बंबई HC में पत्रकारों की जीत, सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले की रिपोर्टिंग से हटी रोक

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सोहराबुद्दीन शेख के मामले की सुनवाई की कवरेज पर रोक संबंधी अदालती आदेश को एक याचिका से चुनौती देने वाले मुंबई के नौ पत्रकारों की जीत हुई है। बुधवार 24 जनवरी को बंबई उच्‍च न्‍यायालय ने निचली अदालत के आदेश को दरकिनार करते हुए खारिज कर दिया जिसमें सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ हत्‍याकांड के मामले की सुनवाई की कार्यवाही की रिपोर्टिंग से पत्रकारों को रोका गया था।

जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे ने साफ़ शब्‍दों कहा कि सीबीआइ की विशेष अदालत ने ऐसा आदेश जारी करने में अपने अधिकारों का अतिक्रमण किया था।

गौरतलब है कि सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ हत्‍याकांड की सुनवाई कर रहे जज बृजगोपाल हरकिशन लोया की 2014 में अचानक नागपुर में हुई मौत की संदिग्‍ध परिस्थितियों पर पहली बार उनके परिजनों के मुंह खोलने और पत्रिका द कारवां में 21 नवंबर को कहानी सामने आने के बाद डिफेंस के वकीलों के आग्रह पर मुंबई की विशेष सीबीआइ अदालत ने सोहराबुद्दीन मामले की सुनवाई की रिपोर्टिंग करने से मीडिया को रोक दिया था। इस संबंध में 29 नवंबर 2017 को सीबीआइ की अदालत ने प्रतिबंधात्‍क निर्देश जारी किया था। करीब महीने भर बाद 26 दिसंबर 2017 को कुछ पत्रकारों ने इस आदेश के खिलाफ मुंबई उच्‍च न्‍यायालय का दरवाजा खटखटाया।

कुल नौ पत्रकारों द्वारा बंबई उच्‍च न्‍यायालय में दायर रिट याचिका में कहा गया था कि सीबीआइ अदालत के उक्‍त आदेश को खारिज किया जाए क्‍योंकि वह कानूनी रूप से गलत है, अवैध है और पत्रकारों को अपना कर्तव्‍य निभा पाने की राह में बड़ा अवरोध है।

सोहराबुद्दीन केस की सुनवाई की कवरेज पर अदालती रोक को नौ पत्रकारों ने दी चुनौती

जज रेवती ने याची पत्रकारों के साथ सहमति जताते हुए कहा कि अपराध संहिता के तहत केवल उच्‍च न्‍यायालय और सर्वोच्‍च न्‍यायालय ऐसे आदेश जारी कर सकते हैं। अदालत ने कहा कि ऐसा कोई भी आदेश दुर्लभ मामलों में ही जारी किया जा सकता है और वो भी सीमित अवधि के लिए ही लागू होगा।

जस्टिस रेवती ने कहा कि ऐसा कोई भी आदेश अवैध है और पत्रकारों के अभिव्‍यक्ति के संवैधानिक अधिकार का अतिक्रमण करता है। उन्‍होंने कहा:

”प्रेस के अधिकार उस संवैधानिक अधिकार में अंतर्निहित हैं जो अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता देता है। एक खुली सुनवाई की रिपोर्टिंग कर के प्रेस न केवल अपने अधिकार का उपयोग करता है बल्कि सामान्‍य जनता को ऐसी सूचना मुहैया कराने का व्‍यापक उद्देश्‍य भी पूरा करता है।”

बंबई उच्च न्‍यायालय के इस फैसले का स्‍वागत करते हुए वेबसाइट दि वायर ने एक अहम संपादकीय लिखा है जिसे पढ़ा जाना चाहिए। ध्‍यान रहे कि जिन नौ पत्रकारों ने निचली अदालत की रोक के खिलाफ याचिका डाली थी, उनमें दि टाइम्‍स ऑफ इंडिया, मुंबई मिरर, दि इंडियन एक्‍सप्रेस, फ्री प्रेस जर्नल और स्‍क्रोल के अलावा दि वायर के भी पत्रकार शामिल थे।