जेरूसलमः किरदार बदलते रहे, फ़साना वही रहा

प्रकाश के रे

जेरूसलम की हमारी दास्तान 800 ईस्वी में पहुंची है, जब महान चार्ल्स को पोप लियो ने क्रिसमस के दिन पश्चिमी रोमन साम्राज्य का सम्राट घोषित कर दिया. उसी दिन जेरूसलम के ईसाई पादरियों ने नये शासक को होली सेपुखर चर्च की चाबी सौंपी. उस समय जेरूसलम समेत सीरिया-पैलेस्टीना का इलाका अब्बासी शासक हारून की खिलाफत (ख़लीफ़ा का शासन) में था जिसकी राजधानी बगदाद थी. एक ही दिन में चार्ल्स के हिस्से में रोम और जेरूसलम दोनों ही आ गये थे. इस शासक का शासन आज के फ्रांस के बड़े इलाके समेत जर्मनी और इटली पर था. बैंजेंटाइन रोमन साम्राज्य, जो कि पूर्वी रोमन साम्राज्य भी कहा जाता है, की राजधानी कुस्तुंतुनिया थी और इसका अब्बासियों से लगातार संघर्ष चलता रहता था. अब्बासी खलीफाओं का कोई ध्यान जेरूसलम पर नहीं था, जिसकी वजह से वहां के मुसलमान धीरे-धीरे कमजोर हो रहे थे तथा ईसाईयों से उनकी तकरार बढ़ती जा रही थी. यहूदी भी ईसाईयों की बढ़ती ताकत से परेशान थे. खलीफा हारून और चार्ल्स महान के रिश्ते बनने के साथ ईसाईयों की ताकत और बढ़ी.

इस कथा को कुछ विराम देते हैं और आज के जेरूसलम में लौटते हैं. रोमन साम्राज्य आज यूरोप है और बैजेंटाइन साम्राज्य का बड़ा हिस्सा तुर्की बन चुका है. हारून का बगदाद राजनीतिक अस्थिरता, युद्ध और आतंक की त्रासदी से दो-चार है. पैलेस्टीना अब कुछ वर्ग किलोमीटर का इलाका भर है तथा जेरूसलम पर इजरायल काबिज है. इजरायल अब एक घोषित यहूदी राष्ट्र राज्य है.

जेरूसलम में एक तरफ इन दिनों नगर काउंसिल के चुनावों की सरगर्मी है, तो दूसरी तरफ फिलीस्तीनियों के घरों-खेतों पर जोर-जबर से दखल कर उन्हें यहूदी बस्तियां बसाने के लिए इस्तेमाल करने का सिलसिला जोरों पर है. कुछ समय पहले जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जेरूसलम को इजराइल की आधिकारिक राजधानी मानते हुए तेल अवीव से अपना दूतावास जेरूसलम ले जाने की घोषणा की थी, तब कई देशों के साथ यूरोपीय संघ ने भी इसका विरोध किया था. इस संघ का मानना है कि जेरूसलम में फिलहाल यथास्थिति बनी रहनी चाहिए और इजरायल-फिलीस्तीन विवाद के निपटारे के बाद ही राजधानी बनाने की बात होनी चाहिए. इजरायल हमेशा से जेरूसलम को अपनी राजधानी मानता है और 1967 के युद्ध के बाद उसने शहर के पूर्वी हिस्से पर भी कब्जा कर लिया था, जिसे फिलीस्तीनी अपनी राजधानी मानते हैं.

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राजधानी के सवाल पर इजरायल के अखबारों में इन दिनों एक दिलचस्प खबर चर्चा में है. अनेक इजरायली नागरिकों के पास दूसरे देशों की नागरिकता भी है. उन नागरिकों को वे देश अपने यहां चुनावों या अन्य गतिविधियों के लिए संपर्क करते रहते हैं. यूरोपीय देश बेल्जियम में चुनाव होने हैं. उसने जेरूसलम में रह रहे अपने एक नागरिक परिवार के पास इस बाबत एक पत्र लिखा है. उसमें दो लोगों के लिए जो पता लिखा गया है, उसमें उनके इलाके के साथ ‘पैलेस्टीनियन टेरिटोरीज’ लिखा हुआ है. इस पर उस परिवार ने आपत्ति जतायी है कि पहले हमेशा जेरूसलम लिखा जाता था, अब ऐसा क्यों किया जा रहा है. बेल्जियम यूपीय संघ का सदस्य है और उसकी भी मान्यता यह है कि जेरूसलम को अभी पूरी तरह से इजरायल की राजधानी नहीं माना जा सकता है. इस परिवार का अपार्टमेंट उस ग्रीन लाइन पर है, जो पूर्वी जेरूसलम को शेष जेरूसलम से अलग करता है. इस पत्र में एक महिला को जेरूसलम का निवासी बताया गया है, जबकि उसके दो बेटों को फिलीस्तीनी इलाके का. इस परिवार समेत ज्यादातर इजरायली अखबारों ने बेल्जियम की आलोचना करते हुए उस पर परिवार को बांटने का आरोप लगाया है.

