भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले) की राज्य इकाई के पांच सदस्यीय जांच दल ने कानपुर का दौरा कर सीएए-विरोधी प्रदर्शन में जानें गंवाने वाले युवाओं के परिजनों से गुरुवार को उनके घरों पर जाकर भेंट की। जांच दल ने लौटकर शुक्रवार को यहां अपनी रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि 20 दिसंबर के सीएए-विरोधी प्रदर्शन में गोली लगने से कानपुर में तीन युवकों की मौत हुई थी। तीनों ही अल्पसंख्यक समुदाय के मजदूरी करने वाले परिवारों से थे।
परिवारवालों के अनुसार तीनों की मौत पुलिस की गोली से हुई। बाबूपुरवा कोतवाली क्षेत्र के खोमचे लगाने वाले मोहम्मद रईस (30 साल) व टेनरी मजदूर सैफ (25 वर्ष) की मौत इलाज के दौरान उसी रात को और घरों में पेंटिंग का काम करने वाले मोहम्मद आफताब आलम (23 साल) की अगले दिन हैलट अस्पताल में मृत्यु हो गई। अभी तक सरकार या प्रशासन की तरफ से किसी भी नुमाइंदे ने न तो इन पीड़ित परिवारों से मुलाकात की है, न ही उनकी कोई खोज खबर ली है।
माले के जांच दल ने कानपुर के बाबूपुरवा कोतवाली के बगाही, मुंशीपुरवा, बेगमपुरवा व यतीमखाना पुलिस चौकी क्षेत्र में मौके पर जाकर मृतकों के परिवारवालों से संवेदना व्यक्त की और लोगों से बातचीत की। बीस दिसंबर को हुई घटना के बाद से अभी भी बाबूपुरवा कोतवाली क्षेत्र में चौराहों पर आरएएफ लगी हुई है। बेगमपुरवा व मुंशीपुरवा के मकानों और संकरी बजबजाती गलियों को देख कर कोई भी सहज रूप से समझ सकता है कि यह गरीबों का ही मोहल्ला हो सकता है। लोग पुलिस के भय से सहमे हुए और दहशत में हैं। कोई ज्यादा कुछ बताने को तैयार नहीं था।
जांच टीम बेगमपुरवा में मृतक मोहम्मद रईश के घर पहुंची। पिता मोहम्मद शरीफ ने सूनी आंखों से बताया की उनके तीन बेटों में यही एक बेटा था, जिसकी मेंहनत की बदौलत किसी तरह घर का चूल्हा गर्म होता था। रईश खोमचा लगाकर पापड़ बेचता था। शादी ब्याह के अवसर पर बर्तन धोने का भी काम करता था। घटना के दिन वह ईदगाह में किसी कार्यक्रम में बर्तन धोने के बाद घर वापस आ रहा था। सड़क पार करते समय उसे पेट के नीचे पुलिस की गोली लगी थी। चार बजे शाम को किसी के द्वारा गोली लगने की सूचना मिली। फिर उसे घायल अवस्था में हैलट अस्पताल ले गए जहां अतिरिक्त रक्तस्राव से उसकी मौत हो गई। रईश की मौत से बूढ़े मां-बाप का एकमात्र सहारा छिन गया।
मुंशीपुरवा में मृतक मो. सैफ के घर पहुंचने पर उनकी मां कमरजहां ने जांच टीम को रोते हुए बताया कि उनका बेटा पहले टेनरी मजदूर था। टेनरी बंद होने के बाद बैग बनाने का काम कर रहा था। जीएसटी के कारण वह भी बंद हो गया। हर जगह मजदूरों को काम मिलना बंद हो गया। वह बेरोजगार था। घटना के दिन वह नमाज पढ़ कर भाई को खाना देकर घर वापस आ रहा था। रास्ते में ही सड़क पर उसे पुलिस की गोली लग गई। खबर मिलने पर उसे हैलट अस्पताल ले गए। वहां इलाज देर से शुरू हुआ पर मौत हो गई। उनका मानना है कि अगर इलाज में देरी नहीं होती तो उनका बेटा बच सकता था।
