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पत्रकारिता से जुड़ा कोई व्यक्ति रामनरेश यादव को न पहचाने ऐसा हो नहीं सकता। यह नाम आते ही सबसे पहले चेहरा उभरता है उत्तर प्रदेश के पहले ग़ैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री रामनरेश यादव का। 1977 में इंदिरा गाँधी की हार के बाद हुए विधानसभा चुनाव में यूपी में भी जनता सरकार बनी थी जिसका नेतृत्व रामनरेश यादव के हाथों में था। मुलायम सिंह यादव उनके कबीना मंत्री थे।
लेकिन टीवी पत्रकारों से शायद अब यह बुनियादी उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए। 19 जनवरी को चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी के जिन 20 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की सिफ़ारिश की उसमें एक नाम मेहरौली के विधायक नरेश यादव का भी है, पर आज तक जैसा नंबर एक और सबसे तेज़ चैनल तस्वीर उन रामनरेश यादव की दिखा रहा था जो यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री ही नहीं, मध्यप्रदेश के राज्यपाल भी थे और डेढ़ साल पहले ही व्यापम घोटाले में अपने बेटे का नाम आने की वजह जिनकी तस्वीरें चैनलों में ख़ूब दिख रही थीं।
टीवी में तस्वीरें वाले ग्राफ़िक वीडियो एडिटर बनाते हैं, लेकिन उसे दुरुस्त रखने की ज़िम्मेदारी होती है किसी प्रोड्यूसर पर। फिर इसे और सीनियर लोग भी देखते हैं। यह ग्राफ़िक बार-बार चलाया जाता रहा लेकिन किसी ने भी रामनरेश यादव के चित्र को लेकर आपत्ति नहीं जताई तो मतलब साफ़ है कि या तो किसी को देखने की फ़ुर्सत नहीं है, या आज तक के पत्रकारों का दिमाग़ काम नहीं कर रहा है। वरना कोई भी सजग पत्रकार रामनरेश यादव की तस्वीर तुरंत पहचान लेगा।
रामनरेश यादव बाद में कांग्रेस में चले गए थे। वे 26 अगस्त 2011 को मध्यप्रदेश के राज्यपाल बनाए गए थे और 7 अक्टूबर 2016 तक इस पद पर रहे। 22 नवंबर 2016 को लखनऊ के संजय गाँधी पीजीआई में उनका निधन हो गया था। यह सारी जानकारी उस विकीपीडिया पेज पर जिसके दम पर 90 फ़ीसदी टीवी पत्रकारिता हो रही है। वह तस्वीर भी यहीं है जो आज तक आम आदमी पार्टी के विधायकों की सदस्यता से जुड़ी ख़बर में दिखा रहा था।
आमतौर पर ऐसी ग़लतियों के लिए खेद प्रकाशन की परंपरा रही है। क्या हम हिंदी के नंबर एक टीवी न्यूज़ चैनल से ऐसी उम्मीद कर सकते हैं ?