भले ही मुख्यधारा का मीडिया नोटबंदी के मुद्दे पर केंद्र सरकार का प्रवक्ता बना बैठा हो और जनता के दुख-दर्द की झलकियां टीवी पर कहीं-कहीं दिख जा रही हों, लेकिन इस कार्रवाई ने ज़मीन से जुड़े कुछ पत्रकारों को वास्तव में विचलित किया है।
इंडिया टुडे हिंदी के वरिष्ठ रिपोर्टर पीयूष बबेले ऐसे ही एक पत्रकार हैं। पीयूष बुंदेलखंड में महुरानीपुर के रहने वाले हैं और खोजी पत्रकारिता के लिए जाने जाते हैं। नसीमुद्दीन सिद्दीकी पर कुछ साल पहले इनकी लिखी स्टोरी और दो साल पहले ‘यूपी में यादवराज’ नामक किया इनका खुलासा आज भी इंडिया टुडे के पाठकों को याद है। पीयूष बुंदेलखंड में किसानों के आंदोलन से भी काफी करीब से जुड़े हुए हैं।
उन्होंने नोटबंदी की कतारों पर एक जबरदस्त गीत लिखा है और खुद उसका पाठ करते हुए एक वीडियो यू-ट्यूब पर डाला है। एक ऐसे दौर में जब हिंदी के तमाम लेखक-कवि अपनी रचनाओं की दिशा तय नहीं कर पा रहे, एक पत्रकार का जनता की पीड़ा को इतने आसान शब्दों में ढालना काबिले तारीफ़ है।
पीयूष बबेले के लिखे इस गीत को उन्हीं के स्वर में सुना जाए। वीडियो के नीचे पूरी कविता हम दे रहे हैं। इसका कोई कॉपीराइट नहीं है और कहीं भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। बेशक, साथ में कवि का नाम देना न भूलें।
नोटंबदी के खिलाफ़ जनता का गीत
हमें हिसाब चाहिए
(गीतकार: पीयूष बबेले)
खड़े हैं हम कतार में
हमें हिसाब चाहिए
खड़े हैं हम कतार में
हमें हिसाब चाहिए,
हम पूछते हैं आपसे
हमारा क्या गुनाह है,
करे कोई, भरे कोई
ये कौन सा इंसाफ है,
हमारी ये खता रही
के तुमको ही बनाया पीर,
भुगत रहे हैं आज हम
तुम्हारी मीठी बोलियां,
तुम्हारे बेचे ख्वाब भी
खड़े हैं संग कतार में,
हमें जवाब चाहिए
हमें हिसाब चाहिए.
तुम्हीं कहो, तुम्ही सुनो
तुम्हारी सारी भीड़ है,
तुम्हारी सारी बस्तियां
तुम्हारे लोग हर तरफ,
मगर हुजूर अर्ज है
हम भी तो हैं जहान में
हमारा भी वजूद है
माना के हम पामाल हैं,
माना के हम गरीब हैं
माना के हम कुछ भी नहीं,
मगर करें हुजूर क्या
हमें भी सांस चाहिए.
खड़े हैं हम कतार में
हमें सुराज चाहिए.
पढ़े-लिखे हैं आप तो
हैं आप तो प्रकांड भी,
जेहन पर जोर डालिये
माजी को कुछ खंगालिये,
वहां मिलेंगे आपको
बगावतों के सिलसिले
वो जुल्म की मुखालफत
वो रोशनी के काफिले,
सितमगरों के मकबरे
कहानियां सुनायेंगे,
हूजूर गौर कीजिए
हमें वकार चाहिए
खड़े हैं हम कतार में
हमें हिसाब चाहिए.
हुजूर आप जान लें,
इस रास्ते को छोड़ दें
ये तिकड़में दफा करें,
बहुत हुआ घमंड अब
नजर उठा के देखिए,
ये कायनात जो भी है
हमारे दम से रोशन है,
अगर बिगड़ गए जो हम
तो फिर संभल न पाओगे,
ये ऊंची-ऊंची बोलियां
भक्तों की पागल टोलियां,
सिपाहियों की गोलियां,
हमें न रोक पाएंगीं.
हुजूर जान जाइये
हुजूर मान जाइये
खड़े हैं हम कतार में
हमें हिसाब चाहिए.