हैं वह पत्थर की लकीर होता है,सरकार के प्रवक्ता या भाजपा के प्रवक्ता हमेशा संघ के प्रवक्ता के पूरक होते हैं,कभी –कभी संघ प्रवक्ता पूरक नजर आता है।लेकिन नियंत्रक और पूरक का यह वैचारिक संबंध नई विचारधारात्मक परिघटना है।इस पूरे प्रसंग में किसी भी टॉक शो के अंदर संघ के लोग एंकर के साथ मिलकर बहस के नियंत्रक के रूप में पेश किए जाते हैं। अन्य नियंत्रित के रूप में पेश किए जाते हैं,इससे दर्शकों के मन में यह भाव संप्रेषित हो रहा है कि संघ नियंत्रक है और बकी नियंत्रित हैं।इसमें तर्क बनाम अंधश्रद्धा की टीवी जंग भी है,इसमें तर्क को अंधश्रद्धा नियंत्रण करती नजर आती है। इस फॉरमेट में एक तरफ ज्ञान और सूचनाएं पिटती नजर आती हैं तो दूसरी ओर अज्ञान ,कठमुल्लापन-कु-सूचना जीतती दिखायी जा रही है।

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