तेलंगाना में प्रधान सेवक सह चौकीदार का प्रचार अभियान और प्रचारकों की सेवा का अंदाज़ देखिए

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
ओप-एड Published On :


अदानी मामले पर चुप्पी साधकर भ्रष्टाचार पर बोलने की बेशर्मी कुछ और लोगों में हो तो हमारा मीडिया देश को डुबा ही देगा

 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शनिवार, 8 अप्रैल 2023 को हैदराबाद में थे और कल का उनका भाषण आज के अखबारों में प्रमुखता से छपा है। द टेलीग्राफ को छोड़कर मेरे चारो अखबारों में पहले पन्ने पर है। टाइम्स ऑफ इंडिया में दो कॉलम में है और द हिन्दू में सेकेंड लीड। इनके अलावा इंडियन एक्सप्रेस और हिन्दुस्तान टाइम्स में लीड है। इंडियन एक्सप्रेस ने इसे तीन कॉलम में लीड बनाया है जबकि हिन्दुस्तान टाइम्स ने चार कॉलम में लीड बनाया है। सरकार और प्रधानमंत्री का प्रचार करने वाली इस खबर  से पहले आज की दूसरी प्रमुख खबरों की जानकारी देने के लिए द टेलीग्राफ के पहले पन्ने की खबरों का जिक्र कर लेता हूं। इससे आपको यह अनुमान लगाने में सुविधा होगी कि यहां किन खबरों को छोड़कर इसे लीड बनाया गया है। प्रधानमंत्री के दावे के संबंध में जिन तथ्यों का उल्लेख किया जाना चाहिए वह तो नहीं ही है। 

द टेलीग्राफ की पहले पन्ने की खबरों के शीर्षक का हिन्दी अनुवाद कुछ इस तरह होगा। इनमें सिंगल कॉलम की कुछ खबरें जरूर हैं पर सब नहीं हैं। 

  1. नई पत्रकारिता – अडानी को फिर महान बनाओ (मेक अडानी ग्रेट अगेन) फ्लैग शीर्षक है। मुख्य शीर्षक है, अडानी के चैनल पर अडानी के लिए, अडानी के पुराने मित्र 
  2. लीड के साथ एक और खबर का शीर्षक है, पवार के निराश करने का कांग्रेस पर कोई असर नहीं। 
  3. फेक न्यूज फैक्ट्री पर सवाल (संबंधित सरकारी नीति पर भी सवाल है उसके बारे में आगे)  
  4. घृणा फैलाने वाले भाषण का बेहद धूर्त इस्तेमाल (फ्लैग शीर्षक) मुख्य शीर्षक है, “चुप्पी सहमति का लक्षण है : नसीरुद्दीन शाह”। 
  5. नालंदा की हिंसा में बजरंग दल का नेता गिरफ्तार (कल भी कई अखबारों में ऐसी खबरें थीं जो पहले पन्ने पर नहीं दिखीं)। 

सरकार ने कानून बनाया है कि केंद्र सरकार की एजेंसी, अगर किसी खबर को फर्जी या गलत कह देगी तो उसे  सोशल मीडिया या वेब पोर्टल से हटाना होगा। वैसे तो यह नियम ही गलत है और इसका दुरुपयोग किए जाने की भी भरपूर आशंका है और जनवरी में जब इसपर सलाह मांगी गई थी तो इसका विरोध भी हुआ था और तमाम कारण बताये गए थे। फिर भी दो दिन पहले इसकी घोषणा हो गई और कांग्रेस की सुप्रिया श्रीनेत ने आरोप लगाया है कि यह सेंसरशिप और खबरों पर नियंत्रण की कोशिश है। मीडिया से संबंधित इस नियम पर मीडिया को वैसे ही सवाल उठाना चाहिए था जैसे बिहार प्रेस बिल के समय उठाया गया था या इमरजेंसी में विरोध किया गया था। पर आज कांग्रेस प्रवक्ता के कहने पर भी मेरे पांच में से चार अखबारों में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस में भी नहीं।  

अब आज के लीड का शीर्षक देख लेता हूं। हिन्दुस्तान टाइम्स में चार कॉलम की लीड का दो लाइन का शीर्षक है, “भ्रष्ट विपक्षी दलों को अदालत ने निराश किया : प्रधानमंत्री”। हैदराबाद डेटलाइन से श्रीनिवास राव अपरासु की बाईलाइन वाली इस खबर का जो हिस्सा पहले पन्ने पर है उसमें शीर्षक की कोई बात नहीं है। डेस्क पर काम करते हुए हमलोगों को सिखाया गया था कि पहले पैरे में पूरी खबर आ जाए और शीर्षक ऐसा हो जो पूरी खबर का भाव व्यक्त करे। ठीक है कि हमेशा ऐसा संभव नहीं है लेकिन लीड के मामले में हमलोग कोशिश करते थे। इसी क्रम में एक बार केंद्रीय बजट की खबर का शीर्षक था, “हर हाथ एक बताशा”। उस साल बजट से हर किसी को कुछ ना कुछ फायदा हुआ था भले बहुत मामूली हो। आप कह सकते हैं सबको फायदा कैसे हो सकता है पर खबर का भाव यही था। हम यही कहना और बताना चाहते थे। 

यहां अगर अखबार प्रधानमंत्री के कहे को प्रचारित करना चाहता है तो उसे शीर्षक के साथ पुष्ट किया जाना चाहिये था। मुझे नहीं लगता है कि कोई पाठक शीर्षक का कारण या उद्देश्य ढूंढ़ने-समझने के लिए पूरी खबर पढ़ेगा। जो भी हो, इंडियन एक्सप्रेस ने इस खबर को फ्लैग शीर्षक के साथ छापा है और यह बता दिया गया है कि मामला प्रधानमंत्री का है, हम सिर्फ आपको सूचना दे रहे हैं। फ्लैग शीर्षक है, एजेंसियों पर विपक्ष की अपील सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने को रेखांकित किया। मुख्य शीर्षक है, प्रधानमंत्री ने केसीआर पर कटाक्ष किया वे सिर्फ परिवार का भला चाहते हैं … संभल कर। खबर का इंट्रो है, “केसीआर ने प्रधानमंत्री की अगवानी नहीं की :11,000 करोड़ रुपए की परियोजनाएं तेलंगाना में लांच की गईं”। 

तेलंगाना में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। यहां मुख्य मुकाबला मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) और भाजपा के बीच तय है। इसके अलावा, अगले साल लोकसभा के चुनाव होने ही हैं और ऐसे में 11,000 करोड़ की परियोजनाओं की घोषणा सुनकर मुझे 2015 में बिहार के लिए घोषित एक लाख 25 हजार करोड़ रुपए के पैकेज की याद आई। उसके बाद राज्य में भाजपा की सरकार भी रही है लेकिन पैकेज का कोई पता नहीं है और भाजपाई प्रचार तो नहीं ही है। 21 सितंबर 2020 को (पांच साल बाद) द प्रिंट की एक खबर थी, “नीतिश नई परियोजनाओं का वादा कर रहे हैं पर 2015 के बिहार पैकेज पर कोई स्पष्टता नहीं है।“ आप जानते हैं कि नीतिश कभी भाजपा के साथ तो कभी विपक्ष के साथ मुख्यमंत्री रहे हैं पर पैकेज केंद्र सरकार ने बिहार की जनता के लिए दिया था और 07 मार्च 2017 को हिन्दुस्तान टाइम्स ने खबर दी थी कि 18 महीने हो गए बिहार को अभी पैकेज के पैसे नहीं मिले हैं। 

इसके बावजूद, हैदराबाद की सभा में प्रधानमंत्री ने कहा और इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है, “मैं भारत राष्ट्र समिति की सरकार से आग्रह करता हूं कि तेलंगाना की जनता के लिए केंद्र सरकार की योजना के अनुसार विकास के कार्यों में बाधा न खड़ी करें। राज्य केंद्र की नीतियों और योजनाओं को लागू करने में सहयोग नहीं करते हैं। तेलंगाना में केंद्र  सरकार की परियोजनाएं देर हो रही हैं। कुछ लोग विकास से डरते हैं। वे सिर्फ यही चाहते हैं कि उनका परिवार अच्छा करे और तेलंगाना के लोगों को ऐसे लोगों से सतर्क रहना चाहिए।” कहने की जरूरत नहीं है कि एक्सप्रेस ने जो शीर्षक लगाया है उसे खबर में भी बताया है भले बिहार का उदाहरण नहीं दिया है या अंदर दिया हो। 

