आइये आपको उत्तर प्रदेश के एक जिला प्रतापगढ़ लेकर चलते हैं। जहां ‘रूल ऑफ लॉ’ बरसों से घुटनों के बल पड़ा है।
रजवाड़ों और सामन्तों का राज अपने बर्बर रूप में कायम है। वक्त के साथ बस इतना फर्क आया है कि सामन्तों ने चोले बदल लिए हैं। सामन्त अब वहां बहुरुपिया हैं। कभी साधू के भेष में, कभी मंत्री के वेश में। हां, दबंगई और धारदार हो गई है।
ऐसे ही राजधानी लखनऊ के कालिदास मार्ग की 5 नम्बर कोठी में नेम प्लेट बदलती रहती है। 3 साल पहले वहां लोहिया का नाम लेने वाला नौजवान रहता था। इन दिनों राम राज्य के मंत्र का जाप करने वाले योगी आदित्यनाथ के नाम की तख्ती वहां टँगी है। गेरुआ वस्त्र धारी, तेज तर्रार युवा सन्त आदित्यनाथ अब वहां मुख्यमंत्री के रूप में रहते हैं। पर कालीदास मार्ग की उस कोठी से पौने दो सौ किलोमीटर दूर के गांव गोविंदपुर-परसद तक अभी कानून का राज नहीं पहुंचा है। कहने को वहां पुलिस का थाना भी खुला है। मगर होता वही है जो सामन्त चाहते हैं।
मैं जिस ताजा मामले का जिक्र करने जा रहा हूँ, रोंगटे खड़े करने वाला है। जिसने सुना और देखा है, उसके रोंगटे खड़े हो चुके हैं मगर सत्ता के कान अभी खड़े नहीं हो पाए।
यह 21 मई 2020 की शाम थी। पट्टी कोतवाली के गांव गोविन्दपुर और ठीक बगल के परसद के बाशिंदे अपने रोजमर्रा के काम में लगे थे। तभी खीरे की फसल को रौदते और खाते हुए एक गाय खेत के मालिक नन्हे वर्मा उर्फ नन्हे पटेल को दिखी। वह डंडा लेकर गाय को भगाने दौड़े। पास ही गाय का मालिक राम आसरे तिवारी बैठे थे। वह मवेशी लेकर उन्हें चराने के लिए आए थे। पड़ोसी गांव धूईं के राम आसरे तिवारी वहाँ पहली बार नहीं आए। यह रोज का किस्सा था। नन्हे पटेल ने राम आसरे को टोका तो वह बजाय गाय हटाने और गलती मानने के गाली गलौच पर उतर आया। बात सिर्फ उस शाम की नहीं थी। इसके पहले राम आसरे तिवारी अपनी बस्ती में छुट्टा घूमने वाले सांड और अन्ना जानवर गोविंदपुर और परसद गांव के खेतों की तरफ हांक जाता था, तब भी दबी जबान नन्हे पटेल की बस्ती के लोगों ने विरोध किया था।
पर राम आसरे तिवारी के पीछे धूईं गांव की प्रधान का दबंग बेटा अनिल तिवारी खड़ा था, इसलिए राम आसरे मनबढ़ बना रहा। बस 21 मई की शाम गुस्से की चिनगारी भड़क गई। विवाद हुआ तो खेतो से लगे गांव गोविंदपुर की पटेल बस्ती के लोग भी बीच बचाव करने मौके पर पहुँच गए। बात खत्म हो गई और राम आसरे तिवारी अपने गांव धूईं पहुँच गया और पूरी बात प्रधान के बेटे अनिल तिवारी को बताई। अनिल को यह रास न आया। उत्तर प्रदेश सरकार के एक मंत्री (जिनकी अपनी जागीर भी थी) को बुलेट में बैठाकर ठसक से घुमाने वाले अनिल तिवारी को जानवरों का विरोध उसकी सत्ता को चुनौती देने जैसा लगा। उसी शाम उसने राम आसरे तिवारी को परसद और गोविंदपुर गांव भेजा। कहलवा दिया कि जानवर भी आएंगे और हमारे लठैत भी। जो उखड़ते बने, उखाड़ लो। पटेल बस्ती में ज्यादातर एक और दो बीघा जमीन के मालिक हैं और नकद फसल पैदा करते हैं। खीरा, ककड़ी, खरबूज, बैगन, भिंडी समेत दूसरी सब्जियां।
