‘मेरे बाबा-मेरी दादी के ‘शिव’ को सत्ताखोर, शतरंज का मोहरा बना रहे हैं’

मीडिया विजिल मीडिया विजिल
ब्लॉग Published On :


यह टिप्पणी, लखनऊ के राजनैतिक-सामाजिक और सांस्कृतिक एक्टिविस्ट दीपक ‘कबीर’ ने अपनी फेसबुक वॉल पर लिखी है। इसको पढ़कर संभवतः कुछ लोगों के मन उद्वेलित हों और वे दोबारा सोचें कि उनके कदम किस रास्ते पर हैं, ये जानकर हम इसको प्रकाशित कर रहे हैं। आपके पढ़ने की सहूलियत के लिए इसमें कुछ फॉर्मेटिंग की गई है, कुछ बिंदु हाईलाइट किए गए हैं। ये प्रकाशित करना ज़रूरी लगा, इसलिए हम इसे दीपक की अनुमति से प्रकाशित कर रहे हैं।
सत्य ही शिव है मगर…
अभी ज़्यादा से ज़्यादा..
आप टूटे हुए फव्वारे को शिवलिंग बताकर वजूखाने पर कब्ज़ा कर लेंगे..,मनमसोस कर मुस्लिम समुदाय मस्जिद के सामने नए जमाने के नल, नाली , ड्रम इत्यादि से वजू की व्यवस्था कर लेगा..
फिर आप बाबा विश्वनाथ का कोरिडोर ,उसके असल शिवलिंग की महत्ता साबित करेंगे या इस फव्वारे की..?(शिवलिंग ..योनि और लिंग का समुच्चय होता है और आदि देवता का सृष्टि क्रम को बजाहिर करने का निरूपण है)

किसके हवाले कर रहे हैं आप अपना धर्म?

क्या सच में आपने भारतीय दर्शन.. शैव.. शाक्त…वैष्णव की बेहतरीन बहसें. उनकी परंपराएं और जीवन के प्रति उनके नजरिए पढ़े हैं.. वे एक दूसरे से क्यों अलग थे..आप उनमें से किस मार्ग के माध्यम से ईश्वर को जानना चाहते हैं ?
क्या आप इसी “हबड़ धों-धों” को ही अब धर्म कहना चाहते हैं, क्या आप अपने धर्म को इन उजड्ड नेताओं और सत्ता चाटुकार मीडिया के इशारों पर इतना गिरा देना चाहते हैं… कि बिना किसी नफरत,बिना किसी को तकलीफ या डर पहुंचाए आपका धर्म सरवाइव ही नहीं कर पा रहा..?
काशी विश्वनाथ कोरिडोर बनने में आपके पूर्वजों के कितने ऐतिहासिक शिवमन्दिर ध्वस्त किए गए और आपका शिव प्रेम सोया रहा..
कैलाश पर्वत पर चाइना जो चाहे करे आप जरा आहत नहीं होंगे, आपके गांव गिरांव के लाखों उजाड़ मंदिरों का कोई पुरसा लेने आप नहीं जाते..

शिव, सत्य और तर्क अलग हैं क्या?

सत्ता और नफरत की राह पर आप इतनी अति को समर्थन दे रहे हो कि एक साथ दार्शनिक और फक्कड़,एक साथ भोले और रुद्र, अंतिम सत्य यानी मृत्यु के देवता का मज़ाक बनवा रहे हो आप…क्योंकि तिलमिलाया हुआ अल्पसंख्यक समुदाय अपनी बेबसी में हंसने के सिवा क्या करेगा जब आप फव्वारे को भी शिवलिंग बताओगे, और बरसों से पूजे जा रहे बाबा विश्वनाथ को इग्नोर कर दोगे..क्या काशी विश्वनाथ में अब तक की पूरी अर्चना संदिग्ध थी?

इतिहास क्या वाकई पढ़ा है आपने?