अक्टूबर में जेरूसलम की सिटी काउंसिल के लिए भी चुनाव होने हैं. आधिकारिक रूप से पूर्वी जेरूसलम के फिलीस्तीनी बाशिंदे 1967 से ही इन चुनावों का बहिष्कार करते आये हैं. इजरायल में यहूदियों समेत अरबों को मतदान, पासपोर्ट आदि के अधिकारों के साथ पूर्ण नागरिकता है. लेकिन पूर्वी जेरूसलम में रहने वाले फिलीस्तीनियों को इजरायल में रहने और काम करने का अधिकार तो है, पर उन्हें नागरिकता या पासपोर्ट की सुविधा नहीं है. वे सिर्फ स्थानीय चुनावों में मतदान कर सकते हैं, राष्ट्रीय चुनावों में नहीं. उन्हें एक परमिट दिया जाता है. विभिन्न नियमों के उल्लंघन के आरोप में 1967 से अब तक 14 हजार से अधिक परमिट खारिज किये जा चुके हैं. उन्हें सामाजिक योजनाओं का फायदा दिया जाता है. गाजा और वेस्ट बैंक के नागरिक इजरायली सेना द्वारा जारी परमिट के साथ इजरायल में प्रवेश या काम कर सकते हैं. इस बार कुछ पूर्वी जेरूसलम के कुछ फिलीस्तीनी समूह चुनाव मैदान में आ सकते हैं. उनका मानना है कि इस हिस्से के हितों के लिए ऐसा करना जरूरी है.

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पूर्वी जेरूसलम के निवासियों को रिझाने के लिए इजरायल ने एक नयी पहल की है. सरकार ने इस हिस्से के स्कूलों की बेहतरी के लिए ‘क्रांतिकारी’ कदम उठाने की घोषणा हुई है जिसके तहत पांच सालों में 550 मिलियन डॉलर खर्च करने की योजना है. इजरायली अखबार ने सरकार विरोधी इर अमीम संगठन को उद्धृत करते हुए लिखा है कि यह निवेश स्वागतयोग्य तो है, पर इस बजट का करीब 43 फीसदी ‘इजरायलीकरण’ पर खर्च किया जाना है, जो कि अनुचित है. इस इलाके के स्कूलों को अन्य बुनियादी सुविधाओं के साथ पांच दशकों से इजरायली सरकारों की उपेक्षा का शिकार होना पड़ा है. फिलीस्तीनियों ने इन घोषणाओं को ‘इजरायलीकरण’ की संज्ञा दी है. उन्हें आशंका है कि इसी बहाने इजरायल पाठ्यक्रमों में फेर-बदल कर बच्चों के दिमाग पर असर डालने की कवायद करेगा. उनका यह भी कहना है कि स्कूलों में कक्षाओं की भारी कमी को दूर करने की कोई बात इन घोषणाओं में नहीं है. इजरायल ने अदालत में खुद माना है कि दो हजार से अधिक कक्षाओं की तत्काल दरकार है. साल 1967 में पूर्वी जेरूसलम को जीतने के दो साल बाद इजरायल ने अपना पाठ्यक्रम थोपने की कोशिश की थी, पर फिलीस्तीनियों के लंबे विरोध के बाद उसे अपना फैसला बदलना पड़ा था. उस समय जॉर्डन का पाठयक्रम चलता था. बाद में जब फिलीस्तीनी अथॉरिटी की स्थापना हुई, तो इसने अपना पाठयक्रम बनाया. हालांकि धीरे-धीरे कई बच्चे मैट्रिक में इजरायली सिस्टम से परीक्षा देने लगे हैं, पर पिछले साल भी 93 फीसदी ने फिलीस्तीनी सिस्टम से परीक्षा दिया था.

