भविष्य के सैन्य अधिकारियों को हिन्दुत्व वर्चस्ववाद का प्रशिक्षण?
आखिर किस तरह सैनिक स्कूलों में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप का मॉडल सभी संवैधानिक सिद्धांतों और मूल्यों के खिलाफ है
‘‘आज पुनर्जन्म का दिन है ..’
1.
एक सुप्रीमो के लिए स्मारक
‘‘रज्जू भैया सैनिक विद्या मंदिर’ शिकारपुर तहसील, बुलंदशहर.
एक, तो उसे ‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ का पहला सैनिक स्कूल कहा गया.
दो, केन्द्र /मोदी/ सरकार की नज़र ए इनायत का कमाल था कि लगभग 40 करोड़ रूपए की सहायता उसे मिलनेवाली थी।
तीसरे, वह एक ऐसा दुर्लभ अवसर था जब स्मारकों के निर्माण के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने संस्थापक सदस्य डा.हेडगेवार के आगे बढ़ रहा था। याद रहे राजेन्द्र सिंह उर्फ रज्जू भैया (1922-2003) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पहले गैर-ब्राहमण और गैर-मराठी सुप्रीमो थे। सैनिक स्कूल वही बना हुआ है जहां रज्जू भैया का जन्म हुआ था।
यह वही विद्या भारती है जिसका घोषित लक्ष्य है:
To develop a National System of Education which would help building a generation of young men and women that is committed to Hindutva and infused with patriotic fervour”. [3]
(‘एक ऐसी राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली विकसित की जानी है जो ऐसे युवा और युवतियों का निर्माण कर सके जो हिन्दुत्व के लिए प्रतिबद्ध हो और देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण हो।’’)
स्कूल में क्या पढ़ाया जाएगा, इसके बारे में अपनी शंकाओं को उन्होंने छिपाया नहीं
‘‘ सैनिक स्कूल खोल कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करना चाह रहा है जहां छात्रों को शायद ‘‘माॅब लिंचिंग और सामाजिक सदभाव को तार तार करने की शिक्षा दी जाएगी।’’ /5/
“RSS apparently wanted to serve its political purpose by opening the army school where the students will “probably be taught lessons in mob lynching and disrupting social harmony”.[5],
इस स्कूल को लेकर तमाम लोगों ने जो चिन्ता प्रगट की थी, उसे यूं ही खारिज नहीं किया जा सकता। यह अलग मसला है कि आज की मीडियाकृत दुनिया में चीज़ें इतनी तेज़ी से बदलती रहती हैं कि संघ द्वारा संचालित इस सैन्य स्कूल की ख़बर और उससे जुड़े विवाद की ख़बर भी विलुप्त सी हो गयी।
2
स्वयंसेवकों के लिए सैनिक स्कूल ??
