नौ साल में BJP ने बना लिया दूसरा दफ़्तर, उद्घाटन पर PM ने बताया विपक्ष को भ्रष्ट!

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
ओप-एड Published On :


दो कार्यकाल में दिल्ली में पार्टी के दो कार्यालय हो जाना वैसे ही बड़ी बात है। भ्रष्टाचार दूर करने के साथ-साथ हुआ है तो भाषण भी बनता है और यकीन हो कि भ्रष्टाचार कम हुआ है तो भाषण सुनना भी बनता है। इसलिए, उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री के भाषण की खबर आज के अखबारों में पहले पन्ने पर प्रमुखता से है। इस मौके पर प्रधानमंत्री के भाषण का केंद्र बिन्दु है – भ्रष्ट एकजुट हो रहे हैं। 20,000 करोड़ और शेल कंपनियों पर घिघ्घी बंधी हुई है, हर कोई देख पा रहा है लेकिन प्रधानमंत्री यह कहने की हिमाकत कर रहे हैं कि जो विरोधी है वही भ्रष्ट है। राहुल गांधी को चोर को चोर कहने पर सजा होने के बावजूद। अब विरोधी दल के लोग सरकार से मुकदमा लड़ें, नहीं तो सरकार ने कह दिया और मान लिया जाएगा कि जिसने विरोध नहीं किया उसने स्वीकार कर लिया। आम जनता तक संदेश चला गया।  

कुल मिलाकर, जब पूरा मामला संगठित लूट का लग रहा है तो जांच करवाने की बजाय प्रधानमंत्री अपने ढंग से प्रचार कर रहे हैं और मीडिया उनका साथ दे रहा है। वैसे तो दिल्ली में दो कार्यालयों या उतने बड़े कार्यालय के एक्सटेंशन की ही जरूरत नहीं समझ में आ रही है पर बन जाना और उद्घाटन पर यह भाषण देना सरकार और पार्टी की अपनी योग्यता तथा क्षमता तो है ही। 

आज के अखबारों में यह खबर पहले पन्ने पर प्रमुखता से है। हिन्दुस्तान टाइम्स और टाइम्स ऑफ इंडिया दोनों में पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर लीड, इंडियन एक्सप्रेस में लीड और द हिन्दू में सेकेंड लीड। शीर्षक इस प्रकार हैं – 

  1. प्रधानमंत्री ने कहा, भ्रष्टाचार से लड़ने वाली संवैधानिक संस्थाएं हमले की शिकार। (द हिन्दू) 
  1. भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को रोकने के लिए भ्रष्ट एकजुट हो गए हैं। (टाइम्स ऑफ इंडिया) 
  2. भ्रष्ट एकजुट हो गए हैं : मोदी का विपक्ष पर हमला। (हिन्दुस्तान टाइम्स) 
  3. विपक्ष डरा हुआ है …. सभी भ्रष्ट अब एक मंच पर हैं : प्रधानमंत्री (इंडियन एक्सप्रेस) 

कहने की जरूरत नहीं है कि इनमें द हिन्दू का शीर्षक सबसे अलग है और तथ्य यह है कि अनुकूल फैसले देने वाले जजों को इनाम देने और असहमति जताने वाले चुनाव आयोग के सदस्य के बाहर हो जाने के बावजूद प्रधानमंत्री ऐसा कहने की जुर्रत कर रहे हैं। मीडिया अगर गुलामी नहीं कर रहा होता, विज्ञापन के लालच में नहीं होता और सीबीआई-ईडी के डर में नहीं रहता तो आज ही इन बातों की याद दिलाता। प्रधानमंत्री से नहीं तो भाजपा नेताओं-समर्थकों से पूछता कि ऐसा कैसे कह रहे हैं और जनता को बताता कि उन्होंने क्या कहा। 

जहां तक सरकार विरोधियों के एकजुट होने की बात है, सरकार ने तय किया कि शेल कंपनियों को नहीं चलने देना है। वे कुछ गैर कानूनी नहीं कर रही थीं, गैर कानूनी नहीं है यह सब अब स्वीकार भी कर लिया गया है। यह भी कि भारतीयों की विदेशी शेल कंपनियों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। सवा दो लाख से ज्यादा कंपनियां बंद कराई गई हैं। चल रही होतीं तो सबका एक चालू खाता होता और सबमें कम से कम 5,000 रुपए होते। दफ्तर के किराये और साइनबोर्ड के भी औसतन 5,000 रुपया महीना मानें तो कुल कितनी राशि होगी, कितनों का रोजगार होता। यही हाल नोटबंदी का था। उससे पहले आधार और जीएसटी का खुद ही विरोध करते थे, खुद ही लागू कर दिया। उसपर भी विरोधियों ने कुछ नहीं कहा या नहीं के बराबर कहा तब यह हाल है।  

