मौत के समंदर में हेलमेट की नाव …!

संजय वर्मा
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शहर के बीचोबीच जिस सड़क से गुजर कर रोज उसे दफ्तर जाना होता था, उस पर ट्रैफिक चलता नहीं रेंगता था। अपनी मोटरसाइकिल पर रुकते अटकते झुंझलाते उसने एक चौराहा पार किया ही था, कि अचानक उसकी नाक के सामने एक मोटा डंडा इतनी तेजी से आया कि अगर वह बाइक रोकने में एक पल की भी देरी करता तो उसकी नाक टूटना तय था। बाइक रुकते ही एक आदमी ने झपटकर उसकी बाइक की चाबी निकाल ली। एक पल को उसे लगा कि उसके साथ लूट हो रही है, फिर अचानक चाबी छीनने वाले के कपड़ों का रंग दिखा। वह समझ गया कि आज फिर सरकार को उसकी सुरक्षा की याद आई है।

शहर के चौराहों पर आए दिन रक्षाबंधन का यह त्यौहार मनता था। इधर कुछ दिनों से यह जल्दी-जल्दी होने लगा था। उसने चाबी छीनने वाले सिपाही की ओर देखा,वह अब रिलैक्स्ड नजर आ रहा था,उसका काम हो गया था। फुटबॉल या हॉकी जैसे गेम मे जैसे साथी खिलाड़ी को पास दिया जाता है उसी सच्ची टीम भावना से सिपाही ने उसे हेड साहब तक पहुंचा दिया। आज फिर उसका चालान बनना था क्योंकि उसने अपनी जान की सुरक्षा के लिए हेलमेट नहीं पहना था। सरकार को उसकी जान की चिंता थी और इस चिंता को जतलाने के लिए सरकार लोगों से दंड वसूलती थी। गाड़ी साइड में लगा कर वह अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हुए उसने सोचा सरकार उसे मरने से बचाने के लिए ही यह सब कुछ करती है इसलिए उसे अपमानित महसूस करने के बजाए खुश होना चाहिए। वह अपनी मौत के बारे में सोचने लगा।

उसके मोहल्ले के बिजली के ट्रांसफार्मर की डी.पी. का ढक्कन नहीं था। 440 वोल्ट की आग सीने में दबाए मौत खुले में पसरी थी। मोहल्ले में मौत के मैन्यू कार्ड में यह कोई अकेला विकल्प नहीं था। मौत का सामान हर और बिखरा था। अगर लोग फिर भी बच जाते थे तो इसलिए क्योंकि वो खतरो के खिलाडी नामक सीरियल में जाने का ख्वाब देखते थे और उसकी प्रैक्टिस करते थे। घरों के बहुत पास से हाईटेंशन लाइनें गुजरती थी,जो पतंग उड़ाते, छतों पर खेलते बच्चों को किसी मायावी राक्षसी की तरह अपनी ओर खींचने की कोशिश करती थी,और दो तीन बार कामयाब भी हो गई थी। ड्रेनेज लाइन के खुले मेनहोल बचकर दिखाओ तो जाने का खेल खेलते थे। उनसे बचने के चक्कर में अचानक गाड़ियां एक दूसरे में उलझ जाती थी। कहीं सड़क अचानक संकरी हो जाती थी। कहीं बीच सड़क पर कोई इमारत रास्ता रोके खड़ी होती थी।

सड़कों पर लगातार चलते काम की वजह से लोग टकराते फिसलते गिरते रहते थे। बसों के लिए एक खास रोड बनाने के लिए पिछले कुछ सालों में 30 -40 लोगों की बलि दी गई थी। एक चौराहा था जिस पर इंजीनियरों ने ऐसी कमाल की रोटरी बनाई थी कि जिसे पार करते एक ट्रक पलटकर सड़क किनारे खड़े एक आदमी पर गिर गया था। एक टूटी पुलिया थी ,जिसका टेंडर नहीं हो पा रहा था और इसलिए वह नाराज होकर कई जाने ले चुकी थी। कभी खबर आती थी कि पैसों की कमी से नया पुल नहीं बन पाया और पुराने संकरे पुल पर भगदड़ से कई लोग मर गए। शहर के पास ही एक घाट था ,जिस के इंजीनियर ने ठेकेदार का पैसा बचाने के लिए एक खतरनाक ढलान बनाई थी ,जो कई लोगों की जान ले चुकी थी। कभी अचानक कोई स्पीड ब्रेकर गड्ढा या पत्थर आ जाता थे जिससे कूदकर लोग अपने हाथ पैरों की कुर्बानियां देते थे ताकि शहर के ट्रामा सेंटरों का व्यापार चलता रहे। पर सरकार का मानना था कि मौत के इस विशाल समुद्र को एक छोटे से हेलमेट की नाव से पार किया जा सकता है,और यही वह लोगो को समझाने की कोशिश कर रही थी।

