हज़ार साल पुराना है उनका गुस्सा/ हज़ार साल पुरानी है उनकी नफ़रत/मैं तो सिर्फ़/उनके बिखरे हुए शब्दों को/लय और तुक के साथ लौटा रहा हूँ/ मगर तुम्हें डर है कि/आग भड़का रहा हूँ!
.गोरख पांडेय
भारतीय संसद में 30 जुलाई 2024 को जो कुछ हुआ वह भारतीय इतिहास का एक अहम मोड़ साबित हो सकता है।अनुराग ठाकुर ने जिस तरह से नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी की जाति पर सवाल उठाया, वह दक्षिण अफ़्रीका में डरबन के पास महात्मा गाँधी को ट्रेन से उतार फेंके जाने से कम नहीं है जो अश्वेत होकर पहले दर्जे में यात्रा की हिमाक़त कर रहे थे। राहुल गाँधी भी ऐसी ही हिमाक़त देश में जाति जनगणना की माँग उठाकर कर रहे हैं जिसने बीजेपी की छतरी के नीचे इकट्ठा हो चुकी सवर्ण-सामंती शक्तियों को बेचैन कर दिया है।
अनुराग ठाकुर की सामंती भंगिमा में हज़ारों साल से जड़ जमाये बैठे मनुवाद की क्रोधाग्नि धधक रही थी जो देश के संसाधनों पर क़ब्ज़ा रखने वालों के सोशल ऑडिट का सवाल उठाने वाले राहुल गाँधी को ख़ाक कर देना चाहती है।लेकिन इस भंगिमा ने देश के उन करोड़ों दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को चौंका दिया है जो सदियों से जाति अपमान का दंश सहते आये हैं। ‘कौन जात हो?’ या ‘नीच जात ऐसे ही होते हैं!’ जैसे जुमलों के बीच बचपन, जवानी और बुढ़ापा काटने वाले समाज के नौजवानों में ख़ासतौर पर सदियों से जारी अपमान का दंश अब घनीभूत हो चला है। इसलिए राहुल गाँधी को दी गयी इस ‘गाली’(“अपनी जात का पता नहीं और जाति जनगणा की माँग कर रहे हैं!”) ने वंचित जातियों और राहुल गाँधी के बीच एक नया रिश्ता जोड़ दिया है। यह रिश्ता दर्द, उपेक्षा और अपमान का है। महात्मा गाँधी ने उत्पीड़ित जनता को इकट्ठा करके जिस तरह अंग्रेज़ी साम्राज्य का सूरज डुबोया था, कुछ उसी तरह देश की सबसे बड़ी पंचायत में हुए राहुल गाँधी के अपमान की इस घटना में भी एक ऐसी आग छिपी है जो बीजेपी के चक्रव्यूह को भस्म कर सकती है।
लेकिन राहुल गाँधी पर यह हमला महज़ अनुराग ठाकुर के दिमाग़ की उपज नहीं है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अनुराग ठाकुर के बयान को समर्थन करना बताता है कि इसकी पटकथा कहाँ लिखी गयी थी। नरेंद्र मोदी ने सोशल प्लेटफ़ार्म एक्स पर टीप लिखकर अनुराग ठाकुर के भाषण की तारीफ़ की उससे साफ़ हो गया है कि राहुल गाँधी को फँसाने के लिए पूरा चक्रव्यूह रचा गया है।
राहुल गाँधी कौन हैं, इसे किसी को बताने की ज़रूरत नहीं है। ये उस परिवार से हैं जिसके सभी सदस्य स्वतंत्रता संग्राम में बरसों बरस जेल में रहे और आज़ादी के बाद भी इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी ने शहादत देकर क़ुर्बानी की नयी इबारत रच दी। हाँ, इस परिवार ने जाति और धर्म की सीमाओं को मनुष्यता की राह की बाधा कभी नहीं बनने दिया। राहुल गाँधी का ‘नफ़रत के बाज़ार में मुहब्बत की दुकान खोलने का अभियान’ भी उसी परंपरा की कड़ी है।
राहुल गाँधी का गुनाह ये है कि वे देश में कॉरपोरेट एकाधिकार के साथ-साथ सवर्ण एकाधिकार को भी चुनौती दे रहे हैं। राजनीतिक भागीदारी के साथ-साथ आर्थिक और सामाजिक न्याय भी उनका एजेंडा है इसी वजह से जाति जनगणना को उन्होंने मौजूदा राजनीतिक विमर्श का केंद्रीय सवाल बना दिया है। बीजेपी का आरोप है कि यह समाज को जातियों में छिन्न-भिन्न करने की साज़िश है लेकिन देश के दलित, पिछड़े और आदिवासी समाज को कोई संदेह नहीं कि इसका मक़सद भारत का सोशल ऑडिट करना है। यह पता लगाना है कि देश के संसाधनों पर कौन सी सामाजिक शक्तियाँ क़ाबिज़ हैं। जाति जनगणना महज़ गिनती नहीं है, बल्कि इसके तहत विभिन्न जाति समूहों की आर्थिक और सामाजिक हैसियत से जुड़े आँकड़ों को जुटाया जायेगा। बिहार में हुई जाति जनगणना के नतीजों ने आरक्षण बढ़ाने का आधार तैयार किया था। राहुल गाँधी इसी को राष्ट्रीय स्तर पर करना चाहते हैं। उन्होंने नारा भी दिया था-जितनी आबादी, उतना हक़!
