इस समय मेरी भावना ऐसी है जैसे किसी ने पीठ में छुरा मार दिया हो।
क्रोध उबाल ले रहा है।
मेरे पिता 62 की लड़ाई में चीनियों से लड़े थे। करीब दो साल चीन में युद्धबंदी रहे।
अपनी कैद के दूसरे साल एक रात वे अपने छः साथियों के साथ ल्हासा से जेल तोड़कर भाग निकले। इक्कीस दिन में हिमालय पार कर तेजपुर स्थित भारतीय सेना की चौकी पर जब पहुँचे तो साथ में सिर्फ तीन लोग बचे थे।
उससे पहले वे पुर्तगालियों से गोवा को आज़ाद कराने के ऑपरेशन का हिस्सा थे जहाँ भारतीय सेना ने एक गोली चलाए बिना गोवा पर तिरंगा फहरा दिया था।
19 वर्ष की उम्र में भारतीय सेना के तोपखाने के एक रंगरूट के रूप में वे अपनी रेजीमेंट के साथ मकोकचंद नागालैंड में थे जब चीन से युद्ध शुरू हुआ। रातोंरात पूरी रेजीमेंट युद्ध के लिए मूव कर गयी। तवांग के क़रीब बोमडिला की ऊँचाइयों पर सिला दर्रे के पास भयानक युद्ध हुआ। भारतीय तोपों ने चीनियों का आगे बढ़ना रोक दिया। सात दिन तक तोपखाना गरजता रहा। अंत में गोला बारूद खत्म हो गया। सप्लाई चेन चीनियों ने काट दी थी। पीछे लौटने का हुक्म हुआ। भारी भरकम तोपों को नीचे लाना मुश्किल था मगर दुश्मन के लिए छोड़ा भी नहीं जा सकता था। रोते रोते इन युवा लड़कों ने अपनी तोपें तोड़ीं। बम लगाकर अपनी तोपों को उड़ा दिया। यह बताते हुए आज भी पिता की आँख में आँसू आ जाते हैं।
सिला पास से नीचे उतरते हुए पहाड़ियों पर चीनी सेना घात लगाए बैठी थी। दो तरफ से हमला हुआ। तकरीबन 2000 जवानों की पूरी रीजीमेंट शहीद हो गयी। पहले पिता की जाँघ में गोली लगी फिर सिर पर एक धमाका हुआ। उसके बाद उन्हें कुछ याद नहीं। जाने कितने दिनों बाद होश आया तो ख़ुद को एक अजीब जगह पर पाया। अजीब भाषा, अलग चेहरे। पता चला बीजिंग का अस्पताल है।कुछ महीने वहाँ रखा गया, फिर तिब्बत में ल्हासा की जेल में। जहाँ से एक रात निगरानी चौकी में बैठे संतरी को मारकर उसकी रायफल, गोलियों, ग्रेनेड, कंपास के साथ ये लोग भाग निकले। बाद की कहानी ऊपर लिख चुका हूँ।
आज मैंने अपने पिता को छटपटाते देखा। पीएम मोदी का बयान सुनने के बाद वे लगातार बड़बड़ा रहे हैं “देश से दग़ा की”, “फौज को धोखा दिया”। वे विश्वास नहीं कर पा रहे हैं कि मोदी इतना बड़ा झूठ बोल सकते हैं। वे हतप्रभ हैं कि देश का पीएम कह सकता है कि ‘न वहाँ कोई हमारी सीमा में घुस आया है, न ही कोई घुसा हुआ है’। ” तो फिर क्या हमारे सैनिक चीन की सीमा में घुसे हुए थे? उन्हें क्यों मारा गया? किसने मारा? अगर कोई हमारी सीमा में नहीं घुसा तो किस चीज की रक्षा करते हुए हमारे जवान शहीद हुए?
सन 62 की, 65 की, 71 की लड़ाइयाँ लड़ चुका यह वृद्ध फौजी आज अत्यंत विचलित है। बार-बार कह रहे हैं ‘फौज को धोखा दिया’।
मुझे लगता है यही भावना आज हर उस देशवासी की है जो वतन से प्यार करता है। जो किसी एक व्यक्ति की अंधश्रद्धा में नहीं बल्कि देशप्रेम में मुब्तिला है। जिसके लिए हिंदुस्तान और उसके सेना की इज़्ज़त सर्वोपरि है। जिसके लिए देश की सीमाएँ और उसकी सेना सर्वोच्च है। जो सच्चा देशभक्त है।
जय हिंद
संदीप सिंह, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के निजी सचिव हैं, वो जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष रहे हैं। उनके पिता, सूबेदार शिव कुमार सिंह ने 1961 से 1984 तक भारतीय सेना की आर्टिलरी रेजिमेंट में सेवा की। वो भारत-चीन युद्ध के दौरान 5 फील्ड रेजिमेंट में तैनात थे। यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है।