हेड साहब के चारों ओर भीड़ थी। ये लोग अपराधी थे। एक खास कानून ने इनसे अमनपसंद सीधे साधे शहरियों का दर्जा छीन कर अपराधियों की जमात में बैठा दिया था। यह लोग उस समाज का हिस्सा थे,जो ‘थाना कचहरी का हमने आज तक मुंह नहीं देखा’ ऐसा कह कर मिथ्या अभिमान करता था। अगर यह कानून ना होता तो इनमें से कई लोग शायद थाना कचहरी का मुंह देखे बगैर ही इस दुनिया से रुखसत हो जाते। इस तरह यह कानून नागरिकों की रक्षा के अलावा इन दो अलग अलग दुनिया के लोगों का आपस में परिचय करवाता था। हाथ में कागज और सिर पर हेलमेट दिखाने को लोग हेड साहब को घेरे खड़े थे।

उसने एक नजर भीड़ पर डाली। तरह तरह के लोग थे,जो नाना प्रकार से इस मामले को सुलझाने की तरकीब लगा रहे थे। एक पेंटर और उसका हेल्पर जल्दी छोड़े जाने के लिए रिरिया रहे थे। उन्हें आज एक बहुमंजिला इमारत की बारहवीं मंजिल से झूले पर लटककर पुताई करना थी। सेफ्टी बेल्ट, दुर्घटना बीमा आदि झंझटों के बदले मे ठेकेदार ने सुरक्षा के लिए उन्हें हनुमान जी का एक चित्र लॉकेट में पहना दिया था। वही लॉकेट उन्होंने हेड साहब को दिखाया, पर हेड साहब का कहना था उन्हें सड़क पर मोटरसाइकिल से गिरकर मरने से बचाने के लिए हेलमेट पहनाना उनका फर्ज है,अलबत्ता बारहवीं मंजिल से गिरने से बचाने का काम फिलहाल हनुमान जी पर ही रखना चाहिए। पुताई करने वाला कहता था ,साइट पर हेलमेट चोरी हो जाता है वह तीन हेलमेट अभी तक खरीद चुका है जिसकी रिपोर्ट थाने वाले नहीं लिखते।

शोर मचाने वालों में एक मजदूर भी था जिसे फैक्ट्री पहुंचने की जल्दी थी। आज उसके काम का पहला दिन था। उसे उस मजदूर की जगह रखा गया था जिसकी मौत पिछले हफ्ते गर्म सरिया पेट में घुसने से हो गई थी। लोहे की भट्टियों से निकलते सुर्ख सरियों को संभालने का खतरा सड़क पर मोटरसाइकिल से गिरने के खतरे के मुकाबले उसे टुच्चा लग रहा था। हाल ही में गांव से आया एक लड़का भी कतार में था। उसे एक प्राइवेट कोरियर कंपनी ने इस शर्त पर काम पर रखा था कि वह अपनी मोटरसाइकिल लेकर आएगा। बाप ने कर्ज लेकर मोटरसाइकिल दिला दी थी,पर लाइसेंस बनवाने के लिए एजेंट तीन हज़ार रुपया मांगता था ,जिस का इंतजाम पिताजी नहीं कर पाए थे। कोचिंग क्लास पढ़ने जा रहे दो बच्चे अंकल जी अंकल जी कहकर हेड साहब को मनाने की कोशिश कर रहे थे। मामले को निपटाने के लिए वह आज ही मिले जेब खर्च की कुर्बानी देने को तैयार थे पर पैसे के अलावा मामले को निपटाने के लिए जो निगोशिएशन स्किल्स चाहिए थी वह उन्हें कोचिंग क्लास में नहीं पढ़ाई गई थी।

हेड साहब के चारों ओर लगी भीड़ में ज्यादातर लोग गांव देहात से हाल ही में शहर आए लोग थे। इन सब के लिए कागजों की दुनिया नई थी। वे कागजों को बनवाना,संभालना इस्तेमाल करना नहीं सीख पाए थे। शायद वे कागजों से चिढ़ते थे,नफरत करते थे। इन्हीं कागजों में उनके बाप दादाओं के अंगूठे लगवा कर उनकी जमीने हथिया ली गई थी,और उन्हें बंधुआ बना लिया गया था। क्या कागजों से उनकी नफरत उसी सामूहिक स्मृति के वजह से थी? कुछ लोगों का कहना था उन्हें कागजों की इस दुनिया से राब्ता कायम करने के लिए कुछ समय दिया जाना चाहिए। पर सरकार का मानना था इन आलसी लोगों की लेटलतीफी की वजह से ही देश आगे नहीं बढ़ पा रहा है।

कुछ नाशुक्रे लोग सरकार की लोगों की रक्षा की चिंता पर शक करते थे। वह कहते थे सरकार सचमुच चाहती कि लोग लाइसेंस बनवाएं तो नगर निगम जिस तरह चौराहे चौराहे शिविर लगाकर प्रॉपर्टी टैक्स वसूल करती है वैसे ही शहर में कई जगहों पर आरटीओ लाइसेंस बनवाने की प्रक्रिया शुरू कर सकता था। या फिर पैसा वसूलने के बजाए लोगों को समझाइश देती। पर पुलिस का मानना था यह अंधविश्वास है। पुलिस रामायण पढ़ती थी जिसमें लिखा था ‘भय बिनु होय न प्रीत’। उनके बड़े अधिकारी और सरकार भी ऐसा ही मानते थे कि किसी न किसी किस्म से जनता के मन में सरकार और कानून का खौफ पैदा किया जाना चाहिए ।कभी पुलिस कुछ दिनों के लिए ढीली पड़ती तो अचानक कोई मंत्री, कोई अदालत फरमान जारी करते कि पुलिस चौराहों पर क्यों नहीं दिख रही। पुलिस को मजबूरन थाने छोड़कर चौराहों पर उतरना पड़ता। सड़कों पर गाड़ियां गुत्थमगुत्था होती,जाम लगते, पर ट्रैफिक संभालने से ज्यादा जरूरी काम हेलमेट के चालान बनाना होता। चोरियों की तफ्तीश रिपोर्ट थानों में धूल खाती …, हत्या की जगह का मौका मुआयना करने हेड साहब जब पहुंचते तब तक सीन ऑफ क्राइम खुद एक्सपायर हो चुका होता…, कोई बलात्कार पीड़िता थाने में बैठी दुआ कर रही होती कि उसके बदन पर खरोंचों के डिटेल्स मिटने से पहले हेड साहब उसे मेडिकल कराने ले जाएं पर हेड साहब उसी दौरान चौराहों पर इंश्योरेंस पॉलिसी की एक्सपायरी डेट चेक कर रहे होते थे!

कानून की किताब में बनाने वालों ने सैकड़ों कानून बनाए थे। पुलिस सबका पालन नहीं करवा सकती थी ,इसलिए कुछ कानून चुन लिए जाते थे जो सबको सूट करते थे। आला अफसर छोटे अफसरों को पुलिस का खजाना भरने का टारगेट देते। यह एक विचित्र और अजीब बात थी जिसमें पुलिस का काम अपराध रोकने के बजाय अपराध हो जाने देना और फिर उससे रुपया बनाना था। पुलिस को सरकारी खजाना भरने के अलावा कुछ और भी फायदे थे। लोग जब रोके जाते तो वे अपने इलाके के नेताओं को फोन लगाते। फिर पुलिस नेताजी पर एहसान जताते हुए उनके गुर्गो को छोड़ देती। इस तरह इलाके में शक्ति संतुलन कायम होता था।

