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Saturday 4th May 2024
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राजकुमार केसवानी: उपलब्धियों का मुकुट न पहनने वाला एक खरा पत्रकार!
अख़बारनामा : हिन्दी अखबारों से ग़ायब मज़दूरों के पलायन का दर्द
सॉरी शशिशेखर जी, ‘हिंदुस्तान’ की पत्रकारिता बेहद औसत है- रवीश
‘हिंदू राष्ट्र-हिंदू राष्ट्र’ चिल्लाना, देश को हानि पहुँचाना है- गणेश शंकर विद्यार्थी
20 महिला पत्रकारों ने अकबर के ख़िलाफ़ भरी हुंकार पर डर गए हिंदी अख़बार, ख़बर गोल कर दी!
#MeToo: हिंदी अख़बारों के कामातुर लपकहे, जो यौन उत्पीड़न करते-करते स्टेट हेड हो गए!
टेलीग्राफ़ ने संस्थापक संपादक अकबर का ‘मी टू’ बेहिचक छापा! मंत्री हैं तो छिपा रहे हैं हिंदी अख़बार!
‘कॉपी-पेस्ट’ पत्रकारिता ने हिसार के दुष्यंत चौटाला को बना दिया सिरसा का सांसद !
नरेंद्र मोहन ने कहा था-दैनिक जागरण हिंदू पत्रकारिता करेगा,जिसे न करना हो,नौकरी छोड़े!
विनोद वर्मा तो ‘पत्रकार’ नहीं हैं, पर हैं कौन ?
आज हिंदी का एक स्वतंत्र पत्रकार खुद को आखिर कैसे बचाए?
संजय कुमार सिंह की नज़र में पत्रकारिता के दिन !
वह प्रभाष जोशी की रणनीतिक कुशलता का ‘हेमंत’ था !
बहस : पत्रकार बने रहना और नौकरी करते रहना – दो अलग चीजें हैं !
विनोद शुक्ल की ‘कट्टा’ पत्रकारिता से प्रभाष जोशी की ‘सत्ता’ पत्रकारिता तक !
बाबरी ध्वंस हो चुका था और पंडित जी नभाटा में लिख रहे थे -राधा का लास्य !
नभाटा में ‘पुष्यमित्र शुंग’ बनाकर लाए गए थे विद्यानिवास मिश्र !
मायावती की प्रेस कान्फ्रेंस में रिपोर्टर बस इमला लिखते थे !
लगता है कि पत्रकारिता का अपराधी मैं ही हूँ-रवीश कुमार
राजेंद्र माथुर ने कहा-मैं जो लिखता हूँ, वही मैं हूँ, बाक़ी सब अप्रासंगिक !
अख़बारों में गला काट होड़ है, लेकिन कंटेंट ‘पूल’ होता है !
जो कुछ नहीं लिख सकते, ख़ुद को न्यूज़ का आदमी कहते हैं !
यह अख़बार औरत को देखकर हिंस्र हो जाने वालों को पुरस्कृत करता है !
अख़बार प्रतिभा के वधस्थल होते जा रहे थे….!
कभी हिंदी के पास राजेंद्र माथुर थे, अब मछली खिलाकर संपादक हो जाते हैं !
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