रामनाथ गोयनका के नाम पर पत्रकारिता पुरस्कार देने वालों की पत्रकारिता देखिये
इंडियन एक्सप्रेस ने शुक्रवार, 6 जनवरी को अपने ई-पेपर में जो खबर लीड बनाई थी उसके मुताबिक अमित शाह ने त्रिपुरा की एक रैली में राहल गांधी को संदेश दिया था कि राम मंदिर 1 जनवरी को तैयार हो जाएगा। मीडिया विजिल में अपनी टिप्पणी में मैंने लिखा था कि इंडियन एक्सप्रेस ने इस खबर को तो लीड बनाया है लेकिन हलद्वानी की खबर जिससे बड़ी संख्या में लोगों को राहत मिली, जिसकी वजह से काफी लोग परेशान थे, जिसे सुप्रीम कोर्ट में समय रहते सुना जा सका और स्टे कर दिया गया उसे फोल्ड के नीचे कम महत्व देकर छापा गया था। यह खबर द टेलीग्राफ में भी थी। अखबार ने अपनी लीड खबर के जरिए बताया था कि अमित शाह ने राहुल गांधी के मुकाबले राम मंदिर का मुद्दा फिर खड़ा कर दिया है। द टेलीग्राफ की इस खबर का फ्लैग शीर्षक था – “हेलो 2024; हेलो, मंदिर मु्द्दा”। दूसरे शब्दों में 2024 करीब आया तो मंदिर शुरू हो गया।
कहने की जरूरत नहीं है कि हिन्दुत्व की राजनीति अखबारों के समर्थन से चल रही है और मुख्य रूप से ऊंची जाति के हिन्दुओं का, हिन्दुओं के लिए और हिन्दुओं के द्वारा प्रकाशित-प्रचारित किये जा रहे अखबार अगर ऐसी खबरों को प्रमुखता देंगे तो कम पढ़े-लिखे या हिन्दुओं के बहुमत के सरकार के समर्थन में चले जाने की आशंका-संभावना है। अव्वल तो राजनीतिबाजों को भी चाहिए कि वे ऐसे काम न करें लेकिन जब उन पर नजर रखने वाले अपना काम, दायित्व भूल जाएंगे तो मामला एकतरफा क्यों नहीं होगा। बेशक खबरों का चयन संपादकीय आजादी है और इसपर व्यक्तित्व का असर होता है लेकिन यह व्यक्तित्व को प्रभावित भी करता है। इसलिए उसकी चर्चा जरूरी है।
कल यह सब लिखने के बाद आज फिर उसकी चर्चा इसलिए कि इस खबर के संदर्भ में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अमित शाह को याद दिलाया है कि उनका काम मंदिर बनवाना या उसकी सूचना देना नहीं है। केंद्रीय गृहमंत्री के रूप में उनकी जिम्मेदारी देश को सुरक्षित रखने की है। भले ही यह सर्वविदित है पर केंद्रीय गृहमंत्री को विपक्ष के नेता द्वारा उनका काम याद दिलाया जाना भी है। जाहिर है, वैसी स्थितियां हैं (या नहीं है तो कांग्रेस की राजनीति है), भाजपा की राजनीति का जवाब है और अगर अखबार या आप किसी एक के साथ नहीं हैं तो दोनों बातें जानना चाहेंगे, जानना आपका हक है।
इसके बावजूद इंडियन एक्सप्रेस में आज यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। निश्चित रूप से यह संपादकीय अधिकार और विवेक का मामला है और संभव है कि कल किसी और ने अखबार बनाया हो और आज किसी अन्य ने। इसलिए यह किसी पत्रकार के पक्षपातपूर्ण व्यवहार का मामला हो या नहीं, अखबार का पक्षपातपूर्ण व्यवहार लगता है और ऐसे मामलों में सही फैसला कई खबरों के बावजूद नहीं लिया जा सकता है लेकिन जो हो रहा है वह सामने है। द टेलीग्राफ ने कल जिस खबर को लीड बनाया था उसके जवाब को आज भी लीड बनाया है। हो सकता है यह आपको कांग्रेस का समर्थन लगे। लेकिन भाजपा का समर्थन किया जाए तो कांग्रेस का क्यों नहीं और अगर अखबार पक्षपात करेंगे, चुनाव कराने वाले चुप रहेंगे तो निष्पक्ष चुनाव कैसे होंगे?
