ग्राउंड रिपोर्ट: लपरवाही से हुई झारखंड की निम्मी की भूख से मौत- प्रशासन के पास थी असहायों की सूची

विशद कुमार विशद कुमार
प्रदेश Published On :


झारखंड में 5 साल की निम्मी कुमारी की भूख से हुई मौत के बाद भले ही प्रभावित परिवार को राशन और आर्थिक सहयोग देकर प्रशासन उनकी पीड़ा को कम करने का प्रयास किया हो, लेकिन भूख से हुई इस मौत की पूरी ज़िम्मेदारी स्थानीय प्रशासन की लापरवाही है। क्योंकि डोंकी ग्राम पंचायत की मुखिया ने 20 अप्रैल को ही पंचायत के 115 असहाय परिवारों की सूची मनिका प्रखंड के प्रखण्ड विकास पदाधिकारी को सौंप दी थी। लेकिन प्रखण्ड विकास पदाधिकारी ने इस मामले पर किसी तरह का संज्ञान नहीं लिया। उक्त सूची में मृतका निम्मी कुमारी के परिवार का भी नाम था।

झारखंड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन के अध्यक्ष कहते हैं, ”राज्य में भूख से हो रहीं मौतें प्रशासनिक लापरवाही के नतीजे हैं, ऐसे में भूख से हो रहीं मौतों को प्रशानिक हत्या माना जाना चाहिए और स्थानीय प्रशासन पर हत्या का मुकदमा दर्ज होना चाहिए। सरकार की पूरी जवाबदेही बनती है कि वह इस तरह के मामलों को संज्ञान में ले और दोषियों पर कार्यवाई करे ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृति न हो, लेकिन सरकार भी इन मामलों में ईमानदार नहीं है।”

बता दें कि लातेहार जिला मुख्यालय से लगभग 40 किमी दूर मनिका प्रखण्ड अन्तर्गत डोंकी पंचायत का एक गांव है हेसातु। जहां रहते हैं लगभग 110 परिवार, जिसमें शामिल हैं खेरवार, साव और कुम्हार जाति सहित 35 भुईयां (दलित) परिवार के लोग, जो पूरी तरह भूमिहीन हैं। उन्हीं दलित परिवारों में से एक है जगलाल भुईयां का परिवार। उसके 8 बच्चों में निमनी उर्फ निम्मी कुमारी (5 वर्ष) की पिछले 16 मई की रात को भूख से हो गई थी।

बच्ची की मौत शाम को करीब 6 से 7 बजे के बीच हुई थी। 8.00 बजे रात्रि में एक ग्रामीण ने मोबाईल पर ग्राम पंचायत के मुखिया पति गोपाल उरांव को फोन पर जानकारी दी कि उनके गांव में एक बच्ची की भूख से मौत हो गई है। यहां बताना मुनासिब होगा कि झारखंड के ग्राम पंचायतों में जो महिला मुखिया हैं, उन पंचायतों की महिला मुखिया का काम केवल कागजों पर साइन करना भर रहता है, लगभग महिला मुखियाओं का काम उनके पति ही संभालते हैं। इसी कारण के आलोक में गोपाल उरांव ने मोबाईल पर ही प्रखण्ड विकास पदाधिकारी मनिका को बच्ची की मौत की जानकारी दी। उसने यह भी आग्रह किया कि इस मामले में आगे क्या किया जाना चाहिए उसे मार्गदर्शन दिया जाए। लेकिन बीडीओ ने 10.00 बजे रात्रि तक कोई जवाब नहीं दिया।

अचानक रात करीब 12.00 बजे हेसातू के ग्रामीणों ने गोपाल उरांव को फोन पर बताया कि गांव में काफी सारी गाड़ियां आ रही हैं। अगले दिन सुबह पता चला कि गाड़ी किसी और की नहीं बल्कि प्रखण्ड विकास पदाधिकारी की थी जो पुलिस बल के साथ रात में ही आए थे। रात में ही उन्होंने पीड़ित परिवार को 8 पैकेट में 40 किलो चावल और 5000 रूपये देकर चले गये थे।

आपको बता दे कि नरेगा सहायता केन्द्र टीम के सदस्य तथा प्रख्यात अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज अपने सहयोगी पचाठी सिंह और दिलीप रजक के साथ जगलाल भुईयां के घर गये थे। जिसमें उन्होंने देखा कि अनाज का एक दाना घर में नहीं था। लेकिन घटना के बाद आनन-फानन में प्रशासन के लोग चावल और पांच हजार रूपये दे गये।

