चुनाव चर्चा: विधानसभा का सेमीफ़ाइनल होगा यूपी का पंचायत चुनाव!

चन्‍द्रप्रकाश झा चन्‍द्रप्रकाश झा
काॅलम Published On :


भारत के सबसे बड़े राज्य, उत्तर प्रदेश की विधानसभा के नए चुनाव के लिए सियासी पार्टियों की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। इसके लिए भारत के 26 मई 2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और 19 मार्च 2017 से  मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अभी से नई रणनीति बनाने में जुट गयी है। प्रदेश में मार्च 2021 में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव से पहले इस रणनीति को चाक चौबंद किया जा रहा है। कुल 415 सीटों की विधानसभा का पिछला चुनाव 2017 में  हुआ था। उसका मौजूदा  कार्यकाल इसी वर्ष 14 नवम्बर को  समाप्त होना है। नई विधानसभा के चुनाव उसके पहले ही कराने होंगे। किसी भी पक्ष को सदन में बहुमत के लिए 202 सदस्यों के समर्थन की दरकार है।    

निर्वाचन आयोग के एक आला अधिकारी ने इस स्तम्भकार को बताया कि विधान सभा के नए चुनाव समय पर ही होंगे। लेकिन उन्होंने और कोई खुलासा करने से साफ़ इंकार कर दिया।

पंचायत चुनाव

इस बीच,  भाजपा के प्रांतीय नेताओं को नये सिरे से नई ज़िम्मेदारी सौंपी गई है। पार्टी के महामंत्रियों को छह अलग-अलग क्षेत्रों का प्रभारी नियुक्त कर दिया गया है। उन्हें पार्टी कार्यकर्ताओं को पोलिंग बूथ स्तर पर सक्रिय करने के उपाय करने के निर्देश दिये गये हैं। पंचायत चुनाव की तैयारी के लिए प्रत्येक जिला में 7 से 17 जनवरी तक बैठक करने कहा गया है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और पार्टी के केंद्रीय प्रदेश प्रभारी राधा मोहन सिंह ने बीते रविवार प्रदेश पदाधिकारियों की बैठक में उन्हें उनके निर्धारित कार्य में जुट जाने कहा। भाजपा के प्रदेश महामंत्रियों में से जेपीएस राठौर को पश्चिम क्षेत्रगोविन्द नारायण शुक्ला को प्रदेश मुख्यालय, अश्वनी त्यागी को ब्रजअमरपाल मौर्य को अवध, सुब्रत पाठक को काशीअनूप गुप्ता को गोरखपुर और प्रियंका सिंह रावत को कानपुर-बुन्देलखण्ड क्षेत्र का प्रभारी नियुक्त किया है। बैठक में क्षेत्रीय प्रभारी भी नियुक्त किये गये। स्वामी विवेकानंद की जयंती पर 12 जनवरी को पार्टी के युवा मोर्चा को जिला स्तरीय कार्यक्रम आयोजित करने कहा गया है।

 भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने कहा कि उनकी तात्कालिक प्राथमिकता पंचायत चुनाव में पार्टी की जीत सुनिश्चित करना है। मोदी सरकार और योगी सरकार ने जो भी योजनाएँ बनायी हैं , पार्टी के कार्यकर्ता उनका लोगों के बीच जम कर प्रचार करेंगे। पंचायत चुनाव के लिए ईमानदार, ग्रामीण विकास के लिए समर्पित और पार्टी के प्रति निष्ठावान रहे उम्मीदवारों का ही चयन किया जाएगा। भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष एवं विधान परिषद सदस्य विजय बहादुर पाठक को  पंचायत चुनाव प्रभारी बनाया गया है।

इस बार के पंचायत चुनाव में भाजपा ही नहीं बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी , पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी , कांग्रेस , दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, पूर्व केंद्रीय मंत्री अजित सिंह के राष्ट्रीय लोक दल, अपना दल , तेलंगाना के सांसद असददुद्दीन ओवेसी की एआईएमआईएम और कम्युनिस्ट पार्टियां समेत लगभग सभी राजनीतिक दल अपने प्रत्याशी तलाश करने में जुट गये लगते हैं। वे अपने चुनाव चिन्ह पर उम्मीदवार खड़े कर सकते हैं.