आस्था सव्यसाची द्वारा तैयार यह रिपोर्ट रिपोर्टर्स कलेक्टिव के अन्य रिपोर्टो की तरह ही काफी मेहनत से तैयार की गयी है। इस रिपोर्ट का निचोड़ यही है कि आने वाले दिनों में रज्जू भैया सैनिक विद्या मंदिर जैसे स्कूल – जिसका संचालन संघ से जुड़े या संघ की विचारधारा से प्रेरित संगठनों / व्यक्तियों के हाथों में होगा – ही माॅडल बनेंगे। ऐसे ही सैनिक स्कूल बन रहे हैं या बनेंगे जो सारतः ‘‘विचारधारात्मक तौर पर संकीर्ण संगठनो पर निर्भर रहेगे भविष्य के कैडेट तैयार करने के लिए’’ जो बाद में भारत की सेना मे शामिल होगे।
‘‘संघ परिवार और उससे संबंधित संगठनों , जो समान विचारधारा के हैं, से सम्बधित स्कूलों को इसके लिए अर्जी देने के लिए सक्षम बनाया है।’’ /8/
आज की तारीख तक चालीस स्कूलों ने सैनिक स्कूल सोसायटी के साथ मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग पर दस्तख़त किए हैं, रिपोर्ट इस पर और प्रकाश डालती है:
‘‘ सूचना के अधिकार के तहत डाली गयी याचिकाओं के अनुसार, 5 मई 2022 से 27 दिसम्बर 2023 के दरमियान कमसे कम चालीस स्कूलों ने सैनिक स्कूल सोसायटी के साथ मेमोरेण्डम आफ अंडरस्टैण्डिंग करार पर हस्ताक्षर किए हैं। रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा बारीकी से की गयी पड़ताल उजागर करती है कि इनमें से 11 भाजपा नेताओं के ही मिल्कियत के है या उनके द्वारा प्रबंधित टस्ट के है या भाजपा के मित्रों या राजनीतिक सहयोगियों के है। इनमें से आठ का प्रबधन सीधे राष्टीय स्वयंसेवक संघ और उसके सहयोगी संगठनों द्वारा किया जाता है। इसके अतिरिक्त, छह संगठनो का ताल्लुक हिन्दुत्ववादी संगठनों या अति दक्षिणपंथी नेताओं से या हिन्दू धार्मिक संगठनों से है। इनमें से कोई भी स्कूल ईसाई या मुस्लिम संगठनों या भारत के किन्हीं अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों द्वारा संचालित किया जाता है।’’
ऐसे स्कूलों का संचालन करने के लिए किस तरह के लोगों को अनुमति दी जा रही है इसे जानना हो तो हम उन व्यक्तियों के नामों को देख सकते है, जिनका उल्लेख इस रिपोर्ट में किया गया है। यह बेहद समीचीन होगा कि हम उनमें से दो नामों को साझा करें जिनका संघ परिवार के व्यापक नेटवर्क में न केवल पहले से प्रभाव है बल्कि समय समय पर उनके भाषण और उनकी सक्रियताएं व्यापक चिन्ता का भी सबब बनती रही हैं।
इनमें से एक हैं महंत बालकनाथ योगी, जो राजस्थान के तिजारा से वर्तमान में विधायक हैं। /9/ जिस किसी ने भी राजस्थान के विधानसभा चुनावों की खबरों को देखा होगा, वह जान सकता है कि उन्हें उनके अनुयायियों द्वारा ‘राजस्थान का योगी’ कहा जाता था और चुनावों के दौरान यह भी कहा जाता था कि अगर भाजपा को सत्ता मिलती है तो वह मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी हो सकते हैं।
यह अलग बात है कि भाजपा के नेतृत्व ने अपने कारणों से अलग निर्णय लिया।