द टेलीग्राफ ने कल पहले पन्ने पर एक और खबर छापी है, “उत्तर प्रदेश में (भारत जोड़ो) यात्रा को मुश्किलें; बत्ती चली गई, बाधाएं सामने आईं।” दूसरी ओर, कल टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड मौसम की खबर थी और बताया गया था कि तापमान कम हो गया है और बिजली की मांग तीन साल की सर्दियों से ज्यादा है। वैसे ही आज द हिन्दू में पहले पन्ने पर एक खबर है, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा जम्मू और कश्मीर में प्रवेश करने वाली है उससे पहले शुक्रवार को गुलाम नबीं आजाद के 17 समर्थक फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। यह साधारण बात नहीं है और निश्चित रूप से पहले पन्ने पर होनी चाहिए। ढूंढ़िये आपके अखबार में है, कहां है।
दिल्ली के चारो अखबारों – हिन्दुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया, द हिन्दू और इंडियन एक्सप्रेस में आज एक तस्वीर और खबर लगभग समान महत्व के साथ है। और यह है दिल्ली नगर निगम के नए चुने गए आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों में भिड़ंत। कहने की जरूरत नहीं है कि इस खबर से गैर कांग्रेसी राजनीति या राजनीतिज्ञों के आम स्तर का पता चलता है। अखबार अगर खबरें देने में इस तरह मनमानी या लापरवाही करें तो हमारा काम है कि उन्हें सच बताएं। समय रहते उनकी कान खींचे पर ऐसा कोई कर नहीं रहा है। छोटे अखबार करें तो फिर भी समझ में आता है। पत्रकारिता के लिए रामनाथ गोयनका पुरस्कार देने वाला संस्थान तो अपनी पत्रकारिता स्वतंत्र या निष्पक्ष रखे। न रख पाए तो दिखने की कोशिश करे पर ऐसा है नहीं।
इंडियन एक्सप्रेस की कल की लीड खबर को आज मैंने इंटरनेट पर देखा। इसमें हिन्दुत्व की राजनीति टपक रही है। आप भी देखिए। अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद मेरा – 1 जनवरी 2024 को बनकर तैयार होगा राम मंदिर: अमित शाह का राहुल गांधी को संदेश। अमित शाह का कहना है कि कांग्रेस ने अयोध्या को अदालतों में उलझा दिया, मोदी ने मंदिर के काम में तेजी लाई। (अदालतों में काम उलझते हैं तो उसे ठीक करने की चिन्ता कौन करेगा। उसे क्यों नहीं ठीक किया जाए। सिर्फ मंदिर बनने से जनता का भला होगा या अदालतों में सबके मामले शीघ्र निपटना जरूरी है?) अयोध्या में राम मंदिर के समर्थकों द्वारा राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का समर्थन करने के एक दिन बाद, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस नेता पर निशाना साधते हुए घोषणा की कि राम मंदिर 1 जनवरी, 2024 को बनकर तैयार होगा। (मंदिर के समर्थक राहुल गांधी की तारीफ कर रहे हैं लेकिन इंडियन एक्सप्रेस अमित शाह या सरकार का समर्थन कर रहा है या वैसी रिपोर्ट कर रहा है, क्यों?)
यह पहला मौका है जब अयोध्या में निर्माणाधीन मंदिर के कपाट खुलने की तारीख सार्वजनिक रूप से घोषित की गई है। (त्रिपुरा में चुनावी रैली में क्यों घोषित की गई समझना मुश्किल नहीं है। त्रिपुरा के मतदाताओं को शायद ही अयोध्या आकर मंदिर दर्शन करने का मौका मिले या इच्छा हो। पर प्रचार किया जा रहा है और अखबार इसकी रिपोर्टिंग करके साथ दे रहा है। रिपोर्टिंग द टेलीग्राफ जैसी भी हो सकती है। लेकिन उसे खबरों में विचार मिलाना कहा जाता है जबकि आज के समय में निष्पक्ष विचार मिलाने में हर्ज नहीं है।) त्रिपुरा में मार्च में विधानसभा चुनाव होने हैं। राज्य के सबरूम में एक रैली को संबोधित करते हुए शाह ने मंदिर के मुद्दे पर कांग्रेस और राहुल गांधी की आलोचना की और इसके निर्माण में तेजी लाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की। (जब सबको पता है कि यही उनकी राजनीति है तो इसे प्रचार देना, प्रचारक होना नहीं है? वैसे भी कौन नहीं जानता कि एक ऐतिहासिक इमारत गिरा दी गई और चुनावी लाभ के लिए कानून होने के बावजूद अन्य इमारतों के संरक्षण की बजाए वैसे ही विवादों को तूल दिया जा रहा है। ऐसे में यह खबर का हिस्सा क्यों हो?)