राहुल गाँधी की इस मुहिम ने सवर्ण वर्चस्व के वर्क में लिपटे विराट हिंदू एकता के आरएसएस-बीजेपी के ख़्वाब में ख़लल डाल दिया है।ऐसे में पीएम मोदी ने तय किया है कि जाति जनगणना की मुहिम का नेतृत्व करने की राहुल गाँधी की ‘पात्रता’ पर सवाल उठाया जाये। उनकी जाति का सवाल उठाया जाये और इसके बहाने नेहरू-गाँधी परिवार को निशाना बनाकर पूरी बहस को पटरी से उतार दिया जाए।
बहरहाल, राहुल गाँधी का रुख़ बताता है कि वे इस साज़िश को अच्छी तरह समझते हैं इसीलिए राहुल गाँधी ने अपने अपमान को मुद्दा नहीं बनाया, उल्टा कहा कि वे दलित,पिछड़ी आदिवासी जातियों के सम्मान के लिए ख़ुशी से ऐसी गालियाँ और अपमान सह लेंगे। लेकिन अखिलेश यादव ने उसी वक़्त लोकसभा में खड़े होकर अनुराग ठाकुर को चुनौती दी कि सार्वजनिक रूप से कोई किसी की जाति कैसे पूछ सकता है? अखिलेश यादव के इस अंदाज़ ने बताया कि यूपी में बीजेपी के ख़्वाबों की चकनाचूर करने वाली सपा-कांग्रेस के गठबंधन के पीछे एक वैचारिक आधार भी विकसित हुआ है। राष्ट्रीय जनता दल की ओर से भी अनुराग ठाकुर के आपत्तिजनक बयान को जिस तरह ओबीसी समाज का अपमान बताते हुए एक्स पर पोस्ट लिखी गयी, वह बताता है कि जाति जनगणना के मुद्दे पर देशव्यापी राजनीतिक गोलबंदी हो रही है।
वैसे अनुराग ठाकुर को आगे करके फेंका गया पीएम मोदी का यह पाँसा बहुत हल्का है जो बताता है कि किसी उत्पीड़न का सवाल उठाने के लिए उत्पीड़ित समुदाय का होना ज़रूरी है। लोग भूल जाते हैं कि ‘सौ में पायें पिछड़े साठ’ का नारा देने वाले डॉ.लोहिया पिछड़ी जाति के नहीं थे। या समता की जोत जगाने वाले गौतम बुद्ध स्वयं असमानता का शिकार नहीं हुए थे। सवाल ये भी पूछा जाना चाहिए कि क्या जिनकी जाति का पता है, वे जाति जनगणना की माँग कर सकते हैं? आख़िर पिछड़ी जाति का होने की दुहाई देने वाले पीएम मोदी जाति जनगणना के सवाल से भड़कते क्यों हैं?
बीजेपी के रुख़ से साफ़ है कि बिहार में जाति जनगणा के फ़ैसले का श्रेय लेने की उसकी कोशिश ‘फ़िसल गये तो हर गंगा’ जैसी ही थी। आज जब राहुल गाँधी देश का एक्स-रे बताते हुए जाति का जनगणना कराने को केंद्रीय माँग बता रहे हैं तो बीजेपी को रास्ता नहीं सूझ रहा है। राहुल गाँधी का मोची के साथ बैठकर चप्पल सिलना या किसी बढ़ई से फ़र्नीचर बनाना सीखना या कुलियों के बीच बैठकर उनका सुख-दुख समझना, खेत में जाकर ट्रैक्टर चलाना और किसी तंग दुकान में बैठे मैकेनिक के साथ मोटरसाइकिल की मरम्मत करना बताता है कि जाति जनगणना उनके लिए महज़ जुमला नहीं है। उनकी प्रतिबद्धता सामाजिक न्याय की लड़ाई को एक नये धरातल पर ले जायेगी जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक अधूरा सपना है।
लेखक मीडिया विजिल के संस्थापक संपादक हैं। यह लेख सत्य हिंदी में छप चुका है।