ज़हरबुझी पत्रकारिता के दौर में सांप्रदायिक एकता के लिए क़ुर्बान हुए विद्यार्थी जी की याद

पीयूष बबेले पीयूष बबेले
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आज 25 मार्च को सरदार भगत सिंह के सरपरस्त, पंडित नेहरू के छोटे भाई समान मित्र और यूपी कांग्रेस कमेटी के तत्कालीन अध्यक्ष श्री गणेश शंकर विद्यार्थी का शहादत दिवस है। सरदार भगत सिंह देश सेवा के लिए कानपुर आ गए थे और वहां विद्यार्थी जी के अखबार प्रताप में क्रांतिकारी लेख लिखा करते थे।

एक तरह से विद्यार्थी जी तरुण क्रांतिकारियों के अगुआ थे। भगत सिंह की फांसी के बाद देश में हड़तालों की तैयारी चल रही थी। ऐसी ही एक हड़ताल की तैयारी कानपुर में चल रही थी। लेकिन जल्द ही बंद और हड़ताल की तैयारी आक्रामक हो गई और कानपुर में हिंदू मुस्लिम दंगे में बदल गई।

गणेश शंकर विद्यार्थी दंगाइयों को रोकने के लिए भीड़ में उतर गए। और एक दंगाई को रोकते हुए उनकी मौत हो गई। अगर आज का समय होता तो उनके नेता उनकी मौत को हिंदू मुस्लिम संघर्ष में भुनाने की कोशिश करते और दोनों समुदायों में नफरत बढ़ाने के लिए इसका उपयोग करते।

लेकिन गणेश शंकर विद्यार्थी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे। उनके नेता महात्मा गांधी और पंडित नेहरू थे। गांधी जी ने गणेश शंकर विद्यार्थी के बलिदान पर कहा कि उनकी मृत्यु एक ऐसे महान उद्देश्य के लिए हुई है कि ऐसी मृत्यु से उन्हें ईर्ष्या होती है। गांधी जी ने कहा की ऐसी मौत तो बहुत ही फक्र की बात है और उन्हें भी ऐसी ही मौत मिले।

विद्यार्थी संयुक्त प्रांत में नेहरू जी के नेतृत्व में ही काम करते थे इसलिए नेहरू जी ने कहा कि विद्यार्थी की मौत हमें यह बताती है कि अच्छे से अच्छे कारण के लिए की गई हिंसा पलट कर हमारे और आती है। कहां तो शहीद भगत सिंह की फांसी के विरोध में हड़ताल और बंद होना था और कहां उस में दंगा हो गया। और दंगा रोकते हुए विद्यार्थी जी शहीद हो गए।

गणेश शंकर विद्यार्थी की शहादत न सिर्फ हिंदू मुस्लिम एकता के संघर्ष की महान विरासत है बल्कि उन पत्रकारों के लिए एक ऊंचा आदर्श भी है जो कहते हैं कि पत्रकार को तटस्थ होना चाहिए। विद्यार्थी जी हमें बताते हैं की तटस्थता का मतलब जुल्म के खिलाफ चुप्पी साधना नहीं होता। विनम्र श्रद्धांजलि।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।