“अगर हिंदू-राज सचमुच एक वास्तविकता बन जाता है तो इसमें संदेह नहीं कि यह देश के लिए भयानक विपत्ति होगी, क्योंकि यह स्वाधीनता, समता और बंधुत्व के लिए खतरा है। इस दृष्टि से यह लोकतंत्र से मेल नहीं खाता। हिंदू राज को हर कीमत पर रोका जाना चाहिए।
(डॉ.अंबेडकर, पाकिस्तान ऑर दि पार्टीशन ऑफ इंडिया, 1946, मुंबई, पृष्ठ 358)
आरएसएस के ‘हिंदुत्व’ और ‘हिंदू राष्ट्र’ के प्रोजेक्ट की राह में अगर वाक़ई को बड़ी बौद्धिक बाधा है तो वह है डॉ.अंबेडकर की वैचारिकी। यही वजह है कि आरएसएस और उससे जुड़े तमाम संगठन डॉ.अंबेडकर को (विचारमुक्त) ‘देवता’ बनाकर पूजने का अभियान चला रहे हैं। उन्हें लगता है कि जब किसी महापुरुष की मूरत गढ़कर मंदिर बना दिए जाएँ तो लोग भूल जाते हैं कि उस महापुरुष के विचार क्या थे। गौतम बुद्ध के साथ यह हो चुका है। बुद्ध तर्क की बात करते थे, ‘अप्प दीपो भव’ यानी अपना प्रकाश खुद बनने की बात करते थे,मूर्तिपूजा के विरोधी थे, लेकिन उन्हें विष्णु का नवाँ अवतार घोषित कर दिया गया। मूर्ति पूजा विरोधी बुद्ध की आज सर्वाधिक मूर्तियाँ मिलती हैं।
लेकिन आरएसएस के सामने समस्या यह है कि आज समाज का बड़ा हिस्सा पढ़ने-लिखने के महत्व को समझ रहा है। डॉ.अंबेडकर के विचारों की पुस्तिकाएँ तमाम भारतीय भाषाओं में अनूदित होकर गाँव-गाँव पहुँच रही हैं। इन्हें पढ़कर ख़ासकर हिंदू वर्णव्यवस्था में शूद्र करार दी गई जातियों में यथास्थिति के प्रति जो आक्रोश जन्म लेता है और वह राजनीतिक हस्तक्षेप के रूप में प्रकट होता है। यह ‘हिंदुत्व’ के लिए चुनौती है।
डॉ.अंबेडकर ने वर्णव्यवस्था और जाति उत्पीड़न को लेकर हिंदू धर्म की तीखी आलोचना की है। सनातनधर्मवादियों ने इसके लिए उनकी निंदा की। हिंदुत्व के जन्मदाता ( अंग्रेजों से माफी मांगने के बाद सावरकर ने इसी नाम से किताब लिखी थी जो 1923 में सामने आई) और आरएसएस के पूज्य ‘वीर’ सावरकर ने लिखा है कि ‘जिस देश में वर्णव्यवस्था नहीं है उसे म्लेच्छ देश माना जाए। यही नहीं, दलितों और स्त्रियों को हर हाल में गुलाम बनाए रखने की समझ देने वाली मनुस्मृति को वेदों के बाद सबसे पवित्र ग्रंथ घोषित करते हुए सावरकर लिखते हैं.. ‘ यही ग्रंथ सदियों से हमारे राष्ट्र की ऐहिक एवं पारलौकिक यात्रा का नियमन करता आया है। आज भी करोड़ों हिंदू जिन नियमों के अनुसार जीवन यापन तथा आचरण व्यवहार कर रहे हैं, वे नियम तत्वत: मनुस्मृति पर आधारित है। आज भी मनुस्मृति ही हिंदू नियम (हिंदू लॉ) है। वही मूल है।’
यहाँ यह याद करना ज़रूरी है कि डॉ.अंबेडकर ने मनुस्मृति को सार्वजनिक रूप से जलाया था। महिलाओं को अधिकार देने वाले हिंदू कोड बिल का आरएसएस और जनसंघ ने जैसा तीखा विरोध किया और अंबेडकर के ख़िलाफ़ अभियान चलाया, उससे डॉ.अंबेडकर इस नतीजे पर पहुँच गए कि हिंदू धर्म में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने 14 अक्टूबर 1956 को अपने लाखों अनुयायियों के साथ हिंदू धर्म छोड़कर नागपुर की दीक्षाभूमि में बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। उन्होंने सिर्फ धर्म ही नहीं बदला, इस मौक़े पर अपने अनुयायियों को 22 प्रतिज्ञाएँ भी दिलवाईं।
ये प्रतिज्ञाएँ हिंदुत्ववादियों की आँख में शूल की तरह गड़ती हैं। दीक्षा भूमि से इन्हें हटाने की माँग बीजेपी की नेता करने लगे हैं। महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार मौका पाते ही इसे अमल में ला सकती है।
