आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम रद्द करो, किसान नहीं कंपनियों को फ़ायदा- किसान संसद


एसकेएम ने स्पष्ट किया कि मिशन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की योजना कल जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार होगी। लखनऊ तक मार्च करना या शहर की घेराबंदी करना एसकेएम का एजेंडा नहीं है, और ऐसी कोई कार्रवाई एसकेएम के मिशन यूपी का हिस्सा नहीं है। श्री राकेश टिकैत ने इस बारे में कल शाम को स्वयं स्पष्ट किया, कि उनके कुछ बयान उनके व्यक्तिगत विचार थे, न कि एसकेएम के योजनाओं का हिस्सा। मीडिया से अनुरोध है कि 26 जुलाई की लखनऊ प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार एसकेएम की मिशन यूपी और उत्तराखंड योजनाओं को कवर करें।


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जंतर मंतर पर जारी किसान संसद के चौथे दिन आज कई प्रस्ताव पारित किये गये। संसद में सरकार पर अन्न उत्पादन में बढ़ोतरी की झूठी कहानी प्रचारित करने के बजाय भुखमरी पर ध्यान देने को ज़रूरी बताया गया। कहा गया कि पिछले साल 1955 के अधिनियम में लाए गए संशोधनों ने खाद्य सामग्री के जमाखोरी और कालाबाजारी को कानूनी मंजूरी प्रदान की है। और यह आम उपभोक्ताओं और किसानों की कीमत पर कृषि व्यवसाय कंपनियों और बड़े व्यापारियों के फायदे के लिए बनाया गया है।

किसान संसद में कहा गया कि खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं के डिरेगुलशन (अविनियमन) से बड़े कॉर्पोरेट और वैश्विक खाद्य प्रसंस्करण और व्यापर कंपनियों का वर्चस्व बढ़ेगा। जैसा कि महिला किसान संसद ने कल भी जोर दिया था, किसान संसद ने सभी के लिए सस्ती कीमतों पर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर गंभीरता से संज्ञान लिया, जबकि अधिनियम में संशोधन सरकार को केवल “असाधारण मूल्य वृद्धि” के मामले में भण्डारण सीमा लागू करने की अनुमति देता है। इससे भी बदतर, सरकार के विनियमन की सीमित शक्तियों में भी प्रदान किए गए अपवादों के कारण, कई संस्थाओं को आपात स्थिति के मामले में भी भण्डारण सीमाओं का पालन करने की आवश्यकता नहीं है। किसान संसद ने संकल्प लिया कि आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम 2020 को संसद द्वारा निरस्त किया जाना चाहिए। आज की किसान संसद में साठ वक्ता थे – आज की बहस में भाग लेने वाले सदस्यों में से एक बंबई उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश श्री बीजी कोलसे पाटिल थें।

एसकेएम ने स्पष्ट किया कि मिशन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की योजना कल जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार होगी। लखनऊ तक मार्च करना या शहर की घेराबंदी करना एसकेएम का एजेंडा नहीं है, और ऐसी कोई कार्रवाई एसकेएम के मिशन यूपी का हिस्सा नहीं है। श्री राकेश टिकैत ने इस बारे में कल शाम को स्वयं स्पष्ट किया, कि उनके कुछ बयान उनके व्यक्तिगत विचार थे, न कि एसकेएम के योजनाओं का हिस्सा। मीडिया से अनुरोध है कि 26 जुलाई की लखनऊ प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार एसकेएम की मिशन यूपी और उत्तराखंड योजनाओं को कवर करें।

पंजाब के विभिन्न स्थानों पर दर्जनों स्थायी मोर्चों ने लगातार विरोध प्रदर्शन के 300 दिन पुरे किये।

पंजाब के होशियारपुर के मुकेरियां में बड़ी संख्या में किसानों ने भाजपा के एक कार्यक्रम का काले झंडों के साथ विरोध किया। एक मंदिर में आयोजित इस कार्यक्रम में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अश्विनी शर्मा और केंद्रीय मंत्री सोम प्रकाश जैसे बीजेपी नेताओं को हिस्सा लेना था। इसकी सूचना मिलते ही विभिन्न संगठनों के किसान तुरंत काले झंडे का विरोध करने के लिए एकत्र हो गए और शांतिपूर्ण ढंग से अपना विरोध प्रदर्शित किया।

एसकेएम ने कल रात टिकरी बॉर्डर में किसानों के शिविर पर कुछ बदमाशों द्वारा किए गए हमले, जिसमें एक युवक गुरविंदर सिंह गंभीर रूप से घायल हो गया, की निंदा की। हमलावरों का संभावित निशाना किसान नेता रुलदू सिंह मनसा थे जो उस कैंप में रहते थे। मांग है कि पुलिस हत्या की मंशा व प्रयास का मामला दर्ज कर हमलावरों को तत्काल गिरफ्तार करे।

एसकेएम एक किसान नेता हरिंदर लखोवाल को एक किसान विरोधी मीडिया हाउस द्वारा खालिस्तानी समर्थक के रूप में अपमानजनक और पूरी तरह से आपत्तिजनक चित्रण की भी निंदा करता है।

बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने के नाम पर किसानों के हितों की रक्षा के लिए भारत सरकार के कई दावों के विपरीत, अमेरिका के अलावा अन्य देशों से आयात किए गए मसूर/दाल पर आयात शुल्क को 10% से घटाकर 0% कर दिया गया है, और संयुक्त राज्य अमेरिका से आयात के लिए 30% से 20% कर दिया गया है। इसके अलावा, कृषि अवसंरचना और विकास उपकर (AIDC) जिसका उद्देश्य कृषि-बुनियादी ढांचे को विकसित करना है, को 20% से घटाकर 10% कर दिया गया है। एसकेएम सरकार के इन किसान-विरोधी फैसलों की निंदा करता है।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने किसान संसद को ‘निरर्थक’ बताकर उसका उपहास किया था। उनके और भारत सरकार का रवैया कि किसानों का विश्लेषण और स्पष्टीकरण “निरर्थक” है, के कारण ही किसान आंदोलन ने राजमार्गों पर 8 महीने से अधिक समय बिता दिया है, और 540 से अधिक साथियों को खोया है। मंत्री जी ने आज विपक्षी सांसदों से यह भी कहा कि अगर उन्हें किसानों की चिंता है तो उन्हें सदन को चलने देना चाहिए। मंत्री जी ने इस बात को नज़रअंदाज़ करना चाहा कि विपक्षी सांसद ठीक वही कर रहे हैं जो किसानों ने उन्हें “पीपुल्स व्हिप” के माध्यम से करने के लिए कहा है। जब आम नागरिकों द्वारा जीवन और मृत्यु का संघर्ष लड़ा जा रहा हो, वह भी जो खुद मोदी सरकार द्वारा थोपी गया हो, तब सरकार “हमेशा की तरह व्यवसाय” की उम्मीद नहीं कर सकती है।

 किसान संसद में सदन द्वारा पारित प्रस्ताव

26 और 27 जुलाई को किसान संसद में बहस और विचार-विमर्श के आधार पर:

1. यह स्पष्ट रूप से देखने के बाद कि आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम 2020 (2020 की संख्या 22) के प्रावधानों को आम उपभोक्ताओं और किसानों की कीमत पर कृषि व्यवसाय कंपनियों और बड़े व्यापारियों के फायदे के लिये बनाया गया है, मौजूदा विनियमन (रेगुलेशन) और निरीक्षण तंत्र का ख़ात्मा कृषि बाजारों पर बड़े कॉर्पोरेट और वैश्विक खाद्य प्रसंस्करण और व्यापार कंपनियों का वर्चस्व स्थपित कर देगा;

2. यह स्पष्ट रूप से समझने के बाद कि आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020 बड़ी कंपनियों और व्यापारियों के द्वारा खाद्य पदार्थों की जमाखोरी और कालाबाजारी को रोकने के लिए सरकार के प्राधिकार को समाप्त कर देता है, और इसलिए इसे “खाद्य पदार्थों की जमाखोरी और कालाबाजारी स्वतंत्रता कानून” कहा जाना चाहिए;

3. जून 2020 से जनवरी 2021 तक आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम के कुप्रभाव को ध्यान में रखते हुए, जहां – औद्योगिक और अन्य व्यवसायों के बंद होने के साथ बड़े पैमाने पर नौकरी और रोजगार के नुकसान के बावजूद, कोविड लॉकडाउन के दौरान नागरिकों के बड़े वर्ग, विशेष रूप से वंचित वर्ग, को भूखा छोर दिया है, और जहां सरकार ने अस्थायी रूप से पीडीएस के तहत लोक-कल्याण के विस्तार की घोषणा की – कई बुनियादी और आवश्यक खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेजी से वृद्धि जारी है और आम लोगों की पहुंच से बाहर हो गई है; और सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 को लागू करके कीमतों पर लगाम लगाने के लिए कुछ भी नहीं किया है, केवल संक्षिप्त अवधि के लिये प्याज और दालों की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए के अलावा;

4. यह देखते हुए कि किसान आंदोलन के परिणामस्वरूप सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस अधिनियम, साथ ही अन्य दो कॉर्पोरेट कृषि अधिनियम जो किसान-विरोधी हैं, को निलंबित कर दिया गया था, केंद्र सरकार ने दालों की जमाखोरी को नियंत्रित करने के लिए पुराने आवश्यक वस्तु अधिनियम का उपयोग करने के आदेश जारी किए हैं, पुराने (असंशोधित) अधिनियम की आवश्यकता और उपयोगिता को प्रदर्शित करता है;

