चुनावी मौसम में मिथिलांचल में भटकते भटकते हमें उमेश पासवान मिल गए, जो मैथिली के जाने माने कवि हैं। उन्हें साहित्य अकादमी का युवा कवि पुरस्कार मिला है और दिलचस्प बात है कि वे पेशे से चौकीदार हैं। असली चौकीदार। मोदी जी के ‘’मैं भी चौकीदार’’ वाले अभियान के बाद नाम बदलने वाले चौकीदार नहीं।
वे रात को पहरा देते हैं, सुबह अपने इलाके के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देते हैं, दिन में थाने में मुंशी की ड्यूटी बजाते हैं, खाली वक़्त में अपने इलाके की जमीनी खुशबू वाली कविताएं लिखते हैं और अपने समाज को बदलने की कोशिश करते हैं। कवि हृदय उमेश पासवान कभी चौकीदार नहीं बनना चाहते थे। वे तो डॉक्टर बनना चाहते थे, मगर अपने चौकीदार पिता की असामयिक मृत्यु और पारिवारिक उलझनों की वजह से उन्हें चौकीदार की नौकरी करनी पड़ी। अब भी उन्हें छह छह महीने बाद वेतन मिलता है। मगर जब वेतन मिलता है तो उसका आधा हिस्सा उन शिक्षकों के लिए रख देते हैं, जो उनके आस्था निःशुल्क शिक्षा केन्द्र में बच्चों को पढ़ाते हैं।
उस शाम उनसे इन्हीं मसलों पर लंबी बातचीत हुई। देखें पूरी बातचीत का वीडियो:
बातचीत पुष्यमित्र, कैमरा संजीत भारती