नफ़रती भाषण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य को नपुंसक कहा, अख़बार इसे भी छिपा गए!

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
ओप-एड Published On :


आज के अखबारों में कर्नाटक चुनाव की घोषणा और घृणा फैलाने वाले भाषण पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, राज्य नपुंसक है प्रमुखता से छपी है। हिन्दुस्तान टाइम्स की सेकेंड लीड है, ‘लोकतंत्र व्यवस्था नहीं है बल्कि एक स्वभाव है : प्रधानमंत्री’। नरेन्द्र मोदी का कार्यकाल जब खत्म होने के करीब, अगले चुनाव से पहले उनका यह कहना महत्वपूर्ण है। मीडिया का काम है कि जनता को बताये कि प्रधानमंत्री की राय में लोकतंत्र व्यवस्था नहीं स्वभाव है। कहने की जरूरत नहीं है कि व्यवस्था होगी तो जैसे-तैसे चलती रहेगी और स्वभाव ही नहीं होगा तो वह दिखेगा। नरेन्द्र मोदी के मामले में दिखता है कि उनका स्वभाव लोकतांत्रिक नहीं है। वे प्रेस कांफ्रेंस नहीं करते हैं, मन की बात करते हैं। अगर सिर्फ प्रेस कांफ्रेंस नहीं करते तो यह उनका स्वभाव लोकतांत्रिक नहीं होने का परिचय देता पर मन की बात करना उनके तानशाह होने के स्वभाव को परिलक्षित करता है। हालांकि अभी वह मुद्दा नहीं है। 

प्रधानमंत्री का व्यवहार लोकतांत्रिक होता तो वह दिखता। नहीं है वह भी दिख रहा है लेकिन जब वे स्वीकार कर रहे हैं कि लोकतंत्र व्यवस्था नहीं स्वभाव है – तो इसका खास महत्व है। मुझे लगता है कि हिन्दुस्तान टाइम्स ने इस खबर को महत्व देकर इसके साथ न्याय किया है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि कल के अखबारों में जब प्रधानमंत्री के गलत, झूठे या निराधार दावे को महत्व दिया गया था तो आज उसके जवाब में अरविन्द केजरीवाल ने जो कहा है उसे भी उतना ही महत्व मिलना चाहिए था। टाइम्स ऑफ इंडिया की सेकेंड लीड संसद की सदस्यता से अयोगय ठहराये लक्षद्वीप के सांसद का मामला है जिस पर कल फैसला आने से पहले ही उनकी सदस्यता बहाल कर दी गई। ठीक है कि अरविन्द केजरीवाल मुख्यमंत्री हैं, प्रधानमंत्री नहीं लेकिन नरेन्द्र मोदी जिस ढंग से राज्यों में चुनाव प्रचार करते हैं उस लिहाज से वे चुनाव के मामले में मुख्यमंत्री ही हैं। और वैसे भी मामला राजनीतिक आरोप का है। आरोप का जवाब आरोप से कम महत्वपूर्ण नहीं हो सकता है। लेकिन आज के अखबारों में अरविन्द केजरीवाल के जवाब को महत्व नहीं दिया गया है। पहले पन्ने पर तो नहीं ही है।  

स्थानीय खबरों के पन्ने पर छपी खबरों के अनुसार, अरविन्द केजरीवाल ने कहा है, सीबीआई और ईडी के छापों ने सभी भ्रष्ट को एक पार्टी में पहुंचा दिया है। उन्होंने यह भी कहा है कि एक बार भाजपा के सदस्य जेल चले जाएं तो देश भ्रष्टाचार मुक्त हो जाएगा। विधासभा में विश्वास प्रस्ताव पेश करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि दिल्ली में ऑपरेशन लोटस नाकाम हो गया है और दल बदल करने के लिए यहां विधायकों को 25 करोड़ रुपये की पेशकश की गई थी। यह पर्याप्त महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री जब पूरे विपक्ष को भ्रष्टाचारी कह रहे हैं तो उनके या उनकी पार्टी के बारे में ऐसा कहना जाना पर्याप्त महत्वपूर्ण है और उसे अगर ऊपर बताये गए उनके स्वभाव से जोड़कर देखें तो विधायक खरीदकर सरकार बनाना गैरलोकतांत्रिक व्यवस्था है और ऐसा करते हुए तमाम कानूनों का उल्लंघन होता है। अनैतिक तो है ही। यह सब व्यवस्था है लेकिन मामला स्वभाव का है। पैसे की ही तरह आपको सत्ता की हवस है। ऐसे में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने कल भाजपा की तुलना एक ऐसे वाशिंग मशीन से कीं जिसमें काला कपड़ा सफद होकर निकलता है। यह खबर भी कई अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है। 

