मीडिया विजिल डेस्क
पूरे 18 साल पहले की बात है जब 20 मार्च सन् 2000 को अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत यात्रा के समानांतर जम्मू और कश्मीर में अल्पसंख्यक सिख समुदाय के 35 लोगों की अनंतनाग जिले के छत्तीसिंहपुरा गांव में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। सेना ने दावा किया था कि यह काम ”पाकिस्तान समर्थित इस्लामिक कट्टर समूह लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों का है”।
इस घटना के इतने बरस बाद तमाम ऐसे साक्ष्य सामने आ चुके हैं जो बताते हैं कि सेना का दावा गलत था। सिखों के साथ भारतीय राज्य द्वारा किए गए इस ऐतिहासिक विश्वासघात को याद किया जाना ज़रूरी है ताकि यह समझा जा सके कि लोकतांत्रिक कहलाने वाला एक राज्य कैसे काम करता है।
इंडिया टुडे में एक रिपोर्ट छपी जिसका शीर्षक था, ”आतंकवादियों ने कश्मीर घाटी में किया सिखों का पहला नरसंहार…”। पत्रिका ने दावा किया कि ”लश्कर-ए-तैयबा के विदेशी सदस्य जिन्होंने हत्याकांड को अंजाम दिया भारतीय फौज की वर्दी पहनकर आए थे जो फर्जी या चोरी की थी।” छत्तीसिंहपुरा के बाद राष्ट्रीय राइफल्स से पांच ”विदेशी आतंकवादियों” को मार गिराने का दावा किया। ये लड़के बाद में स्थानीय निकले। इसे पाथरीबल फर्जी मुठभेड़ कांड के नाम से जाना जाता है।
इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक सीबीआइ ने 2006 में राष्ट्रीय राइफल्स के पांच सदस्यों को कथित तौर पर पांच नागरिकों की हत्या का दोषी पाया, जिनमें तीन पर इलज़ाम लगाया गया था कि वे पाकिस्तानी आतंकवादी थे जिन्होंने छत्तीसिंहपुरा में 35 सिखों का कत्ल किया था। दो अन्य को अज्ञात आतंकवादी बताया गया था।
इस जांच का हिस्सा रहे अवकाश प्राप्त लेफ्टिनेंट जनरल केएस गिल ने 2017 में सिख न्यूज़ एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में पत्रकार जसनीत सिंह को बताया कि छत्तीसिंहपुरा हत्याकांड में सीधे भारतीय सेना का हाथ था और इस बारे में रिपोर्ट तत्कालीन एनडीए सरकार के गृहमंत्री एल.के. आडवाणी को सौंपी गई थी।
आखिर क्या वजह थी सिखों को मारने की? शाहनवाज़ आलम अपने लेख ”नेशनल इंटरेस्ट, फिफ्थ कॉलम एंड दि रोमांटिक किलर्स” में लिखते हैं- ”पहला, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के ऊपर बढ़त बनाना। दूसरा, प्रवासी सिखों की सहानुभूति बटोरना जो खालिस्तान के दिनों से ही भारत की सरकारों के विरोधी रहे हैं। तीसरा, क्षेत्र में परमाणु प्रसार की भारत की कोशिशों पर अमेरिका द्वारा चिंता जताए जाने को आंशिक तौर पर भटकाना।” वे लिखते हैं कि स्वदेशी के मोर्चे पर यह इस हत्याकांड का इस्तेमाल सिखों को घाटी छोड़कर जाने में उकसाने के लिए किया गया, ठीक वैसे ही जैसा जगमोहन ने हिंदुओं के साथ किया था।
अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की यात्रा से ठीक एक दिन पहले 20 मार्च, 2000 को हुए इस हत्याकांड पर रिपोर्ट करते हुए फ्रंटलाइन ने लोगों के हवाले से लिखा कि, ”उन्होंने जैसे ही गोली चलानी शुरू की, बंदूकधारी जय माता दी और जय हिंद के नारे लगाने लगे। बिलकुल नाटकीय अंदाज़ में उनमें से एक शख्स हत्याओं के बीच ही रम की बोतल से घूंट मारता रहा। जाते वक्त एक ने अपने साथी से कहा- गोपाल, चलो हमारे साथ।”