विश्व हिन्दू परिषद की महिला शाखा दुर्गा वाहिनी की संस्थापक साध्वी ऋतम्भरा, राममंदिर आंदोलन की चर्चित नेत्री रही हैं। बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर बनाने के लिए अस्सी एवं नब्बे के दशक में जो जनान्दोलन हिन्दुत्व ब्रिगेड की पहल पर खड़ा हुआ था, उस दौरान उनके कथित भडकाउ भाषणों के चलते वह सूर्खियों में आयी थी। दिसम्बर 1992 बाबरी मस्जिद के विध्वंस की घटना को लेकर लिखे अपने आलेख में प्रोफेसर तनिका सरकार ने लिखा था कि किस तरह साध्वी ऋतम्भरा और उनके व्याख्यान ‘‘मुस्लिम विरोधी हिसा को भड़काने का एक प्रभावी उपकरण बने थे।’ लिबरहांस कमीशन जिसने अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना पर अपनी रिपोर्ट पेश की, उसने जिन 68 लोगों को इस कारनामे के लिए जिम्मेदार ठहराया उनमें साध्वी ऋतम्भरा का भी नाम था जिन्होंने देश को ‘‘साम्प्रदायिक विवाद के मुहाने पर ला खड़ा किया था।’ /10/
फिलवक्त इस योजना के तहत वह दो स्कूलों का संचालन कर रही है ‘‘‘सम्विद गुरूकुलम गर्ल्स सैनिक स्कूल’ और दूसरा ‘राजलक्ष्मी सम्विद गुरूकुलम, सोलन, हिमाचल प्रदेश। रिपोर्ट में स्कूल के फेसबुक पेज से एक विडियो लिक भी साझा किया गया है जिसमें वह छात्राओं के साथ ‘इज्जत/ सम्मान’ विषय पर बात कर रही है। व्यक्तिगत विकास के लिए संचालित शिविर में वह कहती दिख रही है कि लड़कियां किस तरह कालेजों और सोशल मीडिया के चलते ‘‘नियंत्रण के बाहर’’ जाती दिख रही हैं।
निस्सन्देह इन स्कूलों के पाठ्यक्रम की अन्तर्वस्तु जानने के लिए प्रचंड विवेक की आवश्यकता नहीं है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा संचालित या उसके आनुषंगिक संगठनों द्वारा संचालित स्कूलों से किस तरह अलग हो सकता है ?
3
हिन्दुओं के सैनिक उत्थान के लिए ! वाकई !!
ऐसा हर कोई व्यक्ति जो भारत के संविधान पर यकीन रखता है और सैनिक स्कूलों की भूमिका को जानता है कि वह किस तरह सेना तथा उसके विभिन्न अंगों में योग्य छात्रों को तैयार करते है और ऐसे स्कूलों से फौज में 25 फीसदी भर्ती होती है – उन्हें सैनिक स्कूलों के संचालन में पीपीपी मॉडल को लेकर बेहद चिंतित होने की आवश्यकता है।
गौरतलब है कि कई वजहें हैं कि इस पॉलिसी को खारिज किया जाना चाहिए
– एक, अग्रणी शिक्षाविदों ने ऐसे स्कूलों के संचालन पर सवाल उठाए हैं।
– दो, सेना के पूर्व अधिकारियों ने निजी हाथों में ऐसे स्कूलों के संचालन पर ऐतराज जताया है।
– तीन, हिन्दुत्व वर्चस्ववादी जमातें और उनके सहयोगी संगठन इन स्कूलों के संचालन में केन्द्रीय भूमिका में होंगे, यह ऐसे संगठन है जिनका विश्वद्रष्टिकोण भारत के संविधान के सिद्धांतों और मूल्यों के प्रतिकूल पड़ता है।
– चार, दुर्भाग्य की बात है कि भारत के पास निजी संस्थानों के तहत या किसी खास विचारधारा के तहत संचालित ऐसे निजी सैनिक स्कूलों का लम्बा अनुभव है – आज़ादी के पहले से ही ऐसे स्कूल संचालित हो रहे हैं, जिनका निर्माण और संचालन हिन्दुत्ववादी संगठन करते रहे हैं। और नब्बे साल का अनुभव यही बताता है कि इसके नतीजे चिन्ताजनक रहे हैं।
