प्रकाश के रे
वर्ष 610 में जब हेराक्लियस ने रोमन साम्राज्य की बागडोर संभाली थी, तब पूरब का ज्यादातर हिस्सा फारस के कब्जे में आ चुका था. जैसा कि पहले कहा जा चुका है, सासानी शहंशाह खुसरो द्वितीय ने पहले रोमनों से इराक को छीना और फिर सीरिया को. उसका सेनापति शहरबराज 602-628 तक पूरे मध्य-पूर्व में रोमनों से लड़ता रहा और उसने फारस के साम्राज्य को अफगानिस्तान से भूमध्य सागर तक फैला दिया. बैजेंटाइन साम्राज्य की राजधानी कुस्तुंतुनिया की चारदीवारी तक फारसी जा पहुंचे थे और उन्होंने हेराक्लियस को अपमानजनक संधि करने पर मजबूर कर दिया था. लेकिन इस समझौते ने रोमनों को फिर से उठ खड़ा होने का वक्त भी मुहैया करा दिया.
आर्मेनियाई मूल के हेराक्लियस के पिता अफ्रीका में रोमन गवर्नर थे और उन्होंने अपने बेटे के भीतर योद्धा के गुण विकसित करने के साथ उसे महत्वाकांक्षी भी बना दिया था. साल ६२२ में रोमन सेना ने एशिया माइनर में फारसियों के इलाकों पर हमले शुरू कर दिये और शहरबराज को पीछे हटना पड़ा. हालांकि उनकी राजधानी कुस्तुंतुनिया खतरे से बाहर नहीं था, पर फारसी इलाकों में घुसने का फायदा हेराक्लियस को मिलता रहा. अगले साल रोमनों ने खुसरो के महल पर हमला किया. इन युद्धों में हेराक्लियस ने समुद्री रास्ते का इस्तेमाल करने की जगह मैदानी और पहाड़ी इलाकों से आने-जाने की रणनीति अपनायी थी. वर्ष 625 में हेराक्लियस ने आर्मेनिया में ठिकाना बनाकर फारसी सेना की तीन टुकड़ियों को आपस में मिलने नहीं दिया और तीनों को बारी-बारी से हराया.
शाह खुसरो भी बाजी पलटने के बेताब था और उसने एक सेना इराक भेजी तथा शहरबराज को रोमन राजधानी की तरफ कूच करने का आदेश दिया. इसी बीच उसने हेराक्लियस को एक दिलचस्प चिट्ठी भेजी. उसने तंज करते हुए लिखा कि ‘तुम कहते हो कि तुम ईश्वर में आस्था रखते हो, फिर उसने सीजारिया, जेरूसलम और सिकंदरिया को मेरे हाथों से क्यों नहीं छीना? क्या मैं कुस्तुंतुनिया को भी तबाह न कर दूं? क्या मैंने तुम यूनानियों को बरबाद नहीं किया?’ हेराक्लियस ने एक टुकड़ी इराक की ओर रवाना किया, दूसरी टुकड़ी को राजधानी के बचाव के लिए भेजा और अपने नेतृत्व में उसने 40 हजार तुर्की घुड़सवारों के साथ तीसरी टुकड़ी बनायी. शहरबराज ने अवार कबीलों के लड़ाकों के साथ बोसफोरस नदी के दोनों तरफ से कुस्तुंतुनिया को घेर लिया था. बरसों से चला आ रहा रोमन-फारस युद्ध अपने निर्णायक चरण में आ पहुंचा था और स्थितियां फारस के पक्ष में थीं.
लेकिन घमंड से चूर फारसी शाह की हरकतों से उसके अमीर पहले से ही नाराज थे और अब उसने एक आत्मघाती हरकत कर डाली. उसने शहरबराज के मातहत को पत्र लिख कर आदेश दिया कि वह सेनापति को मार कर लड़ाई की कमान अपने हाथ में ले ले. यह चिट्ठी हेराक्लियस के हाथ लग गयी और उसने इसे शहरबराज को दिखाया. जिस शहरबराज ने फारस का असीम विस्तार किया था, अब उसके सामने अलग राह लेने के अलावा कोई विकल्प न था. उसने रोमनों से समझौता कर घेराबंदी उठा ली और मध्य-पूर्व लौट आया जहां उसने सीरिया, फिलीस्तीन और मिस्र पर अपना अधिकार कर लिया. उधर हेराक्लियस की सेनाएं फारस की ओर कूच कर रही थीं. शाह और उसके बेटे को मौत मिली. कहा जाता है कि उसके दूसरे बेटे शीरूया के हाथों ही इन हत्याओं को अंजाम दिया गया था. बहरहाल, दोनों पक्षों में अब सुलह हो गयी. शहरबराज ने हेराक्लियस की भतीजी से शादी की और उसे पवित्र सलीब का पता भी दिया जो जेरूसलम से लूटा गया था. उस सलीब और अन्य कुछ प्रतीकों को खुसरो ने अपनी ईसाई पत्नी को उपहार में दे दिया था. नये शाह को मारकर शहरबराज शाह बन बैठा, पर वह भी अधिक न जी सका और मारा गया. महान सासानी शाही वंश के ये आखिरी दिन थे.