यह धमकी सुनकर सभी डर गए। 22 मई को दोपहर बाद राम आसरे तिवारी, अनिल तिवारी अपने साथ 40- 50 लठैत और लोकल थाना देवपुर असरा की पुलिस लेकर आ धमका। पहला झगड़ा हुआ था परसद गांव के नन्हे पटेल के साथ और बीच बचाव में पहुँच गए थे गोविंदपुर की पटेल बस्ती के 7-8 सब्जी उत्पादक किसान। मंत्री और पुराने सामन्त का यह मनबढ़ चेला इलाके में खुद को नया जागीरदार कहता है। वह गोविंदपुर आ धमका और पटेल बस्ती में जो जहां पर मिला उसे लाठियों से पीटा। आधे घण्टे के अंदर थाने की जीप आ गई। दरोगा और सिपाही सब। गोविंदपुर में मारपीट थोड़ी देर के लिए थमी। दरोगा बैठकर पंचायत कराने लगा। इस बीच एक दर्जन लठैत 200 मीटर दूर परसद गांव की बस्ती पहुंच गए। वहां नन्हे पटेल … समेत आधा दर्जन लोगों को पीटा। कुल्हाड़ी से एक का हाथ काट दिया, कई के हाथ पैर तोड़े।
इधर 15 मिनट की शान्ति के बाद पुलिस की मौजूदगी में अनिल तिवारी और उसके साथ आये लोगों ने गोविंदपुर की एक एक करके 6 औरतों-लड़कियों को घर से खींच लिया। कुछ को पुलिस की जीप में लादा और एक लड़की को बुलेट में लाद लिया। यह होते देख कैलाश पटेल, राधेश्याम पटेल, सीता वर्मा पटेल समेत औरतों को बचाने और पुलिस जीप से उतारने के लिए दौड़े। दरोगा-सिपाही तमाशबीन खड़े रहे (उनकी मौजूदगी का वीडियो भी गांव के युवक ने बनाया और बाद में वायरल भी किया)। अनिल तिवारी और उसके दबंग साथियों ने एक गोशाला और दो घरों में आग लगा दी। चीख पुकार मच गई। एक तरफ पीड़ित बाल्टियों में पानी लेकर आग बुझाते दूसरी तरफ दबंग कैन में लाया डीजल घरों और फेंकते। इस आगजनी में घरों के सामान के साथ दो मवेशी जिंदा जल गए, कुछ झुलस गए।
जमकर तांडव, हर बात में सामंती सोच, औरतों की छातियाँ नोचीं
गोविंदपुर में रंगीन कुएं के पास बने घर में एक युवती अपने कमरे में थी। 3 माह का बच्चा माँ की छाती में चिपका था…दूध पीता हुआ अधसोया सा था। दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह माँ के आँचल में। उस दुधमुहे को दबंगों ने उठाकर फेंक दिया। वो कुएं की देहरी पर गिरा। महिला का ब्लाउज फाड़ दिया। वो बच्चे की तरफ भागी… उनमें से एक नए उसकी छाती ऐसी नोची की खून टपक पड़ा और जो जहां मिला उसे लाठी डंडों से पीटा गया। सिर फ़टे, इज्जत लुटी। एक युवक ने बचते बचाते वीडियो वायरल किया, पुलिस को फोन किया। पुलिस आई मगर यह तांडव न रुका। दरोगा-सिपाही और कथित तौर पर एडिशनल एसपी की मौजूदगी में बर्बरता हुई।
पत्रकारों पर, आने जाने वालों पर पाबन्दी
29 मई 2020 की सुबह पत्रकारों का दल प्रयागराज से वहाँ गया। गांव की सीमा पर तैनात पुलिस इंस्पेक्टर सुशील कुमार सिंह और उनके साथ मौजूद सब इंस्पेक्टर बच्चन राम और अन्य सिपाहियों ने गांव के अंदर घटना स्थल तक जाने से रोक दिया। इंस्पेक्टर ने कहा कि कोई गाँव के अंदर नहीं जा सकता। बताया गया कि पत्रकार सूचना एवं जनसंपर्क विभाग से अधिमान्य भी हैं। अगर जिला मजिस्ट्रेट का ऐसा कोई आदेश हो कि पत्रकार घटना स्थल पर नहीं जाएंगे तो दिखाया जाए। इंस्पेक्टर एक घण्टे तक धमकाते रहे, जलील करने की कोशिश की, मुकदमे की धमकी देते हुए वीडियोग्राफी कराते रहे और कहा कि जो मैं कह रहा हूँ, वही होगा। बाद में मुकदमे की धमकी देकर दरोगा ने पत्रकारों को जाने दिया।