“जब बाबर ने इसे नष्ट किया और चला गया, जब देश को आजादी मिली, तब से इन कांग्रेसियों ने इसे अदालतों में उलझा दिया – सत्र न्यायालय, उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय, फिर से सत्र न्यायालय। मोदीजी आए। एक सुबह सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया। मोदीजी ने रामलला के मंदिर के लिए भूमिपूजन किया और निर्माण कार्य शुरू हुआ, ”उन्होंने कहा। “दोस्तों, मैं आपको एक बात बताने आया हूँ। 2019 के चुनाव में मैं पार्टी (भाजपा) का अध्यक्ष था और राहुल बाबा कांग्रेस के अध्यक्ष थे। राहुल बाबा रोज कहते थे ‘मंदिर वहीं बनाएंगे, तिथि नहीं बताएंगे’।
(स्पष्ट रूप से यह सांप्रदायिक राजनीतिक भाषण है और त्रिपुरा में दिया गया तो देश भर में प्रचारित करने की जरूरत नहीं थी। लेकिन तथ्य के लिहाज से भी जो हुआ वह ठीक नहीं है। आजादी के समय जो स्थिति थी उसे कायम क्यों नहीं रखा जाना चाहिए। क्या विवाद कांग्रेसियों ने शुरू किया था? अगर हां तो उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए थी – विवाद बढ़ाना कौन सी देश सेवा है। उसमें श्रेय लेने की कोशिश ऊपर से और इसी से लग रहा है कि मोदी जी ने सुप्रीम कोर्ट पर दबाव डालकर फैसला करवाया। यह फैसला है या बहुसंख्यकों का तुष्टीकरण?)
पूरी खबर ऐसी ही बातों से भरी हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसी बातें समर्थकों और प्रचारकों की रैली में ही कही जा सकती हैं और मन की बात के रूप में सुनी जा सकती हैं। इसमें तथ्य कम प्रचार और आत्मप्रशंसा ज्यादा है। प्रेस कांफ्रेंस में यह संभव नहीं है और इसीलिए प्रेस कांफ्रेंस नहीं करने वाले लोग प्रेस कांफ्रेंस करने वाले को पप्पू साबित करने में लगे रहे। अब साबित हो चुका है कि उसे खरीदा नहीं जा सकता है, डराया नहीं जा सकता है तो अलग तरह के प्रचार की जरूरत है। और समय भी चाहिए। इसलिए तैयारी शुरू है। समझना पाठकों को है।
वैसे भी, मुद्दा यह है कि अमित शाह देश के गृहमंत्री हैं, मुसलमानों के भी हैं। इसी तरह, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी देश की सरकार है, हिन्दुओं की नहीं। इसलिए भाजपा को, जनता के पैसे से वेतन भत्ते पाने वाले उसके नेताओं को पार्टी का नहीं, देश का काम करना चाहिए। देश की जनता से पैसे लेकर धर्म विशेष के लोगों के लिए काम करना और उन्हीं के भविष्य की चिन्ता करना (और इस तरह फिर सत्ता में आना सुनिश्चित करना) गैर कानूनी न हो अनैतिक तो है ही। सरकार में, पद में, सत्ता में रहने के लिए लोग बेईमानी करें, अनैतिक हो जाएं पर अखबार और पत्रकार ऐसा क्यों करें? विज्ञापन तो ये सरकार रहे या वो सरकार रहे देगी ही। नहीं देती तो लड़ें, अपना अधिकार मांगे इस तरह सरकार की सेवा करना अखबारों का काम नहीं है। लेकिन हो क्या रहा है। एक नई और निजी समाचार एजेंसी को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। उससे सेवा ली जा रही है पुरानी स्वायत्त एजेंसी का गला घोंटने के उपाय किए जा रहे हैं। और इस मामले में मीडिया भी एक नहीं है। वहां भी फूट डालो राज करो की नीति चल रही है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।