– पांच, 21वीं सदी की शुरूआत में हम लोगों ने भारत की ही सरजमीं पर हिन्दुत्व आतंकी समूहों के उभार को देखा, जिन्होंने भारत के अंदर आतंकी कार्रवाइयां की – और यह भी कोशिश की कि इसके लिए मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराया जा सके। नांदेड बम धमाके /2006/ से लेकर मालेगांव बम धमाके तक, ऐसे कई उदाहरण हमारे सामने है कि अतिवादी हिन्दुत्व समूह आतंकी घटनाओं में संलिप्त रहे है।
अदालतों में इन आतंकियों पर अभी भी मुकदमे चल रहे हैं, लेकिन अनुभव यही बताता है कि इन सभी अतिवादियों को ऐसे विचारों के प्रति पहला परिचय और उसके लिए प्रशिक्षण ऐसे ‘सैनिक स्कूलों’ में मिल सका।
आइए, हम एक एक करके इनकी आपत्तियों पर गौर करें:
इस मामले में सबसे पहले प्रोफेसर अनिता रामपाल – जो अग्रणी शिक्षाविद हैं – उनकी आपत्तियों पर, उन्होंने उठाए सवालों पर गौर करना समीचीन होगा, जब उन्होंने शिकारपुर में आरएसएस की पहल पर बन रहे ‘रज्जू भैया सैनिक स्कूल’ के बारे में सुना था। उन्होंने एक पैनल चर्चा में भाग लेते हुए तीन मुद्दे उठाए: /11/
– अध्ययन यही बताते है कि ऐसे सभी ‘‘सैनिक स्कूल’- जहां पर लड़कों की बहुतायत होती है – एक किस्म की मर्दवादी व्यक्तित्व के विकास को बढ़ावा देते हैं।
– इस बात को ध्यान में रखते हुए कि नयी शिक्षा नीति को लेकर कस्तूरीरंगन कमेटी ने जो मसविदा पेश किया है, इसमें शिक्षा में रिटायर्ड अध्यापको और सेवानिवृत्त फौजियों की भूमिका की भी बात की है, जो बात अपने आप में चिंताजनक है।
अपने एक विस्तृत आलेख में लेफ्टनंट जनरल प्रकाश मेनन ने आगाह किया था ‘पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत सैनिक स्कूल के निर्माण की दिशा में आगे न बढ़े। वह ऐसी शिक्षा को कमजोर कर सकता है और भ्रष्ट बना सकता है। /12/ उन्होंने जोर दिया कि ‘सैनिक स्कूल की भावना की रक्षा का काम रक्षा मंत्रालय के नियंत्रण के बिना नहीं किया जा सकता /13/ उनकी आपत्ति इस बात को लेकर थी कि ऐसे स्कूलों मे कौन छात्र प्रवेश लेगे , किस तरह उनमें बहुसांस्कृतिक पक्ष का अभाव होगा और वह सीमित दायरे से ही आएंगे और अधिकतर का नज़रिया भी बेहद संकीर्ण होगा।‘‘ निजी/एनजीओ स्कूल में आम तौर पर स्थानीय/क्षेत्राीय छात्र प्रवेश लेंगे और उनमें विविधता का अभाव होगा। पहले से चले आ रहे बोर्डिग स्कूल – जो इस योजना से जुड़ेंगे – वह भी निजी तौर पर संचालित होंगे तथा वहां पर भी बेहद सीमित दायरे के छात्र पहुंचते होंगे। उन छात्रों का बहुलांश बेहद संकीर्ण धार्मिक/पारिवारिक/सामाजिक/सांस्कृतिक मान्यताओं से लैस होगा जो एक तरह से सैनिक स्कूल की बुनियादी भावना के विपरीत होगा, जो एक तरह से संकीर्ण पहचानों को लांघने का काम करती है और उपस्थित सभी को एक व्यापक राष्ट्रीय पहचान में तब्दील कर देती है इस प्रस्ताव की सबसे बड़ी खामी यही है और यह प्रस्तावित पार्टनरशिप माॅडल से अनिवार्य रूप से निकलता है। /14/
