यह वीडियो देखने वाले के मन में संवेदना पैदा करता है जब उसे पता चलता है कि परदे पर जो महिला ख़बर पढ़ रही है, वह ख़बर उसके पति की मौत की है। सोचने वाली बात है कि यह जानते हुए कि उसके पति की मौत की ख़बर उसे ही पढ़नी है, इस महिला ने अपनी संवेदना को कैसे थामा होगा। देश-विदेश में आज इस समाचार ऐंकर की भूरि-भूरि प्रशंसा हो रही है। रवीश कुमार ने पिछले साल एनडीटीवी का परदा काला कर के लिखा था, ”यह अंधेरा ही आज के टीवी का सच है”। आज हम दावे से कह सकते हैं कि टीवी के उस अंधकारमय सच में एक सुप्रीत कौर भी रहती है। जो टीवी के अंधेरे में अपनी निजी संवेदना और दुख को जज़्ब कर के हम तक सिर्फ और सिर्फ ख़बर पहुंचाती है।
अपने निजी दुख को अपने काम की मर्यादा तले छुपा जाना बहुत बड़े साहस की मांग करता है। रवीश कुमार अंधेरे को समझते हैं लेकिन उसमें अपना निजी सच उघाड़ कर रख देते हैं। उनसे उलट एक क्षेत्रीय चैनल की यह मामूली सी ऐंकर भले उस अंधेरे का हिस्सा खुद हो, अंधेरे को समझती भी न हो, लेकिन निजी दुख को अपने काम के आड़े नहीं आने देती। यह टीवी की पत्रकारिता का एक नया पहलू है। अब तक हमसे यह पहलू छुपा रहा था। शायद अंधेरा छांटने में इससे कुछ मदद मिले- उन्हें जो अंधेरे में योगदान दे रहे हैं और उन्हें भी जो केवल शिकायत कर रहे हैं।
देखिए आइबीसी 24 का यह चर्चित बुलेटिन: