सच को सामने आने से रोकने के लिए हर उपाय कर रही है सरकार!

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
ओप-एड Published On :


इतनी सुरक्षा की जरूरत क्यों है और ऐसे पर्दे क्यों चाहिए !

निर्भया पर बीबीसी की फिल्म बैन हुई थी तो एनडीटीवी ने स्क्रीन पर दीया जलाया था। उसके बाद जो हुआ उसके मद्देनजर अब जो आदेश है वह ताली बजाने वालों को सच बतायेगा!

मुझे लगता है कि अखबार और चैनल तो फिर भी ठीक हो जाएंगे, व्हाट्सऐप्प यूनिवर्सिटी वालों को संभालने की जरूरत है !

देश की मीडिया के बड़े हिस्से को विज्ञापनों से ललचा कर और दूसरी तरह से डराकर नियंत्रण में कर लेने के बाद सरकार यह नियम बनाना चाहती है कि प्रेस इंफार्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) की फैक्ट चेकिंग यूनिट जिस किसी भी खबर को फेक यानी फर्जी करार देगी उसे किसी भी ऑनलाइन मीडिया प्लेटफार्म पर पोस्ट नहीं किया जाएगा। पहले से पोस्ट हो तो हटाना होगा। 

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना टेक्नॉलाजी मंत्रालय ने अपने एक ड्राफ्ट (मसौदा) प्रस्ताव में कहा है कि फेसबुक, यूट्यूब और ट्वीटर समेत अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म और कोई भी ऑनलाइन वेबसाइट ऐसी कोई खबर न दे जिसे केंद्रीय एजेंसी ने फेक करार दिया है। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) ने इसका विरोध किया है और कहा है कि सरकार अकेले यह तय नहीं कर सकती है कि सोशल मीडिया पर चलने वाली कौन खबर गलत है और कौन सही।

इसके अलावा, मेरा मानना है कि अनजाने में चली गलत खबर को कोई भी हटा देगा, हटा देना चाहिए और नहीं हटाने पर उसके खिलाफ कार्रवाई का अधिकार सबको है। सरकार के साथ पीड़ित पक्ष को भी और वह सरकारी नियमों के अनुसार कार्रवाई की मांग कर सकता है, शिकायत भी कर सकता है। फिर भी तथ्य यह है कि आम आदमी को न्याय नहीं मिलता है और ऐसे कई उदाहरण दिए जा सकते हैं। ऐसे में जरूरत है कि आम आदमी को ऐसी खबरों से परेशान नहीं होना पड़े उसके उपाय किए जाएं पर वह नहीं हो रहा है उल्टे सरकार अपनी ताकत बढ़ाना चाहती है।

अभी के नियमों के अनुसार अगर कोई किसी के खिलाफ जानबूझकर गलत या आपत्तिजनक खबर चलाए तो उसके लिए न्याय पाना मुश्किल है लेकिन सरकार तो हमेशा हर तरह से शक्तिशाली है उसे और अधिकार क्यों चाहिए जबकि वह आम जनता के न्यूनतम अधिकार सुनिस्चित नहीं कर सकती है। इसके अलावा बार-बार आदतन गलती करना एक बार की गलती से अलग है। 

सरकारी मामलों में तो एक ही बार में कार्रवाई हो जाएगी और खबर हट जाएगी – सही हो या गलत। पीआईबी की रिपोर्ट सही हो या गलत। पीआईबी के अधिकारी सरकारी नियमों से सुरक्षित रहेंगे और गलती करके भी बच सकते हैं जबकि आम आदमी की शिकायत कोई सुनता नहीं है। बार-बार गलती करने वाले के लिए कुछ विशेष होना चाहिए सो अलग जरूरत है। 

ऐसी स्थिति में इंडियन एक्सप्रेस ने 20 जनवरी 2023 को पहले पन्ने पर छपी अपनी खबर से बताया था कि पीआईबी की जांच किन मामलों में गलत थी। अगर कानून बनने और मसौदा पास होने से पहले पीआईबी की यह हालत है तो आगे क्या होगा उसकी कल्पना की जा सकती है। फिलहाल पेश है इंडियन एक्सप्रेस की संबंधित खबर का अनुवाद। इंडियन एक्सप्रेस की खबर में पीआईबी की गलत जांच के जो उदाहरण हैं वो इस प्रकार हैं :

