
इस तरह स्कूली व्यवस्था से भारत के समृद्ध और संपन्न अपर कास्ट हिंदू को निचले तबके से कभी कोई ख़तरा नहीं पैदा होता है. हिंदू अपर कास्ट मिडिल क्लास को कोई डरने की वजह नहीं बनती है कि आने वाले दस साल बाद उनका बेटा पीछे रह जाएगा और खटिक का बेटा उससे ज़्यादा तेज़ निकल जाएगा और परसों उसका मैनेजर और ब़ॉस बन जाएगा.
भारत में यूनिवर्सिटी का सिस्टम अपर और लोअर कास्ट की इस खाई को और गहरा कर देता है.
जबकि अमेरिका में बारहवीं के बाद उच्च शिक्षा एकदम से बहुत महँगी हो जाती है, भारत में बारहवीं के बाद उच्च शिक्षा एकदम से सस्ती हो जाती है. प्राइवेट स्कूल में पढ़ा भारतीय बच्चा अगर ठीक अंक ले आता है तो किसी न किसी यूनिवर्सिटी में निश्चित दाख़िला पा लेता है. जो तेज़ होता है वो दिल्ली, मुंबई, बैंगलाोर में पढ़ने चला जाता है, और बीएससी, एमएससी करते ही विदेश भाग लेता है. ग़रीब निचली जाति का बच्चा सरकारी स्कूल से बारहवीं पास करने के बाद अगर बीए पहुँच भी जाता है तो थर्ड क्लास में पास होता है और अपने पिता की तरह नौकर बनने या ठेला खींचने लायक़ ही रह जाता है. यही वजह है कि आप आए दिन ख़बर पढ़ते हैं कि दो हज़ार चपरासी की नौकरियों के लिए पच्चीस लाख ग्रेजुएट या पोस्ट-ग्रेजुएट ने अप्लाई किया है.
अमेरिका में यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए लाखों का लोन लेना पड़ता है. बहुत सारे बच्चे बारहवीं के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं क्योंकि उनके नंबर इतने हाई नहीं होते हैं कि वो अच्छी जगह ए्डमीशन पा सकें. यूनिवर्सिटी में ज़्यादातर वही पहूंचते हैं जो पढ़ाई में तेज़ रहे होते हैं. जितनी बड़ी यूनिवर्सिटी उतना तेज़ बच्चा जिसे स्कॉलरशिप मिलती है. और ऐसे बच्चों में बहुत सारे — बहुत ही सारे — वो होते हैं जो सरकारी स्कूल में फ़्री पढ़े होते हैं जैसे मेरा बेटा आज पढ़ रहा है.
अजित साही वरिष्ठ पत्रकार हैं।