मिलीभगत दिखती है पुलिस की
यह वाकया बताने के पीछे सिर्फ यही मकसद है कि प्रतापगढ़ में पुलिस के संरक्षण में गोविंदपुर गांव में सामन्तों ने पटेल बिरादरी के किसानों-मजदूरों के घर जलाये हैं। इस आगजनी/ बर्बरता की रिपोर्ट स्थानीय पुलिस ने 8 दिनों तक नहीं दर्ज की। जबकि हमलावर पक्ष की रिपोर्ट भी लिखी और पीड़ितों में से कई को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। तथ्यों की पड़ताल में यह सामने आया कि कुछ महिलाएं और लड़कियां कई दिनों हवालात में रखी गईं। बाद में पीड़ित परिवारों की जाति के कुछ सांसद- विधायक और दूसरे लोग गांव गए तो पुलिस ने हवालात में अवैध रूप से बंद की गईं लड़कियों को छोड़ दिया। इसके बाद भी गोविंदपुर के पीड़ित पक्ष की रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई। गोविंदपुर गांव की सीमाओं पर पुलिस का पहरा लगा दिया गया। जो भी लोग पीड़ितों से सहानुभूति जताने गए, उनके खिलाफ अलग अलग धाराओं में मुकदमे दर्ज कर दिए।
मंत्री पर आरोप, डीएम-एसपी झांकने नहीं गए
पीड़ितों ने इस जातीय बर्बरता के पीछे उत्तर प्रदेश सरकार के एक मंत्री पर मिलीभगत के आरोप लगाए हैं। जिले के एसपी और डीएम का पीड़ितों के पक्ष में कोई वैधानिक कदम न उठाया जाना इस आरोप को और बल दे रहे हैं। मंत्री के खिलाफ लगातार सोशल मीडिया पर आरोप लग रहे हैं। पुलिस ने जातीय टिप्पणियों पर कुछ लोगों के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज की हैं। पीड़ित पटेल जाति के लोग और हमलावर जाति के लोगों की टिप्पणियों, बयानों से समाज में जातीय वैमनस्यता फैल रहा है। यह दूसरे गांवों से होते हुए अन्य जिलों तक भी पहुँच रहा है।
सोशल मीडिया पर एक पखवारे से जातीय टीका-टिप्पणी हो रही है। इससे समाज की सद्भवना खत्म हो रही है।
जांच के नाम पर सिर्फ खेल, एफआईआर के नाम पर बरगलाया
जातीय हिंसा की इस भयानक घटना के 8 दिनों बाद भी 30 मई तक गोविंदपुर के पीड़ितों की रिपोर्ट नहीं लिखी गई। राजनीतिक पार्टियों और नेताओं के दबाव के चलते 2 जून को मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश दिये गए। वहीं एडीजी ने पुलिस क्षेत्राधिकारी के नेतृत्व में जांच के आदेश दिए। मगर इन जांच आदेशों के 10 दिन बीत जाने के बाद भी कोई जांच अधिकारी घटना स्थल पर नहीं पहुँचा।
कटहल के फल काटकर बोले, ऐसे काट ले जायेंगे सबके वक्ष
कटहल के फलों को वक्ष की तरह काटने हुए इस दबंग ने कहा… ज्यादा बोलेगी तो पूरे मोहल्ले की लड़कियों का यही ”खतना” कर देंगे। एक पीड़िता वन्दना पटेल को शौचालय से खींच लाये। सीता देवी ने कहा कि उन सबकी खता सिर्फ इतनी है कि वो गरीब, पिछड़ी जाति की हैं और खेतों में जानवर जाने से मना कर रही थीं। घर के सहन में लगे कटहल के पेड़ पर सामन्तों की क्रूरता दिखी। एक युवती के वक्ष स्थल पर दराती लेकर दबंग ने हमला बोलना चाहा तो बुढ़िया मां बीच में आ गई। उसे जमकर पीटा। डराया।
आंख बेशर्म होती तो उसके छाती के घाव दिखाता आपको…
