अब यह चर्चा आम है कि देश का संविधान ख़तरे में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक सलाहकार विवेक देबरॉय ने इस सिलसिले में अख़बार में लेख भी लिखा है। उन्होंने साफ़ा कहा है कि इस संविधान को बदला जाना चाहिए। बीजेपी के तमाम सांसद भी ऐसी माँग समय-समय पर करते रहे हैं। इससे उन लोगों के कान ख़ड़े हो गये हैं जिन्हें संविधान ने पहली बार मनुष्य के रूप में बराबरी का दर्जा दिया। ख़ासतौर पर देश के दलित और आदिवासी समूह इसे लेकर चिंतित हैं। ऐसे में कांग्रेस के नेता और पूर्व सांसद डॉ.उदित राज की पहल पर दिल्ली के रामलीला मैदान में 5 नवंबर को संविधान बचाओ रैली आयोजित की जा रही है। यह रैली किसी पार्टी या संगठन के बैनर तले नहीं है, बल्कि यह रैली उन सबकी ओर से है जो संविधान पर ख़तरा महसूस कर रहे हैं.
डॉ.उदित राज कहते हैं, “अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ क्यों आन्दोलन हुआ? राजतंत्र क्यों आम जनता के लिए ठीक नही हैं? जवाब मिलेगा कि ये गुलामी है क्योंकि जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधियों के बनाए कानून से राज काज नही चल रहा है। संविधान को खोखला किया जा चुका है और अब तो पूरी तरह बदलने का खुला षड्यंत्र हो रहा है । जैसे चीन और रूस में एक पार्टी का शासन है, वैसा ही यहाँ भी करने का प्रायस जारी है। सच्चाई ये है कि जब तक ये संविधान जिंदा है तभी तक हम आज़ाद हैं। दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और स्त्रियों के संदर्भ में तो ये जीने- मरने का सवाल है। क्योंकि उन्हें मिला अधिकार, बराबरी और सम्मान इसी संविधान के ज़रिए मुमकिन हो पाया!”
डॉ.उदित राज कहते हैं कि गांधी जी, नेहरु जी , पटेल जी , मौलाना अब्दुल कलाम, सुभाष बोस जी एवं लाखों लोग इसलिए लड़ें कि देश किसी सम्राट की इच्छा से नहीं, जनता के बनाते संविधान से चले। इस 15 अगस्त को मोदी जी के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष, बिबेक देबरॉय ने एक लेख लिखकर ऐलान किया कि अब नए संविधान की जरुरत है। अब बात एक राष्ट्र एक चुनाव की हो रही है जो संसदीय लोकतंत्र को राष्ट्रपति प्रणाली में बदलने ली की ओर एक कदम है। इस प्रयास में दलित, पिछड़े, आदिवासी, अल्पसंख्यक एवं महिलाओं को हाशिये पर धकेला जाना तय है क्योंकि भारत का सारा प्रचार तंत्र, मीडिया और नेटवर्किंग ऊँची जातियों के कब्जे में है। आरएसएस पहले से ही कहता आ रहा है कि मुसलमानों और ईसाइयों को वोट देने का अधिकार नहीं होना चाहिए। अगर ये फिर सत्ता में आए तो यही करेंगे।
डॉ.उदित राज याद दिलाते हैं कि 12 दिसंबर 1949 को हिंदू महासभा और आरएसएस ने दिल्ली में संविधान और डॉ अंबेडकर का पुतला जलाया था। तिरंगा के स्थान पर भगवा झंडा की मांग थी। संघ प्रमुख गोलवलकर ने यहां तक कहा कि अगर आजादी मिलती है और उसमे दलित, पिछड़े एवं अल्पसंख्यक सत्ता का हिस्सा बनते हैं तो इससे अच्छा अंग्रेजों को गुलामी है। यह भी कहा कि संविधान को विभिन्न देशों से लेकर जोड़ा गया है। इसमें कुछ भी भारतीय नहीं है। दरअसल उनके लिए भारतीय संस्कृति का अर्थ ही उच्च जातियों का प्रभुत्व है। ऐसे में अगर बीजेपी फिर सत्ता में आयी तो खेती अडानी और बड़े पूँजपातियो के हवाले कर दी जाएगी। नए श्रम कानून लागू कर दिये जाये़गे जिससे मजदूर संगठन और कमजोर हो जायेंगे। प्रेस की आजादी खत्म हो जाएगी। महंगाई, बेरोजगारी, स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए कोई आवाज न उठा पाएगा। अमीर इतने अमीर हो जायेगें कि चंद सत्ता में बैठे पूंजीपतियों के गठजोड़ से देश चलेगा और गरीबी बेइंतेहा होगी। इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना अपराध होगा। तमाम मौलिक अधिकार छीन जायेंगे जैसे तमाम तानाशाही वाले देशों में है।
कांग्रेस नेता के मुताबिक अब समय आ गया है कि संविधान बचाने के लिए युद्ध छेड़ा जाये। इसके लिए तमाम कार्यक्रम लिए जा रहे हैं। ‘संविधान बचाओ यात्रा’ भी की जाएगी। यह अभियान किसी दल का नहीं है न, बल्कि सिविल सोसायटी के लोग इसका नेतृत्व कर रहे हैं। इसमें शामिल होने वाले किसी भी राजनैतिक दल से हो सकते हैं, लेकिन इस मंच से बात संविधान बचाने की ही होगी। इसके अतरिक्त मंहगाई, बेरोजगारी, किसानों की मांग, अल्पसंख्यकों पर हो राहे अत्याचार, सर्वधर्म समभाव जैसा मुद्दों पर लोगों का समर्थन हासिल करना भी इसका मक़सद है ताकि 5 नवंबर 2023 को दिल्ली की रामलीला मैदान में लाखो लोगों को इकट्ठा किया जा सके।
डॉ.उदित राज ने बताया कि वे खुद संविधान बचाओ यात्रा निकालेंगे और लोगों से रैली में शामिल होने की अपील करेंगे। 192 नॉर्थ एवेन्यू , एमपी फ्लैट्स, नई दिल्ली कार्यालय से इस अभियान का संचालन किया जा रहा है। जो लोग इस अभियान में भागीदारी करना चाहते हों, उनसे संपर्क कर सकते हैं।