धर्मांतरण का आंदोलन ख़त्म नहीं होगा- डॉ.आंबेडकर

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डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी – 26

पिछले दिनों एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में डॉ.आंबेडकर को महात्मा गाँधी के बाद सबसे महान भारतीय चुना गया। भारत के लोकतंत्र को एक आधुनिक सांविधानिक स्वरूप देने में डॉ.आंबेडकर का योगदान अब एक स्थापित तथ्य है जिसे शायद ही कोई चुनौती दे सकता है। डॉ.आंबेडकर को मिले इस मुकाम के पीछे एक लंबी जद्दोजहद है। ऐसे मेंयह देखना दिलचस्प होगा कि डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की शुरुआत में उन्हें लेकर कैसी बातें हो रही थीं। हम इस सिलसिले में हम महत्वपूर्ण  स्रोतग्रंथ  डॉ.अांबेडकर और अछूत आंदोलन  का हिंदी अनुवाद पेश कर रहे हैं। इसमें डॉ.अंबेडकर को लेकर ख़ुफ़िया और अख़बारों की रपटों को सम्मलित किया गया है। मीडिया विजिल के लिए यह महत्वपूर्ण अनुवाद प्रख्यात लेखक और  समाजशास्त्री कँवल भारती कर रहे हैं जो इस वेबसाइट के सलाहकार मंडल के सम्मानित सदस्य भी हैं। प्रस्तुत है इस साप्ताहिक शृंखला की  छब्बीसवीं कड़ी – सम्पादक

 

 

 

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श्रीमती आंबेडकर की पुण्य तिथि

(भोईवाड़ा पुलिस स्टेशन की डायरी, दिनाॅंक 27 मई 1937, वृहस्पतिवार, 12.10 अपराहन)

पी. सी. संख्या 1288/ई, खबर है कि आज शाम 10 बजे डा. आंबेडकर की पत्नी स्व. रमाबाई आंबेडकर की पुण्य तिथि की स्मृति में बी.डी.डी.चैक, प्लाट ‘बी’ मैदान, नया गाॅंव में लगभग 500 लोग एकत्र हुए। इस सभा की अध्यक्षता किसी मोरेश्वर वासुदेव डोंडे द्वारा की गई, जिसमें (1) शंकरराव वाडवलकर, (2) कादरेकर और (3) उपशाम मास्टर ने भाषण दिए। उन्होंने श्रोताओं से इस तिथि को हर वर्ष मनाने की प्रार्थना की, और शंकरराव वाडवलकर ने अपने भाषण में यह सूचना दी कि दलित वर्गों की एक जनसभा इसी 30 मई को कामगार मैदान में शाम 6.30 बजे होगी, जिसमें सभी लोगों का उपस्थिति रहना जरूरी है। यह सभा शान्तिपूर्वक आज रात 11.30 पर खत्म हो गई।

 

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संख्या 11/1938,

ओरियंटल ट्रान्सलेटर‘स आॅफिस सेक्रेटेरियट,

बम्बई, 5 जनवरी 1938

ज्ञापन

 

अधोहस्ताक्षरी सरकार के गृह विभाग (राजनीतिक) के सचिव को मुबारकबाद पेश करता है, और उन्हें मराठी पुस्तक ‘निरोपया’ खण्ड 22, संख्या 6 (नवम्बर 1937) की एक प्रति संलग्न करता है, जिसमें पृष्ठ संख्या 135-138 पर प्रस्तुत सम्पादकीय लेख गौरतलब है।

  1. ‘निरोपया’ का मुद्रण और प्रकाशन पूना के आर्कबिशप के द्वारा एक्जामिनर प्रिन्टिंग प्रेस, दलाल स्ट्रीट, किला, बम्बई से हुआ है। एक्जामिनर प्रिन्टिंग प्रेस अर्थात उसके संचालक का घोषणा पत्र जे. एम. सेरेस एस. जे. के नाम से है और उसकी दिनाॅंक 23 जनवरी 1937 है। पुस्तक के प्रकाशन की दिनाॅंक 1 नवम्बर 1937 है।
  2. पृष्ठ संख्या 135-138 पर प्रस्तुत सम्पादकीय लेख का सम्पूर्ण अनुवाद इसके साथ संलग्न है।

 

(हस्ताक्षर)

शासकीय ओरियन्टल अनुवादक

डी. सी. पी.