वह इस बात से भी चिंतित थे कि इसके चलते केन्द्र सरकार और प्राइवेट समूहों / संगठनों में एक अलग किस्म का गठजोड़ बन सकता है जो संविधान के सिद्धांतों एवं मूल्यों से हट कर एकांगी किस्म की विचारधारा से शिक्षा को बढ़ावा देगा और जिसके दूरगामी परिणाम होंगे क्योंकि भविष्य के हमारे सैनिक अधिकारी हिन्दुत्व / सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के विचारों / मूल्यों से लैस होंगे।
… क्या ऐसा नज़रिया सैनिक स्कूल की भावना के संरक्षण और विकास के साथ सामंजस्यपूर्ण होगा ? हमारे भविष्य के सैनिक अग्रणी हिन्दुत्व/सांस्कृतिक राष्टवाद से लैस होंगे, इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे, यह हमारे राजनीतिक बहस का मुददा बना रह सकता है। लेकिन एक राष्ट्रीय सुरक्षा परिप्रेक्ष्य से देखें तो इस मसले पर निर्णय प्रक्रिया को संवैधानिक मूल्यों से प्राप्त राष्ट्रीय हितों की रक्षा करनी होगी। इसके लिए जरूरी होगा कि राजकीय नेतृत्व अपनी पार्टी विचारधारा से आगे राष्ट्र को रखें। /15/तीन, यह हक़ीकत कि हिन्दुत्व वर्चस्ववादी संगठन ऐसे स्कूलों के संचालन में अहम किरदार होंगे, यह बात निश्चित ही चिन्ताजनक है।
यहां तक कि नवस्वाधीन भारत ने अपने लिए एक नए संविधान की रूपरेखा बनाने का प्रस्ताव रखा – जो एक व्यक्ति और एक वोट पर आधारित थी – जिसने संकल्प लिया कि वह जाति, जेण्डर, नस्ल / रेस, नस्लीयता/एथनिसिटी आदि पर आधारित पुराने विशेषाधिकार को समाप्त कर देगी, तब उन्होंने इस संकल्पना का विरोध किया और संविधान के स्थान पर ‘मनुस्मृति ’ लागू करने की हिमायत की थी।
यह सोचना मासूमियत की पराकाष्ठा होगी कि यह नज़रिया उसके पितृसंगठनों की ‘हम’ और ‘वे’ पर आधारित दृष्टिकोण से संचालित नहीं होगा, यही वह चिन्तन है जिसके तहत उन्हें अपने संगठन में महिलाओ को समान रूप से शामिल करने की जरूरत नहीं महसूस होती रही है, जबकि 21 वी सदी के इस दौर में सभी लिंगों की समानता अब स्थापित हो गयी है।
शायद, यह जानना अधिक महत्वपूर्ण है कि इन संगठनों ने देश के लिए खतरे की बात करते हुए हमेशा ही सैन्य शिक्षा की हिमायत की है। /18/ हालांकि उनके उस चिन्तन में कोई अनोखी बात नहीं है क्योंकि अन्य तमाम असमावेशी संगठन, संकीर्ण विचारों वाले संगठन इसी तरह सैन्य शिक्षा की या आम लोगों को हथियारबंद करने की बात करते रहते हैं।
तीस के दशक के मध्य में – जब भारत पर ब्रिटिश राज था – बाकायदा एक सैनिक स्कूल की स्थापना डा बी एस मुंजे ने की, जो डॉ हेडगेवार के संरक्षक थे और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापकों में शुमार थे। इसका मकसद था ‘‘हिन्दुओं का सैनिक नवीनीकरण करना’’। “…to bring about military regeneration of the Hindus” इस बात को संघ के अपने इतिहास में बार बार भुला दिया जाता है कि विजया दशमी के दिन हुई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना बैठक में पांच लोग शामिल थे: डॉ हेडगेवार, डा बी एस मुंजे, डा एल वी परांजपे, डा बी बी थालकर और बाबुराव सावरकर – जो विनायक दामोदर सावरकर के भाई थेे। /20/ अब जहां तक इस सैनिक स्कूल के निर्माण की बात थी उसे मुसोलिनी द्वारा ‘बलिल्ला संस्थानों ’The Balilla institutions के तर्ज पर बनाना था, जिनका निर्माण मुसोलिनी ने ‘‘इटली के सैनिक उत्थान’ ‘military regeneration of Italy’ के लिए किया था।’ पहले ही दिन से हम देख सकते हैं कि उसके दरवाजे गैर हिन्दुओं के लिए बंद थे। /21/