एक महिला रोती हुई मेरे पांव पर गिर पड़ी। साहब बलात्कार से ज्यादा हुआ है हमारे साथ… बस ”वही” रहा गया था करने को। तभी बगल में खड़ी बूढ़ी औरत ने उसका आँचल हटाने को कहा… बोली दिखा इनको पाव भर हल्दी लेपनी पड़ी है उसकी छाती पर… नाखून से नोचने का घाव हैं… आंख लजा गई, भर आईं। बेशर्म होता तो आपको उसके भी फोटो शेयर कर देता। पर मैंने नहीं खींचे।
हमारे तरह घर बनाओगी मादरचो…
गाँव के युवक चंदन और हरिकेश पटेल, पीड़ित 17 साल की लड़की ने कहा कि एक गुंडे ने सिपाही के हाथ में रखा बांस का बेंत दिखाते हुए धमकाया था कि यही लट्ठ ऐसी जगह डाल दूंगा कि बच्चा पैदा करने लायक नहीं बचोगी मादरचो… यह हल्ला मचाते हुए दबंगों ने सामने के घर में लगे नए बिजली के बॉक्स, टाइल्स, टीवी, पंखे इसलिए तोड़ और नोच दिए कि मड़ई की जगह पक्के घर में सुहागरात मनाओगे… गांव की औरतों ने मुझे जो बताया वह सब मैं लिखकर मर्यादा से बाहर नहीं आना चाहता।
कुएं की सजावट देखकर गांव के लोगों की फितरत दिखेगी
गाँव में भारी दहशत है। बर्बरता की तस्वीरें, लोगों में खौफ देखा जा सकता है। जिस कुएं की तरफ तीन माह के बच्चे को दबंगों में फेंका था। उस कुएं में वहीं की लड़कियों/ महिलाओं में रंग भरे हैं। लाल, गुलाबी, पीले… तमन्नाओं के रंग से कुएं को सजा रखा है। उसी से पटेलो कि बस्ती पानी पीती है। दबंगो ने घरों का सामान, साइकिल और आटा, बर्तन सब इसी कुएं में फेंके है।
वहाँ, खेत सूख गए हैं, आंखे गीली हैं…
पीड़ित किसानों के सब्जी के खेत इसलिए सूख रहे हैं कि गांव के मर्द पुलिस के खौफ से भागे हैं और पम्पिंग सेट चलाने के लिए डीजल लाने वाला कोई नहीं। एक युवती सायकिल से डीजल लाई तो उसे एक सिपाही ने ही फेंक दिया। रोते हुए लोगों की आंख का खारा पानी देख सकते हैं।
जीरो FIR के आदेश हैं, 8 दिन में रिपोर्ट नहीं
सुप्रीम कोर्ट कई बार आदेश दे चुका है कि पीड़ितों की प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) हर हाल में दर्ज की जाए। जीरो एफआईआर का भी प्रावधान है। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ खुद भी कह चुके हैं कि एफआईआर दर्ज हो। डीजीपी ने थाने में रिपोर्ट दर्ज न होने की बढ़ती शिकायतों के आधार पर पुलिस कप्तानों के दफ्तर में ही एक विशेष सेल बनाकर रिपोर्ट दर्ज किए जाने की व्यवस्था की है। इसके बाद भी गोविन्दपुर गाँव के पीड़ितों की रिपोर्ट न लिखना पुलिस की भूमिका को संदेह में लाती है। हमलावर पक्ष की तरफ से इसी पुलिस ने 10 नामजद और अन्य लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करके कई लोगों को जेल भेज दिया है।
किसी मंत्री ने नहीं पूछा हाल, न आरोपित मन्त्री ने दी सफाई
मुख्यमंत्री आदित्यनाथ जी ने प्रदेश के हर जिले में एक मंत्री को प्रभारी बनाया है। मुख्य सचिव ने भी एक एक जिले की जिम्मेदारी शासन में बैठे अफसरों को दे रखी है। पर किसी ने सुध नहीं ली।
प्रतापगढ़ में हुई जातीय हिंसा ने कुर्मी समाज के अंदर मौजूदा सत्ता के शीर्ष नेतॄत्व के खिलाफ नाराजगी बढाने का काम किया है। मुख्यमंत्री ने अपने सूचना सलाहकार भी रखे हैं। घटना के 17 दिन बाद भी सीएम की ओर से कोई दखल नहीं दी गई।
