भाकपा-माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा है कि मोदी की तानाशाही की तर्ज पर बिहार में तानाशाही का नीतीश माॅडल विकसित हो रहा है। मोदी-योगी सरकार के नक्शे कदम पर चलते हुए कुछ दिन पहले ही नीतीश सरकार ने सोशल मीडिया पर की गई आलोचनाओं को अपराध की श्रेणी में डाल दिया था और अब प्रदर्शनों में हिस्सा लेने वालों को नौकरी नहीं दिए जाने का फरमान जारी कर दिया गया है। यह प्रतिवाद के लोकतांत्रिक अधिकारों को खत्म कर देने की साजिश है। हमारी पार्टी इसकी मुखालफत करती है और ऐसे लोकतंत्र विरोधी निर्देशों को अविलंब वापस लेने की मांग करती है।
माले महासचिव ने उक्त बातें आज पटना राज्य कार्यालय में भाकपा-माले के पटना नगर के साथियों के साथ हुई बैठक में कहीं। बैठक में उनके अलावा माले राज्य सचिव कुणाल, पोलित ब्यूरो के सदस्य धीरेन्द्र झा, अमर, पटना नगर के सचिव अभ्युदय, समता राय, मुर्तजा अली, अशोक कुमार, अनय मेहता, नसीम अंसारी आदि नेता उपस्थित थे।
माले महासचिव ने आगे कहा कि बिहार चुनाव में रोजगार एक बड़ा मुद्दा था। चुनाव के बाद बिहार के छात्र-नौजवान ठगा महसूस कर रहे हैं। सरकार उनके साथ दुश्मन की तरह व्यवहार कर रही है और उनसे संवाद तक नहीं करना चाहती है। हाल ही में पटना में शिक्षक अभ्यर्थियों पर बर्बर लाठियां चलाई गईं। उनकी मांगों को सुनने और बहाली प्रक्रिया आरंभ करने की बजाए सरकार छात्र-युवाओं और अन्य तबकाई आंदोलनकारियों को धमका रही है।
दीपंकर ने कहा कि दरअसल, नीतीश कुमार बिहार में मोदी के काॅरपोरेटपरस्त नीतियों को ही आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। जहां वे मानदेय आधारित रोजगार की नीति ही चलाना चाहते हैं, जबकि बिहार के युवाओं की लंबे समय से सम्मानजनक व स्थायी रोजगार की मांग रही है। हमारी मांग है कि चुनाव पूर्व भाजपा-जदयू ने जिन 19 लाख रोजगार की घोषणा की थी, उन पदों पर स्थायी बहाली की जाए।
उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि बिहार में बढ़ती इस तानाशाही के खिलाफ बिहार की लोकतंत्रपसंद जनता मजबूत प्रतिवाद दर्ज करेगी और नीतीश सरकार को ऐसे कदम वापस लेने के बाध्य करेगी।