दोस्तों, पिछले कुछ दिनों से महाराष्ट्र विधानसभा में जो खेल चल रहा है, वो वाकई दर्शनीय है। एकनाथ शिंदे, ने नाथ बदल लिया, अभी पता नहीं कि वो अब भी एकनाथ ही हैं या बहुनाथ हो गए हैं। एक तरफ से कहा जा रहा है कि, ”बेटा आखिर तो यहीं आना है, तब देखेंगे तुम्हे….” दूसरी तरफ से कहा गया, ”कोई हमारे लोगों को हाथ ना लगाए, वरना घर नहीं जा पाआगे…” और डिरयामा चल रहा है। जनता….उसकी तो पूछो मत, बिना टिकट का तमाशा देख रही है जनता। पर अब वो तमाशा भी 2500 किलोमीटर दूर असम चला गया है, और कमाल ये है कि असम के मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि ”भईया, बहुत बढ़िया-बढ़िया होटल-उटल सब हैं हमारे यहां, हर दूसरे दिन कोई ना कोई आया रहता है। अब हमें ना पता कि महाराष्ट्र का सब एम एल ए यहां आया हुआ है तो….” यानी जिस बात का पूरे देश और दुनिया को पता है, असम के मुख्यमंत्री को उसी बात का पता नहीं है। ये भारतीय लोकतंत्र की विडंबना है। लोकतंत्र के नाम पर ये उठा-पटक ना हो तो विधानसभा में सरकस का सा मजा नहीं आता। बहुत दिन हुए, किसी विधानसभा में कुर्सियां, माइक नहीं चले, कहीं गाली-गलौज नहीं हुआ, तो ऐसे में भारतीय लोकतंत्र के दर्शक ऊब रहे थे, ऐसे में कोई मजेदार काम होना ही चाहिए था। हो गया, महाराष्ट्र में चल गया, ”नाच मेरी बुलबुल….”
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का कहना है कि, ”यही पार्टी है वही पार्टी जिस पर तुमने दिलो जान लुटाए थे, फिर काहे छोड़ के जा रहे हो। ल्यो हमसे दिक्कत है, हमारे मुहं पै कह दो, हम कसम से, फौरन छोड़ दंगे, एक बात नहीं बोलेंगे तुमै….” बहुनाथ शिंदे कह रहे हैं….”रंग बदल गया, हमाई जिससे अंखियां लड़ी थी, वो नहीं रही अब पार्टी…..अब तो हम अलग से शिवसेना बनाय रहे हैं….” जाहिर है उनके साथ जाने वाले एम एल ए भी यही कह रहे हैं, बल्कि उन्होने तो एक तरह से बहुनाथ शिंदे को अपनी पाॅवर आफ अटाॅर्नी भी दे दी, कि भाई जी जो भी फैसला करेंगे, हमें मंजूर होगा। समझ नहीं आता कि अगर अब भाई जी ने ये फैसला कर लिया कि दोबारा वहीं जाना है, जहां से निकले थे तो ये एम एल ए कौन मुहं लेकर जाएंगे वापस…. पर राजनीति में कोई मुहं देखा-देखी की चिंता करता, तो ये सब खेल-तमाशा ही काहे को होता।
पटौले साहब अपनी गोटियां टिका रहे हैं, पवार साहब अपनी, और संजय राउत का तो खेल ही गजब है।