एक्सप्रेस तो फिर भी सरकार विरोधी खबरें छापता है लेकिन बाकी अखबारों ने तो गजब ढाया हुआ है। उदाहरण के लिए, लीड के साथ एक्सप्रेस की एक और खबर है जिसका शीर्षक है, राहुल ने अडानी पर हमला बढ़ाया, मतभिन्नता स्वाभाविक है, पवार ने कहा। बेशक, यह इंडियन एक्सप्रेस का इंमरजेंसी वाला तेवर नहीं है और यह खबर नहीं है कि मोदी ने अडानी पर राहुल के सवाल का जवाब नहीं दिया है और बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं। इन दिनों अगर इंडियन एक्सप्रेस की यह हालत है तो उनका क्या जो झुकने के लिए कहने पर रेंगने लगे थे।           

इंडियन एक्सप्रेस के आज के लीड के साथ खास बात उसका फ्लैग शीर्षक है जिसके बारे में मैंने ऊपर लिखा है कि हिन्दुस्तान टाइम्स में लीड है। कहने की जरूरत नहीं है कि प्रधानमंत्री सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भी गलत ढंग से पेश कर रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट ने जब सरकार की खिंचाई की है और लताड़ लगाया है तो उसके मामलों में चुप्पी साध गये हैं। एकतरफा मन की बात करते हुए सबको भ्रष्ट कह देना बेशक आसान है और इस देश में प्रधानमंत्री के खिलाफ अपमान करने या झूठ बोलने की एफआईआर लिखी ही नहीं जाएगी यह किसी से छिपा नहीं है और ऐसा नहीं होता तो शपथपूर्वक झूठ बोलने के मामले में अदालत को स्वयं कार्रवाई करने से किसने रोका है। पर अदालत ने तो जुर्माना लगा दिया है। हालांकि, वह अलग मुद्दा है। 

प्रधानमंत्री सुप्रीम कोर्ट में जिस मामले को खारिज कर दिए जाने की बात कर रहे हैं उसके बारे में दैनिक भास्कर की खबर इस प्रकार है, प्रधानमंत्री 14 महीने में 5वीं बार तेलंगाना पहुंचे : कहा- कुछ लोग भ्रष्टाचार पर कार्रवाई से बचने सुप्रीम कोर्ट गए थे, उल्टे पांव लौटना पड़ा टेलीग्राफ। प्रधानमंत्री का भाषण हिन्दी में था इसलिए हिन्दी अखबार ने जो लिखा है उसे उद्धृत कर रहा हूं। यह प्रधानमंत्री की शैली है। लोग कह रहे हैं अडानी मामले में घिर जाने के बाद वे परेशान हैं और इसका असर भाषण में भी है। आप भी देखिये, 

– परिवारवाद वाले हर चीज पर नियंत्रण चाहते हैं, लेकिन मोदी ने भ्रष्टाचार पर प्रहार कर दिया है। इससे परिवारवादी ताकतें बौखला गई हैं।

– कुछ लोग तो भ्रष्टाचार पर हो रही कानूनी कार्रवाई से सुरक्षा मांगने सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए थे, लेकिन कोर्ट ने उन्हें झटका दे दिया और उन्हें वहां से उल्टे पांव लौटना पड़ा। 

– आज के नए भारत में देशवासियों की आशाओं को पूरा करना हमारी प्राथमिकता है लेकिन कुछ मुट्ठी भर लोग विकास के इन कार्यों से बहुत बौखलाए हुए हैं। ऐसे लोग जो परिवारवाद, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार को पोषित करते रहे उन्हें ईमानदारी से काम करने वालों से परेशानी हो रही है।

– इससे इनके तीन मतलब सिद्ध होते थे। पहला- इनके ही परिवार की जय जयकार होती रहे। दूसरा- करप्शन का पैसा इनके परिवार के पास ही आता रहे तीसरा- जो पैसे गरीब के लिए भेजे जाते हैं वो इनके भ्रष्ट इको-सिस्टम में बांटने के काम आ जाए। लेकिन आज मोदी ने भ्रष्टाचार की जड़ पर ही प्रहार कर दिया है।

– हमने देशभर में डिजिटल पेमेंट की व्यवस्था बढ़ाई है लेकिन ऐसा पहले क्यों नहीं हुआ? इस लिए नहीं हुआ क्योंकि परिवारवादी ताकतें व्यवस्था पर… सिस्टम पर अपना कंट्रोल छोड़ना नहीं चाहती थीं। किस लाभार्थी को क्या लाभ मिले, कितना मिले ये नियंत्रण ये परिवारवादी अपने पास ही रखना चाहते थे।  (bhaskar.com से)

कहने की जरूरत नहीं है कि यह तकनीक का मामला है और पहले तकनीक उपलब्ध नहीं था या महंगा था। नोटबंदी की घोषणा के साथ नीले जैकेट में पे-टीएम का प्रचार याद है? 