क्या सचमुच आपका विवेक सत्ता का दास हो गया है जो कुछ भी कचरा बोला जायेगा ,मान लोगे ? इसी मुगल दौर में तुलसी सहित सैकड़ों भक्त कवि हुए और पूरी उमर बिना परेशानी के जिए, इसी मुगल पीरियड में लाखों तालुकदार,जमींदार,मनसबदार, राजा ,मंत्री सब तो हिंदू रहे…और छोड़िए सिर्फ अवध के तालुकदारो की लिस्ट उठा लीजिए..खुद अयोध्या का राजघराना हिंदू रहा.., इसी मुगल दौर में एक नया धर्म लगातार फैल रहा था जिसमे हिंदू मुसलमान दोनों शामिल हुए.. गुरु नानक मरदाना को लेकर यात्राएं करते हैं..अरब तक हो आते हैं.., कबीर इतनी तीखी बातों के बावजूद एक मुस्लिम काल में जिंदा रहते हैं और पूरी उमर जीते हैं..,सूफी बाबा को ग्रंथ साहिब में पढ़ा जाता है..और मुगल दारा शिकोह उपनिषदों का अनुवाद फारसी में करता है जिससे फिर अंग्रेजी अनुवाद होता है, यही मुगल मुसलमान दारा शिकोह अपने फिलासफर सूफी सरमद के साथ औरंगजेब की तलवार का शिकार होता है..यही औरंगजेब अपने दरबार और ओहदों में सबसे ज्यादा हिंदू अप्वॉइंट करता है और हिंदुओं के मानसरोवर तक को वापस छीन कर भारत में लाता है हिंदुस्तान का सर्वाधिक विस्तार करता है..

इतिहास विरोधाभासों का संगम है, मोनोलिथिक नहीं

मतलब इतिहास के कई शेड्स हैं और इतिहास नफरत से नहीं विवेक से समझना चाहिए..,दुनिया अजीब है..जिस जिन्ना को पाकिस्तान के नाम पर हम सबसे बड़ा कम्युनल और मुस्लिम परस्त कहते हैं, उसी जिन्ना को 47-48 में पाकिस्तान की जमात ए इस्लामी सेक्युलर,हिंदुस्तान परस्त और इस्लाम विरोधी कह के कोस रही थी,भाषण दे रही थी …

मतलब इतिहास में बड़े विरोधाभास और नजरिए छुपे हैं, उसे सिर्फ इकतरफा और मनगढ़ंत जुल्म बताना लोगों को बरगलाना भी हो सकता है.. सोचिए आखिर ऐसी अफवाहें कौन फैलाता है , जो इतिहास में तार्किक रूप से सिद्ध नहीं है तो क्या वो जुल्म क्या सिर्फ 1925 में बने संघ की गप्पबाजी में हो रहा था..? आखिर अंग्रेजों से लड़ने की बजाय कुछ लोग लोगों को ही आपस में क्यों लड़वा रहे थे ? क्यों उनके हिस्से एक भी क्रांतिकारी नहीं है ? ये चौंकाता नहीं आपको ? या अगर आप संघ के समर्थक रहे हैं तो ये आपको शर्मिंदा नहीं करता ?

इतिहास फिर देखिए …बाबर ,राना सांगा के साथ मुस्लिम इब्राहिम लोदी को हरा रहा था, शेरशाह सूरी ..हुमायूं को हरा रहा था..नादिर शाह . एक मुगल को धमका रहा था..तो ये इस्लाम इस्लाम को नष्ट कर रहा था या राजाओं की आपसी जंग थी ?
अच्छा इतिहास ही दुरूस्त करना चाहते हैं तो सोचिए भारत से पैदा हुआ बौद्ध धर्म दुनिया के कितने ज्यादा देशों में मौजूद है जहां कभी बुद्ध गए तक नहीं..मगर वो हमारे भारत में ही कहां गया ? कैसे खत्म हुआ ? उसके लाखों स्तूप, विहार,मंदिर,शहर सब कैसे नष्ट हुए ? बुद्ध को तो आप अवतार भी मानते हैं ना दसवां ? तो इस अवतार की इतनी उपेक्षा क्यों..

आपकी धार्मिक भावना आहत आख़िर होती कैसे है?