जनता का मांग पत्र वायरल
पीड़ित पक्ष ने अफसरों तक मांग पत्र भेजा है। #जस्टिसफारगोविंदपुर नाम से पेज बनाकर एक आन लाइन पीटीशन भी शुरू की है। इसमें मांग की गई है कि प्रतापगढ़ के डीएम और एसएसपी, एएसपी और इंसपेक्टर सुशील कुमार सिंह पर सख़्त करवाई की जाए।
गोविंदपुर गाँव में हुई इस बर्बरता की पूरी जांच हाईकोर्ट के जज से कराई जाए। इससे मंत्री और अधिकारियों की भूमिका वास्तविक रूप में सामने आये। पीड़ितों के परिजनों के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द कराने के साथ ही मुआवजा दिया जाए।
पीड़ित पक्ष के 10 लोग जेल में
गोविंदपुर, परसद और धूईं गांव के बीच हुए झगड़े में पहली एफआईआर– धूईं गांव की प्रधान चमेला देवी के पुत्र अनिल तिवारी कराई है (इस पर और इसके साथियों पर ही जातीय हिंसा और आगजनी लूट और बलात्कार की कोशिश, छेड़छाड़ के आरोप हैं) अनिल ने परसद और गोविंदपुर के 10 नामजद लोगों के साथ 100 अज्ञात लोगों के खिलाफ मारपीट की रिपोर्ट कराई है।
दूसरी रिपोर्ट पुलिस ने अपनी तरफ से भी दर्ज की- इसमें जिन लोगों को अनिल तिवारी ने आरोपित किया है, उन्हीं पर पुलिस ने पुलिस पार्टी पर हमला करने, लॉक डाउन का उल्लंघन करने की धाराओं में रिपोर्ट करके पीड़ित पक्ष के 10 लोगों कमलेश पटेल, मनोज पटेल, पिता- पुत्र रघुवीर पटेल और राम कैलाश पटेल, जगन्नाथ पटेल, प्रदीप पटेल, संदीप पटेल, बग्गड़ पटेल (आग बुझाने आए पड़ोसी फत्तूपुर के निवासी), राजू पटेल, राजेश पटेल को गिफ्तार करके 23 मई को जेल भेज दिया गया।
पहली दो रिपोर्ट में पीड़ित पक्ष को ही हमले का जिम्मेदार बताया गया। और उन्हीं लोगों पर मामले दर्ज कर गिरफ्तारियां की गईं। पीड़ित पक्ष पर एफआईआर और उनकी ही गिरफ्तारियों पर अपना दल की अध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने सरकार के आला अधिकारियों और यूपी पुलिस के डीजी से बात कीं, तब पीड़ित पक्ष की तरफ से पहली और मामले की तीसरी एफआईआर परसद के नन्हे वर्मा की तरफ से लिखी गई।
इसके बाद पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य कौशलेंद्र सिंह पटेल के हस्तक्षेप से पीड़ितों में से एक सीता देवी पटेल की तरफ से चौथी एफआईआर 1 जून 2020 को रिपोर्ट लिखी। लेकिन एफआईआर में धाराएं कमजोर हैं। सिर्फ मारपीट की रिपोर्ट हुई है। सीता देवी के अलावा 8 अन्य महिलाओं ने पुलिस को तहरीर दी है। इसमें अलग अलग आरोप हैं। मारपीट, घर में तोड़फोड़, लूट, 3 माह के बच्चे की हत्या की कोशिश, बलात्कार की कोशिश, छेड़छाड़ और पुलिस की मिलीभगत की शिकायतें की गई हैं, मगर पुलिस में रिपोर्ट नहीं लिखी। एसएसपी अभिषेक सिंह ने इस पर सिर्फ एक कमेंट किया कि एक ही तहरीर में सबकी बात आ गई है। यही मेरा कमेंट हैं।
धरने पर पीड़ित महिलाएं, हाईकोर्ट को पत्र
सभी की रिपोर्ट न लिखने, आरोपियों की गिरफ्तारी न होने, आगजनी का मुआवजा न मिलने और पुलिस पर हमले का आरोप लगाकर जेल भेजे गए 10 लोगों को रिहा किए जाने की मांग लेकर महिलाएं गांव में ही धरने पर बैठ गई हैं। 8 जून की रात तक पीड़ितों का गांव पुलिस की छावनी बना हुआ है। गाँव की पीड़ित महिलाएं संजू देवी, अनीता पटेल, सीमा देवी, वन्दना समेत दर्जनों महिलाएं धरना देकर बैठ गई हैं। प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी उनके समर्थन में धरना शुरू हुए हैं। लखनऊ में विधान सभा और इलाहाबाद में हाईकोर्ट के सामने धरना भी प्रस्तावित है।
