अभिषेक श्रीवास्तव
जो लोग 23 अप्रैल, 2017 को जंतर-मंतर पर सुबह आए और दोपहर में निकल गए, ये कहानी उनके लिए है। जो लोग एक रात पहले वहां पहुंचने का आह्वान कर के खुद नहीं आए, ये कहानी उनके लिए है। जो लोग आए, लेकिन शाम सवा छह बजे कुमार विश्वास के जाने के साथ ही निकल लिए, ये कहानी उनके लिए है। ये कहानी उनके लिए भी है जो मैदान साफ़ होने तक डटे रहे, लेकिन जिनकी निगाह इधर नहीं गई।
कहानी मंडोला गांव की है। ये मटरू की बिजली वाला मंडोला नहीं, ग़ाजि़याबाद के लोनी वाला मंडोला गांव है। ज़मीन का मसला फिल्म में भी था, यहां भी है। मंडोला गांव को मंडोला विहार बनाया गया है जिसके चक्कर में कई किसानों की ज़मीन चली गई है। आंदोलन ज़ोर पकड़ रहा है, लेकिन किसानों की आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं। ये किसान अपने नेता मनवीर सिंह तेवतिया के साथ तमिलनाडु के किसानों को समर्थन देने आए थे। किसी पत्रकार को और क्या चाहिए कि वह एक स्टोरी कवर करने आए और लगे हाथ उसे एक ही किस्म दो-चार और खबरें मिल जाएं। अब वो समय नहीं रहा। अब कोई भी अतिरिक्त स्टोरी उनके काम में बाधा है।
इसीलिए सजे हुए कैमरों के सामने मनवीर तेवतिया और उनके लोगों का दर्द सुनने के बजाय कैमरामैनों ने कैमरे ऑफ कर दिए और रिपोर्टराएं कुमार विश्वास पर पीटीसी करने लगीं। सामने खड़े होकर मीडिया ग्रामीण औरतों की गाली सुनता रहा, लेकिन उसके कान पर जूं नहीं रेंगी क्योंकि मालिक ने कहा था- जो कहा गया है उतना ही करो।
हुआ यों कि जंतर-मंतर पर दिन भर किसानों का मजमा लगा रहा। हरियाणा से भारतीय किसान यूनियन के लोग तमिलनाडु के धरनारत किसानों को समर्थन देने के आए। थोड़ी ही देर में वे छा गए। इसके बाद निकल गए। काफी देर तक सन्नाटा बना रहा। लोग टहलते रहे। शाम छह बजे अचानक भगदड़ मची। पता चला मंचीय कवि कुमार विश्वास आए हुए हैं। पलक झपकते ही कुमार किसानों के बीचोबीच अगली पंक्ति में पालथी मार कर बैठ गए। पलक झपकते ही दर्जन भर फोटाग्राफर और कैमरामैन और रिपोर्टर और रिपोर्टराएं वहां जाने कहां से इकट्ठा हो गए, जो दिन भर नदारद थे। पलक झपकते ही कुमार के सामने दर्जनों चैनलों की माइक सजा कर रख दी गई।
अचानक आगे खड़ी एक रिपोर्टरा ने किसानों को डांटा कि वे हल्ला न मचाएं, शांत रहें। आगे, पीछे, दाएं, बाएं खड़े कुमार विश्वास के लठैतों ने मिलकर एक घेरा सा बना लिया और सामान्य लोगों को घुसने से मना करने लगे। पीछे खड़े एक दबंग ने एक लड़के का कंधा झटकते हुए गाली दी। छह फुट की काया देखकर वह कट लिया। बाइट शुरू हुई। पिन ड्रॉप साइलेंस।
देखिए पीछे से वीडियो। जितनी रिपोर्टराएं, उतने कैमरे। आदमी एक। कुमार विश्वास।
पीली शर्ट पहने कुमार विश्वास ने कुछ अच्छी बातें किसानों के समर्थन में कहीं। उनके बगल में भट्टा परसौल आंदोलन के नेता मनवीर तेवतिया बैठे थे। किसी रिपोर्टर ने उन्हें नहीं पहचाना, न उनसे बात की। कुमार आए, बोले, झटके में उठे और चल दिए। सारा खेल महज 12 से 15 मिनट में पूरा हो गया। इतना तो आम आदमी पार्टी वालों ने भी वीडियो बनाकर डाला है। इसमें कुछ खास नहीं है।
कहानी इसके बाद शुरू होती है। एक पीढ़ानुमा चीज़ पर सारे चैनलों की गनमाइक कतारबद्ध रखी हुई थीं। कुमार विश्वास के जाने के बाद छंटी हुई भीड़ को देखते हुए दर्जनों कैमरामैन वैसे ही खड़े थे। कैमरे ऑफ हो चुके थे। वे कुछ समझ पाते, इससे पहले ही कुछ औरतों ने आकर माइक के सामने वाली खाली जगह कब्ज़ा ली और पालथी मारकर बैठ गईं। कैमरामैन परेशान, रिपोर्टराएं हैरान। एक ने पूछा, ”हू आर दे?” दूसरी रिपोर्टरा ने कंधे बिचका दिए। एक कैमरामैन आया और अपनी माइक उठाकर ले गया। औरतें कुछ भुनभुनाने लगीं।
उसके बाद कहने पर उन्होंने अपनी कहानी बतानी शुरू की। वे सब ग़ाजि़याबाद के लोनी से आई थीं अपने नेता मनवीर तेवतिया के साथ। इनकी ज़मीन हड़प ली गई थी। आई थीं समर्थन देने तमिलनाडु के किसानों को, तो सोचा कैमरे देखकर लगे हाथ अपनी बात भी कह देंगी। कैमरावालों को यह बात समझ में नहीं आई। उन्होंने कैमरा ऑन नहीं किया। रिपोर्टराएं कुमार विश्वास पर पीटीसी करने की तैयारी करने लगीं। भला हो कुछ युवाओं का, जिन्होंने माजरा समझते ही अपने-अपने मोबाइल कैमरे तान दिए और एक समानांतर प्रेस कॉन्फ्रेंस वहीं पर हो गई।
औरतों ने अपनी बात कही। फिर मनवीर तेवतिया आए और उन्होंने माजरा समझाया। उसके बाद औरतों ने मीडिया को खरी-खोटी सुनाई कि सबने अपने कैमरे बंद कर रखे हैं। कैमरामैन और रिपोर्टर गाली सुनते रहे लेकिन उन्होंने कैमरा ऑन नहीं किया। ग़ाजि़याबाद का किसान उनके असाइनमेंट का हिस्सा नहीं था। मनवीर तेवतिया को वे नहीं पहचानते थे।
देखिए पूरा वीडियो। ये कहानी आपको और कोई नहीं सुनाएगा। मीडिया तो कतई नहीं।
मंडोला विहार के संघर्ष के बारे में ज्यादा जानकारी इस यूट्यूब चैनल से लें।