कब्जे के बाद जब इजरायली पाठ्यक्रम थोपने के विरुद्ध आंदोलन चला था, उसका एक नतीजा निजी स्कूलों की तादाद बढ़ना भी था. आज सार्वजनिक स्कूलों में सिर्फ 40 फीसदी बच्चे ही हैं. इस इलाके के करीब 20 हजार बच्चे ऐसे हैं, जो किसी भी स्कूल से संबद्ध नहीं हैं. यह कहना मुश्किल है कि इनमें से कुछ या कई पढ़ाई कर रहे हैं या नहीं. शहर में शिक्षा के प्रसार के लिए जिम्मेदार अधिकारी ने इजरायली सरकार से मांग की है कि जेरूसलम के हिब्रू विश्वविद्यालय में पूर्वी हिस्से के छात्रों की संख्या बढ़ाने के प्रयास किये जाने चाहिए. एक मुश्किल और इस योजना के साथ है कि इसने इस तथ्य में सुधार की कोई बात नहीं की है कि पूर्वी जेरूसलम के सिर्फ 2.6 फीसदी भाग में ही सार्वजनिक भवन और स्कूल बनाने की अनुमति है. अभिभावकों की एक शिकायत यह भी है कि पूर्वी जेरूसलम के स्कूलों के ज्यादातर प्रधानाध्यापक इजरायल के दूसरे इलाकों के अरबी हैं, जो स्थानीय संवेदनशीलता को ठीक से नहीं समझते.

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एक अन्य खास वाकया यह है कि जेरूसलम की स्थानीय अदालत ने नगरपालिका की जमीन पर एक स्वयंसेवी संस्था द्वारा चलायी जा रही बार्बर आर्ट गैलरी को बंद करने का आदेश दिया है. इस आदेश में यह माना गया है कि बंद करने नगरपालिका की मांग के कारण राजनीतिक हैं. पिछले साल इस गैलरी ने इजरायली सेना के सेवानिवृत अधिकारियों के समूह ‘ब्रेकिंग द साइलेंस’ के प्रमुख को व्याख्यान देने के लिए बुलाया था. यह समूह इजरायल के अनधिकृत कब्जे का विरोध करता है. उसी समय से घोर दक्षिणपंथी संस्कृति मंत्री मिरी रेगेव जेरूसलम नगरपालिका पर इस गैलरी को बंद करने का दबाव डाल रही थीं. जेरूसलम के मेयर निर बरकत ने अदालती फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि इजरायली सेना और इजरायली राज्य के अपमान की हम अपनी जगह का इस्तेमाल नहीं होने देंगे.


पहली किस्‍त: टाइटस की घेराबंदी

दूसरी किस्‍त: पवित्र मंदिर में आग 

तीसरी क़िस्त: और इस तरह से जेरूसलम खत्‍म हुआ…

चौथी किस्‍त: जब देवता ने मंदिर बनने का इंतजार किया

पांचवीं किस्त: जेरूसलम ‘कोलोनिया इलिया कैपिटोलिना’ और जूडिया ‘पैलेस्टाइन’ बना

छठवीं किस्त: जब एक फैसले ने बदल दी इतिहास की धारा 

सातवीं किस्त: हेलेना को मिला ईसा का सलीब 

आठवीं किस्त: ईसाई वर्चस्व और यहूदी विद्रोह  

नौवीं किस्त: बनने लगा यहूदी मंदिर, ईश्वर की दुहाई देते ईसाई

दसवीं किस्त: जेरूसलम में इतिहास का लगातार दोहराव त्रासदी या प्रहसन नहीं है

ग्यारहवीं किस्तकर्मकाण्डों के आवरण में ईसाइयत

बारहवीं किस्‍त: क्‍या ऑगस्‍टा यूडोकिया बेवफा थी!

तेरहवीं किस्त: जेरूसलम में रोमनों के आखिरी दिन

चौदहवीं किस्त: जेरूसलम में फारस का फितना 

पंद्रहवीं क़िस्त: जेरूसलम पर अतीत का अंतहीन साया 

सोलहवीं क़िस्त: जेरूसलम फिर रोमनों के हाथ में 

सत्रहवीं क़िस्त: गाज़ा में फिलिस्तीनियों की 37 लाशों पर जेरूसलम के अमेरिकी दूतावास का उद्घाटन!

अठारहवीं क़िस्त: आज का जेरूसलम: कुछ ज़रूरी तथ्य एवं आंकड़े 

उन्नीसवीं क़िस्त: इस्लाम में जेरूसलम: गाजा में इस्लाम 

बीसवीं क़िस्त: जेरूसलम में खलीफ़ा उम्र 

इक्कीसवीं क़िस्त: टेम्पल माउंट पहुंचा इस्लाम

बाइसवीं क़िस्त: जेरुसलम में सामी पंथों की सहिष्णुता 

तेईसवीं क़िस्त: टेम्पल माउंट पर सुनहरा गुम्बद 

चौबीसवीं क़िस्त: तीसरे मंदिर का यहूदी सपना

पचीसवीं किस्‍त: सुनहरे गुंबद की इमारत

छब्‍बीसवीं किस्‍त: टेंपल माउंट से यहूदी फिर बाहर

सत्‍ताईसवीं किस्‍त: अब्‍बासी खुल्‍फा ने जेरूसलम से मुंह मोड़ा

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