फारस से युद्ध खत्म होने के अगले साल यानी 629 में हेराक्लियस ने अपनी पत्नी के साथ कुस्तुंतुनिया से पवित्र सलीब लेकर जेरूसलम की यात्रा शुरू की. मध्यकालीन यूरोपीय ईसाइयों की नजर में हेराक्लियस पहला क्रुसेडर- धर्मयोद्धा- था. उसने टाइबेरियास के विद्रोही यहूदियों को माफी दी. उस शहर में वह एक धनी यहूदी बेंजामिन का अतिथि बना और उसी के साथ जेरूसलम आया. रास्ते में बेंजामिन ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था. रोमन शासक ने यहूदियों से वादा किया कि उनके खिलाफ बदले की कार्रवाई नहीं की जायेगी और उन्हें जेरूसलम में रहने का अधिकार मिलेगा.
हेराक्लियस जब 21 मार्च, 630 को जेरूसलम पहुंचा, तो उसकी उम्र 55 साल की हो चुकी थी और रोमन साम्राज्य को संगठित करने के लिए लड़ी गयी बेशुमार लड़ाइयों से वह थक चुका था. घोड़े पर सवार रोमन शासक प्रतिष्ठित सुनहरे दरवाजे तक पहुंचा और और वहां उसने नीचे उतर कर पवित्र सलीब को अपने हाथों में ले लिया. उस सलीब को उसे पैदल सेपुखर चर्च तक ले जाना था. कहा जाता है कि उसके पहुंचते ही दरवाजा दीवार में बदल गया. तब उसने शाही पोशाक उतारकर साधारण कपड़े पहने. अब वह दरवाजे से शहर के भीतर दाखिल हो सकता था. इस घटना के बारे में रोमन ईसाइयत में विभिन्न किंवदंतियां प्रचलित हैं और उन पर चित्र भी बनाये गये हैं. इस दरवाजे की कहानी भी अजीब है. इसे तीनों धर्म- यहूदी, ईसाई और इस्लाम- पवित्र मानते हैं. सुनहरा दरवाजा असल में दो दरवाजा है और यह सेपुखर चर्च में ईसा की कब्र के सामने है. ईसाइयों के लिए यह खास इसलिए है कि इससे होकर पवित्र सलीब वापस लाया गया था. रोमनों का मानना था कि यही वह दरवाजा है जिससे होकर ईसा जेरूसलम आये थे और यहीं उन्होंने मृत्यु के बाद चमत्कार दिखाये थे. हालांकि यह गलत समझ थी. अनेक जानकार मानते हैं कि दरवाजे को इस्लामी खलीफाओं के दौर में बनाया गया था. यहूदी इस दरवाजे को दया का दरवाजा मानते हैं.
यह भी कम दिलचस्प नहीं है कि कुछ इतिहासकार हेराक्लियस के लाये सलीब की असलियत पर भी सवाल उठाते हैं. फ्रांसीसी इतिहासकार कॉन्स्टेंटिन जुकरमैन का कहना है कि असली सलीब पहले ही गुम हो चुका था तथा रोमन सम्राट और फारसी सेनापति शहरबराज ने अपने सियासी फायदे के लिए सलीब वापसी का प्रसंग रचा था. बहरहाल, बात जेरूसलम की हो, तो सच, झूठ और मिथक सब साथ ही चलते हैं.
हालांकि हालिया लड़ाइयों ने सेपुखर चर्च और शहर को वीरान कर दिया था तथा उसका वैभव खत्म हो चुका था, पर रोमन साम्राज्य के फिर से उठ खड़ा होने और हेराक्लियस के हाथों पवित्र सलीब के वापस आने की घटनाओं ने ईसाई चेतना में उस कयामत की कल्पना को मजबूत बना दिया जिसके मुताबिक मसीहाई छवि के आखिरी शासक द्वारा ईसाइयत के दुश्मनों के खात्मे और फिर जीसस के हाथों में शासन सौंप देने की बात कही गयी है. फिर जीसस तब तक राज करेंगे, जब तक कि कयामत का दिन नहीं आ जाता और ईश्वर सबका आखिरी फैसला नहीं करता.
