किसानों को बदनाम करने की साज़िश सफल न होगी, माँगें पूरी करे सरकार-SKM


एसकेएम ने जोर देकर कहा है कि “किसान जो मांग रहे हैं, वह यह है कि उनके आजीविका के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं किया जाए और यह सुरक्षित रहे । ए’क लोकतंत्र में, यह अपेक्षा रहती है कि सरकार उनकी जायज मांगों को स्वीकार करे। ऐसा करने के बजाय, भाजपा सरकार इसे अनावश्यक रूप से इस उम्मीद के साथ बदनाम र रही है कि आंदोलन नष्ट हो जाएगा। ऐसा नहीं होने वाला है।”


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संयुक्त किसान मोर्चा प्रेस नोट  (204वां दिन, 18 जून 2021)

किसान आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश में बीजेपी और उसके समर्थकों की कोशिशें तेज होती जा रही हैं । प्रदर्शनकारियों को बदनाम करने के लिए हर अवसर का जमकर फायदा उठाया जा रहा है। हालाँकि, उनकी विफल रणनीति को फिर से विफल होना तय है।

सत्याग्रह किसानों का मार्ग है और कृषि कानूनों पर उनकी समझ ,उनके विश्लेषण के सत्य के साथ-साथ उनकी आशा, शांति और दृढ़ता सुनिश्चित करेगी कि इस संघर्ष में अंततः जीत उनकी है। कसार गांव के मुकेश द्वारा आत्महत्या के दुर्भाग्यपूर्ण मामले को भाजपा सरकार के साथ-साथ मीडिया के कुछ वर्गों द्वारा भी भुनाया जा रहा है  यह इस मामले में दर्ज प्राथमिकी में भी परिलक्षित होता है।

यह बताया गया है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने केंद्रीय गृह मंत्री से मुलाकात की थी और विरोध स्थलों पर ‘अनुचित घटनाओं’ और “बिगड़ती कानून व्यवस्था की स्थिति” के आधार पर कुछ कार्रवाई की योजना बनाई जा रही है।

संयुक्त किसान मोर्चा ने इस तरह के बदनाम करने के प्रयासों के खिलाफ चेतावनी देता है। वे पूर्व में बार-बार विफल हुए हैं, और अब भी विफल होंगे। एसकेएम ने जोर देकर कहा है कि “किसान जो मांग रहे हैं, वह यह है कि उनके आजीविका के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं किया जाए और यह सुरक्षित रहे । एक लोकतंत्र में, यह अपेक्षा रहती है कि सरकार उनकी जायज मांगों को स्वीकार करे। ऐसा करने के बजाय, भाजपा सरकार इसे अनावश्यक रूप से इस उम्मीद के साथ बदनाम कर रही है कि आंदोलन नष्ट हो जाएगा। ऐसा नहीं होने वाला है।

यह समझते हुए कि सरकार के एमएसपी जुमलों में कोई वास्तविक समाधान मौजूद नहीं है, भारत भर के किसान मांग कर रहे हैं कि इसे पूरे भारत में उन सभी के लिए कानूनी गारंटी के रूप में बनाया जाना चाहिए। कल अखिल भारतीय किसान सभा के आह्वान पर महाराष्ट्र के 20 जिलों के किसानो ने कम से कम 35 रुपये प्रति लीटर दूध के लाभकारी मूल्य की गारंटी की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया। कोविड महामारी और लॉकडाउन के कारण दूध की कीमत घटकर केवल रु. 20/- प्रति लीटर रह गई है ।

इस बीच, कई राज्य सरकारें किसानों की मांगों का जवाब दे रही हैं और  ल रहे आंदोलन के साथ मजबूती से खड़ी हैं। हाल ही में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री की ओर से प्रधानमंत्री को भेजे गये एक ज्ञापन में मुख्यमंत्री द्वारा तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने का मुद्दा उठाया गया था। महाराष्ट्र कथित तौर पर अपने किसानों पर केंद्रीय कानून के बुरे प्रभावों को बेअसर करने के लिए अपने कानून में संशोधन करने की प्रक्रिया में है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री प्रदर्शन कर रहे किसानों की मांगों को पूरा करने की मांग कर रही हैं। कुछ अन्य राज्यों में अन्य दलों के नेतृत्व वाली सरकारें किसान आंदोलनों के साथ खड़ी हुई हैं और देशव्यापी कार्रवाई के उनके आह्वान में शामिल हुई हैं। यहां तक ​​कि बीजेपी के अपने नेता भी केंद्र सरकार से किसानों की समस्या का समाधान करने की मांग करते रहे हैं ।सरकार को इसे प्राथमिकता देनी चाहिए, न कि बदनामी और मानहानि अभियान को ।

काफी संख्या में किसान विरोध स्थलों पर पहुंच रहे हैं और प्रदर्शनकारियों की संख्या बढ़ रही है। उत्तराखंड के जसपुर से सैकड़ों किसान कल गाजीपुर बार्डर पहुंचे ।बीकेयू टिकैत के नेतृत्व में पदयात्रियों का एक बड़ा दल आज पांच दिन की पैदल यात्रा कर गाजीपुर सीमा पर पहुंचा ।

जारीकर्ता – बलबीर सिंह राजेवाल, डॉ दर्शन पाल, गुरनाम सिंह चारुनी, हन्नान मुल्ला, जगजीत सिंह दल्लेवाल, जोगिंदर सिंह उगराहन, शिवकुमार शर्मा ‘कक्काजी’, युद्धवीर सिंह, योगेंद्र यादव

संयुक्त किसान मोर्चा
9417269294, samyuktkisanmorcha@gmail.com