आजादी की लड़ाई के दौरान जमींदारी प्रथा के खिलाफ किसानों को संगठित करने वाले महान किसान नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती की जयंती पर आज बिहार में अखिल भारतीय किसान महासभा व भाकपा-माले ने किसान दिवस के रूप में मनाया। सहजानंद सरस्वती के आश्रम स्थल बिहटा में किसान महापंचायत का आयोजन किया गया, जिसमें भाकपा माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य, पार्टी के वरिष्ठ नेता स्वदेश भट्टाचार्य सहित कई प्रमुख किसान नेताओं ने भाग लिया।
बिहटा में सबसे पहले माले व किसान नेताओं ने सहजानंद सरस्वती के आश्रम में जाकर उनकी मूर्ति पर माल्यार्पण किया और उन्हें अपनी श्रद्धांजलि दी। दीपंकर भट्टाचार्य के साथ-साथ स्वदेश भट्टाचार्य, वरिष्ठ किसान नेता केडी यादव, माले विधायक दल के नेता महबूब आलम, माले के राज्य सचिव कुणाल, पटना जिला के सचिव अमर, पालीगंज से विधायक संदीप सौरभ, फुलवारी विधायक गोपाल रविदास, वरिष्ठ माले नेता राजाराम, संतोष सहर, किसान नेता राजेन्द्र पटेल, कृपानारायण सिंह आदि शामिल थे।
Kisan Mahapanchayat in Bihta, Bihar, on the birth anniversary of kisan leader Swami Sahajananda Saraswati. CPIML Gen Sec Dipankar Bhattacharya and senior farmer leaders paid tribute to Swami Sahajananda Saraswati at his Ashram in Bihta before the mahapanchayat.#FarmersProtest pic.twitter.com/px18VAqlHz
— CPIML Liberation (@cpimlliberation) March 11, 2021
सहजानंद सरस्वती के आश्रम में श्रद्धांजलि देने के बाद बंगला मैदान में दसियों हजार किसानों की महापंचायत हुई। महापंचायत में छोटे-बटाईदार किसानों की बड़ी भागीदारी हुई।
Kisan Mahapanchayat in Bihata, Patna was addressed by CPIML Gen Sec @Dipankar_cpiml, Bihar Secretary @ShyamKnl and @Sandeep_Saurav_
A farmers' Vidhan Sabha march will be held in Patna on 18 March.#FarmersProtest pic.twitter.com/zoLoOYJEXh— CPIML Liberation (@cpimlliberation) March 11, 2021
महापंचायत को संबोधित करते हुए माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि आज हम सहजानंद सरस्वती की जयंती पर यहां जमा हुए हैं। उनकी जो जीवन यात्रा थी, उस पर कुछ बात करनी आज बहुत जरूरी है। सहजानंद की यात्रा ब्राह्मण समुदाय से लड़कर भूमिहारों को सामाजिक प्रतिष्ठा दिलाने से आरंभ हुई थी। लेकिन उन्होंने काफी कम समय में यह समझ लिया कि सामाजिक उत्पीड़न का दायरा बहुत बड़ा है। दलित व पिछड़ी जाति के लोग कहीं अधिक उत्पीड़ित हैं।
उन्होंने किसानों की दुर्दशा देखी। कांग्रेस के लिए जमींदार ही किसान थे। सहजानंद ने असली किसानों की पहचान की और इसी स्थान पर 1929 में बिहार प्रदेश किसान सभा का गठन किया। आज जो हम किसान सभा चला रहे हैं उसकी शुरूआत सहजानंद ने ही की थी। वह आंदोलन जल्द ही राष्ट्रीय बन गया। 1936 में अखिल भारतीय किसान सभा बनी और उसके पहले सत्र में वे पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए। किसानों की लड़ाई पूरे देश के किसानों की लड़ाई बन गई।
दीपंकर ने कहा कि सहजानंद सरस्वती ने बताया कि जमींदारी से किसानों व अंग्रेजों से पूरे हिंदुस्तान की मुक्ति की लड़ाई साथ-साथ चलेगी। उन्होंने यह भी कहा था कि मुल्क की आजादी का सबसे भरोसेमंद झंडा लाल झंडा है। वे राजनीतिक विचार से उसी समय वामपंथी हो गए। उनके ही प्रयासों से किसान सभा का झंडा लाल चुना गया। आज भी किसान आंदोलन का सबसे भरोसेमंद झंडा लाल ही है। दिल्ली बाॅर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में कई रंग के झंडे आपको नजर आएंगे, लेकिन लाल झंडा ही उसकी धुरी है।