(हस्ताक्षर)

अधीक्षक, विशेष शाखा,

सी. आई. डी.

 

धर्मान्तरण की आवश्यकता

 

‘निरोपया’ में खण्ड 22, संख्या 6, माह नवम्बर 1927 में ‘डा. आंबेडकर आणि धर्मान्तराची आवश्यकता’(अर्थात, डा. आंबेडकर और धर्मान्तरण की आवश्यकता) शीर्षक से प्रकाशित सम्पादकीय लेख का सम्पूर्ण अनुवाद।

 

पृष्ठ 135-138

 

साप्ताहिक पत्र ‘जनता’ से मालूम हुआ है कि 28 अगस्त 1937 को डा. आंबेडकर की अध्यक्षता में दलित वर्गों की एक विशाल सभा म्यूनिसपल हाल, बान्द्रा में हुई थी, जिसमें निम्नलिखित प्रस्ताव पास किए गए थे-

‘जैसा कि बम्बई प्रेसीडेंसी के महार सम्मेलन में यह प्रस्ताव पास किया गया था कि हमारें भाई-बहिनों को हिन्दू त्यौहार और हिन्दूधर्म के रीति रिवाज, जैसे व्रत और उपवास नहीं मनाने चाहिए।’

इस अवसर पर अनेक लोगों के भाषणों के बाद, डा. आंबेडकर ने अपना भाषण दिया। उन्होंने कहा, ‘हमारी यह सभा विशेष रूप से आप लोगों को बम्बई प्रेसीडेंसी के महार सम्मेलन में धर्मान्तरण के सम्बन्ध में पास किए प्रस्ताव का स्मरण कराने के लिए बुलाई गई है। इसलिए यदि किसी के मन में धर्मान्तरण को लेकर कोई सवाल हो, उसे अवश्य ही उनसे पूछ लेना चाहिए।’ जब कोई भी सवाल पूछने के लिए आगे नहीं आया, तो डा. आंबेडकर ने आगे बोलना शुरु किया। उन्होंने कहा, ‘प्रिय भाईयों और बहिनों, मैं इस सभा में आने का इच्छुक नहीं था। पर मुझे मालूम हुआ कि यहाॅं कुछ लोग पुरानी परम्पराओं को मानने वाले हैं, और वे महार सम्मेलन में पारित धर्मान्तरण के प्रस्ताव पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। इसलिए ऐसे लोगों की शंकाओं को दूर करने के लिए मैं यहाॅं आया हूॅं। लम्बे समय से मैं इस विषय पर अपने विचार रख रहा हूॅं। इसलिए वास्तव मे तो आपके मनों में उसको लेकर कोई सन्देह नहीं होना चाहिए। बम्बई प्रेसीडेंसी का महार सममेलन 1935 में हुआ था, जो महार समुदाय के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखने योग्य है। इसलिए सच में तो महार समुदाय को उस सम्मेलन के प्रस्ताव को पूरी तरह मानना चाहिए और उन्हें पूरे बहुमत के साथ उन प्रस्तावों के अनुरूप काम करना चाहिए।

 

हिन्दू देवताओं की पूजा नहीं करनी चाहिए

 

