ये कौन सा देश है जिसमें हम जी रहे हैं?

अभिषेक श्रीवास्तव
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यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी दिल्‍ली है। कुछ खाकी वर्दीधारी औरतें एक सामान्‍य वेशभूषा वाली औरत को टांग कर ले जा रही हैं। पार्श्‍व में टंगी हुई औरत के रोने-दहाड़ने की हौलनाक आवाज़ आ रही है। पुलिस पत्रकारों को फोटो लेने से मना कर रही है। औरत चिल्‍लाए जा रही है। वरिष्‍ठ पत्रकार किरन शाहीन ने अपनी फेसबुक दीवार पर इस औरत को गोर्की की ‘मॉं’ के किरदार से जोड़ा है। ज़ारशाही वाले रूस में गोर्की की ‘माँ’ के साथ ऐसा बर्बर बरताव नहीं हुआ था। ये कौन सा देश है जिसमें हम जी रहे हैं?

नजीब को गायब हुए आज एक साल हो गया। साल भर से उसकी माँ अपने बेटे की तलाश में दिल्‍ली में जमी हुई है। कुछ और मॉंओं के और बेटे जो अब तक गायब होने से बचे हुए हैं, सड़कों पर उनका साथ दे रहे हैं। इन सब ने नारा दिया था ‘चलो सीबीआई’। आज दिन में इन सब को टांग कर दिल्‍ली पुलिस थाने ले गई। सीबीआई एक साल से इस देश में एक लड़के को नहीं खोज पा रही। नौ साल तक नोएडा की एक लड़की आरुषि के क़त्‍ल की जांच करती रही सीबीआई को इस देश की अदालत ने औकात दिखा दी क्‍योंकि आज लड़की के मॉं-बाप जेल से छूट गए, जिनके खिलाफ़ सीबीआई ने केस बनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार सीबीआई को ‘पिंजरे का तोता’ कहा था। तोते को पसंद नहीं कि कोई उसके मियां-मिट्ठू गान पर सवाल उठाए। लिहाजा वह सभी असहमतों को पिंजरे में डाल देना चाहता है। ये कौन सा देश है जिसमें हम जी रहे हैं?

एक वो ज़माना था जब मरहूम मुफ्ती मोहम्‍मद सईद की बिटिया को वापस लाने के लिए देश की सुरक्षा से समझौता कर लिया गया था। एक ये ज़माना है जब अमित शाह के बेटे को बचाने के लिए सरकार का मंत्री प्रेस कॉन्‍फ्रेंस करता है। कुछ नहीं बदला है इतने साल में। किसी का बेटा-बेटी खो जाए, मर जाए, सरकार को दिक्‍कत नहीं। बस, अपने राजकुमारों पर आंच नहीं आनी चाहिए। उधर संघ हिंदुओं से कहता है कि और बच्‍चे पैदा करो। क्‍यों करें? इसलिए, कि जब वो गायब हो जाए उसकी हत्‍या हो जाए तो इंसाफ मांग रहे मॉं-बाप को तुम टांग कर थाने ले जाओ? ये कौन सा देश है जिसमें हम जी रहे हैं?

सरकार का नारा है बेटी बचाओ। बेटियों की अस्‍मत लुट रही है, बेटियां शैक्षणिक परिसरों में छेड़ी जा रही हैं। छत्‍तीसगढ़ में एक बेटी ने युनिवर्सिटी में जान दे दी। गोरखपुर में योगी आदित्‍यनाथ के मठ की नाक के ठीक नीचे 4 तारीख को एक बेटी का क़त्‍ल हो गया और उसकी मॉं ने बयान में संदिग्‍ध हत्‍यारों का नाम भी लिखवाया, लेकिन पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ़ एफआइआर कर दी। आज उसकी तेरहवीं है। हम क्‍यों न मानें कि बेटी बचाओ कोई नारा नहीं, एक चेतावनी थी। वो कहना चाह रहे थे कि अपनी बेटियां बचा लो वरना हम निगल जाएंगे। बेटों की तो खैर कौन कहे। मुस्लिम है तो आतंकवादी बना देंगे। हिंदू है तो माओवादी। बेटियों के साथ इतनी सुविधा नहीं थी, सो नारे की शक्‍ल में चेतावनी जारी कर दी। जहां आधी आबादी को बचाने के लिए सरकार केवियट जारी करती हो, वह आखिर कौन सा देश है जिसमें हम जी रहे हैं?

नजीब मिले या न मिले, अब सवाल यह नहीं है। सवाल यह है कि उसकी मॉं को आपने क्‍यों सड़क से उठाया। क्‍यों टांग कर ले गए। अपने बच्‍चों के लिए गुहार लगाती मां क्‍या राष्‍ट्रीय सुरक्षा के लिए अब आपको ख़तरा जान पड़ रही है? देश का प्रधान अपनी मॉं की दुलार भरी तस्‍वीरें जारी करता है। बड़ी अच्‍छी बात है। क्‍या देश में एक ही मॉं सुखी रहेगी? क्‍या देश पर एक ही बेटा राज करेगा? बाकी मॉं और बच्‍चे क्‍या इस लोकतंत्र की सौतेली संतानें हैं? अगर ऐसा है, तो पूछना बनता है कि ये कौन सा देश है जिसमें हम जी रहे हैं?

पत्रकार अनिल यादव ने लिखा था- ये भी कोई देस है महराज! इसमें हिकारत थी। एक अलगाव का भाव था। एक बेपरवाही थी, कि कहां फंस गए। एक विद्रूप छुपा था, व्यंग्य के साथ। ना… अगर वाकई ये जगह एक देश है तो बतौर नागरिक हमें बेपरवाह होने की सहूलियत नहीं है। हमें खुलकर पूछना होगा कि ये कौन सा देश है जिसमें हम जी रहे हैं? क्‍योंकि अगर ये भारत है, तो भारत में माताओं के साथ ऐसा सुलूक नहीं होता है क्‍योंकि भारत खुद माता है। भारत माता। अगर मॉंओं के साथ आज यही होना बदा है, तो यह भारत नहीं है। भारत माता तो कतई नहीं। आप चाहें तो इसे कोई भी नाम दे सकते हैं। भारत का नाम लेकर माता को बदनाम मत करिए।


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