दिलचस्प है कि इस हत्याकांड के रहस्य का पहला परदाफाश खुद क्लिंटन ने मेडलीन अलब्राइट की किताब ”दि माइटी एंड दि ऑलमाइटी: रिॅ्लेक्शंस ऑन अमेरिका, गॉड एंड वर्ल्ड अफेयर्स” के फोरवर्ड में किया:
”2000 में भारत के अपने दौरे के दौरान कुछ हिंदू आतंकवादियों ने 38 सिखों की हत्या कर दी। अगर मैंने वह यात्रा नहीं की होती तो मारे गए लोग शायद अब भी जिंदा रहते। अगर मैंने इस डर से यात्रा न की होती कि पता नहीं धार्मिक चरमपंथी क्या करेंगे, तो अमेरिका के राष्ट्रपति के बतौर मैं अपना काम नहीं कर रहा होता।”
हिंदुत्ववादी ताकतों के हो हल्ले के बाद प्रकाशक को फोरवर्ड का यह हिस्सा हटाना पड़ गया था लेकिन क्लिंटन ने वही लिखा था जो वह मानते थे। इसकी पुष्टि बाद में स्ट्रोब टालबोट ने अपनी पुस्तक ”इंगेजिंग इंडिया: डिप्लोमेसी, डेमोक्रेसी एंड दि बॉम्ब” में की जब उन्होंने क्लिंटन के बारे में लिखा:
”उन्होंने इस आरोप को समर्थन नहीं दिया कि पाकिस्तान उस हिंसा के पीछे था…।”
इतना ही नहीं, पाथरीबल में जो मुठभेड़ सेना ने छत्तीसिंहपुरा के दोषियों की बताई थी और पांच युवकों को मार गिराया था वह बाद में फर्जी साबित हुई। मोहम्मद सुहैल और वसीम अहमद नाम के दो पाकिस्तानियों को दिसंबर 2000 में छत्तीसिंहपुरा का ”मास्टरमाइंड” बताकर पकड़ा गया था, वे बाद में निर्दोष बरी हो गए। फिर सवाल उठता है कि छत्तीसिंहपुरा के सिखों का कत्लेआम किसने किया?
फ्रंटलाइन के अनुसार: ”31 अक्टूबर 2000 को जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री फ़ारुख अब्दुल्ला ने एलान किया कि सुप्रीम कोर्ट के अवकाश प्राप्त जज एस. रत्नवेल पांडियन से हत्याकांड की जांच के लिए कहा जाएगा। जब पूछा गया कि क्या उन्होंने इस जांच के लिए क्या दिल्ली की मंजूरी ली है, तो उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि उन्हें ऐसी किसी मंजूरी की दरकार नहीं है। अचानक चीजें बदल गईं। केवल एक पखवाड़ा बीता और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से उनकी एक मुलाकात हुई और बाद में छत्तीसिंहपुरा हत्याकांड की जांच को खत्म कर दिया गया… दिल्ली में अफसरों का कहना है कि केंद्र सरकार छत्तीसिंहपुरा हत्साकांड की जांच के निर्णय पर नाराज़ थी। कहते हैं कि वाजपेयी ने मुख्यमंत्री को कहा था कि उनके इस फैसले ने केंद्र सरकार को शर्मिंदा किया है।”
आज 18 साल बाद छत्तीसिंहपुरा हत्याकांड और पाथरीबल फर्जी मुठभेड़ के बारे में जानना-समझना भारतीय राज्य के चरित्र को समझने के लिए बहुत आवश्यक है। लेफ्टिनेंट जनरल केएस गिल का सिख न्यूज़ एक्सप्रेस को दिया यह साक्षात्कार ज़रूर देखें। 30 मिनट 18 सेकेंड पर आपको छत्तीसिंहपुरा हत्याकांड से संबंधित सवाल जवाब मिल जाएँगे। अगर इस बातचीत को पढ़ना हो तो यहाँ क्लिक करें। फ्री प्रेस कश्मीर ने 20 मार्च यानी इस हत्याकांड की बरसी पर छापा है।