नागरिकता संशोधन कानून और नेशनल सिटीजन रजिस्टर के खिलाफ राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन के बीच दिल्ली की शाहीन बाग़ की महिलाओं ने इस आन्दोलन को ऐतिहासिक बना दिया है. यहां महिलाओं की अगुवाई में नागरिकता संशोधन एक्ट और नेशनल रजिस्टर फॉर पॉपुलेशन के खिलाफ बीते एक महीने से दिल्ली के शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन चल रहा है. वहीं इस आंदोलन से प्रेरणा लेकर इलाहाबाद का रोशन बाग़ भी अब इस आंदोलन को ऐतिहासिक बना रहा है.
इलाहाबाद के रोशन बाग में हज़ारों की संख्या में महिलाएं डटी हैं, यहां भी अनिश्चितकालीन धरना चलेगा, एक और शाहीन बाग।#ShaheenBagh #NRC_CAA_Protest pic.twitter.com/hFqN9EkMFA
— We The People of India (@ThePeopleOfIN) January 12, 2020
रौशन बाग़, मंसूर पार्क इलाहबाद में हज़ारों की तादाद में औरतें वहां इस कड़ाके की सर्दी में इंकलाब ज़िन्दाबाद के नारे लगा रही हैं.ये वो औरतें हैं जो सात परदों से निकल कर बाहर आयीं हैं. इनका जोश देखते बनता है. इन्हें ना सर्दी का एहसास है ना गर्मी का. बस एक धुन हम मुल्क के दस्तूर को बचायेंगे.
रौशन बाग़ में हो रहे विरोध प्रदर्शन के बारे में सामाजिक कार्यकर्ता और लेखिका सीमा आज़ाद लिखती हैं –
इलाहाबाद का रोशन बाग़ आजादी की लड़ाई का गवाह रहा है. इसी ऐतिहासिक रोशन बाग़ ने एक और लड़ाई में अपना सुर मिला दिया है. CAA, NRC, NPA जैसे सांप्रदायिक और गरीब जनता विरोधी एजेंडे के खिलाफ औरतें शाहीन बाग़ की तरह 12 जनवरी की शाम से यहां इकट्ठा हो गई हैं.
हम जैसे समाज में रहते हैं वहां औरतों का बाहर निकालना और चौबीसों घंटे धरने पर बैठना आसान नहीं होता. लेकिन औरतें आपस में मिलजुल काम भी निपटा रहीं हैं और आंदोलन में मुखर तौर पर शामिल भी हो रहीं हैं. इसमें औरतों के शामिल होने की प्रक्रिया भी रोचक है. नाजिया को पता चला कि CAA के खिलाफ रोशन बाग़ में औरतें आ रही हैं, उन्हें पहले ही लग रहा था, अब बहुत हुआ, कुछ करना चाहिए।
Watch | Nearly 5000 women are on an indefinite sit-in protest, for the last 72 hours, against #CAA and #NRC at a park in #Prayagraj, Uttar Pradesh. #CitizenshipAct #CitizenshipAmendmentAct pic.twitter.com/JrigfJMTwH
— NDTV (@ndtv) January 14, 2020
उन्होंने शहर में ही अपने मायके फोन किया, अम्मी, अप्पी और खाला को तैयार रहने को कहा। शौहर घर पर नहीं थे, इसलिए बेटे को मायके में छोड़ सबको लेकर रोशन, बाग़ आई हैं.
सालेहा जी ने करेली में रहने वाली अपनी आपा को फोन किया, रोशन बाग़ में मिलो, 9 वीं में पढ़ने वाली बेटी और पति से भी साथ चलने को कहा, पति नहीं माने तो खुद आ गईं। आपा का हालचाल भी जाना विरोध भी दर्ज कराया.
नूह जामिया में पढ़ती है. छुट्टियों में घर आई हैं, यहां के प्रदर्शन के बारे में पता चला तो खुद भी कई प्ले कार्ड बना कर अम्मी के साथ आ गईं.
सारा प्राइवेट नौकरी करतीं हैं, वे इस प्रदर्शन की शुरुआत करने वालों में शामिल हैं.
“नौकरी छूटने का डर नहीं है?” पूछने पर कहती हैं, “अब जो होगा देखा जायेगा।” शाम हो गई है, इसलिए वे लगातार औरतों से कह रही थीं कि जिनके घर में दो औरतें हो तो एक खाना बनाने जाए, एक यही बैठी रहे. अगर अकेली हो तो जल्दी से खाना बना कर आ जाएं.