डा. आंबेडकर ने आगे कहा, ‘हमें उन सभी धार्मिक त्यौहारों और दिनों को मनाना छोड़ना होगा, जो हम हिन्दू धर्म के अनुसार मनाते आए हैं। हमें विचार करना होगा कि हम जो त्यौहार हिन्दू धर्म के अनुसार मनाते हैं, क्या वे धर्म और नैतिकता की दृष्टि से उचित हैं? कुछ त्यौहार तो पूरी तरह फूहड़ व्यवहार वाले हैं। उदाहरण के लिए कुछ लोग सोमवार के दिन शंकर भगवान के नाम पर उपवास करते हैं और अनेक प्रकार से पिण्डी अर्थात शंकर के लिंग की पूजा करते हैं। क्या किसी ने भी विचार किया कि यह शंकर की पिण्डी क्या है?यह एक स्त्री और एक पुरुष के मिलन (सहवास) की मूर्ति के सिवा कुछ और नहीं है। क्या हमें इस तरह के अश्लील मूर्ति की पूजा करनी चाहिए? यदि स्त्री और पुरुष कुत्तों की तरह सड़कों पर इस तरह का अश्लील व्यवहार करेंगे, तो क्या हम उनकी फूलों से पूजा करेंगे या जूतों से पिटाई करेंगे? तब क्या हमें पार्वती और शंकर के इस अश्लील कर्म की, अर्थात एक अश्लील देवता की पूजा करनी चाहिए? गणपति भी इसी तरह का एक देवता है।’ डा. आंबेडकर ने आगे कहा, ‘गणपति की कहानी यह है कि एक बार पार्वती नंगी नहा रही थी। शंकर उस समय कहीं अन्यत्र चले गए थे। इसलिए पार्वती ने अपनी सुरक्षा के लिए अपने शरीर के मैल से गणपति बनाकर खड़ा कर दिया। तब मैल से बना वह घिनौना पुतला देवता कैसे हो गया? देवता को तो निर्दोष और पवित्र अवतार होना चाहिए। किन्तु हिन्दू धर्म में बहुत ही विचित्र देवता है, जैसा कि अभी मैंने आपको बताया। इसलिए, यह मेरी सच्ची धारणा है कि उनकी पूजा नहीं की जानी चाहिए। तीसरी कहानी डा. आंबेडकर ने ‘दत्तात्रेय’ की सुनाई, ‘नारद त्रिदेव-ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पत्नियों को यह बताने गए कि अत्रि ऋषि की पत्नी अनुसूइया सबसे पवित्र और शीलवान पत्नी है। वे यह सहन नहीं कर सकीं कि कोई स्त्री उनसे भी ज्यादा शीलवान हो सकती है। सो उन तीनों पत्नियों ने अपने पतियों से अनुसूइया का शील भंग करने का अनुरोध किया। अपनी पत्नियों की बात सुनकर वे तीनों वीर पति भी वैसा करने के लिए तैयार हो गए। वे तीनों पुरुष अनुसूइया के घर गए, और उसके पति को किसी बहाने कहीं बाहर भेज दिया। उसके बाद उन तीनों ने अनुसूइया के साथ रमण करना शुरु कर दिया। इस सहवास ने उसने गर्भ धारण किया और एक पुत्र को जन्म दिया। और जैसा कि बच्चे के पिता के बारे में सन्देह था, उन तीनों देवताओं पर समान जिम्मेदारी डालने के लिए उसके धड़ पर तीन सिर जुड़े हुए थे। दत्तात्रेय अवतार इसी तरह हुआ।’

 

धर्मान्तरण का आन्दोलन खत्म नहीं होगा

 

डा. आंबेडकर ने अपने भाषण के अन्त में कहा, ‘बहुत से लोगों का कहना है कि धर्मान्तरण की लहर अब थम गई है। लेकिन ऐसा नहीं है। धर्मान्तरण जरूर होगा। इस बात को अच्छी तरह दिमाग में रख लो कि मैं इस आन्दोलन को खत्म करने वाला नहीं हूॅं। बहुत से हिन्दुओं ने मुझसे कहा है कि ‘आपके धर्मान्तरण के आन्दोलन ने हमारी आॅंखें खोल दी हैं। अब हम जागरूक हो गए हैं, और अब आप लोगों के प्रति अपना कर्तव्य निभाने में असफल नहीं होंगे। इसलिए आप अपना धर्मान्तरण आन्दोलन वापिस ले लें।’ पर मैं जिन बहुत से कारणों से इस आन्दोलन वापिस नहीं लूॅंगा, वे अभी भी मौजूद हैं। इसलिए अच्छी तरह से विचार करने और परीक्षण करने के बाद ही किसी नए धर्म को अपनाना होगा। मुझे आशा है कि भविष्य में महार समुदाय के सभी सदस्य महार सम्मेलन के द्वारा निर्धारित तरीके से ही काम करेंगे।’