उत्तर प्रदेश में कुल 59,163 ग्राम पंचायते हैं।  उनके प्रधानों का कार्यकाल 25 दिसंबर को पूरा हो चुका है। 3 जनवरी को जिला पंचायत अध्यक्ष का भी कार्यकाल पूरा हो गया। क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष का कार्यकाल 17 मार्च को पूरा हो जाएगा। प्रदेश में ग्राम प्रधान, ग्राम पंचायत सदस्यकुल 823 ब्लाक के क्षेत्र पंचायत सदस्य और कुल 75 जिला पंचायतों के सदस्यों के करीब 3200 पदों पर चुनाव कराये जाने हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत तथा शहरी क्षेत्रों में नगर पालिका और नगर निगम के स्थानीय निकायों के चुनाव उत्तर प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग करवाता है। ये भारत के निर्वाचन आयोग से अलग है। उत्तर  प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा पंचायत चुनाव कार्यक्रम आगामी मार्च में कराने के स्पष्ट  संकेत हैं। चुनाव की अधिसूचना फरवरी मध्य तक जारी की जा सकती है।

योगी सरकार के कामकाज

राज्य की आबादी में जो करीब 50 प्रतिशत अन्य पिछड़े वर्ग के लोग और दलित हैं उनका रूझान सपा और बसपा की तरफ बताया जाता हैं। उसे मुस्लिम समुदाय का भी समर्थन मिलने की संभावना है, जो कुल आबादी के करीब 18 प्रतिशत माने जाते हैं। विश्लेषकों का कहना है कि शहरी मध्य वर्ग का योगी सरकार के कामकाज और आये दिन की आपराधिक घटनाओं के कारण भाजपा से मोहभंग हुआ है। लेकिन भाजपा समर्थकों को लगता है कि मोदी जी के चुनावी तरकस में बहुत तीर है. विधानसभा चुनाव में समय बचा है और मोदी जी  स्थिति संभाल सकते हैं।

विधान सभा चुनाव 2017

वर्ष 2017 के विधान सभा चुनाव में अन्य दलों को कुल 45.6 प्रतिशत वोट मिले थे। भाजपा गठबंधन को उससे कम 41.4 प्रतिशत वोट ही मिले थे।  बावजूद इसके , गैर -भाजपा दलों के वोट का बँटवारा हो जाने से भाजपा को 312 सीटें मिल गईं। पिछले विधान सभा चुनाव में सपा और कांग्रेस का गठबंधन था। इस बार वह गठबंधन रहेगा या नहीं इसके बारे में कोई अधिकृत घोषणा अभी तक नहीं की गई है।

सपा-बसपा गठबंधन

समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का चुनावी गठबंधन विधान सभा के 1993 के चुनाव के वक़्त हुआ था। वह गठबंधन उत्तर प्रदेश में भाजपा शासन काल में अयोध्या में 06 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद ध्वस्त कर देने के बाद उत्पन्न राजनीतिक परिस्थितियों में तब हुआ था जब बसपा संस्थापक कांशीराम जीवित थे। तब बसपा में मायावती का वर्चस्व नहीं था। उस चुनाव में भाजपा की शिकस्त का कारण सपा -बसपा का गठबंधन ही माना गया। यह गठबंधन नया राजनीतिक प्रयोग था जिसकी जीत की कल्पना बहुतेरे दिग्गज नेताओं को भी नहीं थी . दोनों दलों की राज्य में सपा नेता मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्व में सांझा सरकार बनी।

