यूपी में गोहत्या के नाम पर फँसाये जा रहे हैं बेगुनाह-हाईकोर्ट


अदालत ने कहा कि “पहले, किसान ‘नीलगाय’ से डरते थे, अब उन्हें अपनी फसलों को आवारा गायों से बचाना होगा। चाहे गाय सड़कों पर हों या खेतों पर, उनके परित्याग का समाज पर बड़े पैमाने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अगर उत्तर प्रदेश गोहत्या निरोधक कानून को उसकी भावना के तहत लागू किया जाना है तो उन्हें गाय आश्रय में या मालिकों के साथ रखने के लिए कार्यवाही की जानी चाहिए।”


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उत्तर प्रदेश में गोहत्या रोकथाम क़ानून का इस्तेमाल बेगुनाहों को फँसालने के लिए किया जा रहा है- यह बयान किसी विपक्षी नेता का नहीं है। यह टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट की है जिसने ए पीड़ित की ज़मानत याचिका पर सुनवायी करते हुए की। यह टिप्पणी यूपी की योगी सरकार के कामकाज और पुलिस के रवैये पर बेहद गंभीर सवाल उठाती है।

गोहत्या और गोमांस बिक्री के एक आरोपी रहमुद्दीन की ज़मानत याचिका पर सोमवार को सुनवायी करते हुए न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने कहा- “क़नून का निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ दुरुपयोग किया जा रहा है। जब भी कोई मांस बरामद किया जाता है, तो बिना जांच या फॉरेंसिक प्रयोगशाला द्वारा विश्लेषण किए बगैर इसे गोमांस क़रार दे दिया जाता है। अधिकांश मामलों में, मांस को विश्लेषण के लिए नहीं भेजा जाता है। व्यक्तियों को ऐसे अपराध के लिए जेल में रखा गया है जो शायद किये नहीं गए थे और जो कि 7 साल तक की अधिकतम सजा होने के चलते प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट द्वारा ट्रायल किए जाते हैं। ”

अदालत ने यह टिप्पणी तब की जब उसे बताया गया कि आरोपी के एक महीने से जेल में जबकि न एफआईआर में उसका नाम है और न ही वह मौक़े पर गिरफ़्तार किया गया था।

इससे पहले हाईकोर्ट ने आवाार पशुओं और परित्यकता गायों के ख़तरे के संबंध में भी एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि “जब भी गायों को बरामद दिखाया जाता है, कोई उचित जब्ती मेमो तैयार नहीं किया जाता है और किसी को नहीं पता होता है कि गाय फिर कहां जाती हैं। गोशालाएं दूध ना देने वाली गायों या बूढ़ी गायों को स्वीकार नहीं करती हैं और उन्हें सड़कों पर भटकने के लिए छोड़ दिया जाता है। इसी तरह दूध देने के बाद गायों का मालिक, गायों को सड़कों पर घूमने के लिए, नाली / सीवर का पानी पीने के लिए और कचरा, पॉलिथीन आदि खाने के लिए छोड़ देता है। इसके अलावा, सड़क पर गायों और मवेशियों से लिए खतरा होता है और उनके कारण मरने वालों की संख्या में बढ़ोतरी की रिपोर्ट भी आती है। ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालक जो अपने पशुओं को खिलाने में असमर्थ हैं, उन्हें छोड़ देते हैं। उन्हें स्थानीय लोगों और पुलिस के डर से राज्य के बाहर नहीं ले जाया जा सकता है। अब कोई चारागाह नहीं है। इस प्रकार, ये जानवर यहां-वहां भटकते हैं और फसलें नष्ट करते हैं।”

अदालत ने कहा कि “पहले, किसान ‘नीलगाय’ से डरते थे, अब उन्हें अपनी फसलों को आवारा गायों से बचाना होगा। चाहे गाय सड़कों पर हों या खेतों पर, उनके परित्याग का समाज पर बड़े पैमाने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अगर उत्तर प्रदेश गोहत्या निरोधक कानून को उसकी भावना के तहत लागू किया जाना है तो उन्हें गाय आश्रय में या मालिकों के साथ रखने के लिए कार्यवाही की जानी चाहिए।”

इलाहाबाद हाईकोर्ट की यह टिप्पणी उस दक्षिणपंथी उन्माद पर क़रार तमाचा है जो मुसलमानों के ख़िलाफ़ गोमांस को लेकर रात-दिन प्रचार करता है। इसी मसले को लेकर कई मुस्लिम बुज़ुर्गों और नौजवानों को सड़क पर घसीटकर मारा जा चुका है। इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है कि मांस देखते ही उसके गोमांस होने का पता इन लोगों को कैसे लग जाता है। पुलिस भी अूममन इसी थ्योरी को आगे बढ़ाती है क्योंकि आरोप है कि योगी सरकार का इरादा भी यही रहता है। पुलिस क़ानून जानती है, पर राजनीतिक कारणों से उसका पालन नहीं करती।


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