उल्टा तीर, कमान को डांटे – अब्दुल टाइट हो गया..

कपिल शर्मा कपिल शर्मा
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(वैधानिक चेतावनी – यह लेख एक व्यंग्य है और इसके किरदारों और कहानी का किसी से कोई भी रिश्ता संयोगवश अगर है, तो ये उसकी ख़ुद की ज़िम्मेदारी है)

अब्दुल ने भाई साहब इस देश में बहुत रायता फैलाया हुआ था। कई बार राष्ट्रभक्तों ने सोचा कि अब्दुल को टाइट किया जाए, लेकिन पेंचकस नहीं चल रही थी। आखिरकार अब्दुल को टाइट कर ही दिया। पिछले 8 सालों में अब्दुल को ऐसा टाइट किया गया है कि अब तो लगता है सांस लेना भी मुश्किल हो रहा होगा। अब्दुल को टाइट करने की ये कार्यवाही बहुत ही शातिराना अंदाज में चली गई, पहले पेट्रोल का दाम बढ़ाया गया, वो भी एकदम से नहीं बढ़ाया गया, धीरे-धीरे बढ़ाया गया। ताकि अब्दुल का संभलने का मौका ना मिले। इसी के साथ धीरे-धीरे और चीजों का दाम बढ़ाया गया, तेल, दाल, मसाले, चावल, रसोई गैस के दाम इस कदर महंगे कर दिए गए कि अब्दुल की चर्बी घटती गई, लेकिन वो टाइट होता गया। अब्दुल को टाइट करने के लिए एक साथ कई दिशाओं में काम किया गया। एक तरफ रोजगार घटाया गया, ताकि अब्दुल और अब्दुल के आने वाली पीढ़ियों को नौकरी ना मिले, दूसरी तरफ छोटे-मझोले उद्योग-धंधों को तबाह कर दिया गया, ताकि अब्दुल की आमदनी एकदम खत्म हो जाए। दूसरी तरफ देश भर में कई छोटे-मोटे अपंजीकृत, नामालूम से संगठन खड़े किए गए, जिनका काम ही बदअमनी और क्लेश फैलाकर डर का माहौल बनाना था। इस तरह जगह-जगह दंगों के ऐसे माॅडल खड़े किए गए, कि दंगा कुटीर उद्योग बन गया। अब अब्दुल और टाइट हो गया…


रेल का किराया, जेब की हद से बाहर करना, अब्दुल को टाइट करने के लंबे कार्यक्रम का ही एक अंग है। आप यकीन मानिए अब्दुल को टाइट करने के लिए क्या – क्या नहीं किया गया। इस पूरे कार्यक्रम में जिन महान हस्तियों ने साथ दिया उनका सहयोग काबिल – ए – तारीफ है। तमाम सरकारी संपत्तियां, इन्हीं हस्तियों ने खरीदी, औने-पौने दामों पर खरीदी। इसके लिए सरकारी बैंकों ने पहले इन महान हस्तियों को कर्जा दिया और फिर उस कर्जे को माफ कर दिया गया। इस तरह एक तरफ सरकारी बैंकों को ये सलाहियत दी गई कि वो अब्दुल को टाइट करें, दूसरी तरफ इन महान हस्तियों ने अपनी तरफ से अब्दुल को टाइट करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। अब्दुल को टाइट करने के इस महती काम में पुलिस, प्रशासन, मीडिया सबने अपनी जिम्मेदारी निभाई। स्टूडियोज़ में नौटंकी की बलिवेदी पर पत्रकारिता का सिर कलम कर दिया गया। पुलिस ने बाकायदा संविधान और कानून की चिथड़े किए, प्रशासन ने जहां तक हो सकता था, अब्दुल को टाइट करने में पूरी प्रशासनिक मशीनरी लगा दी। अब्दुल को टाइट करने में राष्ट्रभक्तों ने टिक-टाॅक वीडियोज़ बनाए, व्हाटस्एप मैसेज बनाए और उन्हें जहां-तहां, असली राष्ट्रभक्तों के नाम से प्रचारित किया। फेसबुक, ट्विटर पर ऐसे-ऐसे मैसेज वायरल किए गए, कि अगर टाइट ना भी हो तो भी अब्दुल टाइट हो जाए। इसी के साथ देश में, माफ कीजिएगा राष्ट्र में फिल्मी राष्ट्रभक्त अभिनेता-अभिनेत्रियों का ऐसा हुजूम खड़ा किया गया, जो अब्दुल को टाइट करने के लिए समय-समय पर कुछ ना कुछ मैसेज देते रहें। इनके साथ ही साथ ऐसी फिल्में बनवाई गई, उनका प्रचार किया गया कि अब्दुल को टाइट ना होता हो तो भी टाइट हो जाए।