वहां इस बात का भी जिक्र है कि गांधी हत्या के महज छह महीने बाद डा मुंजे की मृत्यु के बाद इस संस्था को / जिसका नामकरण भोसला मिलिटरी स्कूल के नाम से किया गया था/ काफी गंभीर संकट का सामना करना पड़ा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ही कार्यकर्ता ही उसे पटरी पर ले आए।
‘‘भोंसला सैनिक स्कूल को पुनर्जीवन मिला। लेकिन इस पुनर्जीवन की उसे कीमत चुकानी पड़ी। स्कूल को संकट से उबारने की समूची कवायद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के घटाटे नागपुर की तरफ से / अर्थात संघ के मुख्यालय की तरफ से / अहम भूमिका अदा कर रहे थे और इसलिए रफ्ता रफ्ता समूचे स्कूल पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ही कब्जा जमा लिया। ‘‘यह बदलाव 1953 से 1956 के दरमियान हुआ।’’ मेजर /रिटायर्ड/ प्रभाकर बलवंत कुलकर्णी ने नासिक में हुए लम्बे साक्षात्कार में बताया था – जिन्होंने इस संक्रमण को करीब से देखा था और जो विभिन्न स्तरो पर 1956 से 2003 के दरमियान स्कूल से जुड़े रहे।’’ /24/
पांच, आज की तारीख में जबकि खुद आज़ाद भारत में सरकार के तहत सैनिक स्कूल का संचालन हो रहा है, पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप /पीपीपी/ माॅडल के नाम पर निजी हाथों में सैनिक स्कूलों का संचालन सौपना, इस मामले में बेहद चिन्ताजनक है क्योंकि हिन्दुत्व कार्यकर्ताओं के हस्तक्षेप और उनकी सक्रियता के आधार पर चले ऐसे प्रयोगों के विपरीत अनुभव सामने आए हैं।
उदाहरण के तौर पर एक दशक से अधिक वक्त पहले जब मालेगांव बम धमाके की जांच के तहत नए नए खुलासे हो रहे थे और हिन्दुत्व जमातों के तहत सक्रिय आतंकी मॉड्यूल का पर्दाफाश हो रहा था – जिसमें एटीएस के तत्कालीन प्रमुख हेमंत करकरे ने अहम भूमिका अदा की थी – उन दिनों पुणे में स्थापित एक संस्था महाराष्ट्र मिलिटरी फाउंडेशन /एमएमएफ/ सूर्खियों में आया था, जिसका संचालन कोई लेफ्टनंट कर्नल जयंत चितले कर रहे थे। जनाब जयंत चितले ने उन दिनों ‘अंग्रेजी की पत्रिका ‘आउटलुक’ को साक्षात्कार दिया था /25/ जिसमें उन्होंने गर्व के साथ बताया था-
‘‘आज की तारीख में उनके तैयार किए एक हजार से अधिक युवा सेना की तीनों शाखाओं में काम कर रहे हैं। हरेक का दिमाग को मैंने ‘ब्रेनवाॅश’ किया है। वह बहुत प्रेरित हैं, निर्धारित हैं और देश के लिए कुछ भी कर सकते हैं।’’
लेफटनंट कर्नल चितले ने अपने विजिटर्स बुक को भी बेहद संभाल कर रखा है, जिसमें उन सभी युवाओं के नाम दर्ज है, जिन्होंने उनके यहां प्रशिक्षण पाया। 20 फरवरी 1993 की तारीख के आगे दर्ज है कि पुणे के लाॅ काॅलेज में पढ़ने वाले श्रीकांत प्रसाद पुरोहित ने भी यहां एडमिशन लिया था। यह वही पुरोहित है जो बाद मे सेना में लेफटनंट कर्नल बना और मालेगांव बम धमाके में जिन लोगों पर आरोप लगे, उनमें भी वह शामिल था – जब यूएपीए तथा भारतीय दंड संहिता की तमाम अन्य धाराओं के तहत उसे भी गिरफतार किया गया था।