{डा. आंबेडकर का उपर्युक्त भाषण सही समय पर प्रकाशित हुआ है। अब केवल यह बताना है कि उनकी जाति के लोग उनकी सलाह के अनुसार ही कार्य करेंगे। उन्होंने ठीक तरह से हिन्दू धर्म के मौजूदा देवताओं की अश्लील बातों को अच्छी तरह समझा दिया है। कोई भी बुद्धिमान हिन्दू, जिसे असली भगवान की समझ है, देवताओं की इन घटिया और निन्दनीय कहानियों पर शर्म महसूस करेगा। फिर भी यह दुख की बात है कि लाखों-लाख हिन्दू इस तरह की व्यर्थ और मूर्खतापूर्ण कहानियों पर विश्वास करते हैं, उनके अनसार व्यवहार करते हैं, और उन निर्जीव, बेकार पत्थरों की मूर्तियों के पैरों में गिर कर अपने दुखों की मुक्ति के लिए उनसे प्रार्थना करते हैं। अब डा. आंबेडकर ने दलित वर्गों के सामने हिन्दू देवताओं की असली तस्वीर रख दी है, भले ही उन्होंने ऐसे अनैतिक, अश्लील और शर्मनाक रीति-रिवाजों को छोड़ दिया है, पर असली सुधार केवल इन मूर्तियों को तोड़कर फेंक देने से नहीं हो सकता। इन व्यर्थ की कहानियों के अनुसार लोगों के व्यवहार और आचरण को बदलना होगा और उनका नया सुधारवादी आचरण सच्चे धर्म पर आधारित होना चाहिए, अर्थात उन्हें दिल खोलकर ईसाई धर्म अपना लेना चाहिए। इसीलिए ईसा मसीह कहते हैं, ‘मैं ही एकमात्र सत्य और जीवन के मार्ग पर हूॅं।’ इसीलिए ईसा मसीह ने स्वर्ग का रास्ता दिखाया है। उन्होंने ही उन सच्चाईयों को बताया है, जो स्वीकार करनी चाहिए, वे उपदेश दिए हैं, जिनका पालन करना चाहिए और वे उपाय बताए हैं, जिनके सहारे परलोक के जीवन को सुरक्षित करना चाहिए। और इसलिए, हरेक को ईसाई धर्म में आना चाहिए, जो एकमात्र सच्चा धर्म है, जिसे मुक्तिदाता ईसा मसीह ने कहा है, जिन्होंने मानव के उद्धार के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया था, और हमें शैतान के बन्धनों से मुक्त करने के लिए अत्यधिक दुखों, यहाॅं तक कि मौत को भी सहन किया था। और इसलिए जो लोग प्रभु की कृपा से ईसाई हो गए हैं, उन्हें अपने हिन्दू भाईयों के सामने अच्छा उदाहरण रखना चाहिए और अपने सच्चे धर्म को मानने हेतु उनके के लिए प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए।

(सम्पादक)

 

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शोलापुर में मांग समुदाय का सम्मेलन

(बाम्बे सीक्रेट अबस्ट्रक्ट, 8 जनवरी 1938)

 

  1. पैरा संख्या 558/1938- मांग समुदाय सम्मेलन का चैथा अधिवेशन 1 जनवरी 1938 को शोलापुर में सम्पन्न हुआ। डा. आंबेडकर ने कहा कि अछूतों के उत्थान के लिए उनका कार्य केवल महारों तक सीमित नहीं है, बल्कि वह सभी दलित वर्गों के लिए है। उन्होंनेनके लिए छात्रावास खोले हैं और मांग तथा चम्भार समुदायों के लिए सरकारी विभागों में नौकरियाॅं सुरक्षित कराई हैं। इस सभा में लगभग 2500 लोग उपस्थित हुए थे।

10 जनवरी 1938

 

डा. बी. आर. आंबेडकर

 

10 जनवरी को कौंसिल हाल तक किसान मार्च के सम्बन्ध में डी. वी. प्रधान की अध्यक्षता में एस्पलेनैड मैदान में हुई सभा में बोलने वालों में एक वक्ता डा. बी. आर. आंबेडकर थे।

 

महोदय,

अहमदनगर जिला दलित वर्ग सेवा संघ के तत्वावधान में, डा. बी. आर. आंबेडकर की अध्यक्षता में एक जनसभा श्री प्रभाकर जनार्दन रोहम, एम. एल. ए. को उनके बम्बई विधान सभा में चुने जाने पर बधाई देने के लिए 15 जनवरी को कामगार मैदान में सम्पन्न हुई। इस सभा में श्री रोहन को एक मानपत्र और 201 रुपए की थैली भेंट की गई। लगभग 500 लोग इस सभा में उपस्थित थे।