तीसरा मृतक मुंशीपुरवा ईदगाह का रहनेवाला नौजवान मो. आफताब आलम अपने पांच भाइयों में तीसरे नंबर पर था और बीए पास था। उनके घर पहुंचने पर उनकी विधवा मां नजमा बानो ने बताया कि उनका बेटा काफी होनहार था। वह पढ़ना चाहता था, लेकिन खराब आर्थिक हालत के कारण आगे नहीं पढ़ सका। वह मकानों में प्लास्टर (पीओपी) लगाने का काम करता था। वह नमाज के बाद बकाया मजदूरी मांगने गया था। उस दिन उसका बढ़िया खाना खाने का इरादा था। परिवार वालों को सूचना मिली कि उसे गोली लगी है। बदहवासी की हालत में परिजन उसे किसी तरह हैलट अस्पताल ले गए, जहां बड़ी मुश्किल से उसे भर्ती करा पाए। पहली दफा एक्सरे में गोली का पता नहीं लगा। उसके सीने में दो जगह गोली लगी थी। वह लगातार पीठ में तेज दर्द की शिकायत कर रहा था। दोबारा जांच में गोली का पता चला। दूसरे दिन उसकी मौत हो गई। इस दौरान वह लगातार बात करता रहा।वह बता रहा था कि लोग नमाज के बाद शांतिपूर्ण तरीके से सड़क पर चल रहे थे। वह खुद भी उधर से गुजर रहा था। पता नहीं कब गोली लगी। उनकी मां की इस बात की शिकायत थी कि अगर अस्पताल में सही तरीके से समय पर इलाज होता तो उसको बचाया जा सकता था।
मृतक परिवारों की सरकार व प्रशासन से इस बात की शिकायत है कि किसी ने भी उनके घर तक पहुंचकर किसी भी तरह की संवेदना व्यक्त करने की जहमत नहीं उठाई। मोहल्ले वालों ने जांच दल को बताया कि शाम होते ही लोग खौफ से अपने घरों में कैद हो जाते हैं। रात में घरों के दरवाजों पर पुलिस ठोकरें मारती है, शर्मनाक, अकथनीय भद्दी-भद्दी गालियां देती है। जूलूस के फुटेज के फोटो चस्पा कर गिरफ्तारी की जा रही है। उन्होंने यह भी बताया कि उनके मोहल्ले में काफी तादाद में हिंदू परिवार हैं। आपस में भाईचारा काफी मजबूत है। फिर भी उनके साथ इस तरह का बर्ताव हो रहा है।
माले की जांच टीम जब यतीमखाना पुलिस चौकी इलाके में गई, तो वहां लोगों ने बताया कि बीस दिसंबर को जुमे की नमाज के बाद हजारों की संख्या में लोगों ने शांतिपूर्ण तरीके से जूलूस निकाला था। इस दौरान अगर माहौल बिगाड़ने का काम हुआ तो उसकी पहल पुलिस ने की। बाबूपुरवा में पहले पुलिस ने ही शांतिपूर्ण जुलूस के कुछ युवकों को गाली देकर पीछे डंडा मारकर उत्तेजित किया था, जिससे बिगड़े माहौल को सम्भाला नहीं जा सका।
जांच दल ने हिंसा के लिए सरकार व पुलिस प्रशासन को जिम्मेदार ठहराते हुए मृतक के परिजनों को पच्चीस लाख रुपए का मुआवजा देने, गिरफ्तार लोगों को बिना शर्त रिहा करने और गोलीकाण्ड की न्यायिक जांच कराने की मांग की है।
जांच दल में भाकपा (माले) की राज्य स्थाई समिति (स्टैंडिंग कमेटी) के सदस्य रमेश सेंगर, राज्य कमेटी सदस्य राधेश्याम मौर्य, ऐपवा की नेता विद्या रजवार, कानपुर के माले जिला प्रभारी कामरेड विजय कुमार व डाक्टर शकूर आलम शामिल थे।
विज्ञप्ति: अरुण कुमार,राज्य कार्यालय सचिव द्वारा जारी