कांशीराम

कांशीराम अक्सर कहा करते थे कि बसपा अपने आप में बहुजन समाज की विभिन्न ताकतों का गठबंधन है। वह चाहते थे कि सपा, प्रदेश की बागडोर संभाले और बसपा केंद्रीय सत्ता में अपनी दावेदारी बढ़ाये। वह विधानसभा चुनाव में सपा को 60 प्रतिशत और बसपा को 40 प्रतिशत हिस्सेदारी देने और लोकसभा चुनाव में उसकी हिस्सेदारी का अनुपात बदल कर ठीक उलटा करने की बात कहते थे। भाजपा को सपा-बसपा गठबंधन की साझा सरकार रास नहीं आयी। हम उन कारणों की चर्चा इस कॉलम के पिछले अंको में कर चुके हैं जिसके परिणामस्वरूप 1995 में बसपा के समर्थन की वापसी से मुलायम सिंह यादव सरकार गिर गई थी।

मौके की ताक में बैठी भाजपा के समर्थन से मायावती की पहली सरकार बन गई। भाजपा के समर्थन से चार बार मायावती सरकार बनी जिनमें से एक बार भाजपा भी शामिल थी। लेकिन भाजपा से बसपा ने कभी औपचारिक चुनावी गठबंधन नहीं किया है।

अलबत्ता, सपा से गठबंधन टूट जाने के बाद बसपा ने  एक बार तब 1996 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस से चुनावी गठबंधन किया जब केंद्र में पी.वी.नरसिम्हा राव की सरकार थी। बसपा ने तब अविभाजित उत्तर प्रदेश की विधान सभा की 425 में से 300 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े कर कांग्रेस को 125 सीटें ही आवंटित की थी। उस चुनाव में किसी भी पक्ष को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला।  इस कारण बसपा ने  भाजपा से फिर हाथ मिलाकर सरकार बनायी। तय हुआ था सांझा सरकार में मुख्यमंत्री  दोनों पार्टियों के बारी-बारी से बनें। वह हिन्दुस्तान में चक्कर वार‘  सरकार का पहला प्रयोग था जो सफल नहीं हुआ। मुख्यमंत्रीी बनने का पहला मौका  बसपा को मिला,  लेकिन उसने भाजपा की बारी आने ही नहींं दी।

यूपी से जाता है पीएम बनने का रास्ता

लोकसभा की सर्वाधिक 80 सीटों वाले इस राज्य में भाजपा के जीते बगैर मोदी जी का प्रधानमंत्री बने रहना आसान नहीं होगा।  मोदी जी अवगत हैं कि प्रदेश में भाजपा के अपने दम पर सत्तारूढ़ होने के बाबजूद विगत में गोरखपुर,  फूलपुर और कैराना लोकसभा उपचुनाव में उनकी पार्टी की हार के क्या मायने हैं। पिछले आम चुनाव में भाजपा ने ये तीनों सीटें जीती थीं। गोरखपुर तो मुख्यमंत्री योगी जी का बरसों से गढ़ रहा।

भाजपा के कट्टर समर्थकों को लगता है कि चुनाव का वक़्त आते -आते दिल्ली के बॉर्डर पर जमा किसानों का मुद्दा दब जाएगा। तब अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण बढ़ सकता है। इस निर्माण में वैधानिक रुकावट सुप्रीम कोर्ट के आदेश से साफ हो चुकी है। मोदी जी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह (प्रमुख) मोहन भागवत की उपस्थिति में मंदिर निर्माण की आधारशिला रख चुके हैं। उनकी यह भी उम्मीद है कि भाजपा और उसकी सरकार द्वारा कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक मुस्लिम समुदाय के कथित तुष्टिकरण के विरोध में अपनायी नीतियों से हिंदुत्व का ध्रुवीकरण और तेज होगा जो भाजपा के चुनावी वैतरणी पार करने में तुरुप का पत्ता साबित हो सकता है। 

बहरहाल, चुनाव की घोषणा हो जाने के बाद ही पता चलेगा कि कौन कितने पानी में है। चुनाव तक और चुनाव के बाद भी मौजूदा गठबंधन के रूप बदल सकते हैं।


*मीडिया हल्कों में सीपी के नाम से मशहूर चंद्र प्रकाश झा 40 बरस से पत्रकारिता में हैं और 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण के साथ-साथ महत्वपूर्ण तस्वीरें भी जनता के सामने लाने का अनुभव रखते हैं। 

 


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