आरएसएस इन दिनों डॉ.अंबेडकर के गुण गा रहा है। बीजेपी के लिए भी अंबेडकर जैसा महापुरुष कोई दूसरा नहीं। प्रधानमंत्री मोदी, डॉ.अंबेडकर का नाम भगवान की तरह जपते हैं। लेकिन असल में यह अंबेडकर को उनके व विचारों से अलग करके, उन्हें ‘मूर्ति’ बना देने की साज़िश है जैसा कि गौतम बुद्ध को विष्णु का नवाँ अवतार बनाकर किया गया।
डॉ.अंबेडकर ने शूद्रों की स्थिति के लिए सीधे तौर पर हिंदू धर्मग्रंथों को ज़िम्मेदार ठहराया था। महाड सत्याग्रह के दौरान 25 दिसंबर 1927 को उन्होंने सार्वजनिक रूप से मनुस्मृति का दहन किया था, जो अपनी तरह की पहली घटना थी। उन्होंने मनुस्मृति को स्त्री और शूद्रों की ग़ुलामी का दस्तावेज़ बताते हुए विस्तार से लिखा था जिसके संबंध आप यहाँ पढ़ सकते हैं––मनुस्मृति दहन के आधार : डा आम्बेडकर
दलित आंदोलनकारी मनुस्मृति दहन को अंबेडकरवादी राजनीति का एक निर्णायक मोड़ मानते हैं। तमाम स्थानों पर हर साल इस दिन की वर्षगाँठ मनाई जाती है। लेकिन आरएसएस अंबेडकर को विचारहीन मूर्ति में तब्दील करके मनु की पुनर्प्रतिष्ठा में जुट गया है।
मनुस्मृति दहन की 90वीं वर्षगाँठ से 15 दिन पहले यानी 10 दिसंबर को राजस्थान की राजधानी जयपुर (जहाँ हाईकोर्ट में मनु की मूर्ति लगी है ) में ऐसा ही एक आयोजन हुआ जिसमें मनुस्मृति को ‘मूलत: छुआछूत और जाति व्यवस्था के विरुद्ध बताया गया।’ …’ आदि पुरुष मनु को पहचानें, मनुस्मृति को जानें’ का आह्वान करने वाले इस कार्यक्रम की आयोजक ‘चाणक्य गण समिति’ ने मुख्य वक्ता के रूप में आरएसएस के बड़े चेहरे, इंद्रेश कुमार को आमंत्रित किया था।
इंद्रेश कुमार ने अपने संबोधन में ज़ोर दिया कि मनु, जातिप्रथा और ग़ैरबराबरी के विरुद्ध थे। अब या तो उन्होंने मनुस्मृति पढ़ी नहीं, या फिर वे समझते हैं कि डॉ.अंबेडकर ने जो कुछ भी इस संबंध में लिखा-पढ़ा या मनुस्मृति का दहन किया, वह सब ग़लत था। 11 दिसंबर को अख़बारों में इंद्रेश कुमार के हवाले से छपा कि ‘दबाव’ में इतिहासकारों ने मनुस्मृति का ‘भ्रामक’ चित्र समाज के सामने रखा।
ज़ाहिर है, आरएसएस और उसके नेता कभी लिखित रूप से अंबेडकर के लेखन या उनके विचारों को चुनौती नहीं देंगे। वे सिर्फ़ अंबेडकर को महान बताकर स्तुतिगान करते रहेंगे लेकिन करेंगे सब कुछ वही, जो डॉ.अंबेडकर के सपनों के भारत की आत्मा को आहत करता है।
नीचे डॉ.अंबेडकर पर बनी फ़िल्म का वह हिस्सा है जिसमें मनुस्मृति दहन का प्रसंग है। साथ में अंबेडकर का विचारोत्तेजक भाषण का अंश जिसमें वे मनुस्मृति जलाने की तुलना फ्रांसीसी क्रांति की शुरुआत से की थी।
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