रोशन बाग़ इस समय आंदोलन और आज़ादी के नारों का ही नहीं औरतों के लिए अपनी सहेलियों, बहनों, मायके के लोगों से मिलने का अड्डा भी है इन दिनों.
#शाहीन बाग से इलाहाबाद के #रोशनबाग तक महिलाओं ने मोर्चा ले रखा है #बागियों का बाग है यह #रोशन बाग है#BycottCabbNrc@yadavakhilesh @dimpleyadav @khanumarfa pic.twitter.com/EfAVZog2dS
— Dr.Richa Singh(यतो धर्मस्ततो जयः)(मोदी का परिवार) (@RichaSingh_Alld) January 13, 2020
“चूड़ी पहनने वालिया “इन दिनों पूरे देश की तरह यहां भी फासीवाद की कब्र खोदने पर तुली हुई हैं (कन्हैया कुमार तुम भी सुन लो). पुलिस पीएसी ने रोशन बाग़ खाली कराने के लिए बहुत डराया, धमकाया, टेंट हाउस वालों को टेंट देने से रोका, लेकिन महिलाएं डटी हुई हैं.
12 की रात पुलिस से बात करने जब सारा सामने गई तो सामंती पुलिस वालों ने उससे बात करने की बजाय कहा, अपने किसी “सरपरस्त” को बात के लिए भेजो. मोहल्ले के बुजुर्ग औरतें मर्द सरपरस्ती के लिए सामने आ गए, पुलिस पीछे हट गई।
शहर के कई जनवादी संगठनों के लोग अपना समर्थन देने रोशन बाग़ पहुंच रहे हैं, कई बार ऐसा हुआ, उन्होंने कोई ऐसा नारा लगवाया वो औरतों को नहीं समझ आया, लेकिन “आजादी” का नारा ऐसा ज़ुबान पर चढ़ा है कि, नहीं समझ में आने वाले नारे का जवाब भी उन्होंने पूरे जोश के साथ दिया “आज़ादी”.
अपनी अम्मियों के साथ बच्चियां भी आज़ादी का नारा पूरे जोश के साथ लगा रही हैं. इधर उधर घूम रहे कुछ पत्रकार और ढेरों गुप्तचर लड़कियों महिलाओं को सवाल पूछने के नाम पर भ्रमित करने का पूरा प्रयास कर रहे हैं, लेकिन औरतें उनका सही सही जवाब दे रही हैं.
एक पत्रकार ने मुझे भी घरेलू महिला जान कर मोदी जी वाले जुमले को सवाल के रूप में पूछा ” ये तो नागरिकता देने के बारे में है लेने के बारे में नहीं, फिर आप प्रदर्शन में क्यों आई हैं?” अफसोस उन्हें इस बात को समझना पड़ा.
प्रदर्शनों से क्या होगा नहीं मालूम, लेकिन इतिहास में दर्ज होगा कि जब जरूरत थी “चूड़ियों वालियां” हमेशा की तरह इतिहास बनाने में शामिल थी.
रौशन बाग़ में आंदोलन की रिपोर्टिंग मीडिया में न के बराबर हुई है. इसके कई कारण हो सकते हैं. बिकी हुई मीडिया और योगी शासन का भय इनमें शामिल हैं.
इधर दिल्ली की शाहीन बाग़ में हजारों औरतें धरने पर बैठी हुई हैं. पूरा एक महीना हो गया उनके आन्दोलन को. देश में नागरिकों के लिए कानून, क्योंकर नागरिकों की बिना सहमति के बनाए जाते हैं, इसी सवाल के साथ पिछले एक महीने से हजारों की संख्या में धरने पर बैठी हैं. 10 जनवरी से कानून लागू भी हो गया है, पर इन औरतों को अब भी आस है कि उनका प्रदर्शन और धरना रंग लाएगा.
इस प्रदर्शन की वजह से दिल्ली से नोएडा जाने वाला रास्ता जाम है और इसी समस्या पर दिल्ली हाईकोर्ट में जब मामले की सुनवाई हुई तो अदालत ने प्रशासन को कानून के मुताबिक काम करने को कहा है.
मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट में इस मामले पर सुनवाई हुई, जिसमें अदालत ने केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस से कहा है कि वह बड़ी पिक्चर देखे और आम लोगों के हित में काम करें.