डा. ओबेडकर, भाऊसाहेब गायकवाड़ और शिन्दे मास्टर ने मराठी में भाषण दिए।

उन्होंने बताया कि इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के प्रत्याशी मि. रोहन ने विधान सभा चुनाव में अपनी सफलता अहमदनगर जनपद के दलित वर्गों के पूर्ण समर्थन से हासिल की है, जिनसे अब यह अपेक्षा की जाती है कि वह दलित वर्गों के हितों के लिए काम करेंगे। अन्त में, उन्होंने सभा में उपस्थिति के लिए श्रोताओं को धन्यवाद दिया।

सभा लगभग रात में 10.30 बजे आरम्भ हुई और 11.30 बजे शान्तिपूर्वक समाप्त हो गई।

 

 

पिछली कड़ियाँ–

25. संविधान का पालन न करने पर ही गवर्नर दोषी- डॉ.आंबेडकर

24. ‘500 हरिजनों ने सिख धर्म अपनाया’

23. धर्म बदलने से दलितों को मिली सुविधाएँ ख़त्म नहीं होतीं-डॉ.आंबेडकर

22. डॉ.आंबेडकर ने स्त्रियों से कहा- पहले शर्मनाक पेशा छोड़ो, फिर हमारे साथ आओ !

21. मेरी शिकायत है कि गाँधी तानाशाह क्यों नहीं हैं, भारत को चाहिए कमाल पाशा-डॉ.आंबेडकर

20. डॉ.आंबेडकर ने राजनीति और हिंदू धर्म छोड़ने का मन बनाया !

19. सवर्ण हिंदुओं से चुनाव जीत सकते दलित, तो पूना पैक्ट की ज़रूरत न पड़ती-डॉ.आंबेडकर

18.जोतदार को ज़मीन से बेदख़ल करना अन्याय है- डॉ.आंबेडकर

17. मंदिर प्रवेश छोड़, राजनीति में ऊर्जा लगाएँ दलित -डॉ.आंबेडकर

16अछूतों से घृणा करने वाले सवर्ण नेताओं पर भरोसा न करें- डॉ.आंबेडकर

15न्यायपालिका को ‘ब्राह्मण न्यायपालिक’ कहने पर डॉ.आंबेडकर की निंदा !

14. मन्दिर प्रवेश पर्याप्त नहीं, जाति का उन्मूलन ज़रूरी-डॉ.आंबेडकर

13. गाँधी जी से मिलकर आश्चर्य हुआ कि हममें बहुत ज़्यादा समानता है- डॉ.आंबेडकर

 12.‘पृथक निर्वाचन मंडल’ पर गाँधीजी का अनशन और डॉ.आंबेडकर के तर्क

11. हम अंतरजातीय भोज नहीं, सरकारी नौकरियाँ चाहते हैं-डॉ.आंबेडकर

10.पृथक निर्वाचन मंडल की माँग पर डॉक्टर अांबेडकर का स्वागत और विरोध!

9. डॉ.आंबेडकर ने मुसलमानों से हाथ मिलाया!

8. जब अछूतों ने कहा- हमें आंबेडकर नहीं, गाँधी पर भरोसा!

7. दलित वर्ग का प्रतिनिधि कौन- गाँधी या अांबेडकर?

6. दलित वर्गों के लिए सांविधानिक संरक्षण ज़रूरी-डॉ.अांबेडकर

5. अंधविश्वासों के ख़िलाफ़ प्रभावी क़ानून ज़रूरी- डॉ.आंबेडकर

4. ईश्वर सवर्ण हिन्दुओं को मेरे दुख को समझने की शक्ति और सद्बुद्धि दे !

3 .डॉ.आंबेडकर ने मनुस्मृति जलाई तो भड़का रूढ़िवादी प्रेस !

2. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी

1. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी

 



कँवल भारती : महत्‍वपूर्ण राजनीतिक-सामाजिक चिंतक, पत्रकारिता से लेखन की शुरुआत। दलित विषयों पर तीखी टिप्‍पणियों के लिए विख्‍यात। कई पुस्‍तकें प्रकाशित। चर्चित स्तंभकार। मीडिया विजिल के सलाहकार मंडल के सदस्य।