अगर हम ‘रज्जू भैया सैनिक स्कूल’ के प्रसंग की ओर फिर लौटे तो यह सुनने को मिलता है कि वह संघ द्वारा संचालित पहला सैनिक स्कूल है। यह दावा तथ्यों से परे है।
गौरतलब है कि अग्रणी राजनीतिक पत्रकार धीरेन्द्र कुमार झा अपनी किताब ‘शैडो आर्मीज’’ में भोंसला मिलिटरी स्कूल पर बाकायदा एक पूरा अध्याय समर्पित किया है। अपनी किताब में वह श्रीराम सेने, हिन्दु युवा वाहिनी, सनातन संस्था और हिन्दू ऐक्य वेदी – जैसी अन्य छोटे मोटे संगठनों पर भी निगाह डालते हैं जो लेखक के मुताबिक ‘ /‘stir up trouble, polarize communities, incite violence in the name of Hindutva.झगड़ा पैदा करते हैं, समुदायों का ध्रुवीकरण करते हैं और हिन्दुत्व के नाम पर हिंसा को बढ़ावा देते हैं। यह बात सर्वज्ञात है कि ‘भाजपा और इन सभी संस्थाओं के बीच /इन ‘शैडो आर्मीज’ के बीच / बेहद करीबी/ सहजीवी सम्बन्ध है। विगत तीन दशकों में भाजपा जो 1984 के दो सीटों से 2014 के 282 सीटों पर पहुंची है, उसकी यात्रा में वह सहभागी रहे हैं।’
‘‘ इस स्कूल का सम्बन्ध हाल के अतीत में हिन्दू अतिवादियों द्वारा अंजाम दी गयी तमाम घटनाओं से रहा है। हेमंत करकरे की अगुआई में महाराष्ट्र एंटी टेरर स्क्वाड को 2008 के मालेगांव बम धमाके की जांच में यही देखने को मिला कि इस घटना में संलिप्त कई अभियुक्त इसी भोंसला सैनिक स्कूल से प्रशिक्षित थे। एटीएस के अधिकारियों को तमाम गवाहों और सह अभियुक्तों ने बताया था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेताओं और उनके सहयोगियों के साथ इस बम धमाके की योजना बनाने के दौरान हुई बैठकें भोंसला सैनिक स्कूल के प्रांगण में हुई थी।’’ /26/
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सम्बधित स्कूलों और उनके शिक्षा विज्ञान सम्बन्धी कार्यक्रम के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है। /28/
निश्चित ही नहीं !
[3] https://theprint.in/
[4] https://www.thehansindia.
[5] https://www.ndtv.com/
[6] https://www.reporters-
[7] https://www.reporters-
[8] https://www.reporters-
[9] . https://timesofindia.
[10] . https://www.reporters-
[11] .https://khabar.ndtv.com/
[12] https://theprint.in/
[13] https://theprint.in/
[14] https://theprint.in/
[15] https://theprint.in/
[16] https://www.
[17] https://www.newsclick.in/
[18] https://timesofindia.
[19] https://francoisgautier.
[20] Page 16, Khaki Shorts and Saffron Flags, Tapan Basu, Pradip Datta, Sumit Sarkar, Tanika Sarkar, Sambuddha Sen, Orient Longman
[21] https://kafila.online/
[22] http://www.epw.in/
[23] From Munje Diary, http://www.frontline.in/cover-
[24] https://caravanmagazine.
[25] ‘Godse’s War, Nov 17, 2008
[26] https://caravanmagazine.
[27] https://www.
[28] http://www.sacw.net/
लेखक महत्वपूर्ण विचारक एवं स्वतंत्र लेखक हैं।