तीर्थस्थान मुश्किल जगह होते थे,तपस्या से पहुंचने के लिए, ये एक दर्शन है..,आपने केदारनाथ जैसे स्थलों को पिकनिक और टूरिस्ट प्लेस बना दिया, पवित्र नदियों को वहां बने होटल्स ने अपने सीवर और कब्जों से नष्ट कर दिया, कृष्ण की यमुना को आपने नाला बना दिया..,कोई भी पाखंडी कभी समोसा खिला कर परीक्षा पास करवाता है,कोई कभी चटनी का जादू दिखाता है, आप का धार्मिक गुस्सा क्यों नहीं जागता ? आपको शर्म क्यों नहीं आती..

परहित सरिस धरम नहीं भाई..

अच्छा सच बताओ, आपने विवेकानंद ,राम कृष्ण परमहंस, दयानंद सरस्वती ..को पढ़ा है ?

अच्छा धर्म छोड़िए, आप तो देशभक्त हैं ? इन विवादों से क्या देश मजबूत होगा ? देश की असल हालात आप सब जानते हैं, किसान तबाह हैं, पेड़ पौधे पर्यावरण नष्ट है, आप अपने लिए बड़े शहर तक में आसानी से अस्पताल में एक बेड तक नहीं हासिल कर सकते,इलाज तो बहुत दूर..

बेरोजगारी और मंदी आपको डरा रही है…
क्या आपका और इस हालात में भी कमाई कर रहे,विदेशों में बच्चों को पढ़ा रहे..नए मुनाफे कमा रहे लोगों का एजेंडा एक ही होगा ??
सोचिए..कहीं कुछ बहुत गड़बड़ हो रहा है..आपका बीपी लगातार बढ़ रहा है..आपके भीतर नफरत और हिंसा बढ़ती जा रही है..धर्म कहता है हिंसा विवेक को हर लेती है और क्रोध नीति को खा जाता है…
आप परपीड़क (sadist) हो रहे हैं और तुलसी बाबा कहते हैं
“परपीड़ा सम नहीं अधमायी” ,इससे बड़ा अधर्म कुछ नहीं।
आपको देश बचाना है ,आपको धर्म बचाना है..
आपको धार्मिक बनना है..
अपने विवेक को जगाइए, ठहर के कुछ पल सोचिए..
क्या अपने बच्चों को आप एक नफरती दंगाई बनाना चाहेंगे..
ठहर कर याद करिए..
आपके दादी बाबा.. मां पिता आपको बचपने में कैसे व्यवहार कैसे जीवन की शिक्षा देते थे..
अच्छा बिना नफरत के सोचिए कि आज कल के मीडिया, सत्ता और ज्यूडिशियल सिस्टम को आप कैसा देखते हैं ? प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर पढ़िए न फिर से..
सच बताइए, आप सचमुच ईश्वर को मानते हैं ना ? ईश्वर तो सबकुछ देख रहा होगा ? क्या मृत्युपरांत उसे फेस कर पाएंगे ?
सच कहूं तो आपको उसका अब लिहाज ही नहीं ?
पाखंड से लिपट चुके हैं आप..,अगर नहीं..तो ठहर कर सोचिए..
सोचिए कि ईश्वर का गुण क्षमा हैं बदला ? न्याय है पीड़ा.., समानता है या सत्ता की दबंगई ?
सोचिए, क्योंकि मुझे तकलीफ है कि मेरे बाबा-मेरी दादी के “शिव” को उनके शिवत्व को..इन सत्ता खोरों इन धंधेबाजों ने शतरंज का मोहरा बना देने की साजिश रची है..
सोचिए, नफरत और अविवेक..किसी “सुंदरम” को स्थापित नहीं करेगा..सोचिए..क्योंकि सत्य ही शिव है..

लेखक दीपक कबीर सामाजिक-राजनैतिक और सांस्कृतिक एक्टिविस्ट हैं। लखनऊ और उत्तर प्रदेश में तमाम संस्कृतिधर्मी चेतनाशील आयोजनों की रीढ़ की हड्डी हैं।


Related