प्रधानमंत्री के इस भाषण पर द टेलीग्राफ में नई दिल्ली डेटलाइन से जेपी यादव की बाईलाइन खबर का शीर्षक है, मोदी ने भ्रष्टाचार को परिवार से जोड़ दिया। इसमें अन्य बातों के अलावा लिखा है, अडानी समूह के खिलाफ धोखाधड़ी के आरोपों पर प्रधान मंत्री चुप हैं और उनकी सरकार ने इस मामले में एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) बनाने से साफ इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस हफ्ते की शुरुआत में कांग्रेस के नेतृत्व में 14 विपक्षी दलों की एक संयुक्त याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि राजनीतिक नेताओं को आम नागरिक के मुकाबले ज्यादा सुरक्षा नहीं है। इसमें मोदी सरकार द्वारा सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के कथित दुरुपयोग को रोकने के लिए गिरफ्तारी से पहले के दिशा-निर्देशों की मांग की गई थी। मोदी, जो तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक के दो दिवसीय दौरे पर हैं, ने फिर से विपक्ष की आलोचना करने के लिए भ्रष्टाचार का इस्तेमाल किया। भाजपा नेता ने भीड़ से पूछा, “हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना चाहिए या नहीं? भ्रष्टाचारियों के खिलाफ लड़ना चाहिए या नहीं? देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करना चाहिए या नहीं? कानून को भ्रष्टाचारियों के खिलाफ काम करने दिया जाए या नहीं?” इसलिए “ये लोग” परेशान हैं और गुस्से में काम कर रहे हैं … कुछ कांग्रेसी नेताओं के भाजपा में शामिल होने की पृष्ठभूमि में मोदी की दक्षिणी राज्यों की यात्रा का उद्देश्य यह धारणा बनाना था कि इस क्षेत्र में भाजपा की स्थिति मजबूत हो रही है और इस धारणा का विस्तार करने के लिए वे इसका लाभ उठा रहे हैं। शनिवार को कांग्रेस के एक अन्य पूर्व नेता और भारत के पहले गवर्नर-जनरल सी राजगोपालाचारी के प्रपौत्र सीआर केसवन दिल्ली में भाजपा में शामिल हो गए। इससे पहले कांग्रेस के दिग्गज नेता एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री किरण रेड्डी ने बीजेपी का दामन थाम लिया था।

प्रधानमंत्री जिस मामले को अपनी या सरकार की जीत बता रहे हैं उसे विपक्षी दलों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने दायर किया था। इसमें आरोप लगाया गया था कि पिछले कुछ सालों में सीबीआई और ईडी द्वारा दायर मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है। हाल-फिलहाल के सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के 95 प्रतिशत मामले विपक्षी दलों के नेताओं के खिलाफ थे। इसको लेकर विपक्षी दलों ने भविष्य के लिए दिशानिर्देश की मांग की थी। याचिका की सुनवाई चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने की और इसमें जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला भी शामिल थे। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि विशेष मामले के तथ्यों के बिना सामान्य दिशानिर्देश निर्धारित करना संभव नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ”नेताओं के लिए अलग गाइडलाइंस नहीं बना सकते।” सुप्रीम कोर्ट ने आरोप लगाने वाले राजनीतिक दलों से कहा कि जब आपके पास कोई विशेष मामला हो या कई मामले हों तो हमारे पास वापस आएं। किसी खास मामले के तथ्यों के बिना आम दिशा-निर्देश तय करना संभव नहीं है। जाहिर है, ऐसे मामले हैं और विपक्ष के पास खास मामले के साथ अदालत जाने का रास्ता खुला है और अदालत ने ना सरकार की कार्रवाई का समर्थन किया है ना विपक्ष की याचिका का विरोध – फिर भी प्रधानमंत्री विपक्ष की आलोचना कर रहे हैं जबकि सरकार के खिलाफ कोई आदेश आ जाए तो चुप्पी साध लेंगे। आप जानते हैं, अदानी के मामले में यही हो रहा है। इस मामले में अदालत में कहा गया था कि ईडी सीबीआई के दुरुपयोग के कारण विपक्ष के लिए जगह कम हो गई है और इसपर अदालत ने कहा  कि उपचार राजनीति में ही है, अदालत में नहीं। और राजनीतिक उपचार की कोशिश होते ही सरकारी काम की गति बढ़ते सब देख चुके हैं। 

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

 

 

  


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