बता दें कि जगलाल भुईयां और उसका परिवार लगातार गरीबी का दंश झेलने को विवश रहा है। डेढ़ साल पहले वह टी0 बी0 बीमारी का शिकार हो गया था। पिछले साल नवंबर में वह चन्दवा प्रखण्ड के सासंग-ब्रह्मणी इलाके के सुकलकट्ठा में अपने दो नाबालिग बच्चों के साथ किसी ठेकेदार के सहारे ईंट बनाने के काम के लिए गया था। वहां 1000 हजार ईंटें बनाने पर 600 रूपये मिलने के बात भट्ठा मालिक से तय हुई थी। सामान्य दिनों में वह 11 सौ से 12 सौ तक प्रतिदिन ईटें बना लेता था, लेकिन इस वर्ष बीच-बीच में बेमौसम बारिश के कारण उनका काम प्रभावित हुआ है। उसकी मुश्किल यह थी कि पैसे का पूरा हिसाब आखरी में बरसात शुरू होने के पहले व भट्ठा बन्द होने के समय किया जाता है और तभी उसे पैसे मिलते हैं। बीच में उन्हें अपने घर में देने के लिए भी पैसे नहीं मिलते हैं, सिर्फ उनके खाने के लिए ही पैसे मिलते हैं।

जनवरी माह में जब पत्नी ने आठवीं संतान को जन्म दिया था, तब जगलाल अपने घर आया था। उस वक्त मालिक ने 1500 रूपये दिये थे। प्रसव घर पर ही हुआ था। फिर वह होली त्योहार तक घर में रहा। त्योहार के बाद जब वापस काम पर जाने लगा था, तब वह घर के सदस्यों के लिए महज 15 किलो चावल इन्तजाम करके गया था। इसके बाद से घटना की दिन तक परिवार के सदस्यों के लिए न पैसे भेज पाया था और न ही अनाज। उसके पास राशन कार्ड भी नहीं है और न ही मनरेगा के तहत जॉब कार्ड है।

सीमा देवी लातेहार जिले के मनिका प्रखंड अंतर्गत हेसातु गांव की उस दलित बच्ची निम्मी कुमारी की सबसे निकटतम पड़ोसी है, जिसकी पिछले 16 मई को भूख से मौत हो गई थी। रिश्ते में निम्मी की मां कलावती देवी सीमा की चाची सास लगती हैं। घटना के कई दिन बीत जाने के बाद भी बातचीत के दौरान उसके आंसू रूकने का नाम नहीं ले रहे थे।

बच्ची की मौत और उसके ठीक एक दिन बाद तक उनकी सास की मौत के बारे में बताते हुए सीमा देवी ने कहा कि घर में अन्न का एक दाना नहीं था और घर के सभी लोग भूखे सोने को मजबूर थे। लेकिन सबसे बड़ी पीड़ा और मलाल की बात यह है कि जैसे ही घटना सूचना फैली गांव में अनेक प्रकार की बड़ी-बड़ी गाड़ियां आने लगीं। उनके घर में कुछ अनाज और पैसे दिये गये।

सीमा देवी घटना से इत्तेफाक रखते हुए बताती हैं कि वह सुबह में तीन गिलास (लगभग साढ़े सात सौ ग्राम) चावल सिझाती हैं। जिसमें 3 साल से 8 साल के 3 बच्चों सहित खुद दोनों पति पत्नी सुबह नास्ता और दोपहर का खाना खाते हैं। शाम को 2 गिलास चावल का खाना बनाकर खाते हैं। अपने सास कलावती देवी के बच्चों को भी कभी कभार खाना या घर में बनाने के लिए चावल दे दिया करती थी। क्योंकि उन्हें उनकी गरीबी की हालत भलीभाँति मालूम है। लेकिन उनकी खुद की हैसियत भी ऐसी नहीं है कि वह अपने परिवार के साथ उस परिवार की ज्यादा मदद कर सके।

सीमा देवी हर साल धानकटनी के लिए डिहरी, सासाराम जाती हैं उससे जो मजदूरी मिलती है, उसी से गुजारा चलता है। उनका न राशन कार्ड है, न रोजगार कार्ड और न ही बैंक खाता। क्योंकि बैंक खाता खोलने के लिए भी पैसे लगते हैं। उसके लिए पैसे नहीं हैं। गाँव में साहुकारों के पास कभी-कभी घरेलू काम मिल जाता है। दिनभर की मजदूरी के तौर पर उन्हें 5 किलो खाद्यान्न और एक वक्त का खाना मिलता है।

