भक्ति का मतलब खुद को अपने ईश्वर में लीन करना होता है। जब भक्त की आत्मा का परमात्मा से मिलन होता है तो उसे योग कहते हैं। इस योग में आत्मा, परमात्मा में विलीन हो जाती है। देह का मोह नहीं रहता और सारी भौतिक पहचानें मिट जाती हैं। नाम, गांव, पता, मां, बाप, नाते, रिश्ते- सब बेमानी हो जाते हैं। तिनका अपने मरकज़ से जा मिलता है। परदा उठ जाता है। निज़ाम से नैना लड़ जाते हैं।
फिर कोई आनंद बख्शी एक गीत लिखता है, कोई लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल उसमें सुर भरता है, कोई मोहम्मद अजीज़ उसे अपनी भोंडी आवाज़ देता है और ‘सिंदूर’ फिल्म का घटिया गीत ज़ेहन में बज उठता है, ”नाम सारे मुझे भूल जाने लगे / वक्त बेवक्त तुम याद आने लगे…।”
टीवी की पत्रकारिता मोहम्मद अजीज़ का घटिया गीत हो गई है। पत्रकार अपना नाम भूलने लगे हैं। वे भक्त हो गए हैं। यह भारतीय पत्रकारिता का भक्तिकाल है। मोदीनाम केवलम् का आतंक ऐसा है कि अपना परिचय देने में पत्रकार अपना कुलनाम भूल कर हड़बड़ी में मोदी लगा ले रहे हैं।
नीचे दिया वीडियो देखें। इसे फेसबुक पर किन्हीं मोहम्मद खालिद हुसैन ने डाला है। इसके बाद कुछ खास कहने-सुनने को नहीं रह जाता।
तस्वीर साभार आउटलुक