माले महासचिव ने कहा कि सहजानंद ने वामपंथ काॅर्डिनेशन कमिटी के लिए भी काम किया। उनके तमाम साथी कम्युनिस्ट पार्टी में आए। लेकिन आजादी के तुरंत बाद 1950 में उनका निधन हो गया और देश बहुत कुछ हासिल करने से वंचित रह गया।
दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि 70 के दशक में जो किसान आंदोलन का नया दौर शुरू हुआ, वह सहजानंद की प्रेरणा लेकर ही आगे बढ़ा। आईपीएफ जब बना, और फिर जब हमने 1989 में चुनाव जीता तो, बहुत लोगों ने कहा कि सहजानंद की परंपरा व विरासत जिंदा हो गई है। हम उसी विरासत को लेकर लगातार चल रहे हैं। हम चाहते हैं कि ऐसे महान किसान नेता को सही सम्मान मिले। हमारे देश में इन नेताओं को एक जाति नेता के रूप में दिखाया जाता है। जबकि वे किसानों, खेत मजदूरों, वामपंथ और आजादी के बड़े नेता थे।
उन्होंने कहा कि कुछ लोग हमेशा ऐसे नेताओं को जाति के दायरे में खींच लेने के लिए तैयार बैठे हैं। हमने देखा कि यह त्रासदी सहजानंद के साथ भी हुई। उन्हें एक जाति के नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिशें हुईं। इसे तोड़ने के लिए और उन्हें उचित सम्मान दिलाने के लिए हमने पूरे बिहार में आज किसान दिवस का आयोजन किया है। यहां से किसान रथ यात्रायें रवाना हुईं है। हमें विश्वास है कि सहजानंद इतिहास के सबसे बड़े किसान नेता के रूप में स्थापित होंगे। दिल्ली में जो किसान बैठे हैं, पूरे सम्मान के साथ उन्हें याद कर रहे हैं। उन्होंने कहा था कि जो अन्नदाता हैं, जो उत्पादन करने वाले हैं, वही इस देश के अंदर कानून बनाए, शासन का सूत्र मेहनतकशों के हाथ में हो, यह बहुत बड़ी लड़ाई है। इसलिए आज पूरा देश उन्हें याद कर रहा है।
माले महासचिव ने कहा कि लाॅकडाउन में जब सभी लोग घर में बंद थे, मोदी सरकार ने आनन-फानन में तीन कानून पास कर दिए। और जब विगत 100 दिनों से आंदोलन लगातार चल रहा है, तब मोदी जी कहते हैं कि कुछ लोग आंदोलनजीवी हैं। हम गर्व से कहते हैं कि हम आंदोलनजीवी हैं। हम जिंदा इंसान है, लड़कर अपना अधिकार लेंगे। हमें अपना हक आंदोलन की वजह से ही मिला है। आजादी के दौर में भी ये लोग मुखबीरी कर रहे थे, आज सत्ता में बैठकर अंबानी-अडानी के तलवे चाट रहे हैं। कह रहे हैं कि बिहार में कहां किसान आंदोलन है? इसलिए हमने चुनौती स्वीकार की है।
दीपंकर ने कहा कि बिहार का यह आंदोलन उनके मुगालते को तोड़ देगा। आज के किसान महापंचायत से हमें संकल्प लेकर जाना है कि चल रहे देशव्यापी किसान आंदेालन में बिहार के गरीबों को उतना ही भागीदार बनाना है, जितना पंजाब के किसान आंदोलन इस आंदोलन में शामिल हैं।
महापंचायत को स्थानीय नेताओं ने भी संबोधित किया। अंत में एक प्रस्ताव पास कर 18 मार्च के विधानसभा मार्च और 26 मार्च को होने वाले भारत बंद को सफल बनाने की अपील भी की गई।
अन्य जिला मुख्यालयों पर सहजानंद सरस्वती के विचारों की तख्तियां बनाकर मार्च किया गया। मार्च के दौरान तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने, एमसपी को कानून दर्जा देने, एपीएमसी ऐक्ट पुनर्बहाल करने, छोटे व बटाईदार किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना का लाभ देने आदि की भी मांगें उठाई गईं।
Kisan marches were held today in many districts of Bihar on the occasion of birth centenary of Swami Sahajanand Saraswati.#FarmersProtest Jehanabad pic.twitter.com/fmG7ALyOKn
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