कभी – कभी राष्ट्रविराधियों के चलते, अब्दुल को टाइट करने की इस इस्कीम में फच्चर भी पड़ता है। किसानों के नाम पर खालिस्तानी, खलिहर, और वो लोग जो किसान नहीं थे, दिल्ली को घेर कर बैठे रहे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि ये किसान कानूनों के नाम पर जो खेत-व्यापार कानून लाए गए हैं, अंततः उनका उद्देश्य भी अब्दुल का टाइट करना ही है। मजबूरी में इन कानूनों को वापस लेना पड़ा। लेकिन फिकर की बात नहीं है, कानून वापस लेने से क्या होता है, हमने सरकारी मंडियों की हालत ये कर दी कि किसान के किसी काम की नहीं रही। और फिर भी जो ढीठ किसान मंडियों में अनाज बेचने पर डटे हुए थे, उनके लिए चुपके से मंडियों तक खबर पहुंचा दी कि माल खरीदा ही नहीं जाए, बस हो गया अब्दुल टाइट।


खै़र आज की बात करते हैं, राष्ट्र का कर्जा जी डी पी का 75 प्रतिषत हो गया है। लेकिन पूरी दुनिया में डंका तो बज रहा है। ये भी ठीक है कि निर्यात की बैंड बजी हुई है, और आयात का भी कोई ठिकाना नहीं है, पर डंका तो बज रहा है। ये भी ध्यान देने वाली बात है कि अब्दुल को टाइट करने में इस डंके का भी बहुत बड़ा हाथ है, डंका बाद में बजा, पहले ये बताया गया कि डंका बजेगा, फिर बताया गया कि डंका बजने वाला है, और फिर अंततः डंका बज गया। हालत ये है कि अब ये डंका जो बजना शुरु हुआ है, वो चुप ही नहीं हो रहा, बजता जा रहा है, पर जिनता और जैसा डंका बजता है, अब्दुल उसी अनुपात में टाइट होता रहता है। अभी तो हालत ये है कि अब्दुल काफी टाइट हो चुका है। उपर से रही-सही कसर आटे ने पूरी कर दी। आटे की कीमत बढ़ रही है, और अब्दुल टाइट होता जा रहा है। पहले गोश्त पर बैन लगाया, कभी इसलिए, कभी उस लिए, गोश्त की दुकाने बंद करवाई गई। शुरुआत बीफ से हुई, बीफ का नाम तक लेना कानूनन अपराध बनाया गया, फिर पुलिस और भक्तों ने किसी भी तरह के गोश्त को बीफ बता कर, मारना, घेरना, तोड़ना, लूटना शुरु कर दिया। अब्दुल गोश्त खाता था, वो टाइट हो गया, फिर अब्दुल जो रोटी खाता है, उसे टाइट करने के लिए आटा महंगा कर दिया। अब ना गोश्त है ना रोटी..
ये बहुत ही चतुराई से बनाया गया प्लान है मितरों, धीरे-धीरे अब्दुल को और टाइट, और टाइट किया जा रहा है। इस टाइट करने के चक्कर में कभी-कभी थोड़ा बहुत देश भी टाइट हो जाता है। पर अब्दुल को टाइट करने के लिए इतना तो झेलना ही पड़ेगा ना जी….अब्दुल को टाइट करने के चक्कर में जो कुछ हो रहा है, उससे जान बाकी लोगों की सूख रही है। लेकिन ये बहुत नाॅर्मल बात है, ऐसा होता ही है, जब सबकी जान सूख जाएगी, तो देश का डंका बज जाएगा, दुनिया में देश विश्वगुरू हो जाएगा और अब्दुल टाइट हो जाएगा।
अभी नींबू उपर चला गया था, तेल फिर से उपर जाता लग रहा है, ये सब उपर जाकर अब्दुल को टाइट करते हैं, अब्दुल के ”टाइटीकरण” की ये प्रक्रिया जारी रहेगी मितरों….जब तक भारत अखंड नहीं हो जाता….अब्दुल टाइट नहीं हो जाता….
चचा ग़ालिब ने कहा था
हमें सब समझ आता है ग़ालिब
टाइट वो होते हैं, जान हमारी सूखती है…

ज्यादा दिमाग मत लगाइए, ग़ालिब को इंग्लिश आती थी….समझे….

(उल्टा तीर-कमान को डांटे, फिल्मकार-संस्कृतिकर्मी कपिल शर्मा के नियमित व्यंग्य स्तंभ के तौर पर मीडिया विजिल पर प्रकाशित होगा।)