जेरूसलम में फारस का फितना

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प्रकाश के रे 

साल 1950 की बात है. इज़रायल के जीते क्षेत्र में बिब्लिकल चिड़ियाघर था जिसमें रह रहे एक बाघ, एक शेर और दो भालुओं को खाना मुहैया करने के लिए संयुक्त राष्ट्र को मध्यस्थता करनी पड़ी थी. दस्तावेज़ बताते हैं कि आधिकारिक तौर पर दो बिंदुओं पर फ़ैसला करना था- 1. क्या इज़रायली शेर को खिलाने के लिए इज़रायली पैसे से अरबी गदहा ख़रीदना है, या 2. उस शेर के लिए इज़रायली गदहा जॉर्डन के हिस्सेवाले क्षेत्र से होकर लाया जाये. बहरहाल, जानवरों को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा में जॉर्डनवाले हिस्से से होकर पश्चिमी जेरूसलम ले जाया गया जो इज़रायल के पास था.

Khosrau Coin

 

सासानी शहंशाह खुसरो द्वितीय के राज (591-628) में फारसियों ने रोमन बैजेंटाइन साम्राज्य के बड़े हिस्से को अपने कब्जे में ले लिया था. पहले उन्होंने रोमनों से इराक को छीना और फिर सीरिया को. उसके तेजतर्रार सेनापति शहरबराज ने 602-628 तक पूरे मध्य-पूर्व में रोमनों से भीषण जंग लड़ी और फारस के साम्राज्य को अफगानिस्तान से भूमध्य सागर तक फैला दिया. यह लड़ाई बैजेंटाइन साम्राज्य की राजधानी कुस्तुंतुनिया की चारदीवारी तक जा पहुंची थी. इस लड़ाई में फारसियों को शुरू में सीरिया-पैलेस्टीना के यहूदियों का पूरा साथ मिला था जो रोमनों की ईसाइयत-परस्त नीतियों से त्रस्त थे. जब शहरबराज जेरूसलम की ओर बढ़ा, तो उसके साथ एंटिओक और टाइबेरियास के 20 हजार यहूदी भी थे. जेरूसलम की घेराबंदी को खत्म करने के लिए शहर के बुजुर्ग जकारियास ने समझौते की कोशिश की, पर उत्पाती युवाओं के गिरोह ने उसे अनसुना कर दिया. फारसी और यहूदी किसी तरह से शहर के भीतर दाखिल होने में कामयाब रहे.

जेरूसलम जीतने के बाद शहरबराज ने मिस्र का रुख किया, पर उसके जाते ही जेरूसलम में विद्रोह हो गया. सेनापति को तुरंत लौटना पड़ा. इस दफे शहर पर 21 दिन की घेराबंदी रही और मई, 614 के शुरू में फारसी फिर जेरूसलम में घुसने में कामयाब रहे. पर, इस बार वे बेहद आक्रामक थे और शहर में दाखिल होते ही ईसाइयों पर उनका कहर टूट पड़ा. इन घटनाओं के गवाह रहे एक साधु स्ट्राटेगोस ने लिखा है कि फारसियों का गुस्सा जंगली जानवरों की तरह था और वे पागल कुत्तों की तरह चर्च में शरण लिये लोगों का संहार कर रहे थे. तीन दिनों तक चले कत्लेआम में हजारों ईसाई मारे गये. बुजुर्ग जकारियास और 37 हजार ईसाइयों को पकड़ कर फारस भेजा गया. तमाम चर्चों को आग के हवाले कर दिया गया. ईसा मसीह के सलीब और उनसे जुड़ी अन्य चीजों को विभिन्न पवित्र प्रतीकों को खुसरो के पास भेज दिया गया जिन्हें उसने अपनी ईसाई रानी शीरीन को तोहफे में दे दिया. शहर को पूरी तरह बर्बाद करने के बाद शहरबराज ने जेरूसलम को यहूदियों को सुपुर्द कर दिया. टाइटस की तबाही के करीब छह सदी बाद इस पवित्र शहर पर एक बार फिर यहूदी काबिज हुए.

Shahrbaraz Coin

अब बदले की बारी यहूदियों की थी, जो कुछ हफ्ते पहले तक ईसाइयों और रोमनों के निशाने पर थे. उस पर चर्चा करने से पहले सासानी वंश के आखिरी बड़े शाह खुसरो के बारे में कुछ बातें कर लें. उसके दादा खुसरो प्रथम इस वंश के महानतम राजा थे और जस्टिनियन के दौर में एंटिओक को जला चुके थे. उसके पिता होरमिज्द ने 579 से 590 के बीच में राज किया था. बचपन में खुसरो दरबार के कुलीनों के हाथ में खेलता रहा और इस अनुभव ने उस पर भारी मनोवैज्ञानिक असर डाला था. वह बेहद आत्ममुग्ध था.

