देश की जनता के घर-परिवार और जि़ंदगी में 8 नवंबर की रात से हाहाकार मचा हुआ है। 1000-500 के नोटों पर बंदिश क्या लगी, लोगों की जिंदगी पर ही बंदिश लग गई। खाना, पीना, सोना, जगना सब हराम हो चुका है। देश के जीडीपी में सबसे ज्यादा योगदान देने वाला मेहनतकश तबका बैंकों के बाहर कतारों में बेहोशी का आलम झेल रहा है।
इस स्थिति को सबसे रचनात्मक और आक्रोशपूर्ण तरीकों से मुख्यधारा के मीडिया से बाहर ज़ाहिर किया जा रहा है। ज़मीनी सच्चाई दिखाने के मामले में मीडिया की विश्वसनीयता इतनी कम हो चुकी है कि बीबीसी जैसी वेबसाइट को सोशल मीडिया से आम लोगों की अभिव्यक्तियों का संकलन कर के ख़बर चलानी पड़ रही है।
ऐसे में अरुण पटेल की रचनात्मकता हवा के ताज़ा झोंके की तरह है जो असंख्य मानवीय त्रासदियों के बीच हमें हंसाती है, गुदगुदाती है और हक़ीकत को कहने का एक अलग अंदाज़ सिखाती है। देखिए पत्रकार, व्यंग्यकार, शोधार्थी और ऐक्टिविस्ट अरुण पटेल का ताज़ा वीडियो।