जेरूसलम पर फिर से काबिज कोने के बाद ईसाई अब यहूदियों से बदला लेना चाहते थे, पर हेराक्लियस इसके लिए तैयार नहीं हुआ. पर जब यहूदी संतों ने उसकी वादाखिलाफी का दोष अपने ऊपर लेते हुए उपवास किया तो रोमन सम्राट चिढ़ गया. यहूदियों पर फिर एक बार तबाही गुजरी. उन्हें शाहर से बेदखल कर दिया गया, बड़ी संख्या में यहूदी मारे गये और बाद में हेराक्लियस ने यहूदियों के जबरन धर्मांतरण का फरमान भी जारी कर दिया.
Muhammad-Letter-To-Heracliusइसी बीच अरब में इस्लाम का आगमन हो चुका था और अरबी टुकड़ियां रोमनों पर यत्र-तत्र हमले करने लगी थीं. पर यह रोमनों के लिए कोई खास चिंता की बात नहीं थी क्योंकि अरबी कबीले जमाने से रोमन काफिलों पर हमलावर होते थे. लेकिन अब हालात दूसरे थे. पैगंबर मोहम्मद की अगुवाई में अरबी एकजुट हो रहे थे और उन्होंने अपने विस्तार की संभावनाओं को तेजी से तलाशना शुरू कर दिया था. मक्का में इस्लाम और उसके पैगंबर ने इसरा और मेराज (621 ईस्वी) के जरिये जेरूसलम पर अपने आध्यात्मिक अधिकार की घोषणा पहले ही कर दी थी. लेकिन यह दिलचस्प है कि इस्लामी आख्यानों में हेराक्लियस को अच्छे शासक के रूप में दर्ज किया गया है. रोमन-सासानी युद्ध की चर्चा कुरान में आती है जिसमें कहा गया है कि वे हार गये हैं, पर फिर लौटेंगे. उसी प्रसंग में इस्लाम के भावी जीत का संकेत भी है. चूंकि इस्लाम के उदय के समय हेराक्लियस रोमन सम्राट था, इस कारण इस्लामी परंपरा में उसका उल्लेख विस्तार से हुआ है. कुछ इस्लामी लेखकों ने यह भी दावा किया है कि उसने मोहम्मद को पत्र लिखा था और इस्लाम को अपनाने की इच्छा जाहिर की थी. लेकिन इसमें संदेह है. कुछ विद्वानों का मत है कि हेराक्लियस या उसके दरबारियों ने अगर इस्लाम का नाम भी सुना होगा, तो उसे यहूदी धर्म के एक संप्रदाय के रूप में ही देखा होगा. बहरहाल, हेराक्लियस के शानदार जीवन का अंत 641 की 11 फरवरी को हो गया. उसकी अनेक संतानें विकलांग थीं और उसके दो बेटे राजा बने थे. पर अब रोमनों के पुराने दिन नहीं आने थे. फारस और रोमन साम्राज्य के बड़े हिस्से पर चांद-सितारा बने हरे झंडे का प्रभुत्व कायम होना था.
पहली किस्त: टाइटस की घेराबंदी
दूसरी किस्त: पवित्र मंदिर में आग
तीसरी क़िस्त: और इस तरह से जेरूसलम खत्म हुआ…
चौथी किस्त: जब देवता ने मंदिर बनने का इंतजार किया
पांचवीं किस्त: जेरूसलम ‘कोलोनिया इलिया कैपिटोलिना’ और जूडिया ‘पैलेस्टाइन’ बना
छठवीं किस्त: जब एक फैसले ने बदल दी इतिहास की धारा
सातवीं किस्त: हेलेना को मिला ईसा का सलीब
आठवीं किस्त: ईसाई वर्चस्व और यहूदी विद्रोह
नौवीं किस्त: बनने लगा यहूदी मंदिर, ईश्वर की दुहाई देते ईसाई
दसवीं किस्त: जेरूसलम में इतिहास का लगातार दोहराव त्रासदी या प्रहसन नहीं है
ग्यारहवीं किस्त: कर्मकाण्डों के आवरण में ईसाइयत
बारहवीं किस्त: क्या ऑगस्टा यूडोकिया बेवफा थी!
तेरहवीं किस्त: जेरूसलम में रोमनों के आखिरी दिन
चौदहवीं किस्त: जेरूसलम में फारस का फितना
पंद्रहवीं क़िस्त: जेरूसलम पर अतीत का अंतहीन साया
(जारी) Cover Photo : Rabiul Islam