इस बीच सुना है कि वो एक्ट्रैस जिन्होने पवार साहब के बारे में कहा था कि वो नर्क जाएंगे क्योंकि वो हिंदुओं से नफरत करते हैं, को बेल मिल गई है। कमाल ये है कि बहुनाथ शिंदे जो पार्टी के कुछ 30-40 एम एल ए लेकर भागे हैं, उनका कहना है कि वो हिंदुत्व की रक्षा करने के लिए भागे हैं, क्योंकि उन्हें नहीं लगता कि उद्धव ठाकरे हिंदुत्व की रक्षा करना चाहते हैं, कि अगर वो रक्षा करना चाहते हैं हिंदुत्व की, तो उन्हे भाजपा का दामन थामना चाहिए। ये शब्दश: ऐसा नहीं कहा गया है, लेकिन जो – जो उन्होने कहा, उसका लब्बो-लुबाब यही था जो मैने यहां लिखा है। कहने का मतलब ये है कि शिवसेना, नेशनल कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस पार्टी हिंदुत्व की रक्षा नहीं कर रही हैं, इसलिए अब हिंदुत्व की रक्षा का दायित्व, ”कम से कम महाराष्ट्र में” बहुनाथ शिंदे को मिलना चाहिए। जो भाजपा की मदद से इस काम को करेंगे ओर इसके लिए वो असम पहुंचे हैं।
उद्धव ठाकरे बेचारे रोने जैसे हो गए, कहने लगे कि, ”बताओ लोग कह रहे कि संभाल के नहीं रखा….अब कोई लघुशंका करने के बहाने जाए, और सीधा असम पहुँच जाए, तो मैं उसमें क्या कर सकता हूं।” सही बात है। एक राज्य का मुख्यमंत्री अपने विधायकों को नहीं सम्हाल पा रहा, दूसरे राज्य के मुख्यमंत्री को यही पता नहीं कि उसके राज्य में दो दर्जन से ज्यादा विधायक किसी होटल में आ कर ठहरे हुए हैं। मुख्यमंत्रियों की इस गपड़चौथ में दल्लालों की चांदी है, कभी भाव बढ़ते हैं, चढ़ते हैं, कभी उतरते हैं, कम होते हैं। कुछ लोगों का तो ये भी कहना है कि ई डी और सी बी आई, इन्कमटैक्स और बाकी सैंट्रल एजेंसियों के होते हुए, भावों की चिंता ही नहीं है। बस इस इशारे की देर है कि बाबू हमारी बात मान लो तो रेड नहीं पड़ेगी, वरना किया हो या ना किया हो, रेड तो पड़ी ही पड़ी, और फिर बेल नहीं होने की। इसी धुप्पल में सुना एक मुस्लिम विधायक भी हिंदुत्व की रक्षा के लिए असम पहुंचे हुए हैं। क्या पता घर वापसी का मामला है या धार्मिक सद्भावना का? हो सकता है, उन जनाब को भी यही लग रहा हो कि महाराष्ट्र में सच में हिंदु धर्म खतरे में है और वे धर्म बचाने के लिए निकल गए हो, बाकी बाग़ी विधायकों के साथ।
इधर सुना कि 13 विधायकों की सदस्यता खत्म करने का पैग़ाम डिप्टी स्पीकर तक पहुंच चुका है, ऐसे में वो विधायक जो असम पहुंचे हुए हैं, उनपर क्या बीत रही होगी। क्या भाजपा इन विधायकों की विधायकी बचा पाएगी? क्या शिवसेना, और एन सी पी मिल कर महाराष्ट्र में अपनी सरकार बचा पाएंगे? क्या उद्धव ठाकरे अपनी कुर्सी यानी मुख्यमंत्री का पद बचा पाएंगे? सवाल बहुत सारे हैं, और जवाब….वो भी बहुत सारे हैं। लेकिन हमें जवाबों का कुछ नहीं करना है, क्योंकि नतीजा जो भी, लंका लोकतंत्र की लगनी है, सो लगी हुई है।
बाकी अभी तो गाना चल रहा है, ”नाच मेरी बुलबुल……” शायद इसी को ध्यान में रख कर चचा ग़ालिब ने अपने मरने के बाद ये शेर कहा था….
वो जो सही मौके का इंतजार करते हैं….
कमाल करते हैं, वो जो भी यार करते हैं…
बाकी आप समझदार हैं। पहले ही बता चुका हूं कि ग़ालिब दुनिया के अकेले ऐसे शायर हैं, जो मरने के बाद भी शायरी करते रहे हैं।