यह साफ़ नज़र आ रहा है कि आरएसएस और बीजेपी एक तरफ़ तो डा.अंबेडकर को पूज्य बताने का अभियान चला रहे हैं, तो दूसरी तरफ़ उनके विचारों को दफ़नाने की कोशिश हो रही है। तमाम अंबेडकरवादी नेताओं को सांसद और मंत्री बनाकर ‘चुप’ कराने का सिलसिला भी छिपा नही है। कौन सोच सकता था कि प्रखर अंबेडकरवादी और ‘जस्टिस पार्टी’ बनाकर मायावती पर अंबेडकर के विचारों को छोड़ने का आरोप लगाने वाले उदितराज (रामराज नाम था, बौद्ध धर्म स्वीकार करेक उदितराज बने) बीजेपी के सांसद हो जाएँगे।
ख़तरा यह भी है कि डॉ.अंबेडकर के विचारों में मिलावट की जा सकती है, जैसे इतिहास के साथ हो रहा है। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार रहते कंप्यूटर कलाकारी से बैल को घोड़ा बनाने की कलाकारी हो चुकी है ताकि हड़प्पा सभ्यता में घोड़े की उपस्थिति दिखाई जा सके (जिससे साबित हो सके कि वह आर्य सभ्यता थी)। ऐसे में ज़रूरी है कि डॉ.अंबेडकर के प्रामाणिक लेखन को सुरक्षित रखा जाए। यह जाना जाए कि 22 प्रतिज्ञाएँ क्या थीं और क्यों हिंदुत्ववादी उन्हें छिपाना चाहते हैं। पढ़ें ये 22 प्रतिज्ञाएँ–
1. मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं करूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा
2. मैं राम और कृष्ण, जो भगवान के अवतार माने जाते हैं, में कोई आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा
3. मैं गौरी, गणपति और हिन्दुओं के अन्य देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा.
4. भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता हूँ
5. मैं यह नहीं मानता और न कभी मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे. मैं इसे पागलपन और झूठा प्रचार-प्रसार मानता हूँ
6. मैं श्रद्धा (श्राद्ध) में भाग नहीं लूँगा और न ही पिंड-दान दूँगा.
7. मैं बुद्ध के सिद्धांतों और उपदेशों का उल्लंघन करने वाले तरीके से कार्य नहीं करूँगा
8. मैं ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित होने वाले किसी भी समारोह को स्वीकार नहीं करूँगा
9. मैं मनुष्य की समानता में विश्वास करता हूँ
10. मैं समानता स्थापित करने का प्रयास करूँगा
11. मैं बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग का अनुशरण करूँगा
12. मैं बुद्ध द्वारा निर्धारित परमितों का पालन करूँगा.
13. मैं सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया और प्यार भरी दयालुता रखूँगा तथा उनकी रक्षा करूँगा.
14. मैं चोरी नहीं करूँगा.
15. मैं झूठ नहीं बोलूँगा
16. मैं कामुक पापों को नहीं करूँगा.
17. मैं शराब, ड्रग्स जैसे मादक पदार्थों का सेवन नहीं करूँगा.
18.मैं महान आष्टांगिक मार्ग के पालन का प्रयास करूँगा एवं सहानुभूति और प्यार भरी दयालुता का दैनिक जीवन में अभ्यास करूँगा.
19.मैं हिंदू धर्म का त्याग करता हूँ जो मानवता के लिए हानिकारक है और उन्नति और मानवता के विकास में बाधक है क्योंकि यह असमानता पर आधारित है, और स्व-धर्मं के रूप में बौद्ध धर्म को अपनाता हूँ
20. मैं दृढ़ता के साथ यह विश्वास करता हूँ की बुद्ध का धम्म ही सच्चा धर्म है.
21. मुझे विश्वास है कि मैं फिर से जन्म ले रहा हूँ (इस धर्म परिवर्तन के द्वारा).
22. मैं गंभीरता एवं दृढ़ता के साथ घोषित करता हूँ कि मैं इसके (धर्म परिवर्तन के) बाद अपने जीवन का बुद्ध के सिद्धांतों व शिक्षाओं एवं उनके धम्म के अनुसार मार्गदर्शन करूँगा.
याद रखें कि डॉ.अंबेडकर महान विचारक थे, पैग़ंबर या खुदा नहीं। स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर आधारित वैज्ञानिक उनका मूल सपना था। इस सपने को पूरा करने के लिए डॉ.अंबेडकर के विचारो को मथने और ज़रूरत पड़ने पर तमाम दूसरे समतावादी वैचारिक रसायनो से इसका मेल कराते चलना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है।
.बर्बरीक