डर लग रहा है, दूध का दूध और पानी का पानी ना जाये। देशभक्त देशभक्ति के इम्तिहान में फेल ना हो जायें। वाराणसी के ही नहीं देशभर के राष्ट्रवादियों की परीक्षा है। जिनका वोट वाराणसी में नहीं हैं उन्हें फौजी का समर्थन करने के लिए मां गंगा मइया बुला रही हैं। रोड शो में फूल बरसाने वालों को भी मां आवाज़ दे रही हैं। किस्म-किस्म के इंटरव्यू करने वाले राष्ट्रवादी चैनलों के लिए गंगा मइया का बुलावा आया है।
कुछ भी हो, सेना पर सियासत के आरोप सहने वाली भाजपा के करिश्माई नेता नरेंद मोदी जीत जायेंगे और सेना का प्रतीक सैनिक तेज बहादुर हार जायेंगे। ये अनुमान सही हुआ तो मान लीजिएगा कि राष्ट्रवाद का पर्याय सेना को लेकर जनता के मन में जज्बात नहीं उमड़ते बल्कि राष्ट्रभक्ति को सियासत के बाजार में भुनाने वाली राजनीति लोगों को ज़्यादा प्रभावित करती है। सेना का जनसमर्थन नहीं है बल्कि जनाधार तो सेना के शौर्य को बेचने वाले नेताओं का होता है। शायद ये जनाधार अंधा होता है!
वाराणसी लोकसभा सीट राष्ट्र भक्तों की परीक्षा लेगी। सैनिकों के मान-सम्मान और उनके प्रति आदर-विश्वास की भावना जग जाहिर हो जायेगी। वाराणसी के चुनाव के मायने ही बदल गये हैं। यहां का चुनाव सिर्फ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्सेज बर्खास्त सैनिक तेज बहादुर नहीं है। देश की हिफाजत के लिए सीने पर गोलियां खाने वाले सैनिकों के हक़ की लड़ाई है। घर-परिवार को छोड़ कर सरहदों के बियाबानों, वीरानों, तपती धूप में जलती रेत पर दिनो-रात खड़े होने वालों के अधिकारों की लड़ाई है। देश की हिफाज़त के लिए माइनस ज़ीरो डिग्री में बर्फ में धंस कर जान गंवाने वाले देश के सपूतों के सम्मान की लड़ाई है।
ये लड़ाई शहीद जवानों की बेवाओं की सूनी मांग के दर्द के अहसास की है। अपनी ही सरकार द्वारा अपने ही सैनिक को प्रताड़ित किये जाने के खिलाफ आवाज उठाने की लड़ाई है। सेना के हक़ को भ्रष्टाचार की बली चढ़ा देने की व्यवस्था के विरुद्ध युद्ध है।
फौजी पिता तेज बहादुर को बर्खास्त/प्रताड़ित किये जाने की परेशानियों और ग़म मे मर जाने वाले 22 वर्षीय पुत्र को ये सच्ची श्रद्धांजलि है।
हो सकता है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने नरेन्द्र मोदी को शिकस्त देने की मंशा से एक पीड़ित/बर्खास्त सैनिक को वाराणसी से टिकट देकर सेना पर सियासत का ही कार्ड खेला हो। लेकिन हमें तमाम सियासतों से दूर हटकर एक सैनिक का समर्थन कर सेना के प्रति अपना जज़्बा तो दिखाना ही पड़ेगा। भले ही सैनिक तेज बहादुर देश के सबसे लोकप्रिय नेता नरेंद्र मोदी से हार जायें, लेकिन इस फौजी को बढ़िया नाचने वाले निहरवा, रवि किशन, हेमामालिनी, सनी दयाल और उर्मिला मातोंडकर से तो ज्यादा वोट मिलना ही चाहिए।
जनता ही नहीं कांग्रेस की भी परीक्षा है। उत्तर प्रदेश में मजबूती से लड़ रहे सपा-बसपा गठबन्धन द्वारा तेज बहादुर को वाराणसी से टिकट दिये जाने के बाद कांग्रेस पर तेजी से दबाव बनाया जा रहा है। लोग मांग कर रहे हैं कि एक फौजी के सम्मान में कांग्रेस को वाराणसी की सीट छोड़ देना चाहिए है। तेज बहादुर का समर्थन कर देना चाहिए है। खुद कांग्रेसी कार्यकर्ता भी सोशल मीडिया के जरिए कांग्रेस पर दबाव बना रहे हैं। वही सशक्त सोशल मीडिया, जिसे हथियार बनाकर तेज बहादुर ने सेना के हक़ की लड़ाई की अलख जलायी थी।
ठीक ही होगा कि कांग्रेस एक सैनिक के खिलाफ अपना प्रत्याशी नहीं उतारे। उससे कहीं बेहतर ये होगा कि सेना से प्यार का जबरदस्त जज़्बा पैदा करने वाले राष्ट्रवादी चौकीदार नरेंद्र मोदी ही सैनिक तेज बहादुर के समर्थन में वाराणसी की सीट छोड़ दें और देश की किसी भी दूसरी सीट से चुनाव लड़ें।