भारत में नीची जाति होकर जिंदा रहना कितना मुश्किल है, जो उस जाति में पैदा हो जाए, वही फील कर सकता है।
गोरखपुर में दर्शन शास्त्र विभाग के शोध छात्र दीपक कुमार ने जहर खा लिया। कई महीने से उसे जातीय आधार पर प्रताड़ित किया जा रहा था।
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उसको पढ़ाने वाले दर्शन शास्त्र के ही एक टीचर ने बताया कि दीपक गरीब घर का है। बहुत जहीन और संवेदनशील बच्चा था। उन्होंने बताया कि हर गरीब बच्चे की तरह उसका भी सपना था कि पीएचडी करे, जॉब मिले और जीवन संवर जाए।
लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पूरा जातीय कॉकस उसके पीछे पड़ गया। उस लड़के को भीनही पता कि ऐसा क्यों हुआ?
उसे पढ़ा चुके टीचर ने कहा, “मेरा नाम न लिखें, भले ही मैं गोरखपुर विश्वविद्यालय में अब नहीं पढ़ा रहा हूँ, लेकिन इसी सिस्टम में हूं। मैं निशाने पर आ जाऊंगा।”
यह जातीय गुंडागर्दी का भय है कि हाल में नियुक्त टीचर उस विभाग के प्रोफेसर्स के खिलाफ नहीं बोल सकता। उसे अपना नाम फेसबुक पर दिए जाने से भी डर है कि वो निशाने पर आ जाएगा! नई नौकरी है। उसके अंदर जातीय सिस्टम का कमीनापन नहीं आया है इसलिए उसे छात्र से संवेदना है, भले ही वह उसकी जाति से नहीं, नीची जाति से है।
महीनों से चल रहे जातीय अपराध के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। वह कुलपति से लेकर जहां भी न्याय की आस थी, भटकता रहा। अंत मे उसने जहर खा लिया।
क्या आपको लगता है कि दलित छात्र को इस सिस्टम में न्याय मिल पाएगा?
(ख़बर सत्येंद्र प्रताप सिंह के सौजन्य से)