  • 19 जून 2020 को उत्तर प्रदेश स्पेशल टास्क फोर्स ने चीनी ऐप्प की सूची जारी की और अपने लोगों से कहा कि सुरक्षा कारणों से इन्हें डाउनलोड न किया जाए। पीआईबी की फैक्ट चेक यूनिट ने सोशल मीडिया पर इस आदेश की तस्वीर को फर्जी करार दिया लेकिन एक वरिष्ठ अधिकारी ने रिकार्ड पर इस बात की पुष्टि की कि एसटीएफ ने सूची जारी की है। 
  • 16 जुलाई 2020 पीआईबी यूनिट दिल्ली पुलिस के एक बयान पर भरोसा करते हुए इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर को भ्रम फैलाने वाला करार देती है। रिपोर्ट में पुलिस के आदेश का उल्लेख था और कहा गया था कि अखबार ने उत्तर पूर्व दिल्ली के दंगों की पुलिस जांच के दौरान जारी “भावना” का पालन नहीं किया था। 
  • 16 दिसंबर 2020 को पीआईबी यूनिट ने खुफिया ब्यूरो की एक नियुक्ति सूचना को फर्जी करार दिया। अगले दिन सूचना और प्रसारण मंत्रालय के एक विभाग ने पीआईबी के फैक्ट चेक को अशुद्ध कहकर रेड फ्लैग कर दिया। 
  • एक बार ऐसा भी हुआ कि खुफिया ब्यूरो के नोटिस के मामले में पीआईबी फैक्ट चेक यूनिट ने 16 दिसंबर 2020 को कहा कि ब्यूरो द्वारा जारी एक नियुक्ति सूचना भ्रम फैलाने वाली है और इसकी तस्वीर पर फेक का बैनर चिपका दिया। 
  • एक दिन बाद ही सूचना प्रसारण मंत्रालय के पबलिकेशन डिविजन ने पीआईबी के फैक्टचेक पर सुधार जारी किया और कहा कि नियुक्ति सूचना की तस्वीर सही थी। 

अगर सरकारी विभाग एक दूसरे के काम को फर्जी कहेंगे तो देश कैसे चलेगा और उससे बड़ा सवाल है कि इसकी जरूरत क्यों है। और इन सबसे अलग, तथ्य यह है कि क्षमता और योग्यता नहीं है पर सब कुछ नियंत्रण में चाहिए ताकि गुजरात का सच सामने न आ जाए। भले खुले आम दावा किया जा चुका है। इससे संबंधित दिलचस्प मामला यह है कि 21 जनवरी 2023 को द टेलीग्राफ  ने खबर छापकर बताया है कि बीबीसी ने अपनी डॉक्टूमेंट्री को भारत में नहीं दिखाने का फैसला किया है। इसके अनुसार बीबीसी ने अपनी डॉक्यूमेंट्री, इंडिया: द मोदी क्वेश्चन के पक्ष में खड़े होने के लिए अपने कठोर शोध और उच्चतम संपादकीय मानकों का हवाला दिया है, लेकिन कहा है कि “भारत में इसे दिखाने की कोई मौजूदा योजना नहीं है”। 

अखबार ने लिखा है, आमतौर पर दमनकारी शासन से जुड़ी चिंता हावी रहती है और बीबीसी अपने भारतीय कर्मचारियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित दिखाई दे रहा है और रिवाज से हटकर कह रहा है कि वे वृत्तचित्र बनाने में शामिल नहीं थे। अखबार ने आज मोदी पर बीसीसी की डॉक्यूमेंट्री का एक स्क्रीनशॉट छापा है। यह घोषणा का एक हिस्सा है इसमें कहा गया है: “भारत में 30 से अधिक लोगों ने अपनी सुरक्षा के डर के कारण इस श्रृंखला में भाग लेने से इनकार कर दिया।” 

अखबार की इस खबर के अनुसार गुरुवार को, नरेंद्र मोदी सरकार ने वृत्तचित्र के बारे में कहा था, यह एक औपनिवेशिक मानसिकता का खुलासा करने वाला प्रचार है। खबर के अनुसार इसमें 2002 के गुजरात दंगों का जिक्र था। फिल्म में दिखाए गए स्क्रीनशॉट के अनुसार भारत सरकार ने फिल्म में लगाए गए आरोपों पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। 

बात इतनी ही नहीं है, अब खबर है कि सरकार ने इसे बैन कर दिया है। यूट्यूब-ट्विटर को ब्लॉक करने का आदेश दिया गया है। इस वीडियो को लेकर करीब 50 ट्वीट किए गए हैं, उन्हें भी ब्लॉक कर दिया गया है। यह आदेश आईटी रूल्स 2021 की आपात शक्तियों के तहत दिया गया है। यहां मुझे निर्भया पर बीबीसी की फिल्म की याद आती है। उसे भी बैन कर दिया गया था और तब एनडीटीवी ने इसे दिखाने के लिए घोषित समय पर स्क्रीन को खाली छोड़ दिया था और एक दीया जलता रहा था। सरकार के समर्थक इससे हिल से गए थे पर सरकार है कि मानती नहीं। अब एनडीटीवी वो तो नहीं है जो था इसलिए देखिए आगे क्या होता है। निश्चित रूप से अच्छे दिन है। बुरे पर सरकार प्रतिबंध लगा देती है।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।