बैंकों के निजीकरण के खिलाफ हड़ताल के समर्थन में सड़क पर उतरे माले विधायक!

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राजनीति Published On :


सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण करने के मोदी सरकार के फैसले के खिलाफ बैंक अधिकारियों-कर्मचारियों के संगठनों के संयुक्त आह्वान पर दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल के पहले दिन पटना में आज सभी माले विधायकों ने विभिन्न बैंकों में जाकर उनकी हड़ताल का समर्थन किया, हड़तालियों के साथ एकजुटता प्रदर्शित की और बिहार विधानसभा से निजीकरण के खिलाफ प्रस्ताव पेश करने के लिए बिहार सरकार पर दबाव बनाने का आश्वासन दिया।

आज विधानसभा के भोजनावकाश के बाद सभी 12 विधायकों ने 3 अलग-अलग टीमों का गठन कर पटना स्थित बैंकों का दौरा किया। पहली टीम में अरूण सिंह, सुदामा प्रसाद,  अजीत कुशवाहा व  मनोज मंजिल; दूसरी टीम में सत्यदेव राम, महानंद सिंह, रामबलि सिंह यादव व संदीप सौरभ तथा तीसरी टीम में महबूब आलम, वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता और गोपाल रविदास शामिल थे। पटना नगर के सचिव अभ्युदय के नेतृत्व में विधायकों की इन टीमों ने बैंकों का दौरा किया। पहली टीम अंटा घाट स्थित एसबीआई जोनल कार्यालय, दूसरी टीम कोतवाली थाने के पास स्थित इंडियन बैंक और तीसरी टीम ने आर ब्लाॅक चैराहा स्थित बैंक आफ इंडिया व पंजाब नेशनल बैंक का दौरा किया।

इस मौके पर विधायक दल के नेता महबूब आलम ने कहा कि मोदी सरकार का आईडीबीआई सहित दो अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण का प्रस्ताव जन विरोधी और देश विरोधी प्रस्ताव है। बैंकों का निजीकरण प्रस्ताव के साथ ही दूसरा प्रस्ताव है सरकारी व्यापार को निजी बैंकों को देना यानी सरकारी कोष की राशि अब निजी बैंकों में जमा किया जायेगा जो जहरीले सांप को दूध पिलाने जैसा है।

पिछले 50 वर्षों में देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जनता का मेहनत से कमाई गई बचत का विश्वस्त संरक्षक की भूमिका में रही है। गांव- गांव तक फैले बैंकों की शाखाओं ने ग्रामीण अर्थ व्यवस्था व कृषि क्षेत्र के विकास में अहम योगदान किया है। बैंक राष्ट्रीयकरण ने वर्गीय बैंकिंग की अवधारणा को जन बैंकिंग में बदलने का काम किया है। आज जब देश आर्थिक हालात और विकास दर बदतर स्थिति में है तो मोदी सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को मजबूत करने के बदले उन्हीं कॉर्पोरेट के हाथों सौंप रही है जिन्होंने बैंक कर्ज की विशाल राशि को लौटाने की बजाय पचाने का काम किया है।

अन्य विधायकों ने कहा कि मोदी सरकार ने रोजगार देने का वायदा किया था। निजीकरण से रोजगार में कटौती होगी। नौकरियां बढ़ने की बजाय बड़ी संख्या में घटेगी। एससी/एसटी/ओबीसी का आरक्षण समाप्त हो जायेगा क्योंकि निजी क्षेत्र में आरक्षण का प्रावधान ही नहीं है।

बैंक निजीकरण का मतलब है ग्रामीण क्षेत्र में बैंक शाखाओं की बंदी, कृषि ऋण में भारी कटौती, मध्यम व लघु उद्यम कर्मियों को मिलने वाली ऋण की राशि में कमी, शिक्षा ऋण मिलना मुस्किल, गरीबों और कमजोर वर्ग को ऋण मिलना मुस्किल हो जायेगा। बुनियादी ढ़ांचे और प्राथमिक क्षेत्र के लिए ऋण राशि उपलब्ध होना मुस्किल हो जायेगा। बैंक निजीकरण का मतलब कॉर्पोरेट को ज्यादा से ज्यादा ऋण उपलब्ध होना क्योंकि निजी बैंकों का मालिक वही होंगे। निजीकरण का मतलब है कम्पनी राज जिसको लाने के लिए मोदी जी दिन रात एक किए हुए हैं।

सबसे बड़ी बात है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को उन्हीं कॉर्पोरेट को सौंप दिया जायेगा जिन्होंने बैंकों से विशाल राशि कर्ज लेकर चुकता नहीं किया। जनता की मेहनत से कमाई बचत की गई जमा पूंजी को कॉरपोरेट गिद्धों के हवाले करने की योजना मोदी सरकार ने बना ली है।

माले विधायकों ने कहा कि मोदी सरकार की जन विरोधी, देश विरोधी निजीकरण की नीति के खिलाफ बैंक कर्मियों के साथ मजदूर-किसान और छात्र-नौजवान का एकतावद्ध जुझारू संघर्ष समय की मांग है। बैंक कर्मियों ने 15 और 16 मार्च को दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल का निर्णय लिया है और उनका विरोध प्रदर्शन जारी है। केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों और फेडरेशनों का संयुक्त मंच और किसान संघर्ष मोर्चा ने निजीकरण के खिलाफ बैंक कर्मियों की 15 – 16 मार्च की हड़ताल, साधारण बीमा कर्मियों की 17 मार्च की हड़ताल और भारतीय जीवन वीमा कर्मियों की 18 मार्च की देशव्यापी हड़ताल का सक्रिय समर्थन करने का निर्णय लिया है।