उसने एक बार फिर हेड साहब की ओर देखा उन्होंने अभी-अभी उस कुरियर बॉय की एक हजार की रसीद काटी थी। यह रकम उसकी चार दिनों की तनख्वाह के बराबर थी। सरकार ने यह पैसा उसकी सुरक्षा की चिंता में लिया था इसलिए उसे खुश होना चाहिए था, पर न जाने क्यों वह लड़का उदास हो गया। लड़के की उदासी देख कर उसे याद आया, पिछले दिनों सरकार ने एक हैप्पीनेस मंत्रालय खोला था ,जिसका काम नागरिकों के खुश रहने की व्यवस्था करना था ।उसे लगा इस लड़के की उदासी के बारे में हैप्पीनेस मंत्रालय को कुछ करना चाहिए । मंत्रालय अभी ठीक से शुरू नहीं हुआ था। उसने राहत की सांस ली ,खुदा न करे वह मंत्रालय चालू होता तो अगले चौराहे पर उस लड़के की उदासी का भी एक चालान कट सकता था।

लड़के की उदासी से ध्यान हटाने के लिए वह सड़क की ओर देखने लगा। उसके दिमाग की तरह सड़क पर भी थोड़ी धुंध थी। पिछली रात धुंध की वजह से हाईवे पर कुछ एक्सीडेंट हुए थे।नागरिकों के जीवन में बहुत ज्यादा दखल देने का आरोप न लगे इसलिए इन मामलों में पुलिस हस्तक्षेप नहीं करती थी और इन्हें आपस में टकराने की छूट थी। यूं तो ट्रकों से बाहर निकलते हुए सरीयों के गले और छाती में घुस जाने पर भी कोई रोक नहीं थी। पुलिस की चिंता सिर्फ सिर पर रखे हेलमेट के बारे में थी। उसका जी चाहा सरिये छाती में घुसने वाली बात हेड साहब को बताए ,पर फिर वह डर गया कहीं जल्द ही छाती पर लोहे के जैकेट पहनने का आदेश ना निकाल दिया जाए। वह फिर मौत के बारे में सोचने लगा। भूख ,बीमारी ,हत्याएं तमाम तरह से हो रही मौतें! मौत के ख्याल से उसे झुरझुरी हुई। अचानक उसे याद आया शाम होते इन दिनों ठंड हो जाती है। कहीं उसे ठंड न लग गई हो।

कहीं वह ठंड से मर ही ना जाए। उसे फिर एक बेहूदा ख्याल आया। कल से घर से बाहर निकलते वक्त स्वेटर पहनने का कानून बना दिया गया तो ? पुलिस को आपके ठंड से मर जाने की चिंता है! पर वह तो अपना स्वेटर अक्सर घर पर भूल जाता है । रोज चालान बनेंगे। समय पर दवाई नहीं खाई ,तो चालान! मास्क नहीं पहना तो चालान…! फिर समय पर खाना नहीं खाया तब भी तो आदमी मर सकता है! तो क्या उसका भी चालान ..? पर अगर घर पर खाना ही ना हो ,और राशन वाला आधार कार्ड के बगैर अनाज ही ना दे तो ऐसे में मर जाने पर अपनी सुरक्षा के प्रति लापरवाही बरतने की चालानी कार्रवाई की जानी चाहिए या नहीं? यह क्या उल जलूल सोच रहा है वह…! उसका दिमाग फट जाएगा..। उसे दिमाग फटने से मरने का डर होने लगा। डर कर उसने सोचा उसे यह सब नहीं सोचना चाहिए, उसे तमाम लोगों की तरह मान लेना चाहिए कि सरकार को सचमुच उसकी जान की चिंता है, यही सच्चा नागरिक धर्म है। उसे जल्द ही यहां से जाना चाहिए। उसने तुरंत ही जेब से पर्स निकाल लिया और हेड साहब से जल्दी रसीद काटने की गुजारिश करने लगा..।


डिस्क्लेमर : प्रस्तुत रचना “मौत के समंदर में हेलमेट …” एक व्यंग रचना है , और किसी भी तरह हेलमेट का विरोध नहीं करती। आपसे विनती है कि हेलमेट जरूर पहने और वाहन से संबंधित सभी कागजात अपने पास रखें । इस रचना का मकसद हर बड़े शहर में जारी दोपहिया वाहन चेकिंग की मुहिम की विसंगतियों की ओर आपका ध्यान दिलाना है । पहले से ही बल की कमी से जूझ रहे पुलिस प्रशासन का बहुत सारा समय और ऊर्जा इस मुहिम में लगायी जा रही है । हमें बात करना चाहिए कि आखिर इस दुपहिया वाहन चेकिंग मुहिम से लागत के मुकाबले देश और समाज को क्या फायदा पहुंचा है। -लेखक