5. संसद के विद्वान किसान सदस्यों द्वारा उठाए गए तर्कों को ध्यान में रखते हुए कि आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम, 2020 की धारा 2 के तहत “अनाज, दाल, आलू, प्याज, खाद्य तिलहन और तेल सहित खाद्य पदार्थों” को “असाधारण परिस्थितियों में जिसमें युद्ध, अकाल, असाधारण मूल्य वृद्धि और गंभीर प्रकृति की प्राकृतिक आपदा शामिल हो सकती है” को छोड़कर अधिनियम के तहत विनियमन से प्रभावी ढंग से हटा दिया जाएगा; और आगे माननीय किसान सांसदों की चिंता को संज्ञान में लेते हुए कि सभी भंडारण सीमाएं केवल “मूल्य वृद्धि पर आधारित” होंगी जो “तत्काल पूर्ववर्ती बारह महीनों में प्रचलित मूल्य से अधिक” “बागवानी उत्पादों की खुदरा कीमतों में सौ प्रतिशत वृद्धि, या गैर-नाशयोग्य कृषि खाद्य पदार्थों के खुदरा मूल्य में पचास प्रतिशत की वृद्धि की अनुमति देगा”;

6. यह समझने के बाद कि अडानी, रिलायंस और वॉलमार्ट जैसी बड़ी कृषि व्यवसाय कंपनियों की खाद्य क्षेत्र में वर्चस्व, केवल छोटे किसानों की मोल-भाव की क्षमता और आय को कम करेगा, जैसा कि अमरीकी, यूरोपीय और अन्य देशों में हुआ था;

7. यह संज्ञान में लेते हुए कि यह संशोधित अधिनियम, आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के खंड 2A का उल्लंघन करता है, जो भारत सरकार को केवल “राज्य सरकारों के परामर्श से उक्त अनुसूची (अधिनियम के तहत आवश्यक वस्तुओं को सूचीबद्ध करना) से किसी भी वस्तु को हटाने” का आदेश देता है;

8. सभी किसान सांसदों और बड़ी संख्या में विशेषज्ञों द्वारा व्यक्त की गई व्यापक चिंता को ध्यान में रखते हुए कि भारत सरकार देश भर में आवश्यकता से अधिक अनाज उत्पन्न करने की पूरी तरह से झूठी कथा का प्रचार कर रही है, जबकि कई अध्ययनों और सामाजिक मूल्यांकनों में परिलक्षित वास्तविकता हमारे देश में भूख की बढ़ते स्तरों को उजागर करती है;

9. यह संज्ञान में लेने के बाद कि 2020 में ग्लोबल हंगर इंडेक्स में सूचीबद्ध देशों की सूची में भारत एक बहुत ही अस्वीकार्य निम्न और लगातार घटते स्थान पर है, हमारी स्थान आखिर से 13वां है, यानी 107 में से 94वां; कि यह स्थान पाकिस्तान 88, बांग्लादेश 75 और नेपाल 73 से नीचे है; और यह कि 2020 में, भारत में अल्पपोषण का माप जनसंख्या का 14% था, जबकि 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में अविकसित कद द्वारा मूल्यांकन किया गया स्थायी अल्पपोषण 37.4% था;

10. महिला किसानों सहित किसान-सांसदों से यह जानने के बाद कि सभी नागरिकों की खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से गरीबों के लिए सस्ती कीमत पर भोजन सुनिश्चित करना, और जमाखोरी और अन्य साधनों के माध्यम से कंपनियों और व्यापारियों के द्वारा बाजार के मूल्यों में हेरफेर को रोकना महत्वपूर्ण है, जबकि 2020 में लाया गया संशोधन आपातकाल की स्थिति में भी कॉर्पोरेट संस्थाओं को जमाखोरी की अनुमति देता है;

11. किसानों से यह जानने के बाद कि सरकार को किसानों और उनके समूहों की उनकी उपज के भंडारण, प्रसंस्करण और व्यापार की क्षमता को मजबूत करने की आवश्यकता है, न कि बड़े कॉर्पोरेट को भंडारण और प्रसंस्करण को बिना सीमा के विस्तार करने में सक्षम बनाने के लिए;

किसान संसद यह प्रस्ताव पारित करती है कि:

क. आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम 2020 को संसद द्वारा तुरंत निरस्त किया जाना चाहिए; किसान संसद इस अधिनियम को निरस्त करती है, और संसद को भी ऐसा करने का प्रस्ताव पारित करती है।

ख. राज्य सरकारों को किसान संगठनों के परामर्श से फसलों के व्यापार, परिवहन, भंडारण सुविधाओं और खाद्य प्रसंस्करण को मजबूत करना चाहिए; सभी लोगों को बुनियादी खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए खाद्य वितरण प्रणाली में सुधार लाना चाहिए; तथा

ग. भारत सरकार को एक नीति तैयार करनी चाहिए और ऐसी बुनियादी सुविधाओं और बुनियादी ढांचे की स्थापना सुनिश्चित करनी चाहिए जो यह सुनिश्चित करेगी कि खाद्य उत्पादन, भंडारण, प्रसंस्करण और व्यापार से, किसान और उनके परिवार कमाएं, न कि कॉर्पोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियां।

 

जारीकर्ता –
बलबीर सिंह राजेवाल, डॉ दर्शन पाल, गुरनाम सिंह चढूनी, हन्नान मोल्ला, जगजीत सिंह डल्लेवाल, जोगिंदर सिंह उगराहां, शिवकुमार शर्मा (कक्का जी), युद्धवीर सिंह, योगेंद्र यादव

संयुक्त किसान मोर्चा प्रेस विज्ञप्ति
243वां दिन, 27 जुलाई 2021