रोमन सम्राट मौरिस के दखल से उसे राजगद्दी मिली थी और मौरिस के कत्ल का बदला लेने की उसकी जिद रोमनों के पतन का कारण बनी थी. उसकी बीवी शीरीन ईसाई थी. बाद में ईरानी साहित्य में खुसरो की महानता और शीरीन से उसकी मोहब्बत बड़े-बड़े आख्यानों में बयान की गयी. उसका दरबार बहुत भव्य होता था. इराक में बने उसके महल का दरबारे आम दुनिया का सबसे बड़ा कक्ष हुआ करता था. उसका झंडा 130 फीट लंबा और 20 फीट चौड़ा था. एक हजार वर्गफीट के कालीन पर वह दरबार लगाता था जिस पर एक शानदार बागीचा बुना हुआ था. वह अपने काले घोड़े- नीमशब- पर सोने और जवाहरात जड़े पोशाक में बैठता था. इस्लामिक प्रसार से पहले वह फारस का सबसे महान राजा था और उसका पतन रोमन शासक हेराक्लियस के हाथों हुआ और उसकी हत्या उसके परिवार के सदस्यों ने ही कर दी थी.

Khosrau and Shirin

शहरबराज ने जेरूसलम को नेहेमिया नामक यहूदी सरदार के हाथों सौंप दिया था. ईसाई स्रोतों की मानें, तो उसने ईसाइयों को धर्म बदलने या मौत में से चुनाव करने का विकल्प दिया. इस चक्कर में एक बार फिर बड़ी संख्या में ईसाई मारे गये. टेंपल माउंट फिर गुलजार हो रहा था और यहूदी अब वहां आजादी से बलि देने समेत विभिन्न कर्मकांड करने लगे थे. उस पूरे इलाके में सिर्फ एक शहर -टाइर- बचा था, जिस पर फारसियों का कब्जा न था. उस पर दखल के लिए नेहेमिया को भेजा गया, पर वह सफल न हो सका. इसी बीच फारस को भी समझ में आने लगा था कि यहूदियों की तुलना में ईसाई कहीं अधिक उपयोगी हैं क्योंकि उनकी आबादी बहुत ज्यादा थी. शहरबराज ने 617 में नेहेमिया समेत यहूदियों को जेरूसलम से खदेड़ दिया और शहर की कमान फिर ईसाइयों को दे दी. नेहेमिया ने जब विरोध किया, तो उसे मौत की सजा दी गयी.

इन तीन सालों में जेरूसलम के चर्च खंडहरों में तब्दील हो चुके थे और रोमन दौर के सौंदर्य को फिर से हासिल कर पाना अब संभव न था. अब तक हमारी दास्तान में यहूदियों को जेरूसलम पाने के तीन मौके आये, पर हर बार शहर उनके हाथ से जाता रहा. इस हिजरत के करीब चौदह सौ साल बाद ही जेरूसलम पर उनका कब्जा होना था. उधर रोमनों की ताकत और आकांक्षा हेराक्लियस की अगुवाई में हिलोरें मारने लगी थीं तथा फारस का सासानी साम्राज्य को जल्दी ही इतिहास में दफन हो जाना था. उधर अरब के रेगिस्तानों से एक नये धर्म की पताका बहुत तेजी से इस खित्ते पर लहराने को निकलने वाली थी.

पहली किस्‍त: टाइटस की घेराबंदी

दूसरी किस्‍त: पवित्र मंदिर में आग 

तीसरी क़िस्त: और इस तरह से जेरूसलम खत्‍म हुआ…

चौथी किस्‍त: जब देवता ने मंदिर बनने का इंतजार किया

पांचवीं किस्त: जेरूसलम ‘कोलोनिया इलिया कैपिटोलिना’ और जूडिया ‘पैलेस्टाइन’ बना

छठवीं किस्त: जब एक फैसले ने बदल दी इतिहास की धारा 

सातवीं किस्त: हेलेना को मिला ईसा का सलीब 

आठवीं किस्त: ईसाई वर्चस्व और यहूदी विद्रोह  

नौवीं किस्त: बनने लगा यहूदी मंदिर, ईश्वर की दुहाई देते ईसाई

दसवीं किस्त: जेरूसलम में इतिहास का लगातार दोहराव त्रासदी या प्रहसन नहीं है

ग्यारहवीं किस्तकर्मकाण्डों के आवरण में ईसाइयत

बारहवीं किस्‍त: क्‍या ऑगस्‍टा यूडोकिया बेवफा थी!

तेरहवीं किस्त: जेरूसलम में रोमनों के आखिरी दिन



(जारी)                                                                                                                Cover Photo : Rabiul Islam