इन चारों के मुकाबले द टेलीग्राफ की लीड अदानी और मोदी के खिलाफ कांग्रेस के आंदोलन की खबर है जिसकी चर्चा या फोटो भी दूसरे अखबारों के पहले पन्ने पर ढूंढ़ने से न मिले। ऐसे में होने वाला चुनाव समतल खेल के मैदान पर होना कैसे सुनिश्चित किया जाएगा और नहीं होगा तो क्या उस चुनाव को निष्पक्ष या वैध माना जाएगा। वैसे इससे पहले की चिन्ता यह है कि सरकार  ने जिस ढंग से राहुल गांधी को विरोध का हथियार दे दिया है और जैसा राहुल गांधी ने कहा, सबसे अच्छा उपहार जो दे सकते थे, है। ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या सरकार चुनावों को लेकर निश्चिंत है और  है तो क्यों? क्या कर्नाटक में मुसलमानों के लिए आरक्षण को असंवैधानिक बताकर चुनाव से पहले खत्म करने जैसी और भी योजनाएं तथा उनपर भरोसा है?

जहां तक प्रधानमंत्री की बात है, दूध के धुले हों, राजा हरिश्चंद्र के अवतार या प्रमाणित देशभक्त भी। उनसे यह पूछा ही जाना चाहिए कि राहुल गांधी का 20,000 करोड़ का मामला क्या है? और कुछ नहीं है तो उसी मुद्दे पर उनपर मानहानि का केस क्यों नहीं किया या करवाया जा रहा है। जाहिर है, दाला में काला है और इसीलिए माइक बंद करने की मजबूरी थी और बंदा डर नहीं रहा था तो रोकने का यही तरीका अपनाया गया है कि सदस्यता ही खत्म हो जाए। ऐसा नहीं है तो प्रधानमंत्री को क्या संतोषजनक जवाब नहीं देना चाहिए? पर स्थिति यह बना दी गई है कि इसे कोई पूछ भी नहीं रहा है। 

जहां तक अवमानना मामले में राहुल गांधी को सजा होने का सवाल है, पूरे मामले की क्रोनोलॉजी और बाद में भाजपा द्वारा किए गए प्रचार व दलीलों से यह स्पष्ट हो चुका है कि यह सब सरकार का ही किया धरा है और उसका मकसद क्या हो सकता है। वैसे भी, प्रधानमंत्री कार्यालय से चलने वाला, सरकारी वेबसाइटों पर प्रचारित, पीएम केयर्स – आरटीआई मुक्त है तो समझना मुश्किल नहीं है कि प्रधानमंत्री को सवाल पसंद नहीं है। कम से कम पैसों के मामले में। वह भी तब जब चुनाव से पहले खुद को प्रधान सेवक और चौकीदार कहते थे। चौकीदार चोर है का भरपूर विरोध किया गया था है। ऐसे में जाहिर है कि प्रधानमंत्री सेवक है और देश व देशवासियों के हितों के चौकीदार। राजा तो नहीं ही हैं और वैसे भी वंशवाद का दिखावटी ही सही, विरोध भी करते रहे हैं। इसलिए उनके समर्थकों को भी चाहिए कि मन की बात सुनना छोड़कर सवाल करना सीखें। देश को आरटीआई कानून देने वाली सरकार इतनी भ्रष्ट नहीं हो सकती है जितनी नरेन्द्र मोदी प्रचारित कर रहे हैं। 

सत्ता में बने रहने के लिए, जहां तक विरोधियों को परेशान और नियंत्रित करने का मामला है। राहुल गांधी के खिलाफ झूठ प्रचारित किया गया कि उन्होंने विदेशी सहायता मांगी। दूसरी ओर, नागरिकों की जासूसी करने वाला सॉफ्टवेयर सरकार ने खरीदा है या नहीं – इसकी पुष्टि नहीं हुई है। वहीं, लोगों का आरोप है कि सॉफ्टवेयर का उपयोग नागरिकों पर हुआ है और सरकार ने नहीं किया तो किसी बाहरी ने किया – यह पता लगाना सरकार का काम है। चूंकि इजराइली सॉफ्टवेयर सरकार को ही बेचा जाता है और उसकी कीमत इतनी ज्यादा है कि कोई और खरीद भी नहीं सकता है। इसके बावजूद इस मामले में स्थिति साफ नहीं है। यानी ना हां कहा है और ना नहीं कहा है। इसका मतलब यही है कि खरीदकर भी चुप बैठी हो। हालांकि वह भी गलत है। 

यह स्थिति तब है जब सत्तारूढ़ पार्टी और संबंधित संगठन के खास लोगों ने जब भी विरोधी तेवर अपनाए उनके खिलाफ कोई सीडी या सीडी जैसा मामला सामने आता रहा है। इसके बावजूद समर्थकों को परवाह नहीं है और इसका कारण यह भी हो सकता है कि समर्थक तमाम अवैध गतिविधियों में लिप्त हैं और जब तब इसके उदाहरण सामने आते भी रहते हैं लेकिन किसी के खिलाफ कार्रवाई और मामला अंजाम तक पहुंचने के मामले नहीं के बराबर हैं। सरकार को ऐसे मामलों की कोई चिन्ता भी नहीं रहती है। यह सब संगठित लूट का उदाहरण है और प्रधानमंत्री विपक्ष पर भ्रष्ट होने का आरोप लगा रहे हैं।  

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं। 

 


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