घटना के दो दिनों पहले से वह सास कलावती देवी और उनके परिवार के बच्चों को न खाना नहीं दे पाईं थीं और न ही उसकी माँ को कोई अनाज दे सकी थीं। इसकी मुख्य वजह यह थी कि सीमा देवी ने अपने घर में आगामी बरसात में घर के छत से पानी चुए नहीं इसके लिए बृहस्पतिवार से ही श्रमदान स्वरूप मजदूरों को काम में लगाया था। वह सुबह शाम उन मजदूरों के नास्ते, खाने और उनके कामों में मदद करने में पूरी तरह व्यस्त रहीं। जिस कारण वह बच्चों को भी खाना नहीं दी थीं। उसे इस बात का पश्चाताप भी है और अपनी सास पर नाराजगी भी। वह रोते हुए कहती हैं यदि उसकी सास, अन्न अभाव के कारण घर में खाना नहीं बन पा रहा है, यह बताती तो जरूर उनकी मदद करतीं।

बता दें की 24 मार्च 2020 को प्रधान मंत्री ने कोविड-19 संक्रमण की रोकथाम के मद्देनजर संपूर्ण देश में 21 दिनों के लिए तालाबन्दी की घोषणा कर दी थी। आचानक हुई इस घोषणा से गरीब परिवार पूरी तरह प्रभावित हो गये। झारखण्ड सरकार ने पूरे राज्य में किसी भी परिवार को खाद्य संकट का सामना करना न पड़े इसके लिए सभी ग्राम पंचायतों को आपदा राहत कोष से दस-दस हजार रूपये आवंटित किये थे।

इधर तालाबन्दी की अवधि लगातार बढ़ाई जाती रही, लेकिन ग्राम पंचायतों को आवांटित राशि में कोई वृद्धि नहीं की गई। जिससे ग्राम पंचायतों ने भी गरीबों को आवश्यक खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने से हाथ खड़े कर दिये। इसी कड़ी में डोंकी के ग्राम पंचायत मुखिया ने 20 अप्रैल को ही पंचायत के 115 असहाय परिवारों की सूचि प्रखण्ड विकास पदाधिकारी, मनिका को सौंप दी थी। लेकिन प्रखण्ड विकास पदाधिकारी ने किसी तरह का संज्ञान नहीं लिया। उक्त सूची में मृतका निम्मी कुमारी के परिवार का नाम भी था।

झारखण्ड नरेगा वाच के संयोजक जेम्स हेरेंज बताते हैं कि ”​बच्ची निम्मी की भूख से हुई मौत के बाद भले ही उसके परिवार वालों को प्रशानिक उदारता से फिलवक्त भर पेट भोजन नसीब हो गया है। लेकिन सच्चाई यह है कि अभी भी गांव में ऐसे लोग हैं, जिनकी स्थिति काफी दयनीय है। उदाहरण के तौर पर हम जगलाल भुईयां के पड़ोस में ही स्व0 भोला भुईयां की पत्नी सुरजी देवी को देख सकते हैं जो अकेली रहती हैं। यह शुरू से ही भूमिहीन है। उसे वृद्धावस्था पेंशन मिलती है, जिससे उनका गुजारा चल रहा है। लेकिन उसकी आर्थिक हालत ऐसी बिल्कुल भी नहीं है कि वह अपने उस छोटे से घर की मरम्मत करा सके जिसमें वह रहती है, जो इंसान के रहने लायक कतई नहीं है। उसके घर की दीवार इतनी जर्जर हो चुकी है कि उसे हमेशा ये भय सताता रहता है कि कहीं उसकी कब्र घर में ही न बन जाए। उसकी हालत ऐसी भी नहीं है कि वह किसी सरकारी बाबुओं के दफ्तर का चक्कर लगा सके और जाकर अपनी हालत बता सके।”

बताते चलें कि डोंकी पंचायत उस वक्त सुर्खियों में आया था जब 1990 ईं0 में तत्कालीन लातेहार अनुमण्डल पदाधिकारी सुखदेव सिंह जो वर्तमान में झारखण्ड सरकार के मुख्य सचिव हैं, डोंकी गांव में जमीन विवाद की जांच को लेकर गए थे, उन्हें नक्सली दस्ते ने गांव में घेर लिया था। उस मामले में गांव के करीब 8-10 निर्दोष आदिवासियों को 6-6 सालों तक जेल की सजा काटनी पड़ी थी। तब से गांव के लोग डरे सहमे रहने लगे, लोगों ने सरकारी गुंडई का भी प्रतिकार करना छोड़ दिया।


 

विशद कुमार, झारखंड के स्वतंत्र पत्रकार हैं और लगातार जन-सरोकार के मुद्दों पर मुखरता से ग्राउंड रिपोर्टिंग कर रहे हैं।