मुझे लगता है कि अखबारों का काम है कि भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की राय जनता तक पहुंचायें ताकि समर्थन के संबंध में जनता का निर्णय जानकार हो। जहां तक राज्य को नपुंसक कहने का सवाल है, सुप्रीम कोर्ट में कल नफरती भाषण से संबंधित याचिका पर सुनवाई चल रही थी। मामला महाराष्ट्र का है और कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा है तथा इसपर फिर 28 अप्रैल को सुनवाई होनी है। कल की सुनवाई के दौरान जज ने कहा कि नफरती भाषण हो रहे हैं क्योंकि राज्य नपुंसक हैं। इंडियन एक्सप्रेस की लीड के उपशीर्षक के अनुसार, न्याययमूर्ति जोसेफ ने कहा कि अगर राजनीति और धर्म को अलग कर दिया जाए तो यह रुक जाएगा। अमर उजाला में लगभग यही शीर्षक है, राजनीति में धर्म का इस्तेमाल बंद करने पर ही रुकेंगे नफरती भाषण। लेकिन इसमें राज्य के नपुंसक होने का जिक्र नहीं है। हालांकि,  सभी अखबारों में इस खबर को समान महत्व नहीं दिया गया है। 

कहने की जरूरत नहीं है कि राष्ट्रीय स्तर पर या केंद्र में भारतीय जनता पार्टी ही धर्म की राजनीति करती है और प्रधानमंत्री भी न सिर्फ धार्मिक बयान देते हैं बल्कि चुनाव प्रचार के समय आग लगाने वालों को कपड़ों से पहचानने जैसा दावा कर चुके हैं। धार्मिक आयोजनों में भाग लेते हैं, चुनाव के दौरान उसका सीधा प्रसारण होता है। धर्मनिरपेक्ष देश में यह वैसे ही गलत है और कहने की जरूरत नहीं है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद से न सिर्फ धार्मिक गतिविधियां बढ़ी हैं बल्कि आपत्तिजनक धार्मिक मामलों में कार्रवाई नहीं होने के उदाहरण भी बढ़े हैं। ऐसे में न्यायमूर्ति का राज्य को नपुंसक कहना मायने रखता है। पता नहीं इसका असर सांप्रदायिक राजनीति करने वाले दलों पर पड़ेगा कि नहीं और कितना पड़ेगा। लेकिन मामला गौरतलब तो है ही। द टेलीग्राफ ने भी इसे ही लीड बनाया है। इसके साथ एक और खबर है जिसका शीर्षक है, वकीलों ने रिजिजू (कानून मंत्री) से कहा : सरकार राष्ट्र नहीं है। 

नई दिल्ली डेटलाइन से आर बालाजी की इस बाईलान खबर के अनुसार, देश भर के 320 से अधिक वकीलों ने बुधवार को केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू के बयान की निंदा की, जिसमें सरकार की आलोचना करने वाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों को “भारत विरोधी गिरोह” से जोड़ दिया गया था और उनके खिलाफ कर्रवाई की धमकी दी गई थी। एक बयान में वकीलों ने कहा, “उन्हें याद रखना चाहिए कि आज की सरकार राष्ट्र नहीं है और राष्ट्र सरकार नहीं है।” एक मीडिया हाउस द्वारा लाइव प्रसारित कॉनक्लेव में रिजिजू के बयान को इन लोगों ने “अवांछित  हमला” करार दिया। इसमें कहा गया है, “हम श्री रिजिजू को याद दिलाने के लिए मजबूर हैं कि संसद सदस्य के रूप में, उन्होंने भारत के संविधान के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा बनाए रखने की शपथ ली है और कानून व  न्याय मंत्री के रूप में, न्याय व्यवस्था, न्यायपालिका और न्यायाधीश, पूर्व और वर्तमान दोनों की रक्षा करना उनका कर्तव्य है। यह उनका काम नहीं है कि जिनकी राय से वह असहमत हो सकते हैं, उनमें से कुछ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को चुनें और उनके खिलाफ कार्रवाई की सार्वजनिक धमकी दें। 

इस तरह, देश के कानून मंत्री अगर अपने अधिकार और कर्तव्य से आगे बढ़कर रिटायर जजों को धमकी दे रहे हैं तो अपराधियों को सजा दिलाने वाली राज्य की पुलिस और जांच एजेंसियों को क्या कहा जाए कि उनके अभियुक्त बरी हो जाते हैं और जांच ठीक से नहीं होने का आरोप लगता है। इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर आज एक एक महत्वपूर्ण खबर जो दूसरे अखबारों में प्रमुखता से नहीं है। खबर है कि 2008 के जयपुर ब्लास्ट में मौत की सजा पाए मोहम्मद सरवर आजमी, मोहम्मद सैफ, शैफुर्ररहमान अंसारी और मोहम्मद  सलमान को न्यायमूर्ति पंकज भंडारी और समीर जैन की खंडपीठ ने बरी कर दिया है। अदालत ने ट्रायल कोर्ट के 2019 के आदेश को खारिज कर दिया है और जांच को संस्थागत नाकामी कहा है। इस विस्फोट में 71 लोग मारे गए थे और 185 लोग जख्मी हुए थे।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।


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