आंसू पोछ्ने वालों पर रिपोर्ट
घटना के बाद गांव जाने वाले इसी इलाके के पूर्व विधायक राम सिंह, दस्यु सम्राट के नाम से जाने जाने वाले ददुआ के भाई पूर्व सांसद बाल कुमार पटेल, पूर्व विधायक और ददुआ के बेटे वीर सिंह गांव गए। पुलिस ने इन तीनों समेत 250 लोगों पर जातीय हिंसा भड़काने, लॉकडाउन तोड़ने की रिपोर्ट लिख दी। इसके अलावा अन्य नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं समेत 500 अज्ञात लोगों पर यही रिपोर्ट लिखी गई है। इसी थाने की पुलिस ने पीड़ितों की रिपोर्ट लिखने में 9 दिन लगा दिए। अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई। गांव में और सोशल मीडिया पर इस घटना को लेकर नेताओं और भी तंज कसे गए हैं। स्थानीय लोगों की मांग है कि मुख्यमंत्री से इन अपराधियों की गिफ्तारी की मांग की जाए। इनका आरोप है कि एक मंत्री के इशारे पर यह सब कुछ हुआ। कांग्रेस के एक बड़े नेता आरोपियों की मदद में हैं।
पिछड़े नेताओं से मायूस हैं पीड़ित
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतन्त्र देव सिंह पटेल ने इस घटना पर कोई बयान नहीं दिया जिससे लोग नाराज हैं। सपा अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमन्त्री अखिलेश यादव, पूर्व केंद्रीय मंत्री व अपना दल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने अपने प्रतिनिधियों को भेजा और आर्थिक मदद भी भिजवाई पर पीड़ितों की सभी मांगे पूरी नहीं करा पाए। न ही इन पीड़ितों के आंसू पोछने अभी खुद पहुँच पाए।
हलांकि अपना दल के प्रदेश अध्यक्ष जमुना प्रसाद सरोज और अपना दल विधानमंडल दल के नेता नील रतन पटेल ‘नीलू’ पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं के साथ पीड़ितों से मिलने पहुंचे थे। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेताओं के अलावा कई अन्य संगठनों से जुड़े लोग भी ग्रामीणों से मिलकर उन्हें समर्थन का वादा किया। लेकिन पीड़ितों की न्याय की लड़ाई अभी जारी है।
सामंतवाद का आतंक, सिर्फ एक जाति के होकर रह गए पीड़ित
गोविंदपुर में जो कुछ हुआ, वह सिर्फ एक जाति का मामला बनकर रह गया। जबकि यह घटना बर्बर सामंतवाद की है। जातीय हिंसा हुई, आगजनी हुई। महिलाओं से बर्बरता हुई। इस पर पिछड़ी जाति के नेताओं के सिवाय किसी ने निंदा नहीं की। न मानवाधिकार कार्यकृताओं ने, न नारीवादी संगठनों ने और न खुद को जाति से ऊपर उठकर राजनीति का दावा करने वाले दलों और नेताओं ने। अलबता इन पक्तियों के लेखक ब्रजेंद्र प्रताप सिंह ने पत्रकारिता के सामाजिक दायित्यों का निर्वहन के लिए हालात की एक रिपोर्ट हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को मामले का संज्ञान लेने के अनुरोध के साथ भेजी है।
ब्रजेंद्र प्रताप सिंह
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता है।)