शाही अंदाज़: कई वंशों को संरक्षण और कवच कुंडल देकर वंशवाद पर कटाक्ष!

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
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राजनीति की दुर्दशा करके आईडिया ऑफ इंडिया का दावा और बिड़ला के अखबार में प्रमुखता पाना
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आज मेरे पांच में से तीन अखबारों में कोविड का प्रभाव बढ़ने और राज्यों को ज्यादा कोविड टेस्ट करने की केंद्र की सलाह जैसी खबर लीड है। हिन्दुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया और द हिन्दू की लीड यही है। इसलिए इस रूटीन खबर को छोड़कर आज दूसरी खबर की बात करता हूं और इनमें एक खबर (द टेलीग्राफ की लीड) तो ऐसी है जो दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर है ही नहीं। इसलिए उसकी बात करना ज्यादा जरूरी है। द टेलीग्राफ की आज (08 अप्रैल 2023) की लीड महबूबा मुफ्ती की बेटी  इल्तिजा को नाटा या बौना पासपोर्ट दिए जाने से संबंधित है। अंग्रेजी में ऐसे पासपोर्ट के लिए द टेलीग्राफ ने रंट लिखा है और फ्लैग शीर्षक है, इलतिजा ने पूछा, क्या मैं आतंकवादी हूं। द टेलीग्राफ का आज का कोट भी यही है, क्या मैं कोई भगोड़ा हूं, क्या मैं नीरव मोदी हूं, क्या मैं आतंकवादी हूं, कोई राष्ट्र विरोधी कि मुझे सजा दी जा रही है। इल्तिजा को लंबे इंतजार के बाद पासपोस्ट मिला है पर वह एक खास देश के लिए ही है और इससे वे उच्च शिक्षा के लिए सिर्फ संयुक्त अरब अमीरात जा सकती हैं। 

इस संबंध में श्रीनगर डेटलाइन से मुजफ्फर रैना की खबर इस प्रकार है, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व भाजपा सहयोगी महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती ने सीआईडी ​​पर आरोप लगाया है कि नाजी जर्मनी के गेस्टापो की तरह कश्मीरियों को  “सता” रही है। उल्लेखनीय है कि केंद्र शासित प्रदेश में सुरक्षा के काम वहां की सीआईडी करती है। जम्मू और कश्मीर पुलिस के सीआईडी ​​(आपराधिक जांच विभाग) की सार्वजनिक आलोचना शायद ही कभी की जाती है, खासकर कश्मीर के राजनेताओं द्वारा। मोटे तौर पर ऐसा जवाबी प्रतिशोध के डर के कारण नहीं किया जाता है क्योंकि यहां लगभग चार वर्षों से निर्वाचित सरकार नहीं है।

इल्तिजा को गुरुवार को यह पासपोर्ट मिला, जो सिर्फ दो साल के लिए है। इसका कारण यह बताया जा रहा है कि सीआईडी ​​ने कथित तौर पर आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम लागू किया है। इल्तिजा ने शुक्रवार को संकेत दिया कि सीआईडी ​​उनके खिलाफ जासूसी के आरोप भी लगा सकती है क्योंकि उसने उन्हें सामान्य पासपोर्ट देने से इनकार करने के लिए आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम लागू किया है। उन्होंने कहा, “यह अधिनियम आमतौर पर जासूसी के लिए लागू किया जाता है। वे (सीआईडी ​​अधिकारी) अदालत से झूठ बोल रहे हैं …. यहां सीआईडी ​​का केवल एक काम है – वह है कश्मीरियों को परेशान करना और उन पर अत्याचार करना। नाज़ी जर्मनी में गेस्टापो नामक (एक आधिकारिक गोपनीय) बल था, जो इसकी पुलिस शाखा थी और यहूदियों को सताती व  परेशान करती थी। इसी तरह, सीआईडी का यहाँ केवल एक काम है, जो कश्मीरियों को कुचलना, उन्हें सताना, उनकी नौकरी छीनना और उन्हें यूएपीए (आतंकवाद विरोधी कानून) के तहत मुकदमा चलाना है।” इलतिजा ने यह भी कहा कि सरकार उनके परिवार को एक उदाहरण बनाना चाहती है “ताकि लोगों को आवाज उठाने से रोका जा सके।”

कश्मीर, वहां के हालात और भाजपा के सहयोगी रह चुके दल तथा उसके नेता के परिवार की स्थिति बताने वाली यह खबर आज नहीं के बराबर छपी होगी। जो खबर छपी है वह ऐसे कि दो साल बाद ही सही दो साल के लिए पासपोर्ट मिल गया है। पासपोर्ट के बारे में उसने जो कहा है वह नहीं के बराबर छपा है। दूसरी ओर, पासपोर्ट के कारण ही सरकार और सीआईडी के बारे में अगर महबूबा मुफ्ती की बेटी की राय ऐसी है तो आम कश्मीरियों की राय क्यो होगी। पर भारतीय मीडिया वह सब नहीं बताएगा। कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का श्रेय यह सरकार लेती है और उसके कथित फायदे भी बताती है भले वह दिखाई नहीं देता हो। पर वह सब दिखता रहता है। आज की दूसरी बड़ी खबर है, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार का यह कहना कि अडानी को निशाना बनाया गया। 

टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर पहले पन्ने पर दो कॉलम में है और उसके साथ जो अंश हाईलाइट किया गया है वह इस प्रकार है, (अनुवाद मेरा) “…. जब हम राजनीति में आए थे, (तब) अगर हमें सरकार के खिलाफ बोलना होता था तो हम टाटा-बिड़ला के खिलाफ बोलते थे। जब हम टाटा का योगदान जान (समझ) गए तो हमें अजीब लगता था कि हम टाटा-बिड़ला क्यों कहा करते थे …. इन दिनों अगर आपको सरकार पर हमला करना है तो अंबानी और अडानी का नाम लिया जाता है।” कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसा कहकर शरद पवार ने और इसे हाइलाइट करके टाइम्स ऑफ इंडिया ने टाटा बिड़ला और अंबानी अडानी को समकक्ष बना दिया है जो नहीं है। हालांकि वह मुद्दा भी नहीं है। अभी मुद्दा यह है कि इंडियन एक्सप्रेस ने इसे लीड बनाया है और इसके साथ कांग्रेस से अलग हुए एक और दल, तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा का यह आरोप भी छापा है, अडानी का चैनल अडानी के मित्रों के इंटरव्यू कर रहा है। 

दूसरा इंटरव्यू गुलाम नबी आजाद का है जो उनकी आने वाली किताब से संबंधित है और आने से पहले ही चर्चा में ला दी गई है। इस बीच कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है और इंडियन एक्सप्रेस ने शीर्षक बनाया है, मैंने नीतिश, स्टालिन, उद्धव … से बात की है। विपक्ष को एकजुट होना चाहिए। निश्चित रूप से इन खबरों और इनकी प्रस्तुति में यह दिलचस्प है कि अडानी की कंपनी में 20,000 करोड़ रुपये के निवेश पर सवाल को हल्का किया जा रहा है और उसका जवाब किसी के लिए महत्वपूर्ण नहीं है। नरेन्द्र मोदी भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने का दावा करते हैं और भष्टाचार के तमाम आरोपियों को अपनी पार्टी में संरक्षण देने के बावजूद यह दावा करते हैं कि सभी भ्रष्टाचारी एकजुट हो रहे हैं और अखबारों के पास इससे संबंधित कोई सवाल नहीं है।  

और बात इतनी ही नहीं है। टाटा बिड़ला की बात चली है तो बता दूं कि बिड़ला का अखबार कहे जाने वाले हिन्दुस्तान टाइम्स में आज पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर लीड है, “आईडिया ऑफ इंडिया जोखिम में नहीं है, वंशवाद की राजनीति है :शाह ने विपक्ष पर निशाना साधा।” कहने की जरूरत नहीं है कि अमित शाह ने यह तब कहा है और अखबार ने इसे तब प्रमुखता दी है जब सबको पता है कि वंशवाद के मामले में भाजपा का क्या हाल है और राजनीति में विपक्ष और विरोधियों का इस पार्टी ने क्या हाल बना रखा है। या विरोध करने की कितनी स्वतंत्रता है। और तो और अमित शाह अपने बेटे को सेट करने के बाद भी वंशवाद के बारे में बोल रहे हैं। शुरू में तो लगा था कि कांग्रेस मुक्त भारत का सपना लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को, राहुल गांधी के यह कहने से बड़ा झटका लगा था कि वे भाजपा को हराएंगे। भाजपा कुछ ही समय बाद अपने रंग में आ गई और राहुल गांधी ने संसद में गले लगने की कोशिश की तो उसपर प्रतिक्रिया से सब साफ भी हो गया था। लेकिन इसका मतलब यह नहीं निकला था कि विपक्ष को कमजोर करने के लिए (हालांकि अडानी को बचाने के लिए भी कहा जा सकता है) साम दाम दंड भेद सब अपनाया जाएगा और जरा सी आलोचना भी बर्दाश्त नहीं होगी। राहुल गांधी का विरोध करने के लिए ऐसा मुद्दा बना लिया जाएगा जो उन्होंने कहा ही नहीं।

इसके बावजूद सरकार के दूसरे बड़े नेता का यह कहना और बिड़ला के अखबार में इसका छपना इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया का भाजपा में जाना उनके पिता के कांग्रेसी होने की काट नहीं हो सकता है। और गांधी (नेहरूं कहूं?) परिवार का आधा वंश तो भाजपा में ही है। और आज के कांग्रेस को वंशवादी भले कहा जाए सच यही है कि कांग्रेस कई बार टूटी, कई हिस्से हुए, कई लोग छोड़ गए और जो बचा है वही वंश है बाकी तो जनसंघ और जनता पार्टी में मिल जाने के बाद भी वंश की याद नहीं दिलाता है। और आईडिया ऑफ इंडिया की बात अभी भी कोई करता है तो उसी गांधी नेहरू वंश का आधा। बाकी आपके साथ है और आप बेहतर जानते होंगे कि उसकी आपके बारे में क्या राय है। इन सभी खबरों के साथ आज द हिन्दू में अंदर के पन्ने पर एक खबर है, पवार का रुख विपक्